देहरादून: उत्तराखंड के आर्थिक हालात राज्य सरकारों के लिए हमेशा बड़ी चिंता रहे हैं. इसके बाद भी इस बार धामी सरकार वित्तीय बोझ के तले दिल खोलकर खर्च करने में गुरेज नहीं कर रही है. ताजा उदाहरण मैकेंजी ग्लोबल एजेंसी को हायर करने के बाद विशेषज्ञों की भर्ती का वो आदेश है, जिसे भविष्य में जस्टिफाई करना सरकार के लिए मुश्किल हो सकता है. जानिए राज्य के खराब आर्थिक हालातों के बीच दोनों हाथ से बजट खर्च करने का क्या है ये मामला...
उत्तराखंड सरकार को अभी मैकेंजी ग्लोबल कंसलटेंट एजेंसी को हायर किए हुए 6 महीने भी नहीं हुए हैं, कि सरकार की तरफ से एक नया आदेश प्रदेश के वित्तीय बोझ को और बढ़ाने जा रहा है. दरअसल, शासन की तरफ से प्रदेश में सचिव और विभागाध्यक्षों को विशेषज्ञ उपलब्ध कराने का आदेश जारी किया गया है. वैसे तो यह व्यवस्था अनिवार्य नहीं होगी, लेकिन, शासन के आदेश के बाद यह तो साफ हो ही गया है कि सरकार बजट ख़र्च करने को लेकर किसी दबाव में नहीं है.
बता दें उत्तराखंड फिलहाल करीब एक लाख करोड़ के कर्ज की तरफ बढ़ रहा है. राज्य स्थापना के दौरान 4000 करोड़ के कर्ज हमें बंटवारे में मिला, लेकिन, यह कर्ज कम होने की जगह धीरे धीरे बढ़ते हुए अब करीब 100000 करोड़ तक पहुंच गया है. चिंता की बात यह रही कि राज्य इस दौरान अपने राजस्व के रिसोर्सेज नहीं तलाश पाया. बहरहाल, राज्य के इन्हीं खराब वित्तीय स्थितियों के कारण पूर्ववर्ती सरकारों में मितव्ययता जैसी बातों पर काफी फोकस किया गया, लेकिन, मौजूदा धामी सरकार इसके ठीक उलट सोचती है. सरकार ने खर्चे में कटौती के बजाय इकोनमी को दोगुना करने के लिए संसाधनों में पैसे लगाने का फैसला लिया. मैकेंजी ग्लोबल कंसलटेंट एजेंसी को हायर करना इसी बात को परिलक्षित करता है.
पढ़ें- गढ़वाल विवि के एनुअल फंक्शन पर बनी सहमति, 19-22 मई को होगी अंतर महाविद्यालय प्रतियोगिता
सरकार इस पर करीब 50 करोड़ से अधिक का खर्च कर रही है, हालांकि, सरकार की तरफ से कभी इस पर एक्यूरेट खर्च को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं की गई, लेकिन, सवाल इसका नहीं है. सवाल यह है कि एक कंसलटेंट एजेंसी जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जानी जाती है और दुनिया के दूसरे देशों में भी इकोनमी को बेहतर करने के लिए सलाहकार एजेंसी के रूप में काम कर चुकी है उसको हायर करने के बाद भी सरकार ने एक और नया आदेश जारी कर दिया. इसके तहत सरकार ने राज्य सचिवालय में मौजूद सचिवों को दो विशेषज्ञ रखने और विभागाध्यक्ष को एक विशेषज्ञ रखने की अनुमति दे दी है. बड़ी बात यह है कि विशेषज्ञ होने के नाते इनका उच्च वेतनमान तय किया गया है. हालांकि, यह भी स्पष्ट किया गया है कि सचिव या विभाग अध्यक्षों के लिए विशेषज्ञों को रखना अनिवार्य नहीं है, बल्कि जरूरत के लिहाज से सचिव और विभागाध्यक्ष अपने पास विशेषज्ञों को रख सकते हैं, ताकि, तमाम नई योजनाओं के लिए बेहतर स्कीम तैयार की जा सके.
पढ़ें- काशीपुर स्टेडियम से शिफ्ट नहीं होगा एसटीसी सेंटर, अजय भट्ट ने केंद्रीय खेल मंत्री से की मुलाकात
वैसे बताया यह गया है कि इससे पहले जिलाधिकारियों की तरफ से प्रोजेक्ट फॉर्मूलेशन के लिए विशेषज्ञों को रखे जाने की डिमांड की गई थी. जिसकी अनुमति पूर्व में ही दे दी गई थी. ऐसे में अब इसी फार्मूले पर काम करते हुए शासन सचिवों और विभागाध्यक्ष के लिए भी इसी व्यवस्था को आगे बढ़ाया है. इसके लिए जिओ भी कर दिया गया है. इसके पीछे तर्क यह है कि कंसलटेंट एजेंसी मैकेंजी सभी सेक्टर में काम नहीं कर रहा है. विशेषज्ञों के जरिए बेहतर प्रोजेक्ट को तैयार करने से लेकर उसके इंप्लीमेंट तक के लिए इनका प्रयोग किया सकता है.
उत्तराखंड के रहे हैं खराब अनुभव: राज्य में विशेषज्ञों को विभागों में रखना कोई गलत बात नहीं है, ना ही किसी कंसल्टेंसी को हायर करना कोई गलती है, लेकिन, उत्तराखंड के पूर्व के अनुभव बेहद खराब रहे हैं. यही अनुभव राज्य में लोगों की आशंकाओं को बढ़ा देते हैं. पूर्व में भी राज्य सरकारों की तरफ से कई रिटायर्ड लोगों को विभागों में रखा गया. विशेषज्ञ भी रखे गए. तमाम योजनाओं के अमलीजामा पहनाने के लिए विदेश यात्राएं भी की गई, लेकिन, इनका धरातल पर कोई खास फायदा नहीं दिखाई दिया.
पढ़ें- सावधान! तीसरी आंख देख रही है, देहरादून में CCTV ने पकड़ी 200 वाहन चालकों की चोरी, हुआ ई चालान
राजनीतिक पकड़ और भाई भतीजावाद भी रहा है हावी: प्रदेश में सरकारी संस्थाओं में निजी लोगों या एजेंसी को भी समय-समय पर हायर किया जाता रहा है. अक्सर यहां राजनीतिक पकड़ और भाई भतीजावाद के तहत नौकरियां रेवड़ी की तरह बांटे जाने के भी आरोप लगे. लिहाजा, एक आशंका यह भी है कि अच्छे इरादे के साथ की गई कोशिश को भी कई बार गलत कदम बढ़ाकर धराशाई किया जा सकता है. लिहाजा सरकार ने जो फैसला किया है उसको लेकर जवाबदेही और टाइम बाउंड फीडबैक लिया जाना भी बेहद जरूरी है.
इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार नीरज कोहली भी इसी तरह की आशंकाओं को जाहिर कर रहे हैं. नीरज कोहली की मानें तो उत्तराखंड में आज तक राज्य सरकारों की तरफ से विभिन्न योजनाओं के लिए बड़ी-बड़ी बातें की गई. उसके बाद धरातल पर कोई भी लाभ राज्य को नहीं हो पाया. उससे प्रदेशवासियों का सरकार की तरफ से किसी योजना में खर्चीला रवैया रखने पर शक करना लाजमी है. उन्होंने कहा उम्मीद यह भी की जानी चाहिए कि सरकार अपनी इकोनॉमि को बेहतर करें. इन कंसलटेंट एजेंसी या विशेषज्ञों के सुझावों का फायदा राज्य को मिल सके.