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गांधी @150: उत्तराखंड इस आश्रम में बापू ने लिखी थी अनासक्ति योग की प्रस्तावना

कौसानी के अनासक्ति आश्रम में गांधीजी के भजनों को गाकर उन्हें याद किया गया. इसी स्थान पर गांधी जी ने गीता पर आधारित अपनी प्रसिद्व पुस्तक ''अनासक्ति योग'' की प्रस्तावना लिखी थी.

बागेश्वर
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Published : Oct 2, 2019, 6:55 PM IST

बागेश्वर: जिले में महात्मा गांधीजी की 150वीं जयंती धूमधाम से मनाई गई. सुबह शहर में प्रभातफेरी निकाली गई. इस दौरान नेताओं, अधिकारी और स्थानीय लोगों ने गांधीजी मूर्ति पर माल्यार्पण कर उन्हें याद किया. इस अवसर पर जिलाधिकारी ने सभी कर्मचारियों को स्वच्छता की शपथ दिलाई. इसके साथ ही अनासक्ति आश्रम में गांधी जयंती पर विशेष कार्यक्रमों को आयोजन किया गया था. इस आश्रम में गांधी की करीब 2 सप्ताह तक रूके थे.

पढ़ें- ईटीवी भारत की ओर से देश के सर्वश्रेष्ठ गायकों ने बापू को दी संगीतमय श्रद्धांजलि

कौसानी के अनासक्ति आश्रम में गांधीजी के भजनों को गाकर उन्हें याद किया गया. इसी स्थान पर गांधी जी ने गीता पर आधारित अपनी प्रसिद्व पुस्तक 'अनासक्ति योग' की प्रस्तावना लिखी थी.

पढ़ें- गांधी @ 150 : रामोजी ग्रुप के चेयरमैन रामोजी राव ने लॉन्च किया बापू का प्रिय भजन

बता दें कि कुली-बेगार आंदोलन 1921 में उत्तर भारत के बागेश्वर नगर में आम जनता द्वारा अहिंसक आन्दोलन था. इस आन्दोलन का नेतृत्व बद्री दत्त पाण्डे ने किया था. आंदोलन के सफल होने के बाद उन्हें 'कुमाऊं केसरी' की उपाधि दी गई. इस आन्दोलन का उद्देश्य कुली बेगार प्रथा बंद कराने के लिये अंग्रेजों पर दबाव बनाना था. इस आंदोलन से महात्मा गांधी बहुत प्रभावित हुए और 1929 में वे खुद बागेश्वर आये थे. इसके बाद गांधी जी ने यंग इंडिया में इस आन्दोलन के बारे में लिखा था कि, 'इसका प्रभाव संपूर्ण था, यह एक रक्तहीन क्रान्ति थी'.

पढ़ें- गांधी जयंती और लाल बहादुर शास्त्री की जयंती पर PM मोदी ने दी श्रद्धांजलि, ट्वीट किया ये वीडियो

बताते हैं कि कुली-बेगार आंदोलन की सफलता में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अपील का बड़ा असर हुआ था. कुमाऊं परिषद के एक दल ने गांव गांव जाकर लोगों को इस प्रथा के खिलाफ लामबंद किया. वहीं, दूसरे दल ने नागपुर जाकर महात्मा गांधी को इसकी जानकारी दी थी. महात्मा गांधी उस वक्त तो पहाड़ नहीं आए लेकिन उन्होंने पहाड़ के लोगों से अपील की कि वह बेगार प्रथा का विरोध करें और किसी भी ब्रिटिश अधिकारी के आवास व भोजन की व्यवस्था न करें. बापू के इसी संदेश को लेकर परिषद के कार्यकर्ता गांव-गांव गए थे.

बागेश्वर: जिले में महात्मा गांधीजी की 150वीं जयंती धूमधाम से मनाई गई. सुबह शहर में प्रभातफेरी निकाली गई. इस दौरान नेताओं, अधिकारी और स्थानीय लोगों ने गांधीजी मूर्ति पर माल्यार्पण कर उन्हें याद किया. इस अवसर पर जिलाधिकारी ने सभी कर्मचारियों को स्वच्छता की शपथ दिलाई. इसके साथ ही अनासक्ति आश्रम में गांधी जयंती पर विशेष कार्यक्रमों को आयोजन किया गया था. इस आश्रम में गांधी की करीब 2 सप्ताह तक रूके थे.

पढ़ें- ईटीवी भारत की ओर से देश के सर्वश्रेष्ठ गायकों ने बापू को दी संगीतमय श्रद्धांजलि

कौसानी के अनासक्ति आश्रम में गांधीजी के भजनों को गाकर उन्हें याद किया गया. इसी स्थान पर गांधी जी ने गीता पर आधारित अपनी प्रसिद्व पुस्तक 'अनासक्ति योग' की प्रस्तावना लिखी थी.

पढ़ें- गांधी @ 150 : रामोजी ग्रुप के चेयरमैन रामोजी राव ने लॉन्च किया बापू का प्रिय भजन

बता दें कि कुली-बेगार आंदोलन 1921 में उत्तर भारत के बागेश्वर नगर में आम जनता द्वारा अहिंसक आन्दोलन था. इस आन्दोलन का नेतृत्व बद्री दत्त पाण्डे ने किया था. आंदोलन के सफल होने के बाद उन्हें 'कुमाऊं केसरी' की उपाधि दी गई. इस आन्दोलन का उद्देश्य कुली बेगार प्रथा बंद कराने के लिये अंग्रेजों पर दबाव बनाना था. इस आंदोलन से महात्मा गांधी बहुत प्रभावित हुए और 1929 में वे खुद बागेश्वर आये थे. इसके बाद गांधी जी ने यंग इंडिया में इस आन्दोलन के बारे में लिखा था कि, 'इसका प्रभाव संपूर्ण था, यह एक रक्तहीन क्रान्ति थी'.

पढ़ें- गांधी जयंती और लाल बहादुर शास्त्री की जयंती पर PM मोदी ने दी श्रद्धांजलि, ट्वीट किया ये वीडियो

बताते हैं कि कुली-बेगार आंदोलन की सफलता में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अपील का बड़ा असर हुआ था. कुमाऊं परिषद के एक दल ने गांव गांव जाकर लोगों को इस प्रथा के खिलाफ लामबंद किया. वहीं, दूसरे दल ने नागपुर जाकर महात्मा गांधी को इसकी जानकारी दी थी. महात्मा गांधी उस वक्त तो पहाड़ नहीं आए लेकिन उन्होंने पहाड़ के लोगों से अपील की कि वह बेगार प्रथा का विरोध करें और किसी भी ब्रिटिश अधिकारी के आवास व भोजन की व्यवस्था न करें. बापू के इसी संदेश को लेकर परिषद के कार्यकर्ता गांव-गांव गए थे.

Intro:बागेश्वर।

एंकर— बागेश्वर जिले में महात्मा गांधी जी की 150वीं जयंती धूमधाम से मनाई गई। प्रात: नगर में प्रभातफेरी निकालने के बाद बापूजी की मूर्ति पर माल्यार्पण किया गया। इस अवसर पर जिलाधिकारी ने सभी कर्मचारियों को स्वछता की शपथ दिलाई।

वीओ- कलक्ट्रेट परिसर में कार्यक्रम आयोजित कर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को याद किया गया। चित्र पर माल्यापर्ण के बाद रामधुन गायन कर शांति और अहिंसा का संदेश दिया। सभी ने इस अवसर पर स्वछता की शपथ ली। इधर कौसानी में भी अनासक्ति आश्रम में गांधी जी के भजनों को गाकर गांधी जी को याद किया गया। जिलाधिकारी रंजना राजगुरु ने कहा कि, स्वदेशी, जय जवान जय किसान और कर्म के सिद्धांत आज भी प्रासांगिक हैं। उन्होंने कहा कि अहिंसा का पालन हमें मन, वचन और कर्म से करना चाहिए। अगर हम इनका पालन नहीं करते तो हम हिंसा करते हैं।

बाईट—1— रंजना राजगुरू, जिलाधिकारी बागेश्वर

वीओ— महात्मा गांधी ने दो सप्ताह अनाशक्ति आश्रम में बिताए। उन्होंने इसी स्थान पर गीता पर आधारित अपनी प्रसिद्व पुस्तक ‘अनासक्ति योग’ की प्रस्तावना लिखी। कुली-बेगार आन्दोलन 1921 में उत्तर भारत के बागेश्वर नगर में आम जनता द्वारा अहिंसक आन्दोलन था। इस आन्दोलन का नेतृत्व बद्री दत्त पाण्डे ने किया, तथा आंदोलन के सफल होने के बाद उन्हें 'कुमाऊं केसरी' की उपाधि दी गयी। इस आन्दोलन का उद्देश्य कुली बेगार प्रथा बन्द कराने के लिये अंग्रेजों पर दबाव बनाना था। इस आंदोलन से महात्मा गांधी बहुत प्रभावित हुए और 1929 में वो स्वयं बागेश्वर आये और रास्ते में चनौंदा में गांधी आश्रम की स्थापना की। इसके बाद गांधी जी ने यंग इंडिया में इस आन्दोलन के बारे में लिखा कि, 'इसका प्रभाव संपूर्ण था, यह एक रक्तहीन क्रान्ति थी।'
बताते हैं कि कुली उतार आंदोलन की सफलता में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अपील का बड़ा असर हुआ। कुमाऊं परिषद के एक दल ने गांव गांव जाकर लोगों को प्रथा के खिलाफ गोलबंद किया तथा एक दल ने नागपुर जाकर महात्मा गांधी को इसकी जानकारी दी। महात्मा गांधी उस वक्त तो पहाड़ नहीं आए लेकिन उन्होंने पहाड़ के लोगों से अपील की कि वह बेगार प्रथा का विरोध करें तथा किसी भी ब्रिटिश अधिकारी के आवास व भोजन की व्यवस्था न करें। बापू के इसी संदेश को लेकर परिषद के कार्यकर्ता गांव—गांव गए।

बाईट—2— रमेश पांडे, आश्रम संचालक।
Body:वीओ- कलक्ट्रेट परिसर में कार्यक्रम आयोजित कर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को याद किया गया। चित्र पर माल्यापर्ण के बाद रामधुन गायन कर शांति और अहिंसा का संदेश दिया। सभी ने इस अवसर पर स्वछता की शपथ ली। इधर कौसानी में भी अनासक्ति आश्रम में गांधी जी के भजनों को गाकर गांधी जी को याद किया गया। जिलाधिकारी रंजना राजगुरु ने कहा कि, स्वदेशी, जय जवान जय किसान और कर्म के सिद्धांत आज भी प्रासांगिक हैं। उन्होंने कहा कि अहिंसा का पालन हमें मन, वचन और कर्म से करना चाहिए। अगर हम इनका पालन नहीं करते तो हम हिंसा करते हैं।

बाईट—1— रंजना राजगुरू, जिलाधिकारी बागेश्वर

वीओ— महात्मा गांधी ने दो सप्ताह अनाशक्ति आश्रम में बिताए। उन्होंने इसी स्थान पर गीता पर आधारित अपनी प्रसिद्व पुस्तक ‘अनासक्ति योग’ की प्रस्तावना लिखी। कुली-बेगार आन्दोलन 1921 में उत्तर भारत के बागेश्वर नगर में आम जनता द्वारा अहिंसक आन्दोलन था। इस आन्दोलन का नेतृत्व बद्री दत्त पाण्डे ने किया, तथा आंदोलन के सफल होने के बाद उन्हें 'कुमाऊं केसरी' की उपाधि दी गयी। इस आन्दोलन का उद्देश्य कुली बेगार प्रथा बन्द कराने के लिये अंग्रेजों पर दबाव बनाना था। इस आंदोलन से महात्मा गांधी बहुत प्रभावित हुए और 1929 में वो स्वयं बागेश्वर आये और रास्ते में चनौंदा में गांधी आश्रम की स्थापना की। इसके बाद गांधी जी ने यंग इंडिया में इस आन्दोलन के बारे में लिखा कि, 'इसका प्रभाव संपूर्ण था, यह एक रक्तहीन क्रान्ति थी।'
बताते हैं कि कुली उतार आंदोलन की सफलता में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अपील का बड़ा असर हुआ। कुमाऊं परिषद के एक दल ने गांव गांव जाकर लोगों को प्रथा के खिलाफ गोलबंद किया तथा एक दल ने नागपुर जाकर महात्मा गांधी को इसकी जानकारी दी। महात्मा गांधी उस वक्त तो पहाड़ नहीं आए लेकिन उन्होंने पहाड़ के लोगों से अपील की कि वह बेगार प्रथा का विरोध करें तथा किसी भी ब्रिटिश अधिकारी के आवास व भोजन की व्यवस्था न करें। बापू के इसी संदेश को लेकर परिषद के कार्यकर्ता गांव—गांव गए।

बाईट—2— रमेश पांडे, आश्रम संचालकConclusion:
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