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शहीद बेटे की डायरी देख आज भी सिसक उठते हैं टीका राम थापा

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Published : Jul 18, 2019, 10:28 AM IST

Updated : Jul 18, 2019, 3:02 PM IST

शहीद प्रवीण थापा के पिता ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा है कि सरकार उनके बेटे की शहादत को भूल गई है. शहीद के नाम पर होने वाले किसी भी आयोजन में उनको बुलाया भी नहीं जाता.

याद दिलाती है शहीद बेटे की डायरी.

देहरादून: देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले शहीदों की यादें आज भी उनके परिवारों के जहन से निकल नहीं पाई हैं. अपने वीर सपूत को याद कर आज भी आंखें नम हो जाती हैं. गोरखा रेजीमेंट में तैनात प्रवीण थापा मात्र 22 साल की उम्र में देश के लिए कुर्बान हो गए और अपने पीछे छोड़ गए एक डायरी और कुछ यादें. शहीद प्रवीण थापा के पिता टीका राम थापा को जब अपने बेटे की याद आती है तो उस डायरी को सीने से लगा लेते हैं.

6/8 गोरखा रेजीमेंट में 3 साल की सेवा दे चुके प्रवीण थापा 11 सितंबर 1998 को वीरगति को प्राप्त हो गए थे. देहरादून के संतोषगढ़ संतला देवी मंदिर मार्ग पर झाड़ीवाला में रहने वाले शहीद प्रवीण थापा का परिवार आज भी अपने जवान बेटे की शहादत को भूल नहीं पाया है. शहीद के पिता टीका राम आज भी परवीन की यादों के सहारे जी रहे हैं.

ईटीवी भारत से बातचीत में शहीद प्रवीन के पिता ने रुंधे हुए गले से कहा कि जब भी प्रवीण की याद आती है तो रो लेते हैं. प्रवीण की डायरी को देखकर उसकी बहुत याद आती है. प्रवीण के पिता कहते हैं की इतनी कम उम्र में बेटे को खोने का दर्द तो बहुत है, लेकिन देश के लिए जान न्योछावर करने वाले ऐसे बलिदानी बेटे पर गर्व भी बहुत होता है.

याद दिलाती है शहीद बेटे की डायरी.

पढ़ें- कारगिल: कैसे मुश्किल हालात में फतह हुआ था टाइगर हिल, कंपनी कमांडर ने बताई दास्तां

प्रवीण के पिता टीका राम को दुख केवल इस बात का है कि बेटे की शहादत अब सरकारी मशीनरी के सामने फीकी पड़ चुकी है. उनके बेटे ने इतनी छोटी उम्र में देश के लिए बलिदान दिया लेकिन शायद लगता है कि सरकारों के लिए यह शहादत कोई मायने नहीं रखती है. ऐसा इसलिए क्योंकि जब भी शहीदों के नाम पर कोई आयोजन होता है, तो इन कार्यक्रमों में न तो बुलाया जाता है और न ही शहीद के नाम पर कोई सम्मान दिया जाता है.

देहरादून: देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले शहीदों की यादें आज भी उनके परिवारों के जहन से निकल नहीं पाई हैं. अपने वीर सपूत को याद कर आज भी आंखें नम हो जाती हैं. गोरखा रेजीमेंट में तैनात प्रवीण थापा मात्र 22 साल की उम्र में देश के लिए कुर्बान हो गए और अपने पीछे छोड़ गए एक डायरी और कुछ यादें. शहीद प्रवीण थापा के पिता टीका राम थापा को जब अपने बेटे की याद आती है तो उस डायरी को सीने से लगा लेते हैं.

6/8 गोरखा रेजीमेंट में 3 साल की सेवा दे चुके प्रवीण थापा 11 सितंबर 1998 को वीरगति को प्राप्त हो गए थे. देहरादून के संतोषगढ़ संतला देवी मंदिर मार्ग पर झाड़ीवाला में रहने वाले शहीद प्रवीण थापा का परिवार आज भी अपने जवान बेटे की शहादत को भूल नहीं पाया है. शहीद के पिता टीका राम आज भी परवीन की यादों के सहारे जी रहे हैं.

ईटीवी भारत से बातचीत में शहीद प्रवीन के पिता ने रुंधे हुए गले से कहा कि जब भी प्रवीण की याद आती है तो रो लेते हैं. प्रवीण की डायरी को देखकर उसकी बहुत याद आती है. प्रवीण के पिता कहते हैं की इतनी कम उम्र में बेटे को खोने का दर्द तो बहुत है, लेकिन देश के लिए जान न्योछावर करने वाले ऐसे बलिदानी बेटे पर गर्व भी बहुत होता है.

याद दिलाती है शहीद बेटे की डायरी.

पढ़ें- कारगिल: कैसे मुश्किल हालात में फतह हुआ था टाइगर हिल, कंपनी कमांडर ने बताई दास्तां

प्रवीण के पिता टीका राम को दुख केवल इस बात का है कि बेटे की शहादत अब सरकारी मशीनरी के सामने फीकी पड़ चुकी है. उनके बेटे ने इतनी छोटी उम्र में देश के लिए बलिदान दिया लेकिन शायद लगता है कि सरकारों के लिए यह शहादत कोई मायने नहीं रखती है. ऐसा इसलिए क्योंकि जब भी शहीदों के नाम पर कोई आयोजन होता है, तो इन कार्यक्रमों में न तो बुलाया जाता है और न ही शहीद के नाम पर कोई सम्मान दिया जाता है.

Intro:summary- शाहिद प्रवीन थापा की डायरी और उनके पिता की कहानी।

Note- ये खबर कारगिल श्पेशल स्टोरी है और फीड FTP से (uk_deh_01_shahid ki diary_vis_byte_7205800) नाम से भेजी गई है।

एंकर- कारगिल में देश की सीमा पर अपनी जान की आहुति देने वाले शहीदों की यादें आज 20 साल बाद भी उनके परिवारों के जहन से निकल नहीं पाई है। ऐसी ही एक याद शहीद प्रवीण थापा के पिता टीका राम थापा आज भी अपने सीने से दूर नहीं कर पाए हैं। गोरखा रेजीमेंट में तैनात प्रवीण थापा केवल 22 साल की छोटी सी उम्र में अपने परिवार को केवल अपनी एक डायरी और कुछ यादों के सहारे पीछे छोड़ गए। कारगिल शहीद प्रवीण थापा के पिताजी टीका राम थापा आज भी घड़ी दो घड़ी अपने जवान बेटे की बस उस डायरी को सीने से लगा लेते हैं जिसमें प्रवीण कि वह सारी बातें लिखी हुई है जो प्रवीण अक्सर अपने और अपने परिवार को लेकर लिखता था।


Body:वीओ- 6/8 गोरखा रेजीमेंट में 3 साल की सेवाएं दे चुके प्रवीण थापा कारगिल युद्ध के की शुरुआती घुसपैठ के दौरान केवल 22 साल की छोटी सी उम्र में 11 सितंबर 1998 को वीरगति को प्राप्त हो गए थे देहरादून के संतोषगढ़ संतला देवी मंदिर मार्ग पर झाड़ी वाला में रहने वाले शहीद प्रवीण थापा का परिवार आज भी अपने जवान बेटे की शहादत को भूल नहीं पाया है खासतौर से शहीद प्रवीण के पिता टीका राम आज भी परवीन की यादों के सहारे जी रहे हैं।

शहीद परवीन के पिता से जब हमने बात की और प्रवीन की डायरी को लेकर कुछ पूछा तो उन्होंने भरे हुए गले के साथ कहा कि अपने बेटे की इन यादों को देख कर उन्हें उसकी बहुत याद आती है। प्रवीण के पिता कहते हैं की इतनी कम उम्र में बेटे को खोने का दर्द तो बहुत है लेकिन देश के लिए जान न्योछावर करने वाले ऐसे बलिदानी बेटे से गर्व भी बहुत होता है। लेकिन इसके बावजूद भी प्रवीण के पिता टीका राम को दुख केवल इस बात का है क्योंकि शहीद की शहादत अब सरकारी मशीनरी के सामने फीकी पड़ चुकी है परवीन के पिता का कहना है कि उनके बेटे ने इतनी छोटी उम्र में देश के लिए इतना बड़ा बलिदान दिया लेकिन शायद लगता है कि सरकारों के लिए यह शहादत कोई मायने नहीं रखती है ऐसा इसलिए क्योंकि जब भी शहीदों के नाम पर कोई आयोजन होता है तो ना तो उन्हें इन कार्यक्रमों में बुलाया दिया जाता है नाही शहीद के नाम पर कोई सम्मान दिया जाता है।

वन टू वन प्रवीण के पिता


Conclusion:
Last Updated : Jul 18, 2019, 3:02 PM IST
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