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कारगिल: 3 गोलियां लगने के बाद भी लड़ते रहे सूबेदार सुरेंद्र, तिरंगा फहराकर गढ़वाल राइफल का नाम किया रोशन

कारगिल युद्ध में गढ़वाल राइफल के रिटायर्ड सूबेदार सुरेंद्र सिंह ने भी युद्ध लड़ा था. उन्होंने बताया कि इस दौरान दुश्मनों की तीन गोलियां उन्हें भी लगी, लेकिन देश प्रेम के जज्बे ने उन्हें जिंदा रखा.

surendra singh
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Published : Jul 25, 2019, 7:12 AM IST

Updated : Jul 25, 2019, 7:26 AM IST

चमोलीः 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस की 20वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी. कारगिल युद्ध में देवभूमि के कई जाबांजों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी. इस युद्ध में चमोली जिले के 11 जवान भी शामिल थे. जिसमें 9 जवान गढ़वाल राइफल और 2 जवान नागा रेजिमेंट के शहीद हुए थे. कारगिल युद्ध के दौरान मोर्चे पर तैनात रहे गढ़वाल राइफल के रिटायर्ड सूबेदार सुरेंद्र सिंह से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने बताया कि कारगिल सेक्टर में पाकिस्तानी सेना से लोहा लेना भारतीय जवानों को किसी बड़ी चुनौतियों से कम नहीं था.

गढ़वाल राइफल के रिटायर्ड सूबेदार सुरेंद्र सिंह ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि कारगिल सेक्टर में युद्ध करना बड़ी चुनौती थी, लेकिन गढ़वाल राइफल के जवानों के जज्बे और बुलंद हौसले ने पाकिस्तानी सेना को धूल चटा दी. उन्होंने बताया कि कारगिल सेक्टर में दुश्मनों की सभी पोस्टें ऊंची चोटियों पर थीं. जहां से वो लगातार गोलाबारी कर रहे थे, लेकिन भारतीय सेना ने चट्टान पर रस्सी से सहारे चढ़कर दुश्मनों के कैंपों का सफाया किया.

कारगिल में 3 गोलियां लगने के बाद भी दुश्मनों से लोहा लेते रहे सूबेदार सुरेंद्र सिंह.

ये भी पढे़ंः दावों की पोल खोलती तस्वीर: 8KM पैदल डंडी-कंडी के सहारे बीमार महिला को पहुंचाया अस्पताल

उन्होंने बताया कि इस दौरान दुश्मनों की तीन गोलियां उन्हें भी लगी, लेकिन देश प्रेम के जज्बे ने उन्हें जिंदा रखा. साथ ही कहा कि अभी भी उनके भीतर जज्बा बरकरार है. आज भी देश को जरुरत पड़ने पर वो मोर्चे पर जाने को तैयार हैं. सुरेंद्र सिंह ने बताया कि कारगिल युद्ध के बाद सभी जवानों को वीरता के लिए मेडल (वॉर स्टार) दिया गया, जिसे आज भी वो सीने पर लगाने से फक्र महसूस करते हैं.

उत्तराखंड से 18 गढ़वाल, 10 गढ़वाल और 17 गढ़वाल बटालियन के जवानों को दुश्मनों को धूल चटाने के लिए कारगिल बुलाया गया था. युद्ध के दौरान गढ़वाल राइफल के जवानों ने द्रास सेक्टर में कठिन चोटी प्वाइंट 4700 पर हमला बोला था. जहां पर गढ़वाल राइफल ने दुश्मनों का सफाया कर प्वाइंट 4700 को भारत मे कब्जे में लिया. हालांकि, प्वाइंट 4700 फतह करने के लिए गढ़वाल राइफल के सबसे अधिक जवानों को देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान देना पड़ा था.

चमोलीः 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस की 20वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी. कारगिल युद्ध में देवभूमि के कई जाबांजों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी. इस युद्ध में चमोली जिले के 11 जवान भी शामिल थे. जिसमें 9 जवान गढ़वाल राइफल और 2 जवान नागा रेजिमेंट के शहीद हुए थे. कारगिल युद्ध के दौरान मोर्चे पर तैनात रहे गढ़वाल राइफल के रिटायर्ड सूबेदार सुरेंद्र सिंह से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने बताया कि कारगिल सेक्टर में पाकिस्तानी सेना से लोहा लेना भारतीय जवानों को किसी बड़ी चुनौतियों से कम नहीं था.

गढ़वाल राइफल के रिटायर्ड सूबेदार सुरेंद्र सिंह ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि कारगिल सेक्टर में युद्ध करना बड़ी चुनौती थी, लेकिन गढ़वाल राइफल के जवानों के जज्बे और बुलंद हौसले ने पाकिस्तानी सेना को धूल चटा दी. उन्होंने बताया कि कारगिल सेक्टर में दुश्मनों की सभी पोस्टें ऊंची चोटियों पर थीं. जहां से वो लगातार गोलाबारी कर रहे थे, लेकिन भारतीय सेना ने चट्टान पर रस्सी से सहारे चढ़कर दुश्मनों के कैंपों का सफाया किया.

कारगिल में 3 गोलियां लगने के बाद भी दुश्मनों से लोहा लेते रहे सूबेदार सुरेंद्र सिंह.

ये भी पढे़ंः दावों की पोल खोलती तस्वीर: 8KM पैदल डंडी-कंडी के सहारे बीमार महिला को पहुंचाया अस्पताल

उन्होंने बताया कि इस दौरान दुश्मनों की तीन गोलियां उन्हें भी लगी, लेकिन देश प्रेम के जज्बे ने उन्हें जिंदा रखा. साथ ही कहा कि अभी भी उनके भीतर जज्बा बरकरार है. आज भी देश को जरुरत पड़ने पर वो मोर्चे पर जाने को तैयार हैं. सुरेंद्र सिंह ने बताया कि कारगिल युद्ध के बाद सभी जवानों को वीरता के लिए मेडल (वॉर स्टार) दिया गया, जिसे आज भी वो सीने पर लगाने से फक्र महसूस करते हैं.

उत्तराखंड से 18 गढ़वाल, 10 गढ़वाल और 17 गढ़वाल बटालियन के जवानों को दुश्मनों को धूल चटाने के लिए कारगिल बुलाया गया था. युद्ध के दौरान गढ़वाल राइफल के जवानों ने द्रास सेक्टर में कठिन चोटी प्वाइंट 4700 पर हमला बोला था. जहां पर गढ़वाल राइफल ने दुश्मनों का सफाया कर प्वाइंट 4700 को भारत मे कब्जे में लिया. हालांकि, प्वाइंट 4700 फतह करने के लिए गढ़वाल राइफल के सबसे अधिक जवानों को देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान देना पड़ा था.

Intro:भारत और पाकिस्तान के बीच मई 2009 को हुए कारगिल युद्ध की आगामी 26 जुलाई को 20वी वर्षी पूरी होने जा रही है । करगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने अपना जौहर दिखाकर पाकिस्तान को करारी हार देते हुए पाकिस्तानी सैनिकों को उल्टे पैर भागने को मजबूर कर दिया था।जिसके बाद भारतीय सेना ने कारगिल सेक्टर के टाइगर हिल सहित कई चोटियों पर भारत का तिरंगा फहराकर जीत का जश्न भी मनाया था।


Body:कारगिल युद्ध के दौरान उत्तराखंड से भारतीय सेना में गढ़वाल राइफलस ,और कुमायूँ राइफल की अहम भूमिका रही थी ।कारगिल युद्ध के दौरान गढ़वाल राइफल के जवानों ने पाकिस्तानी सेना को अपनी वीरता का जौहर दिखाते हुए एलओसी से पीछे हटने को मजबूर कर दिया था इस दौरान गढ़वाल राइफल्स ,कुमाऊँ राईल्फस के कई जवान भी शहीद हुए थे।बात अगर गढ़वाल राइफल की करे तो कारगिल युद्ध के दौरान उत्तराखंड से 18 गढ़वाल 10 गढ़वाल और 17 गढ़वाल बटालियन के जवानों को दुश्मनों को धूल चटाने के लिए कारगिल बुलाया गया ।युद्ध के दौरान गढ़वाल राइफल के द्वारा द्रास सेक्टर में कठिन चोटी प्वाइंट 4700 पर हमला बोल दिया ,जंहा पर कि गढ़वाल राइफल ने दुश्मनों का सफाया कर प्वाइंट 4700 को भारत मे कब्जे में ले लिया।हालांकि प्वाइंट 4700 फतह करने के लिए गढ़वाल राइफल के सबसे अधिक जवानों को देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान देना पड़ा था।अकेले ही चमोली जनपद से कारगिल युद्ध के दौरान 11 जवान शहीद हुए थे ,जिसमे कि 9 जवान गढ़वाल राइफल के और 2 जवान नागा रेजिमेंट के शहीद हुए थे।


Conclusion:कारगिल युद्ध के दौरान मोर्चे पर तैनात रहे गढ़वाल राइफल के रिटायर्ड सूबेदार सुरेंद्र सिंह ने बताया कारगिल सेक्टर में पाकिस्तानी सेना से लोहा लेना भारतीय सेना को किसी बड़ी चुनौतियों से कम नही था ।लेकिन गढ़वाल राइफल के जवानों के जज्बे और बुलंद हौसले हौसले ने पाकिस्तानी सेना को धूल चटा दी थी।उन्होंने बताया कि कारगिल सेक्टर में दुश्मनों की सभी पोस्टे चोटियों पर थी,जंहा से वह लगातार गोलाबारी कर रहे थे।लेकिन भारतीय सेना ने चट्टान पर रस्सी से सहारे चढ़कर दुश्मनों के केम्पों का सफाया किया।हालांकि इस दौरान दुश्मनों की तीन गोलियां रिटायर्ड सूबेदार सुरेंद्र सिंह को भी लगी,लेकिन देश प्रेम का जज्बा अभी भी उनके अंदर है,और आज भी देश को जरूरत पड़ने पर वह मोर्चे पर जाने को तैयार है ।

सुरेंद्र सिंह ने बताया कि कारगिल युद्ध के बाद युद्ध मे गए सभी जवानों को वीरता के लिए मैडल (वॉर स्टार)दिया गया,जिसको कि आज भी वह सीने पर लगाने से फक्र महसूस करते है ।


बाईट -सुरेंद्र सिंह-सेवानिर्वित सूबेदार-गढ़वाल राइफल।



बाईट -सेवानिवृत्त सूबेदार -सुरेंद्र सिंह-कारगिल योद्धा।
Last Updated : Jul 25, 2019, 7:26 AM IST
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