ETV Bharat / state

जानिए 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान सेना की मदद करने वाले कुंदन सिंह की कहानी - chamoli update news

साल 1962 में भारत-चीन के बीच हुए युद्ध में नीती गांव निवासी कुंदन सिंह ने भारतीय सेना की मदद की थी. जानिए कौन से कुंदन सिंह और किस तरह सेना की मदद की थी.

chamoli
जानिए कुंदन सिंह की कहानी
author img

By

Published : Jun 20, 2020, 11:40 AM IST

Updated : Jul 19, 2020, 11:20 AM IST

चमोली: देश की सीमा से लगे गांवों में रहने वाले लोगों को सेना की द्वितीय पंक्ति भी कहा जाता है. सीमाओं के आसपास रहने वाले लोग हर वक्त सेना की मदद के लिए तैयार रहते हैं. ऐसे ही भारत चीन सीमा पर स्थित नीती गांव के रहने वाले 86 वर्षीय कुंदन सिंह की कहानी है. जिन्होंने ने 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के दौरान भारतीय सेना की मदद की थी. सुनिए कुंदन सिंह की कहानी उन्हीं की जुबानी...

भारत-चीन सीमा पर स्थित नीती गांव के लोग सेना की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. बात चाहे 1962 में हुए भारत-चीन के बीच युद्ध की ही क्यों न हो, सीमाओं पर रहने वाले लोग जवानों के लिए सेना की द्वितीय पंक्ति का काम करते हैं.

कुंदन सिंह की कहानी

1962 के युद्ध में कुंदन सिंह ने सेना की मदद की थी

ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कुंदन सिंह ने बताया कि जब 1962 में भारत-चीन का युद्ध हुआ था तो, उनके द्वारा अपने घोड़ों, खच्चरों और बकरियों पर लादकर सेना की रसद सामग्री बड़ाहोती और ग्यालडुंग सीमा तक पहुंचाई थी. हालांकि, 1962 के युद्ध के दौरान चमोली स्थित सीमाओं पर कोई हलचल नहीं थी, लेकिन फिर भी यहां भारतीय सेना पूरी तैयारी के साथ खड़ी थी.

ये भी पढ़े: गलवान के बहादुरों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाने देंगे : वायुसेना प्रमुख

कुंदन सिंह ने बताया कि तब बॉर्डर तक सड़कें नहीं थी. वह पैदल ही जोशीमठ से सेना का सामान सीमाओं तक पहुंचाते थे, लेकिन आज उनकी उम्र 86 साल है, इसके बावजूद भी वह कहते हैं कि अगर, आज भी भारतीय सेना को मेरी जरूरत होगी तो वह सबसे आगे आकर सेना की मदद के लिए खड़े रहेंगे.

नीती गांव के बारे में जानिए

नीती गांव, जिसे भारत का अंतिम गांव भी कहा जाता है. यह गांव भारत-चीन की सीमा पर बसा हुआ है. यह भारत के उत्तरी छोर पर स्थित है. समुद्र सतह से करीब 3600 मीटर की ऊंचाई पर सरस्वती नदी के समीप स्थित है. यहां के निवासियों को भारत, तिब्बत तथा मंगोलिया से आये मिश्रित लोगों का वंशज माना जाता है. नीती गांव मुख्य दर्रे से दूर तथा अधिक संवेदनशील व प्राकृतिक रूप से ओत-प्रोत है.

चमोली: देश की सीमा से लगे गांवों में रहने वाले लोगों को सेना की द्वितीय पंक्ति भी कहा जाता है. सीमाओं के आसपास रहने वाले लोग हर वक्त सेना की मदद के लिए तैयार रहते हैं. ऐसे ही भारत चीन सीमा पर स्थित नीती गांव के रहने वाले 86 वर्षीय कुंदन सिंह की कहानी है. जिन्होंने ने 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के दौरान भारतीय सेना की मदद की थी. सुनिए कुंदन सिंह की कहानी उन्हीं की जुबानी...

भारत-चीन सीमा पर स्थित नीती गांव के लोग सेना की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. बात चाहे 1962 में हुए भारत-चीन के बीच युद्ध की ही क्यों न हो, सीमाओं पर रहने वाले लोग जवानों के लिए सेना की द्वितीय पंक्ति का काम करते हैं.

कुंदन सिंह की कहानी

1962 के युद्ध में कुंदन सिंह ने सेना की मदद की थी

ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कुंदन सिंह ने बताया कि जब 1962 में भारत-चीन का युद्ध हुआ था तो, उनके द्वारा अपने घोड़ों, खच्चरों और बकरियों पर लादकर सेना की रसद सामग्री बड़ाहोती और ग्यालडुंग सीमा तक पहुंचाई थी. हालांकि, 1962 के युद्ध के दौरान चमोली स्थित सीमाओं पर कोई हलचल नहीं थी, लेकिन फिर भी यहां भारतीय सेना पूरी तैयारी के साथ खड़ी थी.

ये भी पढ़े: गलवान के बहादुरों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाने देंगे : वायुसेना प्रमुख

कुंदन सिंह ने बताया कि तब बॉर्डर तक सड़कें नहीं थी. वह पैदल ही जोशीमठ से सेना का सामान सीमाओं तक पहुंचाते थे, लेकिन आज उनकी उम्र 86 साल है, इसके बावजूद भी वह कहते हैं कि अगर, आज भी भारतीय सेना को मेरी जरूरत होगी तो वह सबसे आगे आकर सेना की मदद के लिए खड़े रहेंगे.

नीती गांव के बारे में जानिए

नीती गांव, जिसे भारत का अंतिम गांव भी कहा जाता है. यह गांव भारत-चीन की सीमा पर बसा हुआ है. यह भारत के उत्तरी छोर पर स्थित है. समुद्र सतह से करीब 3600 मीटर की ऊंचाई पर सरस्वती नदी के समीप स्थित है. यहां के निवासियों को भारत, तिब्बत तथा मंगोलिया से आये मिश्रित लोगों का वंशज माना जाता है. नीती गांव मुख्य दर्रे से दूर तथा अधिक संवेदनशील व प्राकृतिक रूप से ओत-प्रोत है.

Last Updated : Jul 19, 2020, 11:20 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.