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उत्तराखंड में यूं मनायी गई महाशिवरात्रि, शिवालयों में उमड़े श्रद्धालु

उत्तराखंड में धूमधाम से मनायी गई महाशिवरात्रि का पर्व, विभिन्न मंदिरों में उमड़े श्रद्धालु. भगवान शिव की पूजा-अर्चना कर मांगी मनोकामना.

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Published : Mar 4, 2019, 10:55 PM IST

Updated : Mar 4, 2019, 11:48 PM IST

मंदिरों में उमड़े श्रद्धालु.

रामनगर/मसूरी/अल्मोड़ा/चमोली/हरिद्वारः पूरे देश में महाशिवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. इसी के तहत प्रदेश के विभिन्न शिवालयों में सुबह से ही भक्तों का तांता लगा रहा. इस दौरान श्रद्धालुओं ने मंदिरों में पहुंचकर भगवान शिव की पूजा-अर्चना कर मनोकामना मांगी. वहीं, शिव के अराधना में कई लोगों ने व्रत भी रखे.

रामनगरः महाशिवरात्रि के मौके पर गुलरसिद्ध के नाम से जाना जाने वाला बाल सुंदरी मंदिर में सुबह से ही भक्तों का तांता लगा रहा. इस दौरान मंदिर में भक्तों के द्वारा बनाई गई करीब 8 कुंतल की कांवड़ आकर्षण का केंद्र रही. इस भारी कांवड़ में कांवड़ियों चालीस लीटर गंगा जल लेकर आये थे, जिससे शिवलिंग पर जलाभिषेक किया गया.

उत्तराखंड में महाशिवरात्रि का पर्व
अल्मोड़ाः
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महाशिवरात्रि के दिन जहां देशभर के शिवमंदिरों में पूजा अर्चना के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ी. इसी क्रम में अल्मोड़ा के प्रसिद्ध शिव के धाम जागेश्वर में भी सुबह से हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं पहुंचे. शिवरात्रि के दिन यहां नि:संतान महिलाएं व्रत रखकर पूरी रात भर तपस्या करती हैं. मान्यता है कि इस दिन शिव की तपस्या करने पर निसंतान महिलाओं को सालभर के अंदर संतान की प्राप्ति होती है.


जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर की दूरी पर देवदार के घने जंगलों के बीच स्थित जागेश्वर मंदिर का विशेष महत्व है. पुराणों में स्कंद पुराण, मानस खंड, शिवमहापुराण और देवी भागवत आदि ग्रंथो में इस स्थान का वर्णन किया गया है. यहां सालभर श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं.


चमोलीः शिवरात्रि के मौके पर चतुर्थ केदार रुद्रनाथ के गद्दी स्थल और भगवान गोपीनाथ के अवतार में शिव के प्राचीन मंदिर में सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता लगा. ये मंदिर उत्तराखंड का दूसरा सबसे ऊंचा प्राचीन मंदिर है. माना जाता है कि ये मंदिर शिल्प कला और पुरातत्व की दृष्टि से 7वीं सदी का है. मान्यता है कि यहीं पर शिव ने कामदेव को भस्म किया था.

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यहां पर साल भर भगवान शिव की नियमित पूजा-अर्चना होती है, लेकिन महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर आठ पहर की अलग-अलग पूजा होती है. मंदिर के परिसर में एक विशालकाय त्रिशूल आकर्षण का केंद्र है, जो हजारों सालाों से धूप, बारिश बर्फ में खडा है. माना जाता है कि ये त्रिशूल अष्ठ धातु से निर्मित किया गया है. इसे कनिष्ठ उंगली के छूने से हिलने लगती है, दोंनों हाथों से जोर लगाने पर त्रिशूल नहीं हिलती है.

हरिद्वारः धर्मनगरी में भी महाशिवरात्रि के पर्व के मौके पर विभिन्न शिवालयों में जलाभिषेक के लिए तड़के से ही भोले भक्त मंदिरों और शिवालयों में पहुंचे. पूजा सामग्री की दुकानें सजी रहीं. दुकानदारों के लिए इस प्रकार के पर्व काफी फायदेमंद साबित होते हैं. त्योहारों के मौके भारी संख्या में लोग मंदिरों में पहुंचते हैं. जिससे उनकी बिक्री बढ़ने से आमदनी भी बढ़ती है.

रामनगर/मसूरी/अल्मोड़ा/चमोली/हरिद्वारः पूरे देश में महाशिवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. इसी के तहत प्रदेश के विभिन्न शिवालयों में सुबह से ही भक्तों का तांता लगा रहा. इस दौरान श्रद्धालुओं ने मंदिरों में पहुंचकर भगवान शिव की पूजा-अर्चना कर मनोकामना मांगी. वहीं, शिव के अराधना में कई लोगों ने व्रत भी रखे.

रामनगरः महाशिवरात्रि के मौके पर गुलरसिद्ध के नाम से जाना जाने वाला बाल सुंदरी मंदिर में सुबह से ही भक्तों का तांता लगा रहा. इस दौरान मंदिर में भक्तों के द्वारा बनाई गई करीब 8 कुंतल की कांवड़ आकर्षण का केंद्र रही. इस भारी कांवड़ में कांवड़ियों चालीस लीटर गंगा जल लेकर आये थे, जिससे शिवलिंग पर जलाभिषेक किया गया.

उत्तराखंड में महाशिवरात्रि का पर्व
अल्मोड़ाः
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महाशिवरात्रि के दिन जहां देशभर के शिवमंदिरों में पूजा अर्चना के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ी. इसी क्रम में अल्मोड़ा के प्रसिद्ध शिव के धाम जागेश्वर में भी सुबह से हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं पहुंचे. शिवरात्रि के दिन यहां नि:संतान महिलाएं व्रत रखकर पूरी रात भर तपस्या करती हैं. मान्यता है कि इस दिन शिव की तपस्या करने पर निसंतान महिलाओं को सालभर के अंदर संतान की प्राप्ति होती है.


जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर की दूरी पर देवदार के घने जंगलों के बीच स्थित जागेश्वर मंदिर का विशेष महत्व है. पुराणों में स्कंद पुराण, मानस खंड, शिवमहापुराण और देवी भागवत आदि ग्रंथो में इस स्थान का वर्णन किया गया है. यहां सालभर श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं.


चमोलीः शिवरात्रि के मौके पर चतुर्थ केदार रुद्रनाथ के गद्दी स्थल और भगवान गोपीनाथ के अवतार में शिव के प्राचीन मंदिर में सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता लगा. ये मंदिर उत्तराखंड का दूसरा सबसे ऊंचा प्राचीन मंदिर है. माना जाता है कि ये मंदिर शिल्प कला और पुरातत्व की दृष्टि से 7वीं सदी का है. मान्यता है कि यहीं पर शिव ने कामदेव को भस्म किया था.

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यहां पर साल भर भगवान शिव की नियमित पूजा-अर्चना होती है, लेकिन महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर आठ पहर की अलग-अलग पूजा होती है. मंदिर के परिसर में एक विशालकाय त्रिशूल आकर्षण का केंद्र है, जो हजारों सालाों से धूप, बारिश बर्फ में खडा है. माना जाता है कि ये त्रिशूल अष्ठ धातु से निर्मित किया गया है. इसे कनिष्ठ उंगली के छूने से हिलने लगती है, दोंनों हाथों से जोर लगाने पर त्रिशूल नहीं हिलती है.

हरिद्वारः धर्मनगरी में भी महाशिवरात्रि के पर्व के मौके पर विभिन्न शिवालयों में जलाभिषेक के लिए तड़के से ही भोले भक्त मंदिरों और शिवालयों में पहुंचे. पूजा सामग्री की दुकानें सजी रहीं. दुकानदारों के लिए इस प्रकार के पर्व काफी फायदेमंद साबित होते हैं. त्योहारों के मौके भारी संख्या में लोग मंदिरों में पहुंचते हैं. जिससे उनकी बिक्री बढ़ने से आमदनी भी बढ़ती है.

Intro:नोट-इस खबर के विजुअल मेल से भेजे गये है।स्क्रिप्ट मोजो से भेजी है।
एंकर-रामनगर के स्थानीय युवकों द्वारा 8 कुन्तल की बनायी गयी कावड़ बाल सुंदरी मन्दिर पर आस्था का केंद्र बनी है।यहाँ आने वाले श्रद्धालुओ का तांता लगा है।भक्तगण बोले का कर रहे जलाभिषेक।


Body:वीओ-गूलरसिद्ध के नाम से जाना जाने वाला बालसुन्दरी मंदिर पर भक्तो का तांता लगा है।पहाड़ की चोटी पर बना यह मंदिर भोले के जयकारों से गूंज रहा है।इस सब के बीच आठ कुन्तल की भारी कावड़ आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।नगर के स्थानीय युवाओ द्वारा बनायी गयी कावड़ को बनाने में एक माह का समय लगा है।युवाओ को इस भारी कावड़ को हरिद्वार ले जाने और वापस आने में चार दिन का समय लगा।इस भारी कांवड़ में युवा कावड़िये चालीस लीटर गंगा जल लेकर आये जिससे भोले का जलाभिषेक किया गया। इसके अलावा बालसुन्दरी मन्दिर पर भोले की भक्ति देखने को मिली जब एक अपंग युवती दो किलोमीटर की पथरीली चढाई पर पैरो के बल घसीटते हुए पहुँची। भोले को जलाभिषेक किया। वही भक्तो का मानना है कि आज के दिन जो मन्नत माँगो वह भोले ज़रूर पूरी करते है।

बाइट-1-संतोष कुमार(कावड़िया)
बाइट-2-कृष्णा(श्रध्दालु)
बाइट-3-नीता(श्रद्धालु)


Conclusion:
Last Updated : Mar 4, 2019, 11:48 PM IST
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