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रैणी आपदा के बाद शवों के मिलने का सिलसिला जारी, तपोवन टनल से मिला एक और मानव अंग

जोशीमठ के तपोवन टनल से एक और मानव अंग मिला है. इसके साथ ही अब तक 90 शव बरामद हो चुके हैं. फिलहाल, बरामद अंगों के जरिए शिनाख्त के प्रयास किए जा रहे हैं.

Tapovan NTPC Tunnel
तपोवन टनल
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Published : Aug 23, 2022, 7:01 PM IST

चमोलीः रैणी आपदा के डेढ़ साल बाद भी शवों के मिलने का सिलसिला जारी है. इसी कड़ी में तपोवन स्थित इंटर टनल में आज एक मानव अंग बरामद हुआ है. मानव अंग को टनल से बाहर निकालकर शिनाख्त के प्रयास किए जा रहे हैं. फिलहाल, मानव अंगों को सीआईएसएफ गेट के मोर्चरी के डीप फ्रिजर में रखा गया है.

दरअसल, एचसीसी कंपनी के एडमिन मैनेजर अंबादत्त भट्ट ने मानव अंग मिलने की सूचना पुलिस को दी. उन्होंने बताया कि तपोवन स्थित इंटर टनल में सफाई के दौरान एक मानव अवशेष बरामद हुआ है. मानव अंगों की शिनाख्स के लिए प्रचार प्रसार किया जा रहा है. वहीं, आपदा के बाद से अभी तक एनटीपीसी टनल से 90 शव बरामद (Daad Body Recover from NTPC tunnel) हो चुके हैं.

गौर हो कि बीते साल यानी 7 फरवरी 2021 को चमोली के तपोवन क्षेत्र में रैणी गांव के पास ऋषिगंगा में आए जल सैलाब से भारी तबाही (Raini Disaster in Chamoli) मची थी. जिसकी चपेट में आने से ऋषिगंगा जलविद्युत परियोजना (Rishiganga Hydroelectric Project) और एनटीपीसी जलविद्युत परियोजना (NTPC Hydroelectric Project) में कार्यरत 204 लोगों की मौत हो गई थी. अभी भी कई लोग लापता चल रहे हैं. इस तबाही का जख्म अभी भी नहीं भर पाया है.

चमोली हादसे की वजह: वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (Wadia Institute of Himalayan Geology) के वैज्ञानिकों ने जांच के बाद पाया कि करीब 5,600 मीटर की ऊंचाई से रौंथी पीक के नीचे रौंथी ग्लेशियर कैचमेंट में रॉक मास के साथ एक लटकता हुआ ग्लेशियर टूट गया था. बर्फ और चट्टान का यह टुकड़ा करीब 3 किलोमीटर का नीचे की ओर सफर तय कर करीब 3,600 मीटर की ऊंचाई पर रौंथी धारा तक पहुंच गया था, जो रौंथी ग्लेशियर के मुंह से करीब 1.6 किलोमीटर नीचे की ओर मौजूद है.

वैज्ञानिकों के अनुसार रौंथी कैचमेंट में साल 2015-2017 के बीच हिमस्खलन और मलबे के प्रवाह की घटना देखी गई. इन घटनाओं ने डाउनस्ट्रीम में कोई बड़ी आपदा नहीं की, लेकिन कैचमेंट में हुए बड़े बदलाव की वजह से रौंथी धारा के हिमनद क्षेत्र में ढीले मोरेनिक मलबे और तलछट के संचय का कारण बना. लिहाजा, 7 फरवरी 2021 को बर्फ, ग्लेशियर, चट्टान के टुकड़े, मोरेनिक मलबे आदि चीजें एक साथ मिक्स हो गए, जो करीब 8.5 किमी रौंथी धारा की ओर नीचे आ गया और करीब 2,300 मीटर की ऊंचाई पर ऋषिगंगा नदी को अवरुद्ध कर दिया. जिससे एक पानी के झील का निर्माण हुआ.

ये भी पढ़ेंः चमोली आपदा के बाद से हिमालय में हो रही हलचल तबाही का संकेत तो नहीं?

ऋषिगंगा नदी से आई आपदा: रौंथी कैचमेंट से आए इस मलबे ने ऋषिगंगा नदी पर स्थित 13.2 मेगावाट क्षमता वाले हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट को तबाह कर दिया. इसके साथ ही रैणी गांव के पास ऋषिगंगा नदी पर नदी तल से करीब 70 मीटर ऊंचाई पर बना एक बड़ा पुल भी बह गया था, जिससे नदी के ऊपर के गांवों और सीमावर्ती क्षेत्रों में आपूर्ति बाधित हो गई और फिर यह मलबा आगे बढ़ते हुए तपोवन परियोजना को भी क्षतिग्रस्त कर गया.

तपोवन हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट धौलीगंगा नदी पर 520 मेगावाट क्षमता की परियोजना थी. चमोली आपदा के दौरान तपोवन एचईपी में करीब 20 मीटर और बैराज गेट्स के पास 12 मीटर ऊंचाई तक मलबा और बड़े-बड़े बोल्डर जमा हो गए थे. जिससे इस प्रोजेक्ट को भी काफी नुकसान पहुंचा था. इस आपदा ने न सिर्फ 204 लोगों की जान ले ली, बल्कि अपने रास्ते में आने वाले सभी बुनियादी ढांचे को नष्ट कर दिया. आपदा में करीब 1,625 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था.

ये भी पढ़ेंः बारिश से रैणी गांव में भू-कटाव और पड़ी दरारें, खौफजदा ग्रामीण

वैज्ञानिकों की बढ़ी चिंता: रैणी आपदा के बाद प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में कुछ ऐसा हो रहा है, जिसने वैज्ञानिकों की चिंताएं बढ़ा दी हैं. हिमालयी क्षेत्रों में हो रही हलचल की एक मुख्य वजह ग्लोबल वॉर्मिंग को माना जा रहा है, लेकिन वैज्ञानिक अभी ग्लोबल वॉर्मिंग और पहाड़ों की हलचल के कनेक्शन को लेकर पुख्ता नहीं हैं. उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते प्रदेश में आपदा जैसे हालात बनते रहते हैं. लेकिन, मॉनसून सीजन के दौरान प्रदेश में आपदा जैसे हालात, भूस्खलन और बाढ़ की घटनाएं बढ़ जाती हैं.

रैणी आपदा के कई कारण: रैणी गांव में आयी आपदा पर रिसर्च कर रही वरिष्ठ पत्रकार कविता उपाध्याय की मानें तो अभी तक उनकी रिसर्च में जो बातें निकल कर सामने आयी हैं उसके अनुसार हिमालय में हो रहे बदलाव के लिए सिर्फ ग्लोबल वॉर्मिंग को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, इसके कई और भी कारण हैं. मुख्य रूप से रैणी गांव में आई आपदा में हुए जान के नुकसान को बचाया जा सकता था.

इसके लिए उस क्षेत्र में अर्ली वॉर्निंग सिस्टम मौजूद होना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं था. कविता बताती हैं कि उनकी रिसर्च में यह बात निकलकर सामने आई है कि साल 2016 में रौंथी ग्लेशियर में दरार पायी गयी थी. जिसके बाद 7 फरवरी 2021 की सुबह 10:21 बजे ग्लेशियर टूट (Glacier broken in Chamoli) गया और चमोली में बड़ी आपदा आई.

ये भी पढ़ेंः ग्लेशियरों पर पड़ रहा ग्लोबल वार्मिंग का असर, ऐसा ही चलता रहा तो दुनिया में क्या होगा?

चमोलीः रैणी आपदा के डेढ़ साल बाद भी शवों के मिलने का सिलसिला जारी है. इसी कड़ी में तपोवन स्थित इंटर टनल में आज एक मानव अंग बरामद हुआ है. मानव अंग को टनल से बाहर निकालकर शिनाख्त के प्रयास किए जा रहे हैं. फिलहाल, मानव अंगों को सीआईएसएफ गेट के मोर्चरी के डीप फ्रिजर में रखा गया है.

दरअसल, एचसीसी कंपनी के एडमिन मैनेजर अंबादत्त भट्ट ने मानव अंग मिलने की सूचना पुलिस को दी. उन्होंने बताया कि तपोवन स्थित इंटर टनल में सफाई के दौरान एक मानव अवशेष बरामद हुआ है. मानव अंगों की शिनाख्स के लिए प्रचार प्रसार किया जा रहा है. वहीं, आपदा के बाद से अभी तक एनटीपीसी टनल से 90 शव बरामद (Daad Body Recover from NTPC tunnel) हो चुके हैं.

गौर हो कि बीते साल यानी 7 फरवरी 2021 को चमोली के तपोवन क्षेत्र में रैणी गांव के पास ऋषिगंगा में आए जल सैलाब से भारी तबाही (Raini Disaster in Chamoli) मची थी. जिसकी चपेट में आने से ऋषिगंगा जलविद्युत परियोजना (Rishiganga Hydroelectric Project) और एनटीपीसी जलविद्युत परियोजना (NTPC Hydroelectric Project) में कार्यरत 204 लोगों की मौत हो गई थी. अभी भी कई लोग लापता चल रहे हैं. इस तबाही का जख्म अभी भी नहीं भर पाया है.

चमोली हादसे की वजह: वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (Wadia Institute of Himalayan Geology) के वैज्ञानिकों ने जांच के बाद पाया कि करीब 5,600 मीटर की ऊंचाई से रौंथी पीक के नीचे रौंथी ग्लेशियर कैचमेंट में रॉक मास के साथ एक लटकता हुआ ग्लेशियर टूट गया था. बर्फ और चट्टान का यह टुकड़ा करीब 3 किलोमीटर का नीचे की ओर सफर तय कर करीब 3,600 मीटर की ऊंचाई पर रौंथी धारा तक पहुंच गया था, जो रौंथी ग्लेशियर के मुंह से करीब 1.6 किलोमीटर नीचे की ओर मौजूद है.

वैज्ञानिकों के अनुसार रौंथी कैचमेंट में साल 2015-2017 के बीच हिमस्खलन और मलबे के प्रवाह की घटना देखी गई. इन घटनाओं ने डाउनस्ट्रीम में कोई बड़ी आपदा नहीं की, लेकिन कैचमेंट में हुए बड़े बदलाव की वजह से रौंथी धारा के हिमनद क्षेत्र में ढीले मोरेनिक मलबे और तलछट के संचय का कारण बना. लिहाजा, 7 फरवरी 2021 को बर्फ, ग्लेशियर, चट्टान के टुकड़े, मोरेनिक मलबे आदि चीजें एक साथ मिक्स हो गए, जो करीब 8.5 किमी रौंथी धारा की ओर नीचे आ गया और करीब 2,300 मीटर की ऊंचाई पर ऋषिगंगा नदी को अवरुद्ध कर दिया. जिससे एक पानी के झील का निर्माण हुआ.

ये भी पढ़ेंः चमोली आपदा के बाद से हिमालय में हो रही हलचल तबाही का संकेत तो नहीं?

ऋषिगंगा नदी से आई आपदा: रौंथी कैचमेंट से आए इस मलबे ने ऋषिगंगा नदी पर स्थित 13.2 मेगावाट क्षमता वाले हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट को तबाह कर दिया. इसके साथ ही रैणी गांव के पास ऋषिगंगा नदी पर नदी तल से करीब 70 मीटर ऊंचाई पर बना एक बड़ा पुल भी बह गया था, जिससे नदी के ऊपर के गांवों और सीमावर्ती क्षेत्रों में आपूर्ति बाधित हो गई और फिर यह मलबा आगे बढ़ते हुए तपोवन परियोजना को भी क्षतिग्रस्त कर गया.

तपोवन हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट धौलीगंगा नदी पर 520 मेगावाट क्षमता की परियोजना थी. चमोली आपदा के दौरान तपोवन एचईपी में करीब 20 मीटर और बैराज गेट्स के पास 12 मीटर ऊंचाई तक मलबा और बड़े-बड़े बोल्डर जमा हो गए थे. जिससे इस प्रोजेक्ट को भी काफी नुकसान पहुंचा था. इस आपदा ने न सिर्फ 204 लोगों की जान ले ली, बल्कि अपने रास्ते में आने वाले सभी बुनियादी ढांचे को नष्ट कर दिया. आपदा में करीब 1,625 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था.

ये भी पढ़ेंः बारिश से रैणी गांव में भू-कटाव और पड़ी दरारें, खौफजदा ग्रामीण

वैज्ञानिकों की बढ़ी चिंता: रैणी आपदा के बाद प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में कुछ ऐसा हो रहा है, जिसने वैज्ञानिकों की चिंताएं बढ़ा दी हैं. हिमालयी क्षेत्रों में हो रही हलचल की एक मुख्य वजह ग्लोबल वॉर्मिंग को माना जा रहा है, लेकिन वैज्ञानिक अभी ग्लोबल वॉर्मिंग और पहाड़ों की हलचल के कनेक्शन को लेकर पुख्ता नहीं हैं. उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते प्रदेश में आपदा जैसे हालात बनते रहते हैं. लेकिन, मॉनसून सीजन के दौरान प्रदेश में आपदा जैसे हालात, भूस्खलन और बाढ़ की घटनाएं बढ़ जाती हैं.

रैणी आपदा के कई कारण: रैणी गांव में आयी आपदा पर रिसर्च कर रही वरिष्ठ पत्रकार कविता उपाध्याय की मानें तो अभी तक उनकी रिसर्च में जो बातें निकल कर सामने आयी हैं उसके अनुसार हिमालय में हो रहे बदलाव के लिए सिर्फ ग्लोबल वॉर्मिंग को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, इसके कई और भी कारण हैं. मुख्य रूप से रैणी गांव में आई आपदा में हुए जान के नुकसान को बचाया जा सकता था.

इसके लिए उस क्षेत्र में अर्ली वॉर्निंग सिस्टम मौजूद होना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं था. कविता बताती हैं कि उनकी रिसर्च में यह बात निकलकर सामने आई है कि साल 2016 में रौंथी ग्लेशियर में दरार पायी गयी थी. जिसके बाद 7 फरवरी 2021 की सुबह 10:21 बजे ग्लेशियर टूट (Glacier broken in Chamoli) गया और चमोली में बड़ी आपदा आई.

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