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आखिर कब होगा घराटों का कायाकल्प? फायदे से हर कोई है रूबरू - थराली में घराट का अस्तित्व

देश के सभी क्षेत्र क्रांतिकारी परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है. फिर भी कुछ जगहों में आज पुरानी सभ्यता कायम है. घराट अर्थात पनचक्की भी इसका एक उदाहरण है.

घराट
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Published : Feb 10, 2020, 9:05 AM IST

Updated : Feb 10, 2020, 9:18 AM IST

थरालीः कल्पना कीजिए जब अतीत में बिजली नहीं होती होगी तो अनाज की पिसाई कैसे होती होगी. चक्की और कल कारखाने आधुनिकता की देन हैं. लेकिन इसी के इतर देवभूमि में हर गांव में ऐसी सुविधा विकसति थी जिसे देखकर आप भी दंग रह जाएंगे. जो आज के बिजली के चक्की की तरह कार्य करती थी, लेकिन ये बिजली ने चलकर पानी से चलती थी. जिसका पिसा अनाज काफी पौष्टिक माना जाता था. बदलते परिवेश में आधुनिकता की चकाचौंध इसे लील रही है.

आखिर कब होगा घराटों का कायाकल्प.

सरकार देवभूमि की पारंपरिक और पुरातन धरोहरों को संजोए रखने का लाख दावा करती हो, लेकिन सत्ता पर काबिज होती ही सारे वादे और दावे हवा हो जाते हैं. जिससे देवभूमि की शान समझे जाने वाली ऐतिहासिक विरासत विलुप्ति की कगार पर आ रहे हैं. इन्हीं में से एक घराट भी है, जिसके बारे में हर कोई रूबरू हैं. इसके फायदे भी जानता हैं.

भले ही हमारे देश में आज सभी क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हों, लेकिन अभी भी कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां आज भी पुरानी परिपाटी देखी जा सकती है. अभी भी लोग पुरानी सभ्यता को सहेज कर रखे हैं. इसकी बानगी चमोली जिले के थराली में देखने को मिली. 21वीं सदी के इस दौर में भी सीमांत जनपद चमोली के विकासखंड देवाल के दूरस्थ क्षेत्र खेता मानमती में आज भी घराट (पनचक्की) अपने अस्तित्व में है.

यहां के लोग आज भी घराट में अपना गेहूं ,मंडुवा, जौ आदि की पिसाई करवाते हैं. घराट का आटा पौष्टिक माना जाता है. देवभूमि की संस्कृति की एक पारंपरिक और पुरातन पहचान घराट खेता गांव में देखने को मिली. पानी का तीव्र वेग घराट की चक्की को घुमाने वाले पंखे (फितौड़) के ऊपर गिरता है, जिससे घराट का पत्थर घूमता है. पनचक्की में अनाज डालने के लिए लकड़ी या धातु के बने ओखलीनुमा वस्तु में डाला जाता है और पानी के दबाब से घराट का पत्थर घूमता है और अनाज की पिसाई होने लगती है.

घराट बारीक से बारीक अनाज को पीसने में सक्षम होता है. अनाज को डोकची से गिराने के लिए लकड़ी के गुटकों को घूमते पत्थरों के ऊपर रखा जाता है जिनके कंपन से अनाज चक्की में बने छेद में गिरता है.

पिसा अनाज आटे के रूप में चक्की के दो पाटों के बीच बाहर निकल जाता है जिसे एकत्रित कर वापस बोरी में भरकर लोग ले जाते हैं. घराट में अनाज को मोटा, बारीक और पिसाई की गति कम या ज्यादा करने के लिए एक एडजेस्टर भी लगा होता है. घराट के पत्थरों को घुमाने के बाद ये पानी नाली से होते हुए वापस नदी या गधेरों में मिल जाता है. यह मानव निर्मित एक उत्कृष्ट रचना है.

यह भी पढ़ेंः धर्मनगरी में आज रखी जाएगी प्लास्टिक रीसाइक्लिंग प्लांट की नींव

लगभग सभी लोग घराट से गेहूं, जौ ,बाजरा आदि पीसते थे. इसकी पिसाई से बने अनाज का स्वाद सबसे बेहतर बताया जाता है. बदले में घराट स्वामी को आटा दिया जाता था जिसे गढ़वाल की भाषा में भगवानी भी कहते हैं. इससे स्वामी के पूरे परिवार का भरण-पोषण बड़ी आसानी से होता था, परन्तु आज पनचक्की व घराटों का अस्तित्व खतरे में आ गया है.

कुछ गिने-चुने घराटों को छोड़कर लगभग सभी घराट बंद हो चुके हैं. इनको पुनः अस्तित्व में लाने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए. सरकार को घराट स्वामियों को कुछ पारिश्रमिक देना चाहिए, जिससे वे फिर से अपना ध्यान घराटों की तरफ आकर्षित कर सकें. अन्यथा भविष्य में पुरातन सभ्यता की ये झलक देखने को तक नहीं मिलेगी.

थरालीः कल्पना कीजिए जब अतीत में बिजली नहीं होती होगी तो अनाज की पिसाई कैसे होती होगी. चक्की और कल कारखाने आधुनिकता की देन हैं. लेकिन इसी के इतर देवभूमि में हर गांव में ऐसी सुविधा विकसति थी जिसे देखकर आप भी दंग रह जाएंगे. जो आज के बिजली के चक्की की तरह कार्य करती थी, लेकिन ये बिजली ने चलकर पानी से चलती थी. जिसका पिसा अनाज काफी पौष्टिक माना जाता था. बदलते परिवेश में आधुनिकता की चकाचौंध इसे लील रही है.

आखिर कब होगा घराटों का कायाकल्प.

सरकार देवभूमि की पारंपरिक और पुरातन धरोहरों को संजोए रखने का लाख दावा करती हो, लेकिन सत्ता पर काबिज होती ही सारे वादे और दावे हवा हो जाते हैं. जिससे देवभूमि की शान समझे जाने वाली ऐतिहासिक विरासत विलुप्ति की कगार पर आ रहे हैं. इन्हीं में से एक घराट भी है, जिसके बारे में हर कोई रूबरू हैं. इसके फायदे भी जानता हैं.

भले ही हमारे देश में आज सभी क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हों, लेकिन अभी भी कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां आज भी पुरानी परिपाटी देखी जा सकती है. अभी भी लोग पुरानी सभ्यता को सहेज कर रखे हैं. इसकी बानगी चमोली जिले के थराली में देखने को मिली. 21वीं सदी के इस दौर में भी सीमांत जनपद चमोली के विकासखंड देवाल के दूरस्थ क्षेत्र खेता मानमती में आज भी घराट (पनचक्की) अपने अस्तित्व में है.

यहां के लोग आज भी घराट में अपना गेहूं ,मंडुवा, जौ आदि की पिसाई करवाते हैं. घराट का आटा पौष्टिक माना जाता है. देवभूमि की संस्कृति की एक पारंपरिक और पुरातन पहचान घराट खेता गांव में देखने को मिली. पानी का तीव्र वेग घराट की चक्की को घुमाने वाले पंखे (फितौड़) के ऊपर गिरता है, जिससे घराट का पत्थर घूमता है. पनचक्की में अनाज डालने के लिए लकड़ी या धातु के बने ओखलीनुमा वस्तु में डाला जाता है और पानी के दबाब से घराट का पत्थर घूमता है और अनाज की पिसाई होने लगती है.

घराट बारीक से बारीक अनाज को पीसने में सक्षम होता है. अनाज को डोकची से गिराने के लिए लकड़ी के गुटकों को घूमते पत्थरों के ऊपर रखा जाता है जिनके कंपन से अनाज चक्की में बने छेद में गिरता है.

पिसा अनाज आटे के रूप में चक्की के दो पाटों के बीच बाहर निकल जाता है जिसे एकत्रित कर वापस बोरी में भरकर लोग ले जाते हैं. घराट में अनाज को मोटा, बारीक और पिसाई की गति कम या ज्यादा करने के लिए एक एडजेस्टर भी लगा होता है. घराट के पत्थरों को घुमाने के बाद ये पानी नाली से होते हुए वापस नदी या गधेरों में मिल जाता है. यह मानव निर्मित एक उत्कृष्ट रचना है.

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लगभग सभी लोग घराट से गेहूं, जौ ,बाजरा आदि पीसते थे. इसकी पिसाई से बने अनाज का स्वाद सबसे बेहतर बताया जाता है. बदले में घराट स्वामी को आटा दिया जाता था जिसे गढ़वाल की भाषा में भगवानी भी कहते हैं. इससे स्वामी के पूरे परिवार का भरण-पोषण बड़ी आसानी से होता था, परन्तु आज पनचक्की व घराटों का अस्तित्व खतरे में आ गया है.

कुछ गिने-चुने घराटों को छोड़कर लगभग सभी घराट बंद हो चुके हैं. इनको पुनः अस्तित्व में लाने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए. सरकार को घराट स्वामियों को कुछ पारिश्रमिक देना चाहिए, जिससे वे फिर से अपना ध्यान घराटों की तरफ आकर्षित कर सकें. अन्यथा भविष्य में पुरातन सभ्यता की ये झलक देखने को तक नहीं मिलेगी.

Intro:विलुप्त होता पुरातन संस्कृति का
प्रतीक घराट

21 वी सदी के इस दौर में भी सीमांत जनपद चमोली के विकासखंड देवाल के दूरस्थ क्षेत्र खेता मानमती में आज भी घराट अपने अस्तित्व में है .यहां के लोग आज भी घराट में अपना आटा, गेहूं ,मंडुवा, जौ आदि पीसाई का काम करते हैं, घराट का आटा पौष्टिक होता है .देवभूमि की संस्कृति की एक पारंपरिक और पुरातन पहचान घराट खेता गांव में देखने को मिली.Body:स्थान / थराली

रिपोर्ट / गिरीश चंदोला

स्लग-विलुप्त होता पुरातन संस्कृति का
प्रतीक घराट

विलुप्त होता घराट


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एंकर-21 वी सदी के इस दौर में भी सीमांत जनपद चमोली के विकासखंड देवाल के दूरस्थ क्षेत्र खेता मानमती में आज भी घराट अपने अस्तित्व में है .यहां के लोग आज भी घराट में अपना आटा, गेहूं ,मंडुवा, जौ आदि पीसाई का काम करते हैं, घराट का आटा पौष्टिक होता है .देवभूमि की संस्कृति की एक पारंपरिक और पुरातन पहचान घराट खेता गांव में देखने को मिली.


Vo-दरसल घराट पनचक्की आधारित विज्ञान पर संचालित होता है पानी का तीव्र वेग घट की चक्की को घुमाने वाले पंखे (फितौड़) के ऊपर गिरता है जिससे घराट का पत्थर घूमता है पनचक्की में अनाज डालने के लिए लकड़ी या धातु के बने ओखलीनुमा डोकचे में डाला जाता है, पानी के दबाब से घट का पत्थर घूमता है और अनाज की पिसाई होने लगती है घराट बारीक से बारीक अनाज को पीसने में सक्षम होता है लेकिन अगर कोई कीड़ा अनाज के साथ चला जाए तो उसे जीवित ही बाहर फेंक देता है अनाज को डोकची से गिराने के लिए लकडी के गुटको को घूमते पत्थरों के ऊपर रखा जाता है जिनके कंपन से अनाज चक्की में बने छेद में गिरता है पिसा अनाज आटे के रूप में चक्की के दो पाटों के बीच बाहर निकल जाता है जिसे इक्क्ठा कर वापस बोरी में भरकर लोग अपने उपयोग हेतु ले जाते हैं घराट में अनाज को मोटा बारीक ओर पिसाई की गति कम या ज्यादा करने के लिए एक एडजेस्टर भी लगा होता है ,घराट के पत्थरों को घुमाने के बाद ये पानी नाली से होते हुए वापस नदी या गधेरों में मिल जाता है , यह मानव निर्मित एक उत्कृष्ट रचना है

लगभग सभी लोग घराट से गेहूं, जौ ,बाजरा आदि पिस्ते थे ,इसकी पिसाई से बने अनाज का स्वाद सबसे बेहतर बताया जाता है, बदले में घराट स्वामी को आटा दिया जाता था जिसे गढ़वाल की भाषा में भगवानी भी कहती हैं

इससे ग्राहक स्वामी के पूरे परिवार का भरण-पोषण बड़ी आसानी से होता था परन्तु आज पंचक्की ,घराटों का अस्तित्व खतरे में आ गया है कुछ गिने-चुने घराटो को छोड़कर लगभग सभी घराट बंजर हो चुके हैं .इनको पुनः अस्तित्व में लाने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए सरकार को घराट स्वामियों को कुछ पार्श्विक दें, जिससे वे फिर से अपना ध्यान घराटों की तरफ आकर्षित करें,अन्यथा आने वाले भविष्य को पुरातन सभ्यता की ये झलक देखने को तक नही मिलेगी


Byte-गुलाब सिंह गड़िया, स्थानीयConclusion:इससे ग्राहक स्वामी के पूरे परिवार का भरण-पोषण बड़ी आसानी से होता था परन्तु आज पंचक्की ,घराटों का अस्तित्व खतरे में आ गया है कुछ गिने-चुने घराटो को छोड़कर लगभग सभी घराट बंजर हो चुके हैं .इनको पुनः अस्तित्व में लाने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए सरकार को घराट स्वामियों को कुछ पार्श्विक दें, जिससे वे फिर से अपना ध्यान घराटों की तरफ आकर्षित करें,अन्यथा आने वाले भविष्य को पुरातन सभ्यता की ये झलक देखने को तक नही मिलेगी


Byte-गुलाब सिंह गड़िया, स्थानीय
Last Updated : Feb 10, 2020, 9:18 AM IST
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