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असम के बाद उत्तराखंड में होगा मूंगा रेशम का उत्पादन, वृक्ष पुरुष किशन सिंह की मेहनत होगी सफल - बागेश्वर ताजा सामाचार टुडे

सब कुछ सही रहा तो असम (Assam to produce coral silk) के बाद उत्तराखंड मूंगा रेशम का उत्पादन (Production of coral silk in Uttarakhand) करने वाला दूसरा राज्य बनने जा रहा है. वृक्ष पुरुष किशन सिंह मलड़ा पिछले 8 सालों से इसकी तैयारी कर रहे थे, जो अब सफल होती हुई दिख रही है. असम के अलावा अभीतक कोई दूसरा राज्य नहीं था, जहां मूंगा रेशम का उत्पादन होता हो.

coral silk
मूंगा रेशम का उत्पादन
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Published : May 4, 2022, 10:01 AM IST

Updated : May 4, 2022, 10:51 AM IST

बागेश्वर: वृक्ष पुरुष किशन सिंह मलड़ा की मेहनत सफल होती नजर आ रही है. 2012 से मूंगा रतन के पौधे लगाने के बाद लगातार प्रशासन से रेशम उत्पादन को लेकर प्रयासरत रहे, लेकिन उनको सफलता नहीं मिल पाई. अब प्रशासन के द्वारा विभाग को निर्देश दिए गए और उनके पौधों के लिए कीट और अंडे उपलब्ध करा दिए हैं. अभी इसकी शुरुआत प्रयोग के तौर पर की जाएगी. इसमें सफलता मिलती है तो उसका बृहद रूप से उत्पादन किया जाएगा.

वृक्ष पुरुष किशन सिंह मलड़ा ने बताया कि अगर यह प्रयोग सफल रहा तो बेरोजगार युवाओं के लिए मील का पत्थर साबित होगा. उन्होंने कहा कि मूंगा रेशम के उत्पादन (Production of coral silk in Uttarakhand) से जहां बेरोजगारों को फायदा होगा. वहीं असम के बाद बागेश्वर में इसका उत्पादन होने पर उत्तराखंड में भी असम की तर्ज पर व्यापार में बढ़ोत्तरी होगी. आपको बता दें कि किशन सिंह मलड़ा अभी तक करीब 8 लाख पौधे लगा चुके हैं और वह लगातार पर्यावरण बचाने के लिए प्रयासरत हैं.

उत्तराखंड में होगा मूंगा रेशम का उत्पादन
पढ़ें- बिना मिट्टी की खेती मुमकिन, अल्मोड़ा के दिग्विजय ने कर दिखाया कमाल

उनके पर्यावरण बचाने के कार्यों को देखते हुए पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने मलड़ा को वृक्ष पुरुष की उपाधि प्रदान की थी और उनके कार्यों की सराहना की थी. किशन सिंह मलड़ा के कार्यों के कारण ही आज जिले में जगह-जगह छायादार पेड़ों की श्रृखला बनी हुई है. वृक्ष पुरुष किशन तीन लघु वाटिकाओं का भी निर्माण कर चुके हैं, जहां दो लाख से अधिक पौधे लगाए गए हैं. इस कारण इलाके में कई जल स्रोत भी रिचार्ज हो चुके हैं.

किशन सिंह ने साल 2012 में अपनी देवकी लघु वाटिका में मूंगा रेशम के पौधों को लगाना शुरू किया, जिसके बाद उन्होंने प्रशासन से रेशम कीट और अंडों को उपलब्ध कराने को कहा. हालांकि उनको मूंगा रेशम के पौधों में कीट और अंडों के लिए 10 साल का इंतजार करना पड़ा. उन्होंने कहा कि देर ही सही पर अब लग रहा है कि आने वाले समय में बेरोजगार युवाओं को इससे जुड़कर काफी फायदा होगा.
पढ़ें- मटर की खेती बदल रही किसानों की तस्वीर, कई राज्यों की मंडियों में भारी मांग

बता दें कि रेशम की चार किस्मों में मूंगा रेशम सबसे कीमती होता है और खास तौर पर इसका इस्तेमाल साड़ी बनाने के लिए किया जाता है. असम में तो बगैर मूंगा रेशम की साड़ी के शादी ही नहीं होती. उत्तराखंड में सबसे अधिक रेशम शहतूत, बांज और अरंडी से निकाला जाता है. मूंगा रेशम का व्यावसायिक उपयोग पहली बार होगा. मूंगा की खासियत यह है कि ये किसी भी जलवायु में रेशम देता है. बाकी तीन किस्मों के रेशमों का वजन किया जाता है, जबकि मूंगा की गिनती होती है. 16 हजार रुपये प्रति किलो बिक रहा यह विश्व का सबसे महंगा रेशम है. इसकी बाजार में अच्छी मांग है. फिलहाल मूंगा रेशम असम में ही होता है.

बागेश्वर: वृक्ष पुरुष किशन सिंह मलड़ा की मेहनत सफल होती नजर आ रही है. 2012 से मूंगा रतन के पौधे लगाने के बाद लगातार प्रशासन से रेशम उत्पादन को लेकर प्रयासरत रहे, लेकिन उनको सफलता नहीं मिल पाई. अब प्रशासन के द्वारा विभाग को निर्देश दिए गए और उनके पौधों के लिए कीट और अंडे उपलब्ध करा दिए हैं. अभी इसकी शुरुआत प्रयोग के तौर पर की जाएगी. इसमें सफलता मिलती है तो उसका बृहद रूप से उत्पादन किया जाएगा.

वृक्ष पुरुष किशन सिंह मलड़ा ने बताया कि अगर यह प्रयोग सफल रहा तो बेरोजगार युवाओं के लिए मील का पत्थर साबित होगा. उन्होंने कहा कि मूंगा रेशम के उत्पादन (Production of coral silk in Uttarakhand) से जहां बेरोजगारों को फायदा होगा. वहीं असम के बाद बागेश्वर में इसका उत्पादन होने पर उत्तराखंड में भी असम की तर्ज पर व्यापार में बढ़ोत्तरी होगी. आपको बता दें कि किशन सिंह मलड़ा अभी तक करीब 8 लाख पौधे लगा चुके हैं और वह लगातार पर्यावरण बचाने के लिए प्रयासरत हैं.

उत्तराखंड में होगा मूंगा रेशम का उत्पादन
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उनके पर्यावरण बचाने के कार्यों को देखते हुए पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने मलड़ा को वृक्ष पुरुष की उपाधि प्रदान की थी और उनके कार्यों की सराहना की थी. किशन सिंह मलड़ा के कार्यों के कारण ही आज जिले में जगह-जगह छायादार पेड़ों की श्रृखला बनी हुई है. वृक्ष पुरुष किशन तीन लघु वाटिकाओं का भी निर्माण कर चुके हैं, जहां दो लाख से अधिक पौधे लगाए गए हैं. इस कारण इलाके में कई जल स्रोत भी रिचार्ज हो चुके हैं.

किशन सिंह ने साल 2012 में अपनी देवकी लघु वाटिका में मूंगा रेशम के पौधों को लगाना शुरू किया, जिसके बाद उन्होंने प्रशासन से रेशम कीट और अंडों को उपलब्ध कराने को कहा. हालांकि उनको मूंगा रेशम के पौधों में कीट और अंडों के लिए 10 साल का इंतजार करना पड़ा. उन्होंने कहा कि देर ही सही पर अब लग रहा है कि आने वाले समय में बेरोजगार युवाओं को इससे जुड़कर काफी फायदा होगा.
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बता दें कि रेशम की चार किस्मों में मूंगा रेशम सबसे कीमती होता है और खास तौर पर इसका इस्तेमाल साड़ी बनाने के लिए किया जाता है. असम में तो बगैर मूंगा रेशम की साड़ी के शादी ही नहीं होती. उत्तराखंड में सबसे अधिक रेशम शहतूत, बांज और अरंडी से निकाला जाता है. मूंगा रेशम का व्यावसायिक उपयोग पहली बार होगा. मूंगा की खासियत यह है कि ये किसी भी जलवायु में रेशम देता है. बाकी तीन किस्मों के रेशमों का वजन किया जाता है, जबकि मूंगा की गिनती होती है. 16 हजार रुपये प्रति किलो बिक रहा यह विश्व का सबसे महंगा रेशम है. इसकी बाजार में अच्छी मांग है. फिलहाल मूंगा रेशम असम में ही होता है.

Last Updated : May 4, 2022, 10:51 AM IST
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