सोमेश्वरः आगामी 28 दिसंबर को आजाद हिंद फौज के शहीद हुकुम सिंह बोरा की 29वीं पुण्य तिथि मनाई जाएगी. उनकी स्मृति में निर्मित स्मारक में श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किया जाएगा. जिसमें क्षेत्रवासी, शासन-प्रशासन के प्रतिनिधि उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करेंगे. शहीद हुकुम सिंह बोरा ने अपनी जिंदगी वतन के नाम करने के अलावा ब्रिटिश हुकूमत के दांत खट्टे किए थे. इतना ही नहीं देश की आजादी के लिए भूखे-प्यासे कई यातनाएं भी सही थी. साथ ही 2 साल का कठोर कारावास के बाद कलकत्ता के कैम जेल से साल 1946 में निर्वस्त्र रिहा हुए थे.
बता दें कि बौरारौ घाटी को स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का क्षेत्र कहा जाता है. यहां के 58 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और 6 वीर शहीदों ने आजादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व न्यौछावर किया था. उन्हीं महान सपूतों में हुकुम सिंह बोरा भी शामिल हैं. जिन्होंने अपनी जिंदगी वतन के नाम करने के अलावा ब्रिटिश हुकूमत के दांत खट्टे कर दिए थे.
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आजाद हिंद फौज के जांबाज सिपाही और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. हुकम सिंह बोरा का जन्म बैशाख 13 गते साल 1917 में ग्राम फल्या (मल्लाखोली) अल्मोड़ा जिले में हुआ था. उनकी शिक्षा दीक्षा स्थानीय स्कूल सोमेश्वर में हुई थी. हुकुम सिंह बोरा बचपन से ही ओजस्वी स्वभाव के थे और 6 जनवरी 1938 में 19, हैदराबाद डिविजन में भर्ती हुए थे. अपने सैनिक कार्यकाल में 7 जनवरी 1942 तक द्वितीय विश्व युद्ध लड़ते रहे.
साल 1942 में ब्रिटिश सेना को छोड़कर नेताजी के द्वारा गठित 'आजाद हिंद फौज’ में शामिल हुए थे. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग लिया और नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने नारे 'तुम मुझे खून दो- मैं तुम्हें आजादी दूंगा' से प्रेरित होकर आजाद हिंद फौज में सैनिक निर्देशक के पद पर कार्य संभाला. अंत में गिरफ्तार कर लिए गए.
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शहीद हुकुम सिंह बोरा के बेटे किसन सिंह बोरा ने भी पिता से प्रेरित होकर भारतीय सेना में 3 दशक तक सेवाएं दी. 28 दिसंबर 1989 को यात्रा के दौरान रानीखेत के पास चौकुनी में बस अग्निकांड में जीवित जलकर शहीद हो गए.
शहीद हुकुम सिंह बोरा राष्ट्रीय कार्यक्रमों में स्कूली बच्चों को देश प्रेम के गीत सुनाने के अलावा अपने जीवन के अंतिम दिनों तक सामाजिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे. उनके जोशीले भाषणों और देश भक्ति को देखते हुए लोग उन्हें आजाद के नाम से भी जानते थे.