चमोली: रेशम कीट पालन (Sericulture or silk farming) व्यवसाय लोगों की आर्थिकी को मजबूत करने में कारगर साबित हो रहा है. चमोली जिले में काश्तकार कृषि व पशुपालन के साथ रेशम कीट पालन को सहायक कारोबार के तौर पर अपनाकर अपनी आजीविका मजबूत बना रहे हैं. लोगों को इस कारोबार में कम लागत और अच्छा मुनाफा हो रहा है. घर बैठे आसानी से इस व्यवसाय को किया जा सकता है. जिले में अब किसानों का रुझान रेशम कीट पालन की ओर बढ़ने लगा है. कीट पालन के साथ-साथ लोग रेशम कीटों के भोजन के लिए शहतूत की खेती भी कर रहे हैं.
दशोली विकासखंड के बगडवालधार-पाडुली की रहने वाली शांति देवी का कहना है कि वह वर्ष 2000 से रेशम कीट पालन का कार्य कर रही हैं. शुरुआत में शहतूत के पेड़ व कीट पालन सामग्री के अभाव में कुछ परेशानी जरूर रही. लेकिन अब रेशम कीट पालन से काश्तकारों को हजारों रुपये का मुनाफा महीने में हो रहा है. काश्तकार बताते हैं कि रेशम कीट पालन करने वाला एक व्यक्ति करीब 20 किलो तक रेशम बना लेता है.
जिला रेशम अधिकारी प्रदीप कुमार का कहना है कि रेशम की पूरे वर्ष भर में दो क्रॉप होती हैं. एक क्रॉप अप्रैल माह में और दूसरी क्रॉप अक्टूबर माह के आसपास तैयार हो जाती है. जनपद में प्रतिवर्ष रेशम कीटों से करीब 3,921 किलोग्राम रेशम का उत्पादन हो जाता है. वर्तमान समय में ए ग्रेड के रेशम की कीमत 400 रुपये प्रति किलोग्राम सरकारी मूल्य तय है.
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वहीं, चमोली जिला रेशम कार्यालय में तैनात मुख्य सहायक रेशम मनोज रावत ने बताया कि वर्तमान समय में चमोली जनपद में 7 रेशम उत्पादन केंद्र स्थित हैं. इनमें नंदप्रयाग, सोनला, गडोरा, नंदकेशरी, गौचर, गैरसैण और गोपेश्वर में केंद्र स्थित हैं.