देहरादून: उत्तराखंड वन विभाग (Uttarakhand Forest Department) में अब एक बार फिर 2 आईएफएस अधिकारियों पर कार्रवाई (Action on 2 IFS officers) की तलवार लटक रही है. मामला विधानसभा चुनाव की आचार संहिता के दौरान हाथियों के ट्रांसपोर्ट (Transport of elephants during the code of conduct) से जुड़ा है. इसको लेकर वन मुख्यालय ने परीक्षण कर अपनी रिपोर्ट शासन को भेज दी है.
उत्तराखंड वन विभाग अक्सर वन्यजीवों को लेकर विवादों में दिखाई देता है, पिछले दिनों बाघिन के राजाजी नेशनल पार्क (Rajaji National Park) से गायब होने का मामला हो या फिर कॉर्बेट में टाइगर सफारी के नाम पर अनियमितता (Irregularities in the name of Tiger Safari) से जुड़ा मामला. हर मामले में विभाग के अधिकारी सवालों के घेरे में होते हैं और विवाद के बाद महकमे के अधिकारियों में हड़कंप भी मच जाता है, लेकिन इस बार मामला और भी गंभीर है.
सूत्र बताते हैं कि इस पूरे प्रकरण पर तत्कालीन चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन और मुख्यमंत्री के विशेष सचिव डॉ पराग मधुकर धकाते (Dr Parag Madhukar Dhakate) की घेराबंदी की तैयारी की जा रही है. यही नहीं, इस मामले में तत्कालीन कॉर्बेट के निदेशक राहुल पर भी शिकंजा कसा जा सकता है. मामले में वन मंत्री सुबोध उनियाल (Forest Minister Subodh Uniyal) का कहना है कि वन मुख्यालय की ओर से परीक्षण करके शासन को रिपोर्ट भेज दी गई है. जल्द ही इस प्रशासन भी स्थिति स्पष्ट करेगा.
इन अधिकारियों पर क्यों हो सकती है कार्रवाई: दरअसल, प्रदेश के हाथियों को बिना केंद्र की मंजूरी के गुजरात भेज दिया गया और जब केंद्र ने हाथियों को गुजरात भेजने की अनुमति से जुड़े प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया है, जिससे वन विभाग के अधिकारियों के हाथ पांव फूल गए हैं. जैसे मामला सामने आया विभाग ने पूरे मामले का परीक्षण कर पूरी रिपोर्ट शासन को भेज दी है.
यह जानकर आपको हैरानी होगी कि हाथियों को गुजरात भेजने का काम वन विभाग ने तब किया जब पूरा प्रदेश चुनावी मूड में था और प्रदेश में आचार संहिता लागू थी. वन मंत्री सुबोध उनियाल ने खुद इस बात की पुष्टि की है. उन्होंने बताया कि गुजरात से 4 हाथी उत्तराखंड और उत्तराखंड के चार हाथी गुजरात भेजे गए. उत्तराखंड से गुजरात भेजे गए हाथी छोटे थे, जिसके कारण उनसे पेट्रोलिंग का उतना लाभ नहीं लिया जा सकता था. ऐसे में गुजरात के ऊंचे कद के हाथियों को वहां से मंगवाया गया.
वहीं, जिस समय हाथियों के ट्रांसपोर्ट किया गया तब डॉ पराग मधुकर धकाते चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन थे. उनकी अनुमति के बाद ही हाथियों को गुजरात भेजा गया, और वन्यजीवों के ट्रांसपोर्ट से लेकर सभी जरूरी फैसले के लिए चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन ही जिम्मेदार होते हैं. उधर, पहले ही टाइगर सफारी में अवैध निर्माण और पेड़ कटान मामले में जांच के दायरे में आए तत्कालीन कॉर्बेट पार्क निदेशक राहुल कुमार भी इस मामले में भी जांच के दायरे में हैं. हाथियों के ट्रांसपोर्ट के दौरान वो कॉर्बेट के निदेशक थे लिहाजा उनकी भी सीधी जिम्मेदारी इस मामले में रही है.
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अब सवाल यह उठता है कि केंद्र को प्रस्ताव भेजने के बाद केंद्र सरकार की मंजूरी का इंतजार क्यों नहीं किया गया. आपको यह भी बता दें कि हाथी शेड्यूल वन में आता है और इसके ट्रांसपोर्ट को लेकर ऐसे कई प्रोटोकॉल है, जिन्हें पूरा करना बेहद जरूरी है.
आईएफएस अधिकारी डॉ पराग मधुकर न केवल मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के विशेष सचिव हैं, बल्कि तीरथ सिंह रावत और त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री रहते हुए भी उनके विशेष सचिव पद पर रह चुके हैं. जाहिर है कि वो सत्ता के काफी करीब रहे हैं, लेकिन इस सबसे इतर वन मुख्यालय ने अपनी रिपोर्ट को शासन में भेज दिया है. खबर है कि वन मुख्यालय को अपनी रिपोर्ट फिर से तैयार करने के लिए कहा गया है.
इस मामले में दूसरे अधिकारी राहुल कुमार हैं, जो कॉर्बेट के निदेशक लंबे समय तक रहे हैं. उनके कार्यकाल में ही हाथियों को गुजरात भेजा गया था. आपको बता दें कि आईएफएस अधिकारी राहुल के कार्यकाल में ही टाइगर सफारी के नाम पर कॉर्बेट में अनियमितता का मामला सामने आया था. हालांकि, उस मामले में राहुल पर कड़ी कार्यवाही न करते हुए केवल वन मुख्यालय में उन्हें अटैच किया गया था, लेकिन अब इस दूसरे मामले में फिर उनकी घेराबंदी की जा सकती है.