देहरादून: पिछले महीने चमोली के रैणी गांव में आयी भीषण आपदा के बाद राज्य सरकार हिमालयी क्षेत्रों में स्थित ग्लेशियरों, झीलों और हिमस्खलन संभावित क्षेत्रों की निगरानी करने की कवायद में जुटी हुई है. वहीं, उत्तराखंड के सीमांत गांव नीती घाटी में मौजूद वसुंधरा ताल के आकार में बढ़ोत्तरी हो रही है. वसुंधरा ताल में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी ने राज्य आपदा प्रबंधन विभाग की चिंता बढ़ा दी है. जिसको लेकर आपदा विभाग इस ताल का वैज्ञानिक अध्ययन करने जा रहा है.
वसुंधरा ताल के अध्ययन के लिए आपदा विभाग ने वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों को जिम्मेदारी सौंपी है. वसुंधरा ताल के फैलाव के कारणों सहित तमाम पहलुओं का वैज्ञानिक अध्ययन करेंगे. इस अध्ययन की विस्तृत रिपोर्ट दो हफ्ते में विभाग को सौंपी जाएगी. इसके साथ ही उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पहाड़ियों के ढलान पर जमा करोड़ों टन मलबे की जिओ मैपिंग भी की जाएगी. इसके अतिरिक्त वैज्ञानिक अध्ययन के पहले चरण में किसी एक नदी घाटी के लिए परियोजना प्रस्ताव भी तैयार किया जाएगा.
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आपदा सचिव एसए मुरुगेशन ने बताया कि नीती घाटी में मौजूद वसुंधरा ताल के क्षेत्रफल में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है. इसे देखते हुए बीते दिनों राज्य आपदा प्रबंधन विभाग की अध्यक्षता में बैठक हुई थी, जिसमें उच्च हिमालयी क्षेत्रों में स्थित ग्लेशियरों, झीलों और हिमस्खलन संभावित क्षेत्रों की निगरानी से जुड़े तमाम पहलुओं पर चर्चा की गई. इसके साथ ही बैठक में वसुंधरा ताल के क्षेत्रफल में निरंतर बढ़ोत्तरी को लेकर भी चर्चा हुई. जिसके बाद यह तय किया गया कि वसुंधरा ताल के आकार में हो रही बढ़ोत्तरी के कारणों का पता लगाने के लिए वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों को भेजा गया है, जो दो हफ्ते में अपनी विस्तृत रिपोर्ट सौंपेगी.