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बाबा मोहन उत्तराखंडी की याद में बेनीताल में लगा मेला, गैरसैंण को राजधानी बनाने के लिए दिया था बलिदान

9 नवंबर 2000 को यूपी से अलग होकर उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया था. सालों चले आंदोलन के दौरान अनेक लोगों ने अलग राज्य के लिए अपना बलिदान दिया था. राज्य बनने के बाद भी जन सरोकारों के लिए लोगों ने आंदोलन जारी रखे. इन्हीं आंदोलनकारियों में से एक बाबा मोहन उत्तराखंड भी थे. आज बाबा मोहन उत्तराखंडी की पुण्यतिथि है. गैरसैंण के पास बेनीताल में बाबा मोहन उत्तराखंड की याद में मेला लगा है.

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गैरसैंण समाचार
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Published : Aug 9, 2023, 11:37 AM IST

गैरसैंण: पौड़ी जनपद के एकेश्वर ब्लाक स्थित बिठौली गांव में 1948 में जन्मे मोहन सिंह पिता मनवर सिंह के मझौले पुत्र थे. इंटर के बाद आईआईटी कर बंगाल इंजीनियरिंग में भर्ती हुए, लेकिन सरकार की नौकरी रास नहीं आई. 1993 में राज्य आंदोलन में कूद गए. 2 अक्टूबर 94 के रामपुर तिराहा कांड से व्यथित होकर आजीवन दाढ़ी नहीं काटने का संकल्प लिया. इसके बाद वो बाबा मोहन उत्तराखंडी के नाम से पहचाने जाने लगे.

Baba Mohan Fair
बाबा मोहन उत्तराखंड की समाधि

बाबा मोहन उत्तराखंडी का रहा आंदोलनों का इतिहास: 11 फरवरी 1997 को पहली बार लैंसडाउन के देवीधुरा चोटी पर पृथक राज्य के लिए भूख हड़ताल पर बैठे. किंतु प्रसासन द्वारा जबरन उठा लिए गए. नवंबर 2000 में उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया, किंतु बाबा गैरसैंण राजधानी का सपना पाले हुए थे. दुर्गम स्थानों में अनशन कर अपनी मांग सरकार तक पहुंचाना उनकी जिद बन गयी थी. 2 जुलाई 2004 से बेनीताल के टोपरी उड़्यार में शुरू भूख हड़ताल बाबा का अंतिम आंदोलन साबित हुआ.

Baba Mohan Fair
बाबा मोहन उत्तराखंडी

बाबा के साथ क्या हुआ था? अनशन के 37 वें दिन 8 अगस्त को कर्णप्रयाग तहसील के तत्कालीन एसडीएम जगदीश लाल व राजस्व उपनिरीक्षक जयकृत सिंह भारी दल-बल के साथ बेनीताल पहुचे. आरोप है कि वहां बाबा को घंटों प्रताड़ित किया गया. शाम 8 बजे बाबा को घसीटते हुए मोटर सड़क तक लाया गया. बेहोशी की हालत में सीएचसी कर्णप्रयाग में भर्ती कराया गया. वहां रात 11 बजे बाबा ने दम तोड़ दिया. बाबा के सहयोगी आंदोलनकारियों ने आरोप लगाया कि इस बीच पूरे रास्ते भर बाबा को बेरहमी से पीटा गया, जिससे बाबा की मौत हो गई. हालांकि प्रशासन ने बाबा की मौत का कारण हृदय गति रुकना बता कर मामले को रफा दफा कर दिया.
ये भी पढ़ें: अब बनेगी फिल्म 'उत्तराखंड फाइल्स', दून के अभिषेक भट्ट की तैयारी पूरी

गैरसैंण राजधानी के लिए बाबा का संघर्ष

9 फरवरी से 5 मार्च 2001 नंदाठोकी गैरसैण में भूख हड़ताल
2 जुलाई से 4 अगस्त 2001 नंदाठोकी गैरसैण में भूख हड़ताल
13 दिसंबर से 10 फरवरी 2002 धारकोट पौड़ी में भूख हड़ताल
2 अगस्त से 23 अगस्त 2003 कौनपुर गढ़ थराली में भूख हड़ताल
2 फरवरी से 21 फरवरी 2004 कोडियाबगड़ पौड़ी में भूख हड़ताल
2 जुलाई से 8 अगस्त 2004 बेनिताल गैरसैण में भूख हड़ताल

मौत की जांच की मांग को लेकर वर्षभर चला आंदोलन: बेनीताल शहादत मेला के सचिव वीरेंद्र मिंगवाल ने बताया कि 8 अगस्त 2004 मध्यरात्रि में बाबा की सन्देहास्पद मौत को लेकर वर्ष भर कई प्रदर्शन व आंदोलन हुए, किंतु प्रशासन मौन साधे रहा. उन्होंने कहा कि बाबा मोहन उत्तराखंडी की मौत की हमारे द्वारा सीबीआई जांच की मांग की गई थी, किंतु जांच तो छोड़िये सरकार ब्यूरोक्रेट्स को बचाने में लगी रही. मिंगवाल ने कहा कि सरकार द्वारा कई घोषणाएं की गई जो आज तक धरातल पर नहीं उतर पाई हैं. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा बेनीताल को एस्ट्रो विलेज के रूप में विकसित किया जा रहा है जो सराहनीय पहल है. उन्होंने सरकार से बाबा मोहन उत्तराखंडी की याद में बेनीताल में स्मारक बनाये जाने की मांग की है. बताते चलें कि बेनीताल में वर्ष 2005 से हर साल 9 नंवबर को शहादत मेले में हजारों उत्तराखंडी बाबा मोहन को श्रद्धांजलि देने पहुंचते हैं.
ये भी पढ़ें: मसूरी गोलीकांड के 28 साल पूरे, दो सितंबर 1994 के जख्म याद कर भावुक हुए राज्य आंदोलनकारी

गैरसैंण: पौड़ी जनपद के एकेश्वर ब्लाक स्थित बिठौली गांव में 1948 में जन्मे मोहन सिंह पिता मनवर सिंह के मझौले पुत्र थे. इंटर के बाद आईआईटी कर बंगाल इंजीनियरिंग में भर्ती हुए, लेकिन सरकार की नौकरी रास नहीं आई. 1993 में राज्य आंदोलन में कूद गए. 2 अक्टूबर 94 के रामपुर तिराहा कांड से व्यथित होकर आजीवन दाढ़ी नहीं काटने का संकल्प लिया. इसके बाद वो बाबा मोहन उत्तराखंडी के नाम से पहचाने जाने लगे.

Baba Mohan Fair
बाबा मोहन उत्तराखंड की समाधि

बाबा मोहन उत्तराखंडी का रहा आंदोलनों का इतिहास: 11 फरवरी 1997 को पहली बार लैंसडाउन के देवीधुरा चोटी पर पृथक राज्य के लिए भूख हड़ताल पर बैठे. किंतु प्रसासन द्वारा जबरन उठा लिए गए. नवंबर 2000 में उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया, किंतु बाबा गैरसैंण राजधानी का सपना पाले हुए थे. दुर्गम स्थानों में अनशन कर अपनी मांग सरकार तक पहुंचाना उनकी जिद बन गयी थी. 2 जुलाई 2004 से बेनीताल के टोपरी उड़्यार में शुरू भूख हड़ताल बाबा का अंतिम आंदोलन साबित हुआ.

Baba Mohan Fair
बाबा मोहन उत्तराखंडी

बाबा के साथ क्या हुआ था? अनशन के 37 वें दिन 8 अगस्त को कर्णप्रयाग तहसील के तत्कालीन एसडीएम जगदीश लाल व राजस्व उपनिरीक्षक जयकृत सिंह भारी दल-बल के साथ बेनीताल पहुचे. आरोप है कि वहां बाबा को घंटों प्रताड़ित किया गया. शाम 8 बजे बाबा को घसीटते हुए मोटर सड़क तक लाया गया. बेहोशी की हालत में सीएचसी कर्णप्रयाग में भर्ती कराया गया. वहां रात 11 बजे बाबा ने दम तोड़ दिया. बाबा के सहयोगी आंदोलनकारियों ने आरोप लगाया कि इस बीच पूरे रास्ते भर बाबा को बेरहमी से पीटा गया, जिससे बाबा की मौत हो गई. हालांकि प्रशासन ने बाबा की मौत का कारण हृदय गति रुकना बता कर मामले को रफा दफा कर दिया.
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गैरसैंण राजधानी के लिए बाबा का संघर्ष

9 फरवरी से 5 मार्च 2001 नंदाठोकी गैरसैण में भूख हड़ताल
2 जुलाई से 4 अगस्त 2001 नंदाठोकी गैरसैण में भूख हड़ताल
13 दिसंबर से 10 फरवरी 2002 धारकोट पौड़ी में भूख हड़ताल
2 अगस्त से 23 अगस्त 2003 कौनपुर गढ़ थराली में भूख हड़ताल
2 फरवरी से 21 फरवरी 2004 कोडियाबगड़ पौड़ी में भूख हड़ताल
2 जुलाई से 8 अगस्त 2004 बेनिताल गैरसैण में भूख हड़ताल

मौत की जांच की मांग को लेकर वर्षभर चला आंदोलन: बेनीताल शहादत मेला के सचिव वीरेंद्र मिंगवाल ने बताया कि 8 अगस्त 2004 मध्यरात्रि में बाबा की सन्देहास्पद मौत को लेकर वर्ष भर कई प्रदर्शन व आंदोलन हुए, किंतु प्रशासन मौन साधे रहा. उन्होंने कहा कि बाबा मोहन उत्तराखंडी की मौत की हमारे द्वारा सीबीआई जांच की मांग की गई थी, किंतु जांच तो छोड़िये सरकार ब्यूरोक्रेट्स को बचाने में लगी रही. मिंगवाल ने कहा कि सरकार द्वारा कई घोषणाएं की गई जो आज तक धरातल पर नहीं उतर पाई हैं. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा बेनीताल को एस्ट्रो विलेज के रूप में विकसित किया जा रहा है जो सराहनीय पहल है. उन्होंने सरकार से बाबा मोहन उत्तराखंडी की याद में बेनीताल में स्मारक बनाये जाने की मांग की है. बताते चलें कि बेनीताल में वर्ष 2005 से हर साल 9 नंवबर को शहादत मेले में हजारों उत्तराखंडी बाबा मोहन को श्रद्धांजलि देने पहुंचते हैं.
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