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उत्तराखंड में यहां स्थित है दक्षिणेश्वर काली मंदिर, जानिए क्या है महिमा, पर्यटन से जोड़ने की मांग - Uttarakhand Temple Story

Gwaldam Dakshineswar Maa Kali Temple बधाण गढ़ी में स्थित दक्षिणेश्वर मां काली मंदिर में साल भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. मंदिर को लोग लंबे समय से पर्यटन के तौर पर विकसित करने की मांग कर रहे हैं. जिससे क्षेत्र को पहचान मिल सके और लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त हो सके.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Nov 6, 2023, 8:24 AM IST

चमोली: सीमांत जनपद चमोली में गढ़वाल कुमाऊं सीमा पर एक ऐसा मंदिर है, जो 52 गढ़ों में एक गढ़ परगना बधाण के रूप में जाना जाता है. वहीं बधाण गढ़ी में दक्षिणेश्वर मां काली का मंदिर स्थित है, जो लोगों की अटूट आस्था का केंद्र है. मंदिर के दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं. मंदिर से त्रिशूली, नंदा घुंघुटी, पंचाचूली पर्वत की हिम श्रृंखला दिखाई देती हैं. जो लोगों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती हैं.

पौराणिक मान्यता के अनुसार यहां पर मां भगवती नंदा राजराजेश्वरी दक्षिणेश्वर काली रूप में भूमिगत विराजमान रहती है. बधाण गढ़ी को परगना बधाण की इष्ट देवी भी कहा जाता है. अटूट आस्था का केंद्र यह मंदिर हरे-भरे पेड़ों के बीच स्थित है. मंदिर के चारों ओर की शांत आभा लोगों को बरबस ही अपनी ओर खिंचती है. गढ़वाल और कुमाऊं के लोगों की मां बधाण गढ़ी में अटूट आस्था है और दर्शन के लिए दूर-दूर से पहुंचते हैं. माना जाता है कि मां बधाण गढ़ी सभी श्रद्धालुओं की मुराद पूरी करती है.इसलिए मंदिर में रोजाना श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है.
पढ़ें-राजराजेश्वरी मंदिर में मौजूद है मां दुर्गा का शस्त्र, त्रिपुर सुंदरी स्वरूप के दर्शन भर से दूर होते हैं कष्ट

समुद्र तल से इस स्थान की दूरी 8612 फीट है. प्राचीन दक्षिणेश्वर मां काली मंदिर में आज भी ऐसे ऐसे कलाकृतियां देखने को मिलती हैं, जिन्हें देख लोग हैरान रह जाते हैं. 21वीं सदी में भी इस प्राचीन मंदिर में पीने का पानी कुएं से ही निकाला जाता है. किसी जमाने में राजाओं का गढ़ कहलाने वाला बधाण क्षेत्र में स्थित यह मंदिर पर्यटन की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है. लेकिन आज तक सरकार की नजर इस मंदिर पर नहीं पड़ पाई है. जिस कारण मंदिर का सौंदर्यीकरण और जीणोद्धार तक नहीं हो पाया है. लोगों का कहना है कि यदि सरकार इस ओर ध्यान दे तो बधाण गढ़ी में दक्षिणश्वरी मां काली मंदिर पर्यटन को तौर पर विकसित किया जा सकता है.
पढ़ें-खरसाली गांव में पौराणिक शनि मंदिर खतरे की जद में, पुनर्निर्माण की मांग तेज, MP के पूर्व सीएम कमलनाथ की है गहरी आस्था

जिससे क्षेत्र को पहचान मिल पाएगी और लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे.पर्यटन नगरी ग्वालदम से महज 5 किलोमीटर दूर बिनातोली से 2 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पार करने के बाद श्रद्धालु मंदिर तक पहुंचते हैं. यहां से त्रिशूली, नंदा घुंघुटी, पंचाचूली पर्वत की हिम श्रृंखला दिखाई देती हैं. जो लोगों की थकान को दूर कर देती है और बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं.

चमोली: सीमांत जनपद चमोली में गढ़वाल कुमाऊं सीमा पर एक ऐसा मंदिर है, जो 52 गढ़ों में एक गढ़ परगना बधाण के रूप में जाना जाता है. वहीं बधाण गढ़ी में दक्षिणेश्वर मां काली का मंदिर स्थित है, जो लोगों की अटूट आस्था का केंद्र है. मंदिर के दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं. मंदिर से त्रिशूली, नंदा घुंघुटी, पंचाचूली पर्वत की हिम श्रृंखला दिखाई देती हैं. जो लोगों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती हैं.

पौराणिक मान्यता के अनुसार यहां पर मां भगवती नंदा राजराजेश्वरी दक्षिणेश्वर काली रूप में भूमिगत विराजमान रहती है. बधाण गढ़ी को परगना बधाण की इष्ट देवी भी कहा जाता है. अटूट आस्था का केंद्र यह मंदिर हरे-भरे पेड़ों के बीच स्थित है. मंदिर के चारों ओर की शांत आभा लोगों को बरबस ही अपनी ओर खिंचती है. गढ़वाल और कुमाऊं के लोगों की मां बधाण गढ़ी में अटूट आस्था है और दर्शन के लिए दूर-दूर से पहुंचते हैं. माना जाता है कि मां बधाण गढ़ी सभी श्रद्धालुओं की मुराद पूरी करती है.इसलिए मंदिर में रोजाना श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है.
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समुद्र तल से इस स्थान की दूरी 8612 फीट है. प्राचीन दक्षिणेश्वर मां काली मंदिर में आज भी ऐसे ऐसे कलाकृतियां देखने को मिलती हैं, जिन्हें देख लोग हैरान रह जाते हैं. 21वीं सदी में भी इस प्राचीन मंदिर में पीने का पानी कुएं से ही निकाला जाता है. किसी जमाने में राजाओं का गढ़ कहलाने वाला बधाण क्षेत्र में स्थित यह मंदिर पर्यटन की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है. लेकिन आज तक सरकार की नजर इस मंदिर पर नहीं पड़ पाई है. जिस कारण मंदिर का सौंदर्यीकरण और जीणोद्धार तक नहीं हो पाया है. लोगों का कहना है कि यदि सरकार इस ओर ध्यान दे तो बधाण गढ़ी में दक्षिणश्वरी मां काली मंदिर पर्यटन को तौर पर विकसित किया जा सकता है.
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जिससे क्षेत्र को पहचान मिल पाएगी और लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे.पर्यटन नगरी ग्वालदम से महज 5 किलोमीटर दूर बिनातोली से 2 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पार करने के बाद श्रद्धालु मंदिर तक पहुंचते हैं. यहां से त्रिशूली, नंदा घुंघुटी, पंचाचूली पर्वत की हिम श्रृंखला दिखाई देती हैं. जो लोगों की थकान को दूर कर देती है और बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं.

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