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माओवादी भाष्कर ने वृद्ध जागेश्वर में बनाया था हाइड आउट, पुलिस जुटा रही सबूत

उत्तराखंड का आखिरी मोस्ट वांटेड इनामी माओवादी भाष्कर पांडे को पुलिस रिमांड में लेने के बाद से लगातार उससे पूछताछ कर रही है. रविवार को पुलिस भाष्कर पांडे को सोमेश्वर समेत जागेश्वर क्षेत्र में पूछताछ के लिए ले गई थी. जहां मौका मुआयना कर पुलिस ने उसके निशानदेही में कई सबूत जुटाए.

Bhaskar Pandey
भाष्कर पांडे
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Published : Sep 27, 2021, 7:26 AM IST

अल्मोड़ा: उत्तराखंड का आखिरी मोस्ट वांटेड इनामी माओवादी भाष्कर पांडे को पुलिस ने रिमांड में लिया है. रविवार को पुलिस भाष्कर पांडे को सोमेश्वर समेत जागेश्वर क्षेत्र में पूछताछ के लिए ले गई थी. जहां मौका मुआयना कर पुलिस ने उसके निशानदेही में कई सबूत जुटाए. जिसमें यह मालूम चला है कि वांटेड माओवादी ने वृद्ध जागेश्वर में खुद को छुपाने के लिए हाइड आउट बनाया था.

इस मामले के जांच अधिकारी रानीखेत के सीओ तपेश कुमार के नेतृत्व में पुलिस की टीम माओवादी भाष्कर को सोमेश्वर के महात्मा गांधी स्मारक, इंटर कॉलेज चनौदा, राजकीय प्राथमिक विद्यालय बृषभेश्वर, कोसी नदी पुल, सोमेश्वर के अनेक जगहों का मौका मुआयना के साथ ही वृद्ध जागेश्वर क्षेत्र में ले गई. इस दौरान भाष्कर ने बताया कि 2017 के चुनाव बहिष्कार के दौरान उन्होंने द्वाराहाट और सोमेश्वर विधानसभा में अनेक जगहों पर माओवादी पोस्टर चिपकाए. जिसके बाद छिपने के लिए उन्होंने वृद्ध जागेश्वर के पास एक हाइड आउट बनाया था. निशानदेही पर वहां से रहने के लिए टेंट, स्लीपिंग बैग, कम्यूनिस्ट पार्टी का लाल झंडा, दराती, चूल्हे का सामान, राशन और अन्य सामग्री भी बरामद की है.

बता दें कि, बीते 13 सितंबर को 20 हजार के इनामी माओवादी भाष्कर पांडे को अल्मोड़ा पुलिस और एसटीएफ की संयुक्त टीम ने पेटशाल से गिफ्तार कर बड़ी कामयाबी हासिल की थी. भास्कर पांडे साल 2017 से फरार चल रहा था. पुलिस की प्रारंभिक जांच के अनुसार यह मालूम चला कि भाष्कर द्वारा वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान सोमेश्वर क्षेत्र में के अनेक स्थानों में माओवादी समर्थकों के साथ वॉल पेंटिंग के साथ ही सरकार के खिलाफ पोस्टर चिपकाए थे. यहीं नहीं भाष्कर द्वारा नैनीताल के धारी में भी सरकारी गाड़ी पर आग लगाने का आरोप है. पुलिस द्वारा भाष्कर पांडे को गिरफ्तारी के बाद वह लगातार उसके खिलाफ सबूत इकट्ठा करने में जुटी हुई है.

भाष्कर पांडे साल 2006 से माओवादी संगठन भारत की कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी से जुड़ा है. संगठन में उत्तराखंड के जोनल कमेटी का सचिव खीम सिंह बोरा था. भाष्कर पांडे के साथ देवेंद्र चम्याल और भगवती भोज सक्रिय थे. संगठन ने चारों को जनआंदोलन करने और उत्तराखंड में चुनावों को प्रभावित करने की जिम्मेदारी दी थी.

पढ़ें: माओवादी भास्कर पांडे से बरामद पेन ड्राइव से मिले कई सबूत, जानिए कैसे टूटा संगठन

पूर्व में भाष्कर पांडे ने पूछताछ के दौरान बताया कि वो माओवादी खीम सिंह बोरा की गिरफ्तारी के बाद से उत्तराखंड में एरिया कमांडर का जिम्मा संभाले था और प्रदेश में माओवाद की जड़ें जमाने के लिए ताना बाना बुन रहा था. पुलिस अब तक इस मामले में भाष्कर से पूर्व देवेंद्र चम्याल, खीम सिंह बोरा, भगवती भोज और भाष्कर पांडे को गिरफ्तार कर चुकी है.

2007 के बाद से छिन्न भिन्न होने लगा था संगठनः उत्तराखंड में माओवादियों की टॉप लीडरशिप पर शिकंजा कसने के बाद से संगठन की कमर टूटनी शुरू हो गई थी. 22 दिसंबर 2007 को नानकमत्ता में पुलिस व खुफिया एजेंसी के ऑपरेशन हंसपुर खत्ता की कामयाबी के बाद नेटवर्क छिन्न-भिन्न हो चुका था. कई शीर्ष नेता गिरफ्तार हो चुके थे. जबकि कई भूमिगत हो गए थे. जिसे संगठन असक्रिय हो गया था.

संगठन की गतिविधियों को बढ़ावा देने और अधूरे मिशन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए मध्य व पिछली पंक्ति के सिपहसलारों को सक्रिय किया जाने लगा. जिसके लिए जंगलों में डेरा डाला गया, लेकिन पिछले कुछ सालों में माओवादी गतिविधियों के साथ ही सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट से गृह मंत्रालय भी हरकत में आया गया और एक-एक कर उत्तराखंड के सभी प्रमुख माओवादियों को पकड़ने में सफलता मिल सकी.

अल्मोड़ा: उत्तराखंड का आखिरी मोस्ट वांटेड इनामी माओवादी भाष्कर पांडे को पुलिस ने रिमांड में लिया है. रविवार को पुलिस भाष्कर पांडे को सोमेश्वर समेत जागेश्वर क्षेत्र में पूछताछ के लिए ले गई थी. जहां मौका मुआयना कर पुलिस ने उसके निशानदेही में कई सबूत जुटाए. जिसमें यह मालूम चला है कि वांटेड माओवादी ने वृद्ध जागेश्वर में खुद को छुपाने के लिए हाइड आउट बनाया था.

इस मामले के जांच अधिकारी रानीखेत के सीओ तपेश कुमार के नेतृत्व में पुलिस की टीम माओवादी भाष्कर को सोमेश्वर के महात्मा गांधी स्मारक, इंटर कॉलेज चनौदा, राजकीय प्राथमिक विद्यालय बृषभेश्वर, कोसी नदी पुल, सोमेश्वर के अनेक जगहों का मौका मुआयना के साथ ही वृद्ध जागेश्वर क्षेत्र में ले गई. इस दौरान भाष्कर ने बताया कि 2017 के चुनाव बहिष्कार के दौरान उन्होंने द्वाराहाट और सोमेश्वर विधानसभा में अनेक जगहों पर माओवादी पोस्टर चिपकाए. जिसके बाद छिपने के लिए उन्होंने वृद्ध जागेश्वर के पास एक हाइड आउट बनाया था. निशानदेही पर वहां से रहने के लिए टेंट, स्लीपिंग बैग, कम्यूनिस्ट पार्टी का लाल झंडा, दराती, चूल्हे का सामान, राशन और अन्य सामग्री भी बरामद की है.

बता दें कि, बीते 13 सितंबर को 20 हजार के इनामी माओवादी भाष्कर पांडे को अल्मोड़ा पुलिस और एसटीएफ की संयुक्त टीम ने पेटशाल से गिफ्तार कर बड़ी कामयाबी हासिल की थी. भास्कर पांडे साल 2017 से फरार चल रहा था. पुलिस की प्रारंभिक जांच के अनुसार यह मालूम चला कि भाष्कर द्वारा वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान सोमेश्वर क्षेत्र में के अनेक स्थानों में माओवादी समर्थकों के साथ वॉल पेंटिंग के साथ ही सरकार के खिलाफ पोस्टर चिपकाए थे. यहीं नहीं भाष्कर द्वारा नैनीताल के धारी में भी सरकारी गाड़ी पर आग लगाने का आरोप है. पुलिस द्वारा भाष्कर पांडे को गिरफ्तारी के बाद वह लगातार उसके खिलाफ सबूत इकट्ठा करने में जुटी हुई है.

भाष्कर पांडे साल 2006 से माओवादी संगठन भारत की कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी से जुड़ा है. संगठन में उत्तराखंड के जोनल कमेटी का सचिव खीम सिंह बोरा था. भाष्कर पांडे के साथ देवेंद्र चम्याल और भगवती भोज सक्रिय थे. संगठन ने चारों को जनआंदोलन करने और उत्तराखंड में चुनावों को प्रभावित करने की जिम्मेदारी दी थी.

पढ़ें: माओवादी भास्कर पांडे से बरामद पेन ड्राइव से मिले कई सबूत, जानिए कैसे टूटा संगठन

पूर्व में भाष्कर पांडे ने पूछताछ के दौरान बताया कि वो माओवादी खीम सिंह बोरा की गिरफ्तारी के बाद से उत्तराखंड में एरिया कमांडर का जिम्मा संभाले था और प्रदेश में माओवाद की जड़ें जमाने के लिए ताना बाना बुन रहा था. पुलिस अब तक इस मामले में भाष्कर से पूर्व देवेंद्र चम्याल, खीम सिंह बोरा, भगवती भोज और भाष्कर पांडे को गिरफ्तार कर चुकी है.

2007 के बाद से छिन्न भिन्न होने लगा था संगठनः उत्तराखंड में माओवादियों की टॉप लीडरशिप पर शिकंजा कसने के बाद से संगठन की कमर टूटनी शुरू हो गई थी. 22 दिसंबर 2007 को नानकमत्ता में पुलिस व खुफिया एजेंसी के ऑपरेशन हंसपुर खत्ता की कामयाबी के बाद नेटवर्क छिन्न-भिन्न हो चुका था. कई शीर्ष नेता गिरफ्तार हो चुके थे. जबकि कई भूमिगत हो गए थे. जिसे संगठन असक्रिय हो गया था.

संगठन की गतिविधियों को बढ़ावा देने और अधूरे मिशन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए मध्य व पिछली पंक्ति के सिपहसलारों को सक्रिय किया जाने लगा. जिसके लिए जंगलों में डेरा डाला गया, लेकिन पिछले कुछ सालों में माओवादी गतिविधियों के साथ ही सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट से गृह मंत्रालय भी हरकत में आया गया और एक-एक कर उत्तराखंड के सभी प्रमुख माओवादियों को पकड़ने में सफलता मिल सकी.

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