देहरादून: उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में वन्य जीव फसलों को काफी नुकसान पहुंच रहा है. हर साल वन्यजीव जंगलों के निकलकर आबादी का रूख कर रहे हैं. जिस वजह से मानव और जंगली जानवरों के बीच सघर्ष बढ़ाता जा रहा है. पहाड़ों बंदरों और सूअरों को आतंक सबसे ज्यादा देखने को मिलता है. यहीं कारण है कि पहाड़ों जिलों से ग्रामीण पलायन कर रहे हैं, लेकिन वन महकमा वन्यजीवों को पलायन का कारण नहीं मानता.
प्रदेश के प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने वाइल्डलाइफ के कारण हो रहे पलायन को सिरे से नकारा है. उन्होंने कहा कि यह दुष्प्रचार किया जा रहा है कि लोग पहाड़ों से पलायन वाइल्डलाइफ की वजह से कर रहे हैं. उन्होंने उत्तराखंड में पलायन आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि प्रमुख वन संरक्षक ने बताया कि जंगली जानवारों की वजह से मात्र 6.30 प्रतिशत पलायन हुआ है, जबकि 90 प्रतिशत पलायन अन्य कारणों से हुआ है.
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प्रमुख वन संरक्षक के मुताबिक यह कहना ठीक नहीं है कि सूअरों और बंदरों की वजह से लोग पहाड़ छोड़ रहे है. हालांकि, वो इस बात को स्वीकार करते है कि जंगली जानवरों की वजह से थोड़ा पलायन जरूर हुआ है. उनका कहना है कि जंगली जानवारों से ग्रामीणों को कोई नुकसान न पहुंचे इसके लिए विभाग लगातार काम कर रहा है.
जयराज ने कहा कि वन विभाग द्वारा बंदरों की नसबंदी के लिए कार्यक्रम चलाया जा रहा है. अभी तक प्रदेश में करीब पांच हजार बंदरों का बंध्याकरण किया जा चुका है. वहीं, जंगली सूअरों को रोकने के लिए सरकार से अनुमति ले ली गई है कि यदि सूअर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं तो उसको खेत में मारने की इजाजत है. क्योंकि उसे पीड़क जंतु माना गया है, तो इसलिए सुअर को मारने की परमिशन की जरूरत नहीं है, लेकिन जंगली सूअर को जंगल में नहीं मारना है. बल्कि काश्तकारों के खेतों को यदि सूअर नुकसान पहुंचा रहा है तो उसे मारने की अनुमति प्रदान की गई है.
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वन विभाग का मानना है कि सरकार अपने स्तर से समुचित प्रयास कर रही है, लेकिन लोगों को भी वन्यजीवों के साथ तालमेल बैठाना होगा. देखने वाली बात यह है कि मनुष्य भी जंगलों की ओर जा रहे है और लोगों की आमद जंगलों में बढ़ती जा रही है. ऐसे में यह समझना होगा कि हम सभी को सहअस्तित्व अपनाना होगा.