अल्मोड़ा: अपनी विभिन्न मांगों को लेकर अल्मोड़ा में प्रशिक्षित एसएसबी गुरिल्लों का आंदोलन एक दशक से भी ज्यादा समय से जारी है. नियुक्ति एवं पेंशन समेत विभिन्न मांगों को लेकर कलेक्ट्रेट में गुरिल्लों के धरने को चार हजार दिन पूरे हो गए हैं. सबसे लंबे चल रहे इस आंदोलन पर सरकार की ओर से कोई सकारात्मक रुख नहीं दिखने से प्रशिक्षित एसएसबी गुरिल्ले खासे नाराज हैं. उन्होंने सरकार को चेतावनी दी कि कोरोना काल के चलते अभी वे शांतिपूर्ण धरना दे रहे हैं, जैसे ही स्थितियां सामान्य होंगी गुरिल्ला संगठन दोबारा आर-पार की लड़ाई को तैयार है.
धरनास्थल पर हुई सभा में संगठन के केंद्रीय अध्यक्ष ब्रह्मानंद डालाकोटी ने कहा कि यह अजीब विडंबना है जब कश्मीर में गृह युद्ध के जैसे हालात बने हुए है. वहीं, चीन सीमाओं पर तनाव है. नेपाल जैसा छोटा मित्र देश भी आंखें तरेर रहा है. बांग्लादेश से बांग्लादेशी पूर्वोत्तर से रोहिंग्या लगातार घुसपैठ पर आमादा हैं. पंजाब सीमा से पाकिस्तान अवैध रूप से नशे का सामान भेज कर देश को तबाह कर रहा है. ऐसी स्थिति में भी सरकार का ध्यान सीमावर्ती क्षेत्रों में समुचित निगरानी की व्यवस्था की करने ओर नहीं है.
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उन्होंने कहा कि 1962 में भारत चीन युद्ध के बाद युद्ध के दौरान सेना को सीमाओं पर हुई दुश्वारियों को देखते हुए तत्कालीन सरकार ने विश्व की अनेक सुरक्षा व्यवस्थाओं के अध्ययन के बाद सीमा पर सुरक्षा को मजबूत करने के लिए एसएसबी का गठन किया था, जिसके अंतर्गत देश की सीमाओं से लगे सैकड़ों गांवों में रहने वाले युवक-युवतियों को छापामार युद्ध में दक्ष किया गया. उन्हें सीमा पर निगरानी के लिए विशेष खुफिया कार्यों का भी प्रशिक्षण दिया गया था.
ऐसे में प्रदर्शनकारियों ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा सरकार देश की सुरक्षा के नाम पर अरबों खरबों के अस्त्र-शस्त्र तो खरीद रही है, पर इस सस्ती सुरक्षा व्यवस्था की उपेक्षा कर रही है. यही नहीं सरकार ने एसएसबी की 9 मई 2011 को भेजी गई सिफारिशों को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया है.