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नमो देव्यै: ऐसी देवी की कहानी, जिन्होंने अपने तपोबल से त्रिदेवों को बना डाला शिशु - उत्तराखंड

आज शारदीय नवरात्रि के आखिरी दिन यानि नौवें दिन हम जानेंगे ऐसी देवी की कहानी, जिन्होंने अपने तपोबल से त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश तक को शिशु बना दिया था.

देवी अनुसूया का मंदिर
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Published : Oct 7, 2019, 7:04 AM IST

चमोली: उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है. यहां देवी मंदिर बहुतायत हैं. आज हम बात कर रहे हैं माता अनुसूया की. माता अनुसूया का मंदिर चमोली जिले में स्थित है. मंदिर के चारों ओर बाज के घने जंगल हैं. मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में जप और यज्ञ करने वालों को संतान की प्राप्ति होती है.

goddess anasuya devi story
देवी अनुसूया का मंदिर
प्राचीन काल में यहां देवी अनुसूया का छोटा सा मंदिर था. सत्रहवीं सदी में कत्यूरी राजाओं ने इस स्थान पर अनुसूया देवी के भव्य मंदिर का निर्माण करवाया. अठारहवीं सदी में आए विनाशकारी भूकंप से मंदिर ध्वस्त हो गया. इसके बाद संत ऐत्वारगिरी महाराज ने ग्रामीणों की मदद से इस मंदिर का पुन: निर्माण करवाया.

पढ़ेंः नमो देव्यै: चमत्कारी है देवी का ये मंदिर, जानें- चोरों से जुड़ी अनोखी कहानी

पौराणिक कथा
मान्यता है कि इसी स्थान पर माता अनुसूया ने अपने तप के बल पर ब्रह्मा, विष्णु और शंकर को शिशु बनाकर पालने में खेलने पर मजबूर कर दिया था. बाद में काफी तपस्या के बाद त्रिदेवों को पुन: उनका रूप प्रदान किया. इसके बाद यहीं तीन मुखवाले(ब्रह्मा, विष्णु और महेश) दत्तात्रेय का जन्म हुआ. माता अनुसूया के इस मंदिर के पास ही दत्तात्रेय मंदिर की स्थापना भी की गई है.

पढ़ेंः नमो दैव्य: ऐसी देवी की कथा, जिसने भगवान शिव की हलाहल विष से की थी रक्षा

नवरात्रि में अनुसूया देवी के मंदिर में नौ दिन तक मंडल घाटी के ग्रामीण मां का पूजन करते है. इस मंदिर की विशेषता है कि दूसरे मंदिरों की तरह यहां पर बलि प्रथा का प्रावधान नहीं है. यहां श्रद्धालुओं को विशेष प्रसाद दिया जाता है, जो स्थानीय स्तर पर उगाए गए गेहूं के आटे का होता है. पुराणों में सती अनुसूया पतिव्रता धर्म के लिए प्रसिद्ध है. उन्हें सती शिरोमणि का दर्जा प्राप्त है. अनसूया मंदिर के निकट अनसूया आश्रम में त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश) ने अनसूया माता के सतीत्व की परीक्षा ली थी.

पढ़ेंः जमीन में रखी मां शीतला की मूर्ति को उठा नहीं पाए थे ग्रामीण, आस्था पर चमत्कार पड़ा भारी

जब नारद के कहने पर त्रिदेवियों ने ली थी अनुसूया की परीक्षा
एक बार महर्षि नारद ने त्रिदेवियों (सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती) को कहा कि तीनों लोकों में अनुसूया से बढ़कर कोई सती नहीं है. नारद मुनि की बात सुनकर त्रिदेवियों ने त्रिदेवों को अनुसूया के सतीत्व की परीक्षा लेने के लिए मृत्युलोक भेजा. तीनों देवता माता अनसूया के आश्रम में साधु के वेष में आए और उनसे नग्नावस्था में भोजन करवाने को कहा. तीनों साधुओं की बात सुनकर मां अनसूया ने अपने पति अत्रि ऋषि के कमंडल से जल निकाला और उनपर छिड़क दिया. जल से तीनों साधु शिशु रूप में परिवर्तित हो गए. इसके बाद मां अनुसूया ने तीनों को स्तनपान कराया.

पढ़ेंः केदारनाथ प्रलय से जुड़ा है इस मंदिर का रहस्य, दिन में तीन रूप बदलती हैं देवी

कहा जाता है कि जब कई सालों तक तीनों देव अपने स्थानों पर नहीं पहुंचे तो तीनों देवियां चिंतित होकर चित्रकूट गईं. संयोग से नारदजी से उनकी मुलाकात हो गई. उन्होंने नारदजी से अपने पतियों का पता पूछा. नारदजी ने बताया कि वे लोग सती अनुसूया के आश्रम में बालक बनकर खेल रहे हैं. ‍तब तीनों देवियां अनुसूया के आश्रम पहुंची और मां से क्षमा याचना कर तीनों देवों को उनके मूल स्वरूप में प्रकट करवाने के लिए कहा. तब त्रिदेवों की शक्ति से भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ. दत्तात्रेय से जुडे़ होने के कारण इस मंदिर में महाराष्ट्र और कर्नाटक से भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं.

चमोली: उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है. यहां देवी मंदिर बहुतायत हैं. आज हम बात कर रहे हैं माता अनुसूया की. माता अनुसूया का मंदिर चमोली जिले में स्थित है. मंदिर के चारों ओर बाज के घने जंगल हैं. मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में जप और यज्ञ करने वालों को संतान की प्राप्ति होती है.

goddess anasuya devi story
देवी अनुसूया का मंदिर
प्राचीन काल में यहां देवी अनुसूया का छोटा सा मंदिर था. सत्रहवीं सदी में कत्यूरी राजाओं ने इस स्थान पर अनुसूया देवी के भव्य मंदिर का निर्माण करवाया. अठारहवीं सदी में आए विनाशकारी भूकंप से मंदिर ध्वस्त हो गया. इसके बाद संत ऐत्वारगिरी महाराज ने ग्रामीणों की मदद से इस मंदिर का पुन: निर्माण करवाया.

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पौराणिक कथा
मान्यता है कि इसी स्थान पर माता अनुसूया ने अपने तप के बल पर ब्रह्मा, विष्णु और शंकर को शिशु बनाकर पालने में खेलने पर मजबूर कर दिया था. बाद में काफी तपस्या के बाद त्रिदेवों को पुन: उनका रूप प्रदान किया. इसके बाद यहीं तीन मुखवाले(ब्रह्मा, विष्णु और महेश) दत्तात्रेय का जन्म हुआ. माता अनुसूया के इस मंदिर के पास ही दत्तात्रेय मंदिर की स्थापना भी की गई है.

पढ़ेंः नमो दैव्य: ऐसी देवी की कथा, जिसने भगवान शिव की हलाहल विष से की थी रक्षा

नवरात्रि में अनुसूया देवी के मंदिर में नौ दिन तक मंडल घाटी के ग्रामीण मां का पूजन करते है. इस मंदिर की विशेषता है कि दूसरे मंदिरों की तरह यहां पर बलि प्रथा का प्रावधान नहीं है. यहां श्रद्धालुओं को विशेष प्रसाद दिया जाता है, जो स्थानीय स्तर पर उगाए गए गेहूं के आटे का होता है. पुराणों में सती अनुसूया पतिव्रता धर्म के लिए प्रसिद्ध है. उन्हें सती शिरोमणि का दर्जा प्राप्त है. अनसूया मंदिर के निकट अनसूया आश्रम में त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश) ने अनसूया माता के सतीत्व की परीक्षा ली थी.

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जब नारद के कहने पर त्रिदेवियों ने ली थी अनुसूया की परीक्षा
एक बार महर्षि नारद ने त्रिदेवियों (सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती) को कहा कि तीनों लोकों में अनुसूया से बढ़कर कोई सती नहीं है. नारद मुनि की बात सुनकर त्रिदेवियों ने त्रिदेवों को अनुसूया के सतीत्व की परीक्षा लेने के लिए मृत्युलोक भेजा. तीनों देवता माता अनसूया के आश्रम में साधु के वेष में आए और उनसे नग्नावस्था में भोजन करवाने को कहा. तीनों साधुओं की बात सुनकर मां अनसूया ने अपने पति अत्रि ऋषि के कमंडल से जल निकाला और उनपर छिड़क दिया. जल से तीनों साधु शिशु रूप में परिवर्तित हो गए. इसके बाद मां अनुसूया ने तीनों को स्तनपान कराया.

पढ़ेंः केदारनाथ प्रलय से जुड़ा है इस मंदिर का रहस्य, दिन में तीन रूप बदलती हैं देवी

कहा जाता है कि जब कई सालों तक तीनों देव अपने स्थानों पर नहीं पहुंचे तो तीनों देवियां चिंतित होकर चित्रकूट गईं. संयोग से नारदजी से उनकी मुलाकात हो गई. उन्होंने नारदजी से अपने पतियों का पता पूछा. नारदजी ने बताया कि वे लोग सती अनुसूया के आश्रम में बालक बनकर खेल रहे हैं. ‍तब तीनों देवियां अनुसूया के आश्रम पहुंची और मां से क्षमा याचना कर तीनों देवों को उनके मूल स्वरूप में प्रकट करवाने के लिए कहा. तब त्रिदेवों की शक्ति से भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ. दत्तात्रेय से जुडे़ होने के कारण इस मंदिर में महाराष्ट्र और कर्नाटक से भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं.

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चमोली: उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है. यहां देवी मंदिर बहुतायत हैं. आज हम बात कर रहे हैं माता अनुसूया की. माता अनुसूया का मंदिर चमोली जिले में स्थित है. मंदिर के चारों ओर बाज के घने जंगल हैं. मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में जप और यज्ञ करने वालों को संतान की प्राप्ति होती है.

प्राचीन काल में यहां देवी अनुसूया का छोटा सा मंदिर था. सत्रहवीं सदी में कत्यूरी राजाओं ने इस स्थान पर अनुसूया देवी के भव्य मंदिर का निर्माण करवाया. अठारहवीं सदी में आए विनाशकारी भूकंप से मंदिर ध्वस्त हो गया. इसके बाद संत ऐत्वारगिरी महाराज ने ग्रामीणों की मदद से इस मंदिर का पुन: निर्माण करवाया.

पौराणिक कथा

मान्यता है कि इसी स्थान पर माता अनुसूया ने अपने तप के बल पर ब्रह्मा, विष्णु और शंकर को शिशु बनाकर पालने में खेलने पर मजबूर कर दिया था. बाद में काफी तपस्या के बाद त्रिदेवों को पुन: उनका रूप प्रदान किया. इसके बाद यहीं तीन मुखवाले(ब्रह्मा, विष्णु और महेश) दत्तात्रेय का जन्म हुआ. माता अनुसूया के इस मंदिर के पास ही दत्तात्रेय मंदिर की स्थापना भी की गई है.

नवरात्रि में अनुसूया देवी के मंदिर में नौ दिन तक मंडल घाटी के ग्रामीण मां का पूजन करते है. इस मंदिर की विशेषता है कि दूसरे मंदिरों की तरह यहां पर बलि प्रथा का प्रावधान नहीं है. यहां श्रद्धालुओं को विशेष प्रसाद दिया जाता है, जो स्थानीय स्तर पर उगाए गए गेहूं के आटे का होता है. पुराणों में सती अनुसूया पतिव्रता धर्म के लिए प्रसिद्ध है. उन्हें सती शिरोमणि का दर्जा प्राप्त है. अनसूया मंदिर के निकट अनसूया आश्रम में त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश) ने अनसूया माता के सतीत्व की परीक्षा ली थी.

जब नारद के कहने पर त्रिदेवियों ने ली थी अनुसूया की परीक्षा

एक बार महर्षि नारद ने त्रिदेवियों (सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती) को कहा कि तीनों लोकों में अनुसूया से बढ़कर कोई सती नहीं है. नारद मुनि की बात सुनकर त्रिदेवियों ने त्रिदेवों को अनुसूया के सतीत्व की परीक्षा लेने के लिए मृत्युलोक भेजा. तीनों देवता माता अनसूया के आश्रम में साधु के वेष में आए और उनसे नग्नावस्था में भोजन करवाने को कहा. तीनों साधुओं की बात सुनकर मां अनसूया ने अपने पति अत्रि ऋषि के कमंडल से जल निकाला और उनपर छिड़क दिया. जल से तीनों साधु शिशु रूप में परिवर्तित हो गए. इसके बाद मां अनुसूया ने तीनों को स्तनपान कराया.

कहा जाता है कि जब कई सालों तक तीनों देव अपने स्थानों पर नहीं पहुंचे तो तीनों देवियां चिंतित होकर चित्रकूट गईं. संयोग से नारदजी से उनकी मुलाकात हो गई. उन्होंने नारदजी से अपने पतियों का पता पूछा. नारदजी ने बताया कि वे लोग सती अनुसूया के आश्रम में बालक बनकर खेल रहे हैं. ‍तब तीनों देवियां अनुसूया के आश्रम पहुंची और मां से क्षमा याचना कर तीनों देवों को उनके मूल स्वरूप में प्रकट करवाने के लिए कहा. तब त्रिदेवों की शक्ति से भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ. दत्तात्रेय से जुडे़ होने के कारण इस मंदिर में महाराष्ट्र और कर्नाटक से भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं.


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