ETV Bharat / state

चिपको आंदोलन@48: महिलाओं ने पेड़ों से लिपटकर की थी जंगल की रक्षा, केंद्र को देना पड़ा था दखल

उत्तराखंड के चिपको आंदोलन को 48 साल पूरे हो गए हैं. चिपको आंदोलन साल 1973 में चमोली जिले के रैणी गांव से हरे-भरे पेड़ों को कटने से बचाने के लिए किया गया था. साल 1973 में प्रदेश के पहाड़ी जिलों में जंगलों के अंधाधुंध कटान से आहत होकर गौरा देवी के नेतृत्व में ग्रामीणों ने बंदूकों की परवाह किए बिना ही पेड़ों को घेर लिया था. पढ़िए गौरा देवी की कहानी...

gaura devi
गौरा देवी
author img

By

Published : Mar 26, 2021, 5:00 AM IST

Updated : Mar 26, 2021, 12:22 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड के कई आंदोलनों में एक चिपको आंदोलन भी शामिल है. आज इस आंदोलन के 48 साल पूरे हो गए. चिपको आंदोलन साल 1973 में चमोली जिले के रैणी गांव से हरे-भरे पेड़ों को कटने से बचाने के लिए किया गया था. उस दौरान महिलाएं वनों को बचाने के लिए पेड़ों से चिपक गईं थी. इस आंदोलन का नेतृत्व गौरा देवी ने किया था, जो एक इतिहास बन गईं. वहीं, आंदोलन को मुखर होते देख केंद्र सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम बनाया था.

chipko movement
गौरा देवी (फाइल फोटो).

गौरतलब है कि यह आंदोलन तत्कालीन उत्तर प्रदेश के चमोली जिले के छोटे से रैणी गांव से 26 मार्च यानी आज ही के दिन से साल 1973 में शुरू हुया था. साल 1972 में प्रदेश के पहाड़ी जिलों में जंगलों की अंधाधुंध कटाई का सिलसिला शुरू हो चुका था. लगातार पेड़ों के अवैध कटान से आहत होकर गौरा देवी के नेतृत्व में ग्रामीणों ने आंदोलन तेज कर दिया था. बंदूकों की परवाह किए बिना ही उन्होंने पेड़ों को घेर लिया और पूरी रात पेड़ों से चिपकी रहीं. अगले दिन यह खबर आग की तरह फैल गई और आसपास के गांवों में पेड़ों को बचाने के लिए लोग पेड़ों से चिपकने लगे. चार दिन के टकराव के बाद पेड़ काटने वालों को अपने कदम पीछे खींचने पड़े.

chipko movement
चिपको आंदोलन को 48 साल पूरे (फाइल).

ये भी पढ़ेंः चिपको आंदोलन की नायिका गौरा देवी के गांव ने देखा तबाही का मंजर, डर के साए में ग्रामीण

इस आंदोलन में महिला, बच्चे और पुरुषों ने पेड़ों से लिपटकर अवैध कटान का पुरजोर विरोध किया था. गौरा देवी वो शख्सियत हैं, जिनके प्रयासों से ही चिपको आंदोलन को विश्व पटल पर जगह मिल पाई. इस आंदोलन में प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविंद सिंह रावत, चंडीप्रसाद भट्ट समेत कई लोग भी शामिल थे.

chipko movement
पेड़ों से लिपटकर पेड़ों की रक्षा करती महिलाएं (फाइल).

वहीं, 1973 में शुरू हुए इस आंदोलन की गूंज केंद्र सरकार तक पहुंच गई थी. इस आंदोलन का असर उस दौर में केंद्र की राजनीति में पर्यावरण का एक एजेंडा बना. आंदोलन को देखते हुए केंद्र सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम बनाया. इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य वन की रक्षा करना और पर्यावरण को जीवित करना था.

ये भी पढ़ेंः चमोली आपदा की कहानी, 95 साल की अम्मा की जुबानी

चिपको आंदोलन के चलते ही साल 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक विधेयक बनाया था. जिसके तहत देश के सभी हिमालयी क्षेत्रों में वनों के काटने पर 15 सालों का प्रतिबंध लगा दिया गया था. इस आंदोलन के बलबूते महिलाओं को एक अलग पहचान मिल पाई थी. महिलाओं और पुरुषों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान तक की परवाह नहीं की थी.

इस साल रैणी गांव ने देखी तबाही

chipko movement
पेड़ों से लिपटकर खड़ी महिलाएं (फाइल).
बीते 7 फरवरी को ग्लेशियर टूटने से तपोवन क्षेत्र में भारी तबाही मची थी. इस जल सैलाब में कई लोग काल कवलित हो गए थे. अभी भी कई लोग लापता हैं. जोशीमठ के रैणी गांव में आई आपदा की तस्वीरों को देख देश-दुनिया के लोग दहल उठे. कभी इस रैणी गांव की पहचान चिपको आंदोलन से हुआ करती थी, लेकिन आज आपदा की वजह गांव के लोग भयभीत हैं और सरकार से खुद को विस्थापित करने की मांग कर रहे हैं. गौरा देवी आज से 48 साल पहले ही समझ गई थीं कि अगर जंगल नहीं रहेंगे तो ऐसी आपदाएं आ सकती हैं. इसके बावजूद रैणी गांव में पावर प्रोजेक्ट बनाया गया. जंगल काटे गए, जिसका नतीजा भयानक रहा.

देहरादूनः उत्तराखंड के कई आंदोलनों में एक चिपको आंदोलन भी शामिल है. आज इस आंदोलन के 48 साल पूरे हो गए. चिपको आंदोलन साल 1973 में चमोली जिले के रैणी गांव से हरे-भरे पेड़ों को कटने से बचाने के लिए किया गया था. उस दौरान महिलाएं वनों को बचाने के लिए पेड़ों से चिपक गईं थी. इस आंदोलन का नेतृत्व गौरा देवी ने किया था, जो एक इतिहास बन गईं. वहीं, आंदोलन को मुखर होते देख केंद्र सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम बनाया था.

chipko movement
गौरा देवी (फाइल फोटो).

गौरतलब है कि यह आंदोलन तत्कालीन उत्तर प्रदेश के चमोली जिले के छोटे से रैणी गांव से 26 मार्च यानी आज ही के दिन से साल 1973 में शुरू हुया था. साल 1972 में प्रदेश के पहाड़ी जिलों में जंगलों की अंधाधुंध कटाई का सिलसिला शुरू हो चुका था. लगातार पेड़ों के अवैध कटान से आहत होकर गौरा देवी के नेतृत्व में ग्रामीणों ने आंदोलन तेज कर दिया था. बंदूकों की परवाह किए बिना ही उन्होंने पेड़ों को घेर लिया और पूरी रात पेड़ों से चिपकी रहीं. अगले दिन यह खबर आग की तरह फैल गई और आसपास के गांवों में पेड़ों को बचाने के लिए लोग पेड़ों से चिपकने लगे. चार दिन के टकराव के बाद पेड़ काटने वालों को अपने कदम पीछे खींचने पड़े.

chipko movement
चिपको आंदोलन को 48 साल पूरे (फाइल).

ये भी पढ़ेंः चिपको आंदोलन की नायिका गौरा देवी के गांव ने देखा तबाही का मंजर, डर के साए में ग्रामीण

इस आंदोलन में महिला, बच्चे और पुरुषों ने पेड़ों से लिपटकर अवैध कटान का पुरजोर विरोध किया था. गौरा देवी वो शख्सियत हैं, जिनके प्रयासों से ही चिपको आंदोलन को विश्व पटल पर जगह मिल पाई. इस आंदोलन में प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविंद सिंह रावत, चंडीप्रसाद भट्ट समेत कई लोग भी शामिल थे.

chipko movement
पेड़ों से लिपटकर पेड़ों की रक्षा करती महिलाएं (फाइल).

वहीं, 1973 में शुरू हुए इस आंदोलन की गूंज केंद्र सरकार तक पहुंच गई थी. इस आंदोलन का असर उस दौर में केंद्र की राजनीति में पर्यावरण का एक एजेंडा बना. आंदोलन को देखते हुए केंद्र सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम बनाया. इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य वन की रक्षा करना और पर्यावरण को जीवित करना था.

ये भी पढ़ेंः चमोली आपदा की कहानी, 95 साल की अम्मा की जुबानी

चिपको आंदोलन के चलते ही साल 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक विधेयक बनाया था. जिसके तहत देश के सभी हिमालयी क्षेत्रों में वनों के काटने पर 15 सालों का प्रतिबंध लगा दिया गया था. इस आंदोलन के बलबूते महिलाओं को एक अलग पहचान मिल पाई थी. महिलाओं और पुरुषों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान तक की परवाह नहीं की थी.

इस साल रैणी गांव ने देखी तबाही

chipko movement
पेड़ों से लिपटकर खड़ी महिलाएं (फाइल).
बीते 7 फरवरी को ग्लेशियर टूटने से तपोवन क्षेत्र में भारी तबाही मची थी. इस जल सैलाब में कई लोग काल कवलित हो गए थे. अभी भी कई लोग लापता हैं. जोशीमठ के रैणी गांव में आई आपदा की तस्वीरों को देख देश-दुनिया के लोग दहल उठे. कभी इस रैणी गांव की पहचान चिपको आंदोलन से हुआ करती थी, लेकिन आज आपदा की वजह गांव के लोग भयभीत हैं और सरकार से खुद को विस्थापित करने की मांग कर रहे हैं. गौरा देवी आज से 48 साल पहले ही समझ गई थीं कि अगर जंगल नहीं रहेंगे तो ऐसी आपदाएं आ सकती हैं. इसके बावजूद रैणी गांव में पावर प्रोजेक्ट बनाया गया. जंगल काटे गए, जिसका नतीजा भयानक रहा.
Last Updated : Mar 26, 2021, 12:22 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.