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लोकसभा चुनाव में सैनिकों की रहेगी निर्णायक भूमिका, सभी पार्टियां कर रहीं लुभाने का प्रयास

हाड़ की सभी सीटों पर सैनिक वोटों का अच्छा खासा असर है. देश की सैन्य सेवा में सबसे बड़ा योगदान देने वाले उत्तराखंड में इस समीकरण को बिल्कुल भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है. एक यह भी वजह है कि उत्तराखंड मुख्य निर्वाचन अधिकारी भी सर्विस वोटरों को लेकर अत्यधिक गंभीर हैं.

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Published : Mar 19, 2019, 11:51 PM IST

देहरादूनः देश में लोकसभा चुनाव है, लिहाजा चुनाव को लेकर राजनीतिक विश्लेषण भी लाजिमी है और ऐसा ही एक विश्लेषण इन आम चुनावों में सैनिक वोटों को लेकर किया जा रहा है. ऐसे में सैनिक बाहुल्य राज्य उत्तराखंड में सैनिक वोटों को लेकर क्या राजनैतिक समीकरण है और इसके साथ-साथ यह भी समझना जरूरी है कि केवल सैनिक वोट ही नहीं बल्कि सैनिक माहौल का कैसे चुनाव पर असर पड़ने वाला है. तो आइए हम आपको बतातें है कि उत्तराखंड में सैनिक वोटों की क्या स्थिति है.

इन आम चुनावों पर सैनिक वोट और सैनिक प्रभाव को लेकर बड़ी बहस चल रही है और देश की सैन्य सेवा में सबसे बड़ा योगदान देने वाले उत्तराखंड में इस समीकरण को बिल्कुल भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है. एक यह भी वजह है कि उत्तराखंड मुख्य निर्वाचन अधिकारी भी सर्विस वोटरों को लेकर अत्यधिक गंभीर हैं.

देश की सैन्य सेवा में सबसे बड़ा योगदान देने वाले उत्तराखंड में सैनिक वोटों का अच्छा खासा असर है.

मुख्य निर्वाचन अधिकारी सौजन्या ने बताया कि उत्तराखंड में सबसे ज्यादा सैनिक वोटर हैं और सर्विस वोटर के माध्यम से इन वोटों को कलेक्ट किया जाएगा. वहीं निर्वाचन विभाग ने इस बार सर्विस वोटरों के लिए पोर्टल के माध्यम से नहीं बल्कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से वोट कलेक्ट करने का तरीका इजाद किया है. यहां एक बात और समझनी जरूरी है कि हम सर्विस वोटरों को सैनिक वोट से इसलिए जोड़ रहें है क्योकि सर्विस वोटर में 99 फीसदी सैनिक ही हैं, बाकी1 प्रतिशत लोग ही सर्विस वोटर हैं.

अब आपको बता दें कि उत्तराखंड में सैनिक वोटों का क्या समीकरण है. पूरे प्रदेश में 5 संसदीय सीटों पर सैनिक वोटों को लेकर क्या स्थिति है, आपको बताते हैं.

सूबे की 5 संसदीय सीटों पर 1.25 फीसदी सर्विस वोटों के साथ कुल 88,600 सर्विस वोटर हैं.

पौड़ी लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा 2.5 फीसदी सर्विस वोटों के साथ कुल 33 हजार के पार सर्विस वोटर हैं.

पौड़ी के बाद अल्मोड़ा सीट पर 2.1 फीसदी सर्विस वोटर हैं जिनकी संख्या 28 हजार के आस-पास है.
इसके बाद टिहरी सीट पर 0.82 फीसदी सर्विस वोटर हैं, जिनकी संख्या 12 के करीब है.

टिहरी के बाद नैनीताल सीट पर 0.5 फीसदी सर्विस वोटर हैं जिनकी संख्या 10 हजार के करीब है.

अंतिम में हरिद्वार संसदीय सीट पर केवल 0.23 फीसदी सर्विस वोटर है जिनकी संख्या 5 हजार के लगभग है.

इन आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो पहाड़ की सभी सीटों पर सैनिक वोटों का अच्छा खासा असर है. वहीं राज्य में सैनिक वोटों पर बुद्धजीवी लोग क्या कहते हैं वह भी सुन लीजिए. उत्तराखंड की राजनीति का बड़ा अनुभव रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र नाथ कौशिक का कहना है कि उत्तराखंड में सैनिक वोटरों का असर बहुत पुराना है और इसकी झलक उत्तराखंड की राजनीति में पिछले चुनावों में भी साफ देखी गई है.

उनका कहना है कि राजनैतिक दल कोई भी हो, लेकिन सैनिक पर कौन सा मुद्दा असर डालता है, ये महत्वपूर्ण होगा और सैनिक उस पर क्या सोचता है यभी निर्णायक रहेगा. वहीं सैनिक वोटों में पौड़ी सीट सबसे आगे है और यहां सैनिक वोटरों की संख्या तकरीब 33,653 है.

उत्तराखंड के ही एक और पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा के अनुसार चुनावों पर सैनिक प्रभाव को हम केवल सैनिकों या फिर पूर्व सैनिकों की तादाद का असर ना माना जाए बल्कि सैनिकों के परिजन, आश्रित और रिश्तेदारों को भी इसमें शामिल करना जरूरी है.

आंकड़ों के इतर बहुगुणा ने भी बताया कि पौड़ी जिले में सैनिक और पूर्व सैनिकों का राजनैतिक और सामाजिक असर पुराना है, इतना ही नहीं उन्होंने बताया कि सैनिक वोटरों की एक विशेषता होती कि सैनिकों का वोट एकजुट रहता है और किसी एक विशेष राजनैतिक दल की ओर ही सैनिकों का मत आज तक देखा गया है और वो दल कौन सा होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन सा दल सैनिक के मन को छू पाता है.

देहरादूनः देश में लोकसभा चुनाव है, लिहाजा चुनाव को लेकर राजनीतिक विश्लेषण भी लाजिमी है और ऐसा ही एक विश्लेषण इन आम चुनावों में सैनिक वोटों को लेकर किया जा रहा है. ऐसे में सैनिक बाहुल्य राज्य उत्तराखंड में सैनिक वोटों को लेकर क्या राजनैतिक समीकरण है और इसके साथ-साथ यह भी समझना जरूरी है कि केवल सैनिक वोट ही नहीं बल्कि सैनिक माहौल का कैसे चुनाव पर असर पड़ने वाला है. तो आइए हम आपको बतातें है कि उत्तराखंड में सैनिक वोटों की क्या स्थिति है.

इन आम चुनावों पर सैनिक वोट और सैनिक प्रभाव को लेकर बड़ी बहस चल रही है और देश की सैन्य सेवा में सबसे बड़ा योगदान देने वाले उत्तराखंड में इस समीकरण को बिल्कुल भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है. एक यह भी वजह है कि उत्तराखंड मुख्य निर्वाचन अधिकारी भी सर्विस वोटरों को लेकर अत्यधिक गंभीर हैं.

देश की सैन्य सेवा में सबसे बड़ा योगदान देने वाले उत्तराखंड में सैनिक वोटों का अच्छा खासा असर है.

मुख्य निर्वाचन अधिकारी सौजन्या ने बताया कि उत्तराखंड में सबसे ज्यादा सैनिक वोटर हैं और सर्विस वोटर के माध्यम से इन वोटों को कलेक्ट किया जाएगा. वहीं निर्वाचन विभाग ने इस बार सर्विस वोटरों के लिए पोर्टल के माध्यम से नहीं बल्कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से वोट कलेक्ट करने का तरीका इजाद किया है. यहां एक बात और समझनी जरूरी है कि हम सर्विस वोटरों को सैनिक वोट से इसलिए जोड़ रहें है क्योकि सर्विस वोटर में 99 फीसदी सैनिक ही हैं, बाकी1 प्रतिशत लोग ही सर्विस वोटर हैं.

अब आपको बता दें कि उत्तराखंड में सैनिक वोटों का क्या समीकरण है. पूरे प्रदेश में 5 संसदीय सीटों पर सैनिक वोटों को लेकर क्या स्थिति है, आपको बताते हैं.

सूबे की 5 संसदीय सीटों पर 1.25 फीसदी सर्विस वोटों के साथ कुल 88,600 सर्विस वोटर हैं.

पौड़ी लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा 2.5 फीसदी सर्विस वोटों के साथ कुल 33 हजार के पार सर्विस वोटर हैं.

पौड़ी के बाद अल्मोड़ा सीट पर 2.1 फीसदी सर्विस वोटर हैं जिनकी संख्या 28 हजार के आस-पास है.
इसके बाद टिहरी सीट पर 0.82 फीसदी सर्विस वोटर हैं, जिनकी संख्या 12 के करीब है.

टिहरी के बाद नैनीताल सीट पर 0.5 फीसदी सर्विस वोटर हैं जिनकी संख्या 10 हजार के करीब है.

अंतिम में हरिद्वार संसदीय सीट पर केवल 0.23 फीसदी सर्विस वोटर है जिनकी संख्या 5 हजार के लगभग है.

इन आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो पहाड़ की सभी सीटों पर सैनिक वोटों का अच्छा खासा असर है. वहीं राज्य में सैनिक वोटों पर बुद्धजीवी लोग क्या कहते हैं वह भी सुन लीजिए. उत्तराखंड की राजनीति का बड़ा अनुभव रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र नाथ कौशिक का कहना है कि उत्तराखंड में सैनिक वोटरों का असर बहुत पुराना है और इसकी झलक उत्तराखंड की राजनीति में पिछले चुनावों में भी साफ देखी गई है.

उनका कहना है कि राजनैतिक दल कोई भी हो, लेकिन सैनिक पर कौन सा मुद्दा असर डालता है, ये महत्वपूर्ण होगा और सैनिक उस पर क्या सोचता है यभी निर्णायक रहेगा. वहीं सैनिक वोटों में पौड़ी सीट सबसे आगे है और यहां सैनिक वोटरों की संख्या तकरीब 33,653 है.

उत्तराखंड के ही एक और पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा के अनुसार चुनावों पर सैनिक प्रभाव को हम केवल सैनिकों या फिर पूर्व सैनिकों की तादाद का असर ना माना जाए बल्कि सैनिकों के परिजन, आश्रित और रिश्तेदारों को भी इसमें शामिल करना जरूरी है.

आंकड़ों के इतर बहुगुणा ने भी बताया कि पौड़ी जिले में सैनिक और पूर्व सैनिकों का राजनैतिक और सामाजिक असर पुराना है, इतना ही नहीं उन्होंने बताया कि सैनिक वोटरों की एक विशेषता होती कि सैनिकों का वोट एकजुट रहता है और किसी एक विशेष राजनैतिक दल की ओर ही सैनिकों का मत आज तक देखा गया है और वो दल कौन सा होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन सा दल सैनिक के मन को छू पाता है.

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Dheeraj Sajwan, Dehradun

क्या कहता उत्तराखंड का सैनिक समिकरण

एंकर-  ओपनिंग पीटीसी 
(देश में लोकसभा चुनाव है लिहाजा चुनाओं को लेकर राजनितिक विश्लेषण भी लाजमी है और एसा ही एक विश्लेषण इन आम चुनावों में सैनिक वोटों को लेकर किया जा रहा है। एसे में सैनिक बाहुल्य राज्य उत्तराखंड में सैनिक वोटों को लेकर क्या राजनैतिक समिकरण है और इसके साथ साथ यह भी समझना जरुरी है कि केवल सैनिक वोट ही नही बल्की सैनिक माहोल का कैसे चुनाव पर असर पजडने वाला है। तो आइए हम आपको बतातें है कि उत्तराखंड में सैनिक वोटों को लेकर क्या स्थीती है।)

वीओ 1- इन आम चुनावों पर सैनिक वोट और सैनिक प्रभाव पर सबसे बड़ी बहस है और देश की सेन्य सेवा में सबसे बड़ा योगदान देने वाले उत्तराखंड में इस समिकरण को बिल्कुल भी नजर अंदाज नहि किया जा सकता है। एक यह भी वजह है कि उत्तराखंड मुख्य निर्वाचन अधिकारी भी सर्विस वोटरों को लेकर अत्यधिक गंभीर है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी सौजन्या ने बताया कि उत्तराखंड में सबसे ज्यादा सैनिक वोटर है और सर्विस वोटर के माध्यम से इन वोटो को कलेक्ट किया जाएगा वहीं निर्वाचन ने इस बार सर्विस वोटरों के लिए पोर्टल के माध्यम से नही बल्की इलैक्ट्रोनिक माध्यम से वोट कलेक्ट करने का तरीका इजात किया है। यहां एक बात और समझनी जरुरी है कि हम सर्विस वोटरों को सैनिक वोट से इसलिए जोड़ रहें है क्योकि सर्विस वोटर में 99 फीसदी सैनिक ही है बाकी अपवाद स्वरुप 1 प्रतिशत लोग ही सर्विस वोट में मौजूद है।
बाइट- सौजन्या, मुख्य निर्वाचन अधिकारी

वीओ 2- अब आपको बता दें कि उत्तराखंड में सैनिक वोटों का क्या समिकरण है... पूरे प्रदेश में 5 संसदीय सीटों पर सैनिक वोटों को लेकर क्या स्थीती है आपको बता ते हैं।
GFx in-
-- सूबे की 5 संसदीय सीटों पर 1.25 फीसदी सर्विस वोटों के साथ कुल 88 हजार 6 सौ सर्विस वोटर हैं।
-- पोड़ी लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा 2.5 फीसदी सर्विस वोटों के साथ कुल 33 हजार के पार सर्विस वोटर हैं।
-- पोड़ी के बाद अल्मोड़ा सीट पर 2.1 फीसदी सर्विस वोटर हैं जिनकी संख्या 28 हजार के आस-पास हैं।
-- इसके बाद टीहरी सीट पर 0.82 फीसदी सर्विस वोटर हैं, जिनकी संख्या 12 के पार हैं।
-- टीहरी के बाद नैनिताल सीट पर 0.5 फीसदी सर्विस वोटर हैं जिनकी संख्या 10 हजार के करीब है। 
-- अंतिम में हरिद्वार संसदीय सीट पर केवल 0.23 फीसदी सर्विस वोटर है जिनकी संख्यम 5 हजार के लगभग है। 
(Source Election Commission )
GFX out-

वीओ 3- इन आंकड़ो पर अगर नजर डालें तो पहाड़ की सभी सीटों पर सैनिक वोटों का अच्छा खासा असर हैं। वहीं राज्य में सैनिक वोटों पर बुद्धजीवी लोग क्या कहते हैं वह भी सुन लीजिए। उत्तराखंड की राजनीति का बड़ा अनुभव रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र नाथ कौशिक का कहना है कि उत्तराखंड में सैनिक वोटरों का असर बहुत पुराना है और इसकी झलक उत्तराखंड की राजनिती में पिछले चुनावों में भी साफ देखी गई है। वरिष्ट पत्रकार रविन्द्र कौशिक का कहना है कि राजनैतिक दल कोई भी हो लेकिन सैनिक पर कौन सा मुद्दा असर डालता है ये महत्वपूर्ण होगा और सैनिक उस पर क्या सोचता है यभी निर्णायक रहेगा। वहीं सैनिक वोटों में पोड़ी सीट सबसे आगें है और यहां सैनिक वोटरों की संख्या तकरीब 33653 हैं।
बाइट- रविन्द्र नाथ कौशिक, वरिष्ठ पत्रकार

वीओ 4- बात केवल सैनिक या सर्विस वोटर पर ही खत्म नही हो जाती है बल्कि सैनिक वोटरों का असर भी बहुत माइने रखता है। पहाड़ की सभी सीटों पर लोक सेना और सैनिक के प्रति खाशा झुकाव है। सैनिक वोटरों के साथ साथ सैनिकों के परिजन, परिवार और गांव पर भी सैनिक पर प्रभाव डालने वाला मुद्दा अपना गहरा असर छोड़ेगा इस बात में कोई शक नही है। उत्तराखंड के विरष्ठ पत्रकार राजीवनैन बहुगुणा के अनुसार चुनावो पर सैनिक प्रभाव को हम केवल सैनिकों या फिर पुर्व सैनिकों की तादात की असर ना माना जाय बल्की सैनिकों के परिजन, आश्रित और रिस्तेदारों को भी इसमें शामिल करना जरुरी है। आंकड़ों के इतर वरिष्ठ पत्रकार राजीव नैन बहुगुणा ने भी बताया कि पोड़ी जिले में सैनिक और पुर्व सैनिकों का राजनैतिक और सामाजिक असर पुराना है, इतना ही नही उन्होने बताया कि सैनिक वोटरों की एक विशेषता होती कि सैनिकों का वोट जुट रहता है और किसी एक विशेष राजनैतिक दल की ओर ही सैनिकों का मत आज तक देखा गया है और वो दल कौन सा होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन सा दल सैनिक के मन को छु पाता है।
बाइट- राजीव नैन बहुगुणा, वरिष्ट पत्रकार

फाइनल वीओ-  क्लोसिंग पीटीसी (आम चुनावो में उत्तराखंड के सैनिक वोटरों का असर होगा इसमें कोई दो राय नही है लेकिन ये असर किस तरफ होता है ये देखना होगा.. बहरहाल इस असर को मजबूत करने के लिए दोनो बड़े राजनितिक दल अपनी अपनी रणनीती तय करने में लगे है लेकिन अब देखना होगा कि किस दल की रणनीती रग लाती है। देहरादून से धीरज सजवाण की स्पेशल रिपोर्ट)
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