बागेश्वर: महाअष्टमी के दिन बाबा बागनाथ की नगरी में दीपोत्सव के साथ मां सरयू की भव्य आरती की गई. बड़ी संख्या में भक्तों ने सरयू आरती में भाग लिया. सरयू किनारे जले दीपों से नगर रोशनी में जगमगा गया. लोगों ने आतिशबाजी का भी जमकर लुत्फ उठाया. भक्तों ने सरयू के दोनों तटों पर दीप जलाकर भव्य दीपदान किया. दीपों की टिमटिमाती रोशनी में पूरा नगर रोशन हो गया. नदी के दोनों ओर बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ दीपोत्सव को देखने के लिए उमड़ी हुई थी.
महाअष्टमी की शाम सरयू घाट पर मनोरम दृश्य नजर आया. रंग बिरंगी रोशनी के साथ सरयू के तट पर महाआरती हुई. आसमान को आगोश में लपेटते हुए धुएं के साथ सरयू घाट पर आरती हुई. आरती में शामिल होने के लिए घाट पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. बड़ी संख्या में नगरवासी आरती में शामिल हुए. सरयू के दोनों तटों पर दीप जलाकर भव्य दीपदान किया गया. लंबे समय से बागेश्वर में अष्टमी की शाम गंगा आरती, दीपदान और आतिशबाजी का आयोजन किया जाता रहा है.
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इस दौरान बड़ी संख्या में भक्तों ने गंगा आरती में भाग लिया. दुर्गा व देवी पूजा पंडालों में भक्तों ने मां दुर्गा की आरती वंदना की. महोत्सव के आयोजक ने बताया कि गंगा आरती के बाद दीपदान का हर साल आयोजन किया जाता है.
उन्होंने कहा कि दीपक जलाने से जहां एक तरफ अंधेरा दूर होता है, वहीं दीपक हमें अपने भीतर छिपी अंधकार रूपी बुराई को भी खत्म करने की सीख देता है. अच्छाई रूपी रोशनी ग्रहण करने का संदेश देता है. हम लगातार इस आयोजन को और अधिक भव्य करने के लिए प्रयासरत हैं.
बागेश्वर उत्तराखंड राज्य में सरयू और गोमती नदियों के संगम पर स्थित एक तीर्थ है. यह बागेश्वर जनपद का प्रशासनिक मुख्यालय भी है. यहां बागेश्वर नाथ का प्राचीन मंदिर है, जिसे स्थानीय जनता 'बागनाथ' या 'बाघनाथ' के नाम से जानती है. मकर संक्रांति के दिन यहां उत्तराखंड का सबसे बड़ा मेला लगता है. स्वतंत्रता संग्राम में भी बागेश्वर का बड़ा योगदान रहा है. कुली बेगार प्रथा के रजिस्टरों को सरयू की धारा में बहाकर यहां के लोगों ने अपने अंचल में गांधी जी के असहयोग आंदोलन शुरआत सन 1920 ई. में की थी.