देहरादून: निदेशालय विभागीय लेखा में नियमों के विरुद्ध पदोन्नतियों पर जांच की फाइलें सालों से धूल फांक रही हैं. यहां एक-दो नहीं बल्कि कई पदोन्नतियों के मामले जांच के बाद नियम विरुद्ध माने गए हैं, लेकिन इन मामलों पर समाधान की उम्मीद बेमानी लग रही है. देखिये ये रिपोर्ट....
उत्तराखंड का विभागीय लेखा निदेशालय पदोन्नतियों के मामले में कई आपत्तियों से घिरा है. चौंकाने वाली बात यह है कि 15-15 साल से नियम विरुद्ध पदोन्नतियों की फाइलें तैयार हो रही हैं, लेकिन इन पर जांच के फेर में अंतिम नतीजा नहीं निकाला जा रहा है. वित्त विभाग के अंतर्गत विभागीय लेखा में पदोन्नतियां गड़बड़झाले के संकेत दे रही है तो वित्त विभाग के अधिकारी कुंभकरणी नींद में सो रहे हैं. ऐसा हम पदोन्नतियों को लेकर मौजूद उन दस्तावेजों के आधार पर कह सकते हैं जिनमें निदेशक और अपर सचिव स्तर के अधिकारियों ने पदोन्नतियों को नियम विरुद्ध बताया है. लेकिन मामले में वित्त विभाग इन आपत्तियों का समाधान नहीं निकाल सका है.
खास बात यह है कि सहायक लेखा अधिकारी जेपी भट्ट ने ही मामले को कई स्तर पर उठाया है. यहां तक की भारत सरकार ने भी शिकायतकर्ता के पत्र के आधार पर उत्तराखंड के मुख्य सचिव को पदोन्नति में नियम विरुद्ध काम होने को लेकर अग्रिम कार्यवाही करने के लिए पत्र भी भेजा है.
तीन अधिकारियों के प्रमोशन मामले पर कई बार जांच होने के बावजूद नहीं जागा वित्त विभाग
बता दें कि सहायक लेखाधिकारी भगवत सिंह, देवेंद्र सिंह और शंकर मणि कंडवाल के मामले में कई जांच रिपोर्ट सामने आईं. यहां तक की अपर सचिव और निदेशक स्तर पर भी मामले में अपना पक्ष पत्र के माध्यम से उच्चाधिकारियों को बताया गया. साल 2004 में तत्कालीन निदेशक ने भगवत सिंह और देवेंद्र सिंह के मामले में सीधे तौर पर उनकी पदोन्नति को अनुचित बताया था. निदेशक ने कहा कि उक्त दोनों कर्मियों के द्वारा लेखाकार के पद पर 5 साल की सेवा पूरी नहीं की गई थी, जबकि लेखाकार की नियमावली में 5 साल का नियम अनिवार्य तौर पर रखा गया है. बावजूद इसके भगवत सिंह और देवेंद्र सिंह की पदोन्नति 2005 में निदेशक टीएन सिंह द्वारा सहायक लेखा अधिकारी के पद पर कर दी गई. यही नहीं लोक सेवा अधिकरण द्वारा भी वरिष्ठता सूची को गलत बताया जा चुका है. जिसके आधार पर हाई कोर्ट ने भी इस सूची पर रोक लगाई थी.
इन अधिकारियों के अलावा शंकर मणि कंडवाल की नियुक्ति पर भी कई सवाल उठ चुके हैं. जिसको लेकर जांच बिठाई जाने के बाद तत्कालीन जांच अधिकारी ने कंडवाल की नियुक्ति को नियम विरुद्ध माना था. उसके बाद 3 सदस्यीय कमेटी भी बनाई गई, जिसमें अपर सचिव वित्त ने कंडवाल की नियुक्ति नियम विरुद्ध होने की जांच को सही ठहराया था. जानकारी के अनुसार शंकर मणि कंडवाल को देहरादून में कनिष्ठ लिपिक के पद पर नियुक्ति दी गई थी, लेकिन बाद में कंडवाल को शासनादेश के विपरीत लेखाकार के पद पर 2005 में पदोन्नति दी गई. जबकि कंडवाल लेखा संवर्ग की योग्यता नहीं रखते थे. इस क्रम में कंडवाल का वरिष्ठता सूची में नाम ना होते हुए भी 2012 में सहायक लेखा अधिकारी के पद पर पदोन्नति की गई.
सालों से उलझे पदोन्नति के मामले वित्तीय अनियमितता से भी हैं जुड़े
दस्तावेजों की मानें तो इन अधिकारियों की पदोन्नति नियम के विरुद्ध है और यदि यह सही है तो इस प्रकरण में जांच होने के बावजूद भी क्यों नहीं कार्रवाई की गई? यह एक बड़ा सवाल है. खास बात यह है कि इन अधिकारियों में दो अधिकारी शंकर मणि कंडवाल और देवेंद्र सिंह चौहान की 30 जून 2019 यानी कुछ ही दिनों बाद सेवानिवृत्ति होने वाले हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि इस मामले को सालों से क्यों नहीं सुलझाया गया? इसे वित्तीय अनियमतता इसलिए माना जा रहा है, क्योंकि पदोन्नति का लाभ देकर तमाम एरियर का भुगतान भी कर्मचारियों को किया गया है.
पदोन्नति के इन मामलों को लेकर विभाग से जुड़े अधिकारी कैमरे पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं. ईटीवी भारत के पास ऐसे तमाम दस्तावेज मौजूद हैं, जिससे साफ तौर पर पता चलता है कि पदोन्नति में नियमों के विरुद्ध काम किया गया है. निदेशक अपर सचिव और तमाम दूसरे विभागीय अधिकारी भी इस नियुक्ति को गलत मानते हैं. जबकि 3 सदस्यीय कमेटी में जिन दो 2 सदस्यों ने अपनी राय में कर्मचारियों की नियुक्ति को सही ठहराया है अपर सचिव वित्त ने अपनी रिपोर्ट में उन्हें भी गलत ठहराया है. ऐसे में देखना होगा कि विभागीय लेखा में पदोन्नतियों को लेकर चल रही कथित गड़बड़ियों को कब तक सुलझाया जाता है.