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कोलंबिया यूनिवर्सिटी का दावा- दोगुना तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर, वाडिया के वैज्ञानिकों का इनकार

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Published : Jun 22, 2019, 4:22 PM IST

Updated : Jun 22, 2019, 5:27 PM IST

कोलंबिया विश्वविद्यालय की अर्थ इंस्टीट्यूट द्वारा किये गए एक अध्ययन में ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार पहले के मुकाबले दोगुनी होने का दावा किया गया है. लेकिन वाडिया के वैज्ञानिकों की माने तो ग्लेशियर पहले जैसी तेजी से ही पिघल रहे हैं.

ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार दोगुना होने का दावा.

देहरादून: कोलंबिया विश्वविद्यालय की अर्थ इंस्टीट्यूट में किए गए अध्ययन में दावा किया गया है कि ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार पहले के मुकाबले दोगुनी हो गई है. वहीं, देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लेशियर पहले की रफ्तार से ही पिघल रहे हैं, ये ग्लेशियरों की एक सामान्य प्रक्रिया है.

ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार दोगुना होने का दावा.

कोलंबिया विश्वविद्यालय की अर्थ इंस्टीट्यूट के मुताबिक वातावरण में लगातार बढ़ रहे तापमान के कारण हिमालय के 650 ग्लेशियरों पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है. साइंस एडवांसिस जनरल में प्रकाशित शोध रिपोर्ट के मुताबिक 1975 से 2000 के बीच ये ग्लेशियर प्रतिवर्ष 10 इंच तक पिघल रहे थे, लेकिन 2000 से 2016 के दौरान प्रति वर्ष 20 इंच तक ग्लेशियर पिघलने लगे हैं, इससे लगभग प्रतिवर्ष 8 टन पानी की क्षति हो रही है.

पढ़ें: हाई-वे पर कार और ऑटो में जबरदस्त भिड़ंत, चार घायल

बता दें कि कोलंबिया विश्वविद्यालय की अर्थ इंस्टीट्यूट में शोधकर्ताओं ने उपग्रह से लिए गए 40 वर्षों के ग्लेशियर चित्रों को आधार बनाकर यह शोध किया है. उपग्रह द्वारा ली गई तस्वीरें भारत, नेपाल, चीन और भूटान में स्थित 650 ग्लेशियरो की है जो पश्चिम से पूर्व तक करीब 2 हजार किलोमीटर में फैला है. साथ ही कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा किए गए शोध के अनुसार हिमालय क्षेत्र के तापमान में करीब एक डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है, जिससे ग्लेशियरों के पिघलने की दर बढ़ गई है.

वहीं, देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने कोलंबिया विश्वविद्यालय की शोध को लेकर कहा कि कि ग्लेशियर पहले की रफ्तार से ही पिघल रहे हैं. उन्होंने कहा कि लवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं. लेकिन सभी ग्लेशियरों के पिघलने का रफ्तार अगल-अलग है. यह एक तरह की रेगुलर प्रक्रिया है. ठंड के मौसम में यहां बर्फ जम जाती है. जिसके बाद गर्मियों में यही ग्लेशियर धीरे-धीरे पिघलते हैं और यही पानी आम जन जीवन की एक स्रोत है.

डीपी डोभाल का कहना है कि कोलंबिया विश्वविद्यालय की शोध में ग्लेशियरों के ताजी से पिघलने वाली बात पूरी तरह से सत्य नहीं है. ग्लेशियर तो पिघल रहे हैं लेकिन हमारे पास ग्लेशियर बहुत ज्यादा मात्रा में है. कुछ ग्लेशियर बहुत बड़े हैं तो कुछ ग्लेशियर छोटे हैं और छोटे ग्लेशियर ही तेजी से पिघल रहे हैं. उन्होंने कहा कि एक-दो ग्लेशियर की स्टडी से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. इसके लिए लंबे समय के डेटा की आवश्यकता होती है.

देहरादून: कोलंबिया विश्वविद्यालय की अर्थ इंस्टीट्यूट में किए गए अध्ययन में दावा किया गया है कि ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार पहले के मुकाबले दोगुनी हो गई है. वहीं, देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लेशियर पहले की रफ्तार से ही पिघल रहे हैं, ये ग्लेशियरों की एक सामान्य प्रक्रिया है.

ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार दोगुना होने का दावा.

कोलंबिया विश्वविद्यालय की अर्थ इंस्टीट्यूट के मुताबिक वातावरण में लगातार बढ़ रहे तापमान के कारण हिमालय के 650 ग्लेशियरों पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है. साइंस एडवांसिस जनरल में प्रकाशित शोध रिपोर्ट के मुताबिक 1975 से 2000 के बीच ये ग्लेशियर प्रतिवर्ष 10 इंच तक पिघल रहे थे, लेकिन 2000 से 2016 के दौरान प्रति वर्ष 20 इंच तक ग्लेशियर पिघलने लगे हैं, इससे लगभग प्रतिवर्ष 8 टन पानी की क्षति हो रही है.

पढ़ें: हाई-वे पर कार और ऑटो में जबरदस्त भिड़ंत, चार घायल

बता दें कि कोलंबिया विश्वविद्यालय की अर्थ इंस्टीट्यूट में शोधकर्ताओं ने उपग्रह से लिए गए 40 वर्षों के ग्लेशियर चित्रों को आधार बनाकर यह शोध किया है. उपग्रह द्वारा ली गई तस्वीरें भारत, नेपाल, चीन और भूटान में स्थित 650 ग्लेशियरो की है जो पश्चिम से पूर्व तक करीब 2 हजार किलोमीटर में फैला है. साथ ही कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा किए गए शोध के अनुसार हिमालय क्षेत्र के तापमान में करीब एक डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है, जिससे ग्लेशियरों के पिघलने की दर बढ़ गई है.

वहीं, देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने कोलंबिया विश्वविद्यालय की शोध को लेकर कहा कि कि ग्लेशियर पहले की रफ्तार से ही पिघल रहे हैं. उन्होंने कहा कि लवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं. लेकिन सभी ग्लेशियरों के पिघलने का रफ्तार अगल-अलग है. यह एक तरह की रेगुलर प्रक्रिया है. ठंड के मौसम में यहां बर्फ जम जाती है. जिसके बाद गर्मियों में यही ग्लेशियर धीरे-धीरे पिघलते हैं और यही पानी आम जन जीवन की एक स्रोत है.

डीपी डोभाल का कहना है कि कोलंबिया विश्वविद्यालय की शोध में ग्लेशियरों के ताजी से पिघलने वाली बात पूरी तरह से सत्य नहीं है. ग्लेशियर तो पिघल रहे हैं लेकिन हमारे पास ग्लेशियर बहुत ज्यादा मात्रा में है. कुछ ग्लेशियर बहुत बड़े हैं तो कुछ ग्लेशियर छोटे हैं और छोटे ग्लेशियर ही तेजी से पिघल रहे हैं. उन्होंने कहा कि एक-दो ग्लेशियर की स्टडी से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. इसके लिए लंबे समय के डेटा की आवश्यकता होती है.

Intro:नोट - फीड मेल से भेजी गई है, स्लग नाम .....
uk_ddn_glaciers are melting fast_vis1_7205803  

summary - कोलंबिया विश्वविद्यालय की अर्थ इंस्टीट्यूट द्वारा किये गए एक अध्ययन में ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार पहले के मुकाबले दोगुनी होने का किया गया है दावा। लेकिन वाडिया के वैज्ञानिकों की माने तो पहले से ही ग्लेशियर इतने तेजी से पिघल रहे है और ये ग्लेशियरों की एक सामान्य प्रक्रिया है।


Intro - यू तो हिमालय में हज़ारों की संख्या में ग्लेशियर मौजूद है, लेकिन वातावरण में लगातार बढ़ रहे तापमान के कारण हिमालय के 650 ग्लेशियरो पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। कोलंबिया विश्वविद्यालय की अर्थ इंस्टीट्यूट में किये गए एक अध्ययन में दावा किया गया है कि ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार पहले के मुकाबले दोगुनी हो गई है। साइंस एडवांसिस जनरल में प्रकाशित शोध रिपोर्ट के मुताबिक 1975 से 2000 के बीच ये ग्लेशियर प्रतिवर्ष 10 इंच तक पिघल रहे थे, लेकिन 2000 से 2016 के दौरान प्रति वर्ष 20 इंच तक ग्लेशियर पिघलने लगे है। इससे लगभग प्रतिवर्ष 8 टन पानी की क्षति हो रही है।




Body:कोलंबिया विश्वविद्यालय की अर्थ इंस्टीट्यूट में शोधकर्ताओं ने उपग्रह से लिए गए 40 वर्षों के ग्लेशियर चित्रों को आधार बनाकर यह शोध किया है। उपग्रह द्वारा ली गई तस्वीरों में भारत, नेपाल, चीन और भूटान में स्थित 650 ग्लेशियरो की है जो पश्चिम से पूर्व तक करीब 2 हज़ार किलोमीटर में फैले हैं। साथ ही कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा किए गए शोध के अनुसार हिमालय क्षेत्र के तापमान में करीब 1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है, जिससे ग्लेशियरों के पिघलने की दर बढ़ गई है। हालांकि सभी ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार एक समान नहीं है, कम ऊंचाई वाले ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और कुछ ग्लेशियर तो 5 मीटर तक सालाना पिघल रहे हैं।


कोलंबिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा बताए गए जानकारी के सवाल पर देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की वैज्ञानिक डी पी डोभाल ने बताया कि ग्लेशियर के पिघलने में जलवायु परिवर्तन का अच्छा खासा असर पड़ रहा है, लेकिन सभी ग्लेशियरों के पिघलने का रफ्तार अगल-अलग है। लेकिन उत्तराखंड से जुड़े अन्य पहाड़ी राज्यो के आसपास में करीब 9 हज़ार ग्लेशियर हैं। जो वाडिया वैज्ञानिकों के शोध में पता चला है कि ग्लेशियर पिघल रहे है। लेकिन ये ग्लेशियर आज से या अभी कुछ सालों से नहीं बल्कि जब से ग्लेशियर बने हैं तब से पिघल रहे हैं। और यह एक तरह की रेगुलर प्रक्रिया है क्योंकि ठंड के मौसम में यहां बर्फ जमा होते हैं जिसके बाद गर्मियों में यही ग्लेशियर धीरे-धीरे पिघलते हैं। और यही पानी आम जन जीवन की एक स्रोत है।


साथ ही वाडिया के वैज्ञानिक का कहना है की कोलंबिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के रिपोर्ट में जो बताया गया है कि पिछले कुछ सालों में ग्लेशियर बहुत तेजी से पिघल रहे हैं जो पूरी तरह सत्य नहीं है। ग्लेशियर तो पिघल रहे हैं लेकिन हमारे पास ग्लेशियर बहुत ज्यादा मात्रा में है कुछ ग्लेशियर बहुत बड़े हैं तो कुछ ग्लेशियर छोटे हैं। और जो ग्लेशियर छोटे हैं वह तेजी से पिघलते हैं। और यह एक बहुत बडा कंपलेक्स प्रोसेशन है। क्योकि एक-दो ग्लेशियर की स्टडी से कुछ भी नही कहा जा सकता है। इसके लिए लंबे समय के डेटा की आवश्यकता होती है कि टेम्परेचर कितना बढ़ रहा है, वातावरण में क्या कुछ बदलाव हो रहा है। इसकी पूरी जानकारी होनी चाहिए। 


साथ ही वाडिया के वैज्ञानिक ने कोलंबिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के रिपोर्ट जिक्र किये गए 10 इंच और 20 इंच ग्लेशियर हर साल पिघलने के सवाल पर बताया कि इस रिपोर्ट में उन्हें लगता है की 10 इंच और 20 इंच ग्लेशियर के थिनिंग के पिघलने की बात कर रहे हैं। लेकिन इसमें जो 10 इंच ग्लेशियर पिघलने की बात की जा रही है। लेकिन मौजूदा समय में हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की बात करें तो 32 सेंटीमीटर से लेकर 80 सेंटीमीटर तक हर साल ग्लेशियर पिघलते हैं। ऐसे में कोलंबिया की रिपोर्ट में ग्लेशियर के पिघलने को कम बताया गया है। इसे साथ ही ग्लेशियर के लेंथ के पिघलने में वातावरण का कुछ खास रोल नहीं होता है क्योंकि यह कभी-कभी अपने आप ही क्रेक होकर टूट जाते हैं।

बाइट - डॉ. डी पी डोभाल, वैज्ञानिक, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी


Conclusion:
Last Updated : Jun 22, 2019, 5:27 PM IST
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