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चंपावत की चाय के विदेशी भी हैं कायल, 350 महिलाओं को मिला रोजगार - women get employment

चंपावत जिले की 18 ग्राम पंचायतों की 228 हेक्टेयर भूमि पर चाय की खेती की जा रही है. चाय की खेती से यहां की करीब 350 महिलाओं को रोजगार भी मिला है. यहां करीब 40 से 50 हजार किलो चाय का उत्पादन किया जाता है. जिसकी डिमांड देश-विदेश तक है.

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Published : May 28, 2020, 4:56 PM IST

Updated : May 29, 2020, 12:58 PM IST

चंपावतः जिले में ग्रीन लीफ चाय का बखूबी उत्पादन किया जा रहा है. देश-विदेश के लोग यहां उगने वाली ऑर्गेनिक चाय की चुस्की के लिए बेताब रहते हैं. जिसकी डिमांड देश-विदेशों में खूब हो रही है. साथ ही विदेशी लोगों के प्यालों की शान भी बढ़ा रही है. इतना ही नहीं ये चाय पहाड़ की महिलाओं के लिए रोजगार का माध्यम भी बना है.

चंपावत की चाय के विदेशी भी हैं कायल.

बता दें कि, चंपावत में अंग्रेजों ने चाय की खेती शुरू की थी. साल 1995-96 में ग्राम पंचायत सिलंगटाक में चाय विकास बोर्ड योजना को लागू करने के लिए चाय की बागवानी की गई. जो अब चंपावत की पहचान बन चुकी है. वर्तमान में जिले की 18 ग्राम पंचायतों की 228 हेक्टेयर भूमि पर चाय की खेती की जा रही है.

चंपावत में उत्पादित चाय को कोलकाता की पैरामाउंट कंपनी बेचती है. कोलकाता में इस चाय पत्ती की कीमत 1200 रुपये किलो तक है. जहां से इसका निर्यात विदेशों में किया जाता है. इतना ही नहीं इस चाय की विदेशों में काफी डिमांड है. हर साल यहां से करीब 40 से 50 हजार किलो चाय का उत्पादन किया जाता है.

ये भी पढ़ेंः डेयरी के माध्यम से प्रवासियों को मिलेगा रोजगार

चाय विकास बोर्ड के प्रबंधक डैसमेंड ने बताया कि चाय की खेती से यहां की महिलाओं को भी रोजगार मिला है. इस समय चाय उत्पादन में 350 स्थानीय महिलाएं जुड़ीं हैं. यहां तीन प्रकार की चाय का लेवल तैयार किया जाता है. पहली किस्म की जो चाय बनती है, उसे 1200 रुपये किलो, दूसरे किस्म की चाय पती को 800 रुपये किलो और तीसरे किस्म की चाय को 400 रुपये किलो के हिसाब से बेचा जाता है.

उन्होंने बताया कि यहां की चाय आर्गेनिक होती है. जिसमें किसी प्रकार का कोई केमिकल नहीं पाया जाता है. ऐसे में स्वास्थ्य को किसी भी प्रकार से नुकसान नहीं पहुंचाता है. पहाड़ों में खेती को जंगली जानवर नुकसान पहुंचाते हैं, ऐसे में किसानों के लिए चाय की खेती लाभदायक साबित हो रही है. साथ ही कहा कि महिलाओं समेत मनरेगा के तहत चाय उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.

चंपावतः जिले में ग्रीन लीफ चाय का बखूबी उत्पादन किया जा रहा है. देश-विदेश के लोग यहां उगने वाली ऑर्गेनिक चाय की चुस्की के लिए बेताब रहते हैं. जिसकी डिमांड देश-विदेशों में खूब हो रही है. साथ ही विदेशी लोगों के प्यालों की शान भी बढ़ा रही है. इतना ही नहीं ये चाय पहाड़ की महिलाओं के लिए रोजगार का माध्यम भी बना है.

चंपावत की चाय के विदेशी भी हैं कायल.

बता दें कि, चंपावत में अंग्रेजों ने चाय की खेती शुरू की थी. साल 1995-96 में ग्राम पंचायत सिलंगटाक में चाय विकास बोर्ड योजना को लागू करने के लिए चाय की बागवानी की गई. जो अब चंपावत की पहचान बन चुकी है. वर्तमान में जिले की 18 ग्राम पंचायतों की 228 हेक्टेयर भूमि पर चाय की खेती की जा रही है.

चंपावत में उत्पादित चाय को कोलकाता की पैरामाउंट कंपनी बेचती है. कोलकाता में इस चाय पत्ती की कीमत 1200 रुपये किलो तक है. जहां से इसका निर्यात विदेशों में किया जाता है. इतना ही नहीं इस चाय की विदेशों में काफी डिमांड है. हर साल यहां से करीब 40 से 50 हजार किलो चाय का उत्पादन किया जाता है.

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चाय विकास बोर्ड के प्रबंधक डैसमेंड ने बताया कि चाय की खेती से यहां की महिलाओं को भी रोजगार मिला है. इस समय चाय उत्पादन में 350 स्थानीय महिलाएं जुड़ीं हैं. यहां तीन प्रकार की चाय का लेवल तैयार किया जाता है. पहली किस्म की जो चाय बनती है, उसे 1200 रुपये किलो, दूसरे किस्म की चाय पती को 800 रुपये किलो और तीसरे किस्म की चाय को 400 रुपये किलो के हिसाब से बेचा जाता है.

उन्होंने बताया कि यहां की चाय आर्गेनिक होती है. जिसमें किसी प्रकार का कोई केमिकल नहीं पाया जाता है. ऐसे में स्वास्थ्य को किसी भी प्रकार से नुकसान नहीं पहुंचाता है. पहाड़ों में खेती को जंगली जानवर नुकसान पहुंचाते हैं, ऐसे में किसानों के लिए चाय की खेती लाभदायक साबित हो रही है. साथ ही कहा कि महिलाओं समेत मनरेगा के तहत चाय उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.

Last Updated : May 29, 2020, 12:58 PM IST
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