देहरादूनः उत्तराखंड के पारंपरिक कपड़ों और जैविक खाद्य पदार्थो के साथ ही आधुनिक हथकरघा सामान की बाजार में खासी डिमांड है. भारत सरकार के आदिवासी मंत्रालय की पहल से ट्राइब इंडिया के आउटलेट्स पर उत्तराखंड के सामान के प्रति लोगों का खासा रुझान देखने को मिल रहा है.
लेकिन बाजार की जितनी डिमांड है उस हिसाब से सामान उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को सरकार प्रोत्साहन दे तो प्रदेश में तेजी से बढ़ते पलायन पर लगाम लग सकती है. यह बात साबित हो चुकी है कि उत्तराखंड में पलायन लगातार बढ़ रहा है और सरकार इसे नियंत्रित करने में लगातार विफल हो रही है. ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध न होना पलायन का एक बड़ा कारण है. धीरे धीरे बंजर भूमि में तब्दील होते उत्तराखंड के गांव में सरकार किसी किसी भी तरह की कारगर नीति स्थापित करने में असफल रही है.
वहीं ऐसे में भारत सरकार के जनजाति मंत्रालय की पहल से पूरे देश मे आदिवासी लोगों द्वारा तैयार की जाने वाली पारम्परिक सामग्रियों को ट्राइब्स इंडिया फाउंडेशन के माध्यम से बाजार उपलब्ध करवाता है जिसमें उत्तराखंड के गांवों से मिलने वाली वो तमाम पारंपरिक और क्रिएटिव चीजें है. जिन्हें आज उत्तराखंड के गांवों में लोग बेकार समझकर शहरों का रुख कर रहे हैं. ट्राइब्स इंडिया ने पूरे उत्तराखंड में तकरीबन 6 ऐसे आउटलेट्स खोलें हैं, जिनमे वो केवल गांवों में बने खाद्य पदार्थ और रोजमर्रा की सामग्री को बाजार मुहैया करवाती है.
ये सामग्रियां पूरी तरह से ऑर्गेनिक और शुद्ध होती हैं लिहाजा इसके प्रति लोगों का भी खासा रुझान रहता है. ट्राइब्स इंडिया वैसे तो पूरे देश के आदिवासियों के कल्चर और उनकी बनाई हुई हथकरघा सामग्रियों को बढ़ावा देता है, लेकिन उत्तराखंड की सामग्रियों के प्रति ग्राहकों का खासा रुझान मिल रहा है, लेकिन चिंता का विषय यह है कि ट्राइब्स इंडिया को उत्तराखंड की घरेलू और यहां बनाई जाने वाली हथकरघा सामग्री मार्केट की डिमांड के अनुरूप पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पा रही है.
देहरादून राजपुर स्थित ट्राइब्स इंडिया के एक आउटलेट का ईटीवी भारत संवाददाता ने जायजा लिया तो वहां पर उत्तराखंड में बने तमाम तरह की सामग्री देखने को मिली. जिसके प्रति ग्राहकों का खासा रुझान था. यहां मंडुआ जिसे कि गढ़वाली में कोदा भी कहा जाता है उसके बिस्किट, अखरोट की लकड़ियों की तमाम कलाकारी सहित उत्तराखंड के ऊपरी हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाले भेड़ से बने गर्म पशमीना शॉल, गर्म वेस्ट कोर्ट के अलावा तमाम तरह की घरेलू पदार्थ जैसे कि शहद, बुरांस का जूस, इत्यादि इस आउटलेट पर उपलब्ध था और ग्राहक भी इन ऑर्गेनिक पदार्थो को लेकर खासा रुचि रखते हैं.
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उत्तराखंड में पिछले कई सालों से रहने वालीं मिनी चटर्जी ने कहा कि वो हमेशा ही पारंपरिक और हाथ से बने वस्त्र पहनते हैं. उन्होंने कहा कि ये वस्त्र शरीर के लिए सबसे बेहतर होते हैं और इन कपड़ों के पहनने से कई प्रकार की बीमारियां से बचा जा सकता है.
उन्होंने कहा कि हमारा शरीर प्रकृति से बना है और इस शरीर पर हमें ऑर्गेनिक या फिर प्राकृतिक कपड़े ही हमारे शरीर के लिये अनुकूल हैं. उन्होंने उत्तराखंड के ऊनी कपड़ों की काफी सराहना की, लेकिन उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में ऑर्गेनिक घरेलू सामग्रियों की उपलब्धता बाजार में बहुत कम हैं. उत्तराखंड में हथकरघा को उसकी गुणवत्ता के अनुरूप बढ़ावा नहीं मिला है.