देहरादून: देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले शहीदों की यादें आज भी उनके परिवारों के जहन से निकल नहीं पाई हैं. अपने वीर सपूत को याद कर आज भी आंखें नम हो जाती हैं. गोरखा रेजीमेंट में तैनात प्रवीण थापा मात्र 22 साल की उम्र में देश के लिए कुर्बान हो गए और अपने पीछे छोड़ गए एक डायरी और कुछ यादें. शहीद प्रवीण थापा के पिता टीका राम थापा को जब अपने बेटे की याद आती है तो उस डायरी को सीने से लगा लेते हैं.
6/8 गोरखा रेजीमेंट में 3 साल की सेवा दे चुके प्रवीण थापा 11 सितंबर 1998 को वीरगति को प्राप्त हो गए थे. देहरादून के संतोषगढ़ संतला देवी मंदिर मार्ग पर झाड़ीवाला में रहने वाले शहीद प्रवीण थापा का परिवार आज भी अपने जवान बेटे की शहादत को भूल नहीं पाया है. शहीद के पिता टीका राम आज भी परवीन की यादों के सहारे जी रहे हैं.
ईटीवी भारत से बातचीत में शहीद प्रवीन के पिता ने रुंधे हुए गले से कहा कि जब भी प्रवीण की याद आती है तो रो लेते हैं. प्रवीण की डायरी को देखकर उसकी बहुत याद आती है. प्रवीण के पिता कहते हैं की इतनी कम उम्र में बेटे को खोने का दर्द तो बहुत है, लेकिन देश के लिए जान न्योछावर करने वाले ऐसे बलिदानी बेटे पर गर्व भी बहुत होता है.
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प्रवीण के पिता टीका राम को दुख केवल इस बात का है कि बेटे की शहादत अब सरकारी मशीनरी के सामने फीकी पड़ चुकी है. उनके बेटे ने इतनी छोटी उम्र में देश के लिए बलिदान दिया लेकिन शायद लगता है कि सरकारों के लिए यह शहादत कोई मायने नहीं रखती है. ऐसा इसलिए क्योंकि जब भी शहीदों के नाम पर कोई आयोजन होता है, तो इन कार्यक्रमों में न तो बुलाया जाता है और न ही शहीद के नाम पर कोई सम्मान दिया जाता है.