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मुख्य वन संरक्षक बोले- वन्यजीव नहीं जिम्मेदार, पहाड़ों से कई अन्य वजहों से हुआ पलायन - देहरादून न्यूज

वन विभाग का मानना है कि सरकार अपने स्तर से समुचित प्रयास कर रही है, लेकिन लोगों को भी वन्यजीवों के साथ तालमेल बैठना होगा.

वाइल्डलाइफ
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Published : Oct 2, 2019, 10:39 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में वन्य जीव फसलों को काफी नुकसान पहुंच रहा है. हर साल वन्यजीव जंगलों के निकलकर आबादी का रूख कर रहे हैं. जिस वजह से मानव और जंगली जानवरों के बीच सघर्ष बढ़ाता जा रहा है. पहाड़ों बंदरों और सूअरों को आतंक सबसे ज्यादा देखने को मिलता है. यहीं कारण है कि पहाड़ों जिलों से ग्रामीण पलायन कर रहे हैं, लेकिन वन महकमा वन्यजीवों को पलायन का कारण नहीं मानता.

प्रदेश के प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने वाइल्डलाइफ के कारण हो रहे पलायन को सिरे से नकारा है. उन्होंने कहा कि यह दुष्प्रचार किया जा रहा है कि लोग पहाड़ों से पलायन वाइल्डलाइफ की वजह से कर रहे हैं. उन्होंने उत्तराखंड में पलायन आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि प्रमुख वन संरक्षक ने बताया कि जंगली जानवारों की वजह से मात्र 6.30 प्रतिशत पलायन हुआ है, जबकि 90 प्रतिशत पलायन अन्य कारणों से हुआ है.

मानव और जंगली जानवरों के बीच संघर्ष बढ़ाता जा रहा है.

पढ़ें- 8 बच्चों को छोड़ 16 साल के प्रेमी के साथ फरार हुई 58 साल की महिला, परिजनों ने पकड़कर की धुनाई

प्रमुख वन संरक्षक के मुताबिक यह कहना ठीक नहीं है कि सूअरों और बंदरों की वजह से लोग पहाड़ छोड़ रहे है. हालांकि, वो इस बात को स्वीकार करते है कि जंगली जानवरों की वजह से थोड़ा पलायन जरूर हुआ है. उनका कहना है कि जंगली जानवारों से ग्रामीणों को कोई नुकसान न पहुंचे इसके लिए विभाग लगातार काम कर रहा है.

जयराज ने कहा कि वन विभाग द्वारा बंदरों की नसबंदी के लिए कार्यक्रम चलाया जा रहा है. अभी तक प्रदेश में करीब पांच हजार बंदरों का बंध्याकरण किया जा चुका है. वहीं, जंगली सूअरों को रोकने के लिए सरकार से अनुमति ले ली गई है कि यदि सूअर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं तो उसको खेत में मारने की इजाजत है. क्योंकि उसे पीड़क जंतु माना गया है, तो इसलिए सुअर को मारने की परमिशन की जरूरत नहीं है, लेकिन जंगली सूअर को जंगल में नहीं मारना है. बल्कि काश्तकारों के खेतों को यदि सूअर नुकसान पहुंचा रहा है तो उसे मारने की अनुमति प्रदान की गई है.

पढ़ें- छात्रवृत्ति घोटाला: स्वामी पूर्णानंद डिग्री कॉलेज पर कसा शिकंजा, SIT ने दर्ज की FIR

वन विभाग का मानना है कि सरकार अपने स्तर से समुचित प्रयास कर रही है, लेकिन लोगों को भी वन्यजीवों के साथ तालमेल बैठाना होगा. देखने वाली बात यह है कि मनुष्य भी जंगलों की ओर जा रहे है और लोगों की आमद जंगलों में बढ़ती जा रही है. ऐसे में यह समझना होगा कि हम सभी को सहअस्तित्व अपनाना होगा.

देहरादून: उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में वन्य जीव फसलों को काफी नुकसान पहुंच रहा है. हर साल वन्यजीव जंगलों के निकलकर आबादी का रूख कर रहे हैं. जिस वजह से मानव और जंगली जानवरों के बीच सघर्ष बढ़ाता जा रहा है. पहाड़ों बंदरों और सूअरों को आतंक सबसे ज्यादा देखने को मिलता है. यहीं कारण है कि पहाड़ों जिलों से ग्रामीण पलायन कर रहे हैं, लेकिन वन महकमा वन्यजीवों को पलायन का कारण नहीं मानता.

प्रदेश के प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने वाइल्डलाइफ के कारण हो रहे पलायन को सिरे से नकारा है. उन्होंने कहा कि यह दुष्प्रचार किया जा रहा है कि लोग पहाड़ों से पलायन वाइल्डलाइफ की वजह से कर रहे हैं. उन्होंने उत्तराखंड में पलायन आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि प्रमुख वन संरक्षक ने बताया कि जंगली जानवारों की वजह से मात्र 6.30 प्रतिशत पलायन हुआ है, जबकि 90 प्रतिशत पलायन अन्य कारणों से हुआ है.

मानव और जंगली जानवरों के बीच संघर्ष बढ़ाता जा रहा है.

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प्रमुख वन संरक्षक के मुताबिक यह कहना ठीक नहीं है कि सूअरों और बंदरों की वजह से लोग पहाड़ छोड़ रहे है. हालांकि, वो इस बात को स्वीकार करते है कि जंगली जानवरों की वजह से थोड़ा पलायन जरूर हुआ है. उनका कहना है कि जंगली जानवारों से ग्रामीणों को कोई नुकसान न पहुंचे इसके लिए विभाग लगातार काम कर रहा है.

जयराज ने कहा कि वन विभाग द्वारा बंदरों की नसबंदी के लिए कार्यक्रम चलाया जा रहा है. अभी तक प्रदेश में करीब पांच हजार बंदरों का बंध्याकरण किया जा चुका है. वहीं, जंगली सूअरों को रोकने के लिए सरकार से अनुमति ले ली गई है कि यदि सूअर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं तो उसको खेत में मारने की इजाजत है. क्योंकि उसे पीड़क जंतु माना गया है, तो इसलिए सुअर को मारने की परमिशन की जरूरत नहीं है, लेकिन जंगली सूअर को जंगल में नहीं मारना है. बल्कि काश्तकारों के खेतों को यदि सूअर नुकसान पहुंचा रहा है तो उसे मारने की अनुमति प्रदान की गई है.

पढ़ें- छात्रवृत्ति घोटाला: स्वामी पूर्णानंद डिग्री कॉलेज पर कसा शिकंजा, SIT ने दर्ज की FIR

वन विभाग का मानना है कि सरकार अपने स्तर से समुचित प्रयास कर रही है, लेकिन लोगों को भी वन्यजीवों के साथ तालमेल बैठाना होगा. देखने वाली बात यह है कि मनुष्य भी जंगलों की ओर जा रहे है और लोगों की आमद जंगलों में बढ़ती जा रही है. ऐसे में यह समझना होगा कि हम सभी को सहअस्तित्व अपनाना होगा.

Intro: प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों मे वन्य जीवो द्वारा फसलों के नष्ट किए जाने से काश्तकार परेशान हैं। हर साल जंगल से निकलकर आबादी की ओर आने वाले वन्य जीवों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, पर्वतीय जिलों में बंदरों और जंगली सूअरों का आतंक अक्सर देखने को मिलता है, जिस कारण वहां से हो रहा पलायन भी मुख्य कारण है। लेकिन वन महकमा वाइल्डलाइफ से होने वाले पलायन को सिरे से नकार रहा है।


Body:प्रदेश के प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने वाइल्डलाइफ के कारण हो रहे पलायन को सिरे से नकारते हुए कहा कि यह दुष्प्रचार किया जा रहा है कि लोग पहाड़ों से पलायन वाइल्डलाइफ की वजह से कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में पलायन आयोग ने सर्वे किया है और इसकी गहनता से पड़ताल की है कि आखिर पहाड़ों से लोग पलायन क्यों कर रहे हैं , उसमें पाया गया कि 6:30 परसेंट कारण वाइल्डलाइफ है। जबकि 90 प्रतिशत से अधिक अन्य कारण सामने आये हैं। प्रमुख वन संरक्षक के मुताबिक यह कहना ठीक नहीं है कि वहां के लोग सूअरों और बंदरों की वजह से पहाड़ छोड़ रहे हैं। उन्होंने माना कि इसका भी प्रभाव जरूर है मगर फॉरेस्ट डिपार्टमेंट बंदरों और जंगली सूअरों पर लगाम लगाने के लिए अपनी ओर से लगातार एक्शन ले रहा है। विभाग द्वारा बंदरों की नसबंदी का कार्यक्रम चलाया जा रहा है और अभी तक प्रदेश में करीब पांच हज़ार बंदरों का बंध्याकरण किया जा चुका है। वही जंगली सूअरों को रोकने के लिए सरकार से अनुमति ले ली गई है कि यदि सूअर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं तो उसको खेत में मारने की इजाजत है। क्योंकि उसे पीड़क जंतु माना गया है ,तो इसलिए इसमें परमिशन की जरूरत नहीं है । लेकिन जंगली सूअर को जंगल में नहीं मारना है। बल्कि काश्तकारों के खेतों को यदि सूअर नुकसान पहुंचा रहा है तो उसे मारने की अनुमति प्रदान की गई है।

बाईट-जयराज,प्रमुख वन संरक्षक, उत्तराखंड


Conclusion:हालांकि वन विभाग का मानना है कि सरकार अपने स्तर से समुचित प्रयास कर रही है,मगर लोगों को इस बात को समझना होगा कि वन्यजीवों के साथ उन्हें कोएक्जिस्ट करना होगा। देखने वाली बात यह है कि मनुष्य भी जंगलों की ओर जा रहे हैं और लोगों की आमद जंगलों में बढ़ती जा रही है,ऐसे मे यह समझना होगा कि हम सभी को सहअस्तित्व अपनाना होगा।
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