देहरादून: राज्य गठन के बाद से ही उत्तराखंड में पलायन एक बड़ी समस्या रही है. राज्य में लगातार हो रहा पलायन राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बना. जिसके बाद उत्तराखंड सरकार ने पलायन पर गंभीरता से सोचना शुरू किया. उसके बाद साल 2017 में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद 2018 में पलायन आयोग का गठन किया गया. जिसमें पलायन की समस्या पर विस्तृत शोध शुरू हुआ. पलायन को लेकर प्रदेश भर में बारीकी से काम होने लगा. पलायन आयोग के अध्यक्ष एसएस नेगी ने बताया कि पलायन आयोग के गठन के बाद निरंतर पलायन के अलग-अलग पहलुओं पर सर्वे किया गया. गांव में जाकर शोध किया गया. जिसमें पलायन के पैटर्न को लेकर एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है.
पिछले 5 सालों में घटी पलायन की दर: उत्तराखंड में पलायन को लेकर के 2017 से अब तक पलायन आयोग ने प्रदेश के सभी 13 जिलों में हो रहे पलायन के पैटर्न पर शोध किया है. प्रदेश में पलायन के आंकड़ों के साथ-साथ उसके कारण और उसके समाधान को लेकर के पलायन आयोग में लगातार सरकार को अपनी सिफारिशें दी हैं. अब 2017 के बाद 2022 में 5 सालों के दौरान तुलनात्मक रूप से प्रदेश में पलायन की क्या स्थिति है, इसको लेकर भी पलायन आयोग ने हाल ही में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. जिसमें कुछ बड़े बदलाव देखने को मिले हैं. पलायन आयोग की ताजा रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में पलायन का पैटर्न हैरतअंगेज रूप से बदला है. अब लोग उत्तराखंड के बाहर अन्य राज्यों में पलायन करने की तुलना में अपने गांव के आसपास मौजूद छोटे-छोटे कस्बों में या फिर शहरों में ही रुक कर अपना व्यवसाय स्थापित कर रहे हैं.
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जिले और राज्य से बाहर पलायन हुआ कम: पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में वर्ष 2017 के मुकाबले वर्ष 2022 में प्रदेश में अस्थाई पलायन यानी अपने गांव से निकलकर आसपास के नजदीकी कस्बों में जहां पर सुविधाएं हैं या फिर जनपद मुख्यालय की तरफ 18.69% बढ़ा है. राज्य के बाहर या फिर एक जनपद से दूसरे जनपद में पलायन 19.00% घटा है.
2017 के मुकाबले 2022 जिलेवार स्थिति
- हरिद्वार जिले में गांव से नजदीकी कस्बे में 10.25% पलायन हुआ. जिला मुख्यालय की तरफ पलायन 2.1% घटा है. राज्य के बाहर पलायन 10.0% घटा है.
- देहरादून जिले में लोगों का पलायन जिला मुख्यालय की तरफ 1.95% ज्यादा रहा. देहरादून से राज्य के बाहर भी पलायन 1.11% बढ़ा है.
- नैनीताल जिले में भी गांव से निकलकर आसपास के कस्बों में 16.85% पलायन बढ़ा है. जिला मुख्यालय की तरफ पलायन घटा है. राज्य से बाहर होने वाला पलायन 9.05% कम हुआ है.
- उत्तरकाशी जिले में गांव के आसपास के छोटे कस्बों में पलायन 12.28% बढ़ा है. जिला मुख्यालय की तरफ भी लोग बढ़े हैं. अपने जिले से बाहर या फिर राज्य से बाहर पलायन में 8.65% कमी आई है.
- उधम सिंह नगर जिले में भी गांव से निकलकर आसपास के कस्बों में 10.79% पलायन बढ़ा है. कुछ लोग जनपद मुख्यालय की तरफ भी बढ़े हैं. राज्य के बाहर और दूसरे जनपदों में पलायन में 10 फ़ीसदी से ज्यादा कमी आई है.
- चमोली जिले में भी वही स्थिति है. यहां 16 फ़ीसदी से ज्यादा लोग गांव से निकलकर आसपास के कस्बों में आए हैं. 5 फ़ीसदी लोग जिला मुख्यालय की तरफ बढ़े हैं. अपने जिले के बाहर 13 फ़ीसदी और राज्य के बाहर पलायन में 9 फ़ीसदी पलायन में कमी आई है.
- चंपावत जिले में भी 16 फ़ीसदी से ज्यादा लोग गांव से छोटे कस्बों में शिफ्ट हुए हैं. जिला मुख्यालय की तरफ भी लोग गये हैं. जनपद से बाहर 15 फ़ीसदी और राज्य के बाहर 3 फ़ीसदी पलायन में कमी आई है.
- टिहरी जिले में 12 फ़ीसदी लोग अपने गांव से निकलकर आसपास के कस्बों में आए हैं. चार फ़ीसदी लोग जिला मुख्यालय की तरफ बढ़े हैं. जनपद के बाहर 10 फ़ीसदी और राज्य के बाहर 6 फ़ीसदी पलायन में कमी आई है.
- बागेश्वर जिले में 11 फ़ीसदी लोग गांव से आसपास के कस्बों में माइग्रेट हुए हैं. यहां जिला मुख्यालय की तरफ लोग नहीं गए हैं. जनपद के बाहर पलायन में 10 फ़ीसदी कमी जरूर आई है. राज्य के बाहर पलायन की स्थिति लगभग वैसी ही है.
- पिथौरागढ़ जिले में 9 फ़ीसदी से ज्यादा लोग गांव से कस्बों में शिफ्ट हुए हैं. जिला मुख्यालय की तरफ और अन्य जिलों में पलायन में कमी आई है. राज्य के बाहर पलायन 5 फ़ीसदी पहले से बढ़ा है.
- रुद्रप्रयाग जिले में स्थिति लगभग 5 साल पहले वाली ही है. रुद्रप्रयाग से राज्य के बाहर पलायन करने वाले लोगों की संख्या में 3 फ़ीसदी से ज्यादा इजाफा हुआ है.
- अल्मोड़ा जिले में गांव से नजदीकी कस्बों में 13 फ़ीसदी से ज्यादा अस्थाई रूप से आए हैं. अल्मोड़ा से दूसरे जनपद या फिर राज्य के बाहर पलायन में कमी आई है. अल्मोड़ा जिले से राज्य के बाहर होने वाले पलायन में 8 फ़ीसदी से ज्यादा कमी आई है.
- पौड़ी में भी 5 साल पहले वाली स्थिति है. पलायन हर स्तर पर थोड़ा थोड़ा कम जरूर हुआ है. राज्य के बाहर पौड़ी से तकरीबन 3 फ़ीसदी बढ़ गया है.
इस तरह अगर हम पूरे 13 जिलों को मिलाकर पूरे उत्तराखंड की बात करें तो गांव से निकलकर आसपास के सुविधाजनक कस्बे में अस्थाई रूप से आने वाले लोगों की संख्या 16.01% बढ़ी है. जिला मुख्यालय की तरफ जाने वाले लोगों की संख्या 2.8% बढ़ी है. अपने जिले से बाहर पलायन करने में 12.08% और राज्य के बाहर पलायन करने में 6.92% कमी आई है.
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पिछले 5 सालों में 24 गांव बने घोस्ट विलेज: पलायन आयोग की ताजा रिपोर्ट के अनुसार साल 2018 के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन के पड़े प्रभाव से 24 राजस्व ग्राम निर्जन यानी आबादी रहित हो गए हैं. जिसे घोस्ट विलेज कहा जाता है. वहीं, इसके अलावा वर्ष 2018 के बाद अन्य गांव या फिर शहरों की तरफ पलायन कर बसे नए आवासीय क्षेत्रों की संख्या 398 हो गई. वहीं, इस सबके चलते 2018 के बाद इस तरह पलायन कर के आए लोगों से आबादी में 50 फ़ीसदी से ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई है. पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा घोस्ट विलेज टिहरी जनपद में तब्दील हुए हैं. टिहरी जिले के चंबा ब्लॉक में सबसे ज्यादा 7 गांव इन 5 सालों के दौरान घोस्ट विलेज में तब्दील हुए हैं.