ऋषिकेश: तीर्थनगरी के परमार्थ निकेतन में जर्मनी के 70 से अधिक लोगों का एक दल पहुंचा. दल के सदस्यों ने परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद से भेंटवार्ता की. साथ ही सदस्यों ने दिव्य गंगा आरती और सत्संग में भी प्रतिभाग किया. इसके साथ ही स्वामी चिदानंद ने युवाओं से अपील करते हुए पर्यावरण को वैश्विक चुनौती के रूप में स्वीकार कर इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए.
जर्मनी से आए दल के सदस्यों से स्वामी चिदानंद सरस्वती ने जल, जंगल और जमीन पर बढ़ते प्रदूषण के बारे में चर्चा की. साथ ही उन्होंने बताया कि ये समस्या किसी एक राष्ट्र की नहीं, बल्कि वैश्विक समस्या है. इसके लिए समाधान भी मिलकर खोजना होगा. जल और जमीन के मुद्दे वैश्विक मुद्दे हैं. इन समस्याओं के समाधान के लिए सब को मिलकर काम करना होगा. बता दें कि जर्मनी से आए दल में कुछ बच्चे अच्छी गुजराती बोलते और गुजराती में गाते भी हैं. कई बच्चे गुजरात के गुरुकुलों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं.
स्वामी चिदानंद ने बताया कि भारतीय युवाओं के लिये एक संदेश और सबक भी है कि वो अपनी भाषा, संस्कृति और संस्कारों को न भूलें. विदेशी भारत में आकर भारतीय संस्कृति को सीख रहे हैं. उन्होंने भारतीय युवाओं का आह्वान करते हुये कहा कि अपनी जड़ों से जुडे़ रहें.
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स्वामी चिदानंद सरस्वती ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव बान की मून ने कहा था कि ’’कोई वैकल्पिक योजना नहीं है, क्योंकि हमारे पास इस धरती की तरह कोई दूसरा ग्रह नहीं है. ये वास्तविकता आज के युवाओं के लिये चुनौतीपूर्ण है. युवाओं को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ना जरूरी है.’’ युवाओं के कंधों पर मानव सभ्यता को ऊंचाई पर ले जाने की जिम्मेदारी है.
21वीं शताब्दी की वैश्विक चुनौतियों में जलवायु परिवर्तन, जल प्रदूषण और कम होते जंगल सबसे बड़ी समस्या है. इसके लिये पर्यावरणीय नैतिकता जरूरी है, जिससे हम वैश्विक पर्यावरण को बचा सकते हैं. हमें वैश्विक स्तर पर सतत् विकास लक्ष्य को अपनाना होगा, जिससे वास्तव में सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे.