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स्वतंत्रता संग्राम की गवाह है ये ऐतिहासिक जेल, पंडित नेहरू ने भी यहां काटी थी सजा

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Published : Jun 8, 2019, 9:09 PM IST

अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल में अंग्रेजों ने आजादी की लड़ाई लड़ रहे अनेक वीरों को रखा गया था. यह जेल  उत्तराखंड की सबसे पुरानी जेल मानी जाती है. इस जेल में पंडित जवाहर लाल नेहरू को दो बार रखा गया था. साथ ही भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत, खान अब्दुल गफ्फार खान समेत 9 लोग जेल में रहे थे. जिनकी स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी हुई उनकी यादें आज भी देखने को मिलती है.

अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल

अल्मोड़ाः सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा को अपनी विशेष संस्कृति के अलावा ऐतिहासिक पहचान के लिए भी जाना जाता है. इन ऐतिहासिक पहचानों में यहां की एक जेल भी शामिल है. यह जेल स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष की यादों की एक गवाह भी है. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आजादी के दौरान अपनी आत्मकथा के कुछ अंश इसी जेल में गुजारने के दौरान लिखे थे. जिस वार्ड में जवाहर लाल नेहरू रहे थे, उसे नेहरू वार्ड के नाम से जाना जाता है.

स्वतंत्रता संग्राम की गवाह अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल.


इतना ही नहीं इस जेल में स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत, खान अब्दुल गफ्फार खान, हरगोविंद पंत, विक्टर मोहन जोशी समेत कई लोग बंद हुए थे, लेकिन ये जेल धीरे-धीरे जीर्ण क्षीर्ण होती जा रही है.


बता दें कि अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल की स्थापना 1872 में अंग्रेजों ने की थी. कहा जाता है कि इससे पहले यहां पर चंद राजाओं और गोरखा शासन के दौरान फांसी का गधेरा था. जहां पर मुजरिम को फांसी दी जाती थी. बाद में अंग्रेजों ने अपने शासन के दौरान उठ रहे विद्रोह को थामने के लिए यहां पर जेल की स्थापना की थी.


इस जेल में अंग्रेजों ने आजादी की लड़ाई लड़ रहे अनेक वीरों को रखा गया था. यह जेल उत्तराखंड की सबसे पुरानी जेल मानी जाती है. इस जेल में पंडित जवाहर लाल नेहरू को दो बार रखा गया था. साथ ही भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत, खान अब्दुल गफ्फार खान समेत 9 लोग जेल में रहे थे. जिनकी स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी हुई उनकी यादें आज भी देखने को मिलती है.

ये भी पढ़ेंः सरोवर नगरी की वादियों में गूंज रहे हैं पहाड़ी गीत, पर्यटक जमकर उठा रहे लुत्फ


इस जेल में जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा के कुछ अध्याय भी लिखे थे. जेल में पंडित नेहरू से जुड़ी यादें आज भी ताजा है. यहां स्थित नेहरू वार्ड में उनके खाने के बर्तन, चरखा दीपक, चारपाई, पुस्तकालय भवन, भोजनालय आदि मौजूद हैं. नेहरू वार्ड को 'हेरिटेज वार्ड' घोषित किया जा चुका है, लेकिन बाकी जेल की हालत दिन-प्रतिदिन जीर्णशीर्ण होती जा रही है. इस जेल को संरक्षित करने की मांग लंबे समय से उठ रही है, बावजूद इस पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है.

कब और कौन-कौन आंदोलनकारी रहे इस जेल में-

  • पंड़ित जवाहरलाल नेहरू, 28 अक्टूबर 1934 से 03 सिंतबर 1935 और 10 जून 1945 से 15 जून 1945 तक दो बार जेल में रहे.
  • हरगोविंद पंत, 25 अगस्त 1930 से 01 सिंतबर 1930 और 07 दिसंबर 1940 से 04 अक्टूबर 1941 तक दो बार इस जेल में कैद रहे.
  • विक्टर मोहन जोशी, 25 जनवरी 1932 से 08 फरवरी 1932 तक इस जेल में बंद रहे.
  • सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खां, 04 जून 1936 से 01 अगस्त 1936 तक कैद रहे.
  • भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत, 28 नवंबर 1940 से 17 अक्टूबर 1941 तक बंद रहे.
  • देवी दत्त पंत, 06 जनवरी 1941 से 24 अगस्त 1941 तक बंद रहे.
  • कुमाऊं केसरी बद्री दत्त पांडे, 20 फरवरी 1941 से 28 मार्च 1941 तक जेल में रहे.
  • आचार्य नरेंद्र देव, 10 जून 1945 से 15 जून 1945 तक कैद रहे.
  • सैयद अली जहीर, 25 अप्रैल 1939 से 08 जून 1939 तक इस जेल में बंद रहे.

वहीं, वर्तमान में इस जेल में अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़ और चंपावत जिले के कैदियों को रखा जा रहा है.

अल्मोड़ाः सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा को अपनी विशेष संस्कृति के अलावा ऐतिहासिक पहचान के लिए भी जाना जाता है. इन ऐतिहासिक पहचानों में यहां की एक जेल भी शामिल है. यह जेल स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष की यादों की एक गवाह भी है. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आजादी के दौरान अपनी आत्मकथा के कुछ अंश इसी जेल में गुजारने के दौरान लिखे थे. जिस वार्ड में जवाहर लाल नेहरू रहे थे, उसे नेहरू वार्ड के नाम से जाना जाता है.

स्वतंत्रता संग्राम की गवाह अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल.


इतना ही नहीं इस जेल में स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत, खान अब्दुल गफ्फार खान, हरगोविंद पंत, विक्टर मोहन जोशी समेत कई लोग बंद हुए थे, लेकिन ये जेल धीरे-धीरे जीर्ण क्षीर्ण होती जा रही है.


बता दें कि अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल की स्थापना 1872 में अंग्रेजों ने की थी. कहा जाता है कि इससे पहले यहां पर चंद राजाओं और गोरखा शासन के दौरान फांसी का गधेरा था. जहां पर मुजरिम को फांसी दी जाती थी. बाद में अंग्रेजों ने अपने शासन के दौरान उठ रहे विद्रोह को थामने के लिए यहां पर जेल की स्थापना की थी.


इस जेल में अंग्रेजों ने आजादी की लड़ाई लड़ रहे अनेक वीरों को रखा गया था. यह जेल उत्तराखंड की सबसे पुरानी जेल मानी जाती है. इस जेल में पंडित जवाहर लाल नेहरू को दो बार रखा गया था. साथ ही भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत, खान अब्दुल गफ्फार खान समेत 9 लोग जेल में रहे थे. जिनकी स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी हुई उनकी यादें आज भी देखने को मिलती है.

ये भी पढ़ेंः सरोवर नगरी की वादियों में गूंज रहे हैं पहाड़ी गीत, पर्यटक जमकर उठा रहे लुत्फ


इस जेल में जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा के कुछ अध्याय भी लिखे थे. जेल में पंडित नेहरू से जुड़ी यादें आज भी ताजा है. यहां स्थित नेहरू वार्ड में उनके खाने के बर्तन, चरखा दीपक, चारपाई, पुस्तकालय भवन, भोजनालय आदि मौजूद हैं. नेहरू वार्ड को 'हेरिटेज वार्ड' घोषित किया जा चुका है, लेकिन बाकी जेल की हालत दिन-प्रतिदिन जीर्णशीर्ण होती जा रही है. इस जेल को संरक्षित करने की मांग लंबे समय से उठ रही है, बावजूद इस पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है.

कब और कौन-कौन आंदोलनकारी रहे इस जेल में-

  • पंड़ित जवाहरलाल नेहरू, 28 अक्टूबर 1934 से 03 सिंतबर 1935 और 10 जून 1945 से 15 जून 1945 तक दो बार जेल में रहे.
  • हरगोविंद पंत, 25 अगस्त 1930 से 01 सिंतबर 1930 और 07 दिसंबर 1940 से 04 अक्टूबर 1941 तक दो बार इस जेल में कैद रहे.
  • विक्टर मोहन जोशी, 25 जनवरी 1932 से 08 फरवरी 1932 तक इस जेल में बंद रहे.
  • सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खां, 04 जून 1936 से 01 अगस्त 1936 तक कैद रहे.
  • भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत, 28 नवंबर 1940 से 17 अक्टूबर 1941 तक बंद रहे.
  • देवी दत्त पंत, 06 जनवरी 1941 से 24 अगस्त 1941 तक बंद रहे.
  • कुमाऊं केसरी बद्री दत्त पांडे, 20 फरवरी 1941 से 28 मार्च 1941 तक जेल में रहे.
  • आचार्य नरेंद्र देव, 10 जून 1945 से 15 जून 1945 तक कैद रहे.
  • सैयद अली जहीर, 25 अप्रैल 1939 से 08 जून 1939 तक इस जेल में बंद रहे.

वहीं, वर्तमान में इस जेल में अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़ और चंपावत जिले के कैदियों को रखा जा रहा है.

Intro:सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा अपनी विशेष संस्कृति के अलावा ऐतिहासिक पहचान के लिए जानी जाती है। अल्मोड़ा की एक ऐतिहासिक पहचान यहाँ की जेल भी है। अल्मोड़ा की यह ऐतिहासिक जेल स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष की यादों की एक गवाह है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आजादी के दौरान अपनी आत्मकथा के कुछ अंश इसी जेल में गुजारने के दौरान लिखे थे। अल्मोड़ा जिले की जिला जेल में स्वतंत्रता संग्राम के दीवानों में पंडित जवाहरलाल नेहरू, भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत, खान अब्दुल गफ्फार खान ,हरगोविंद पंत, विक्टर मोहन जोशी सहित अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे। जिस वार्ड में जवाहर लाल नेहरू रहे है उसको नेहरू वार्ड के नाम से जाना जाता है।
हर साल अगस्त क्रांति के अवसर पर 9 अगस्त को इस जेल के नेहरू वार्ड में अनेक कार्यक्रम का आयोजित किये जाते हैं। लेकिन जेल आज धीरे धीरे जीर्ण क्षीर्ण होते जा रही है।


Body:अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल की स्थापना 1872 में अंग्रेजों ने की थी। बताया जाता है कि इसके पहले यहाँ पर चंद राजाओ और गोरखा शासन के दौरान फांसी गधेरा था। जहाँ पर मुजरिम को फाँसी दी जाती थी बाद में अंग्रेजो ने अपने शासन के दौरान उठ रहे विद्रोह को थामने के लिए यहाँ जेल की स्थापना की। इस जेल में अंग्रेजो ने आजादी के अनेक वीरों को यहां रखा गया था। उत्तराखंड की सबसे पुरानी जेल अल्मोड़ा की जेल ही मानी जाती है। इस जेल में पंडित नेहरू को दो बार रखा गया था इसके अलावा भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत, खान अब्दुल गफ्फार खान समेत 9 लोग जेल में रहे। स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी हुई उनकी यादें आज भी देखने को मिलती है। इसी जेल में जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा के कुछ अध्याय लिखे थे। इस जेल में पंडित जवाहर लाल नेहरू से जुड़ी यादें आज भी ताजा है। यहां स्थित नेहरू वार्ड में उनके खाने के बर्तन, चरखा दीपक ,चारपाई सहित पुस्तकालय भवन, भोजनालय आदि है। नेहरू वार्ड को हेरिटेज वार्ड घोषित किया जा चुका। लेकिन बाकी जेल की हालत दिन प्रतिदिन जीर्णशीर्ण होते जा रही है। इस जेल को संरक्षित करने की मांग लंबे समय से उठ रही है। लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नही है।
वर्तमान में इस जेल में अल्मोड़ा ,बागेश्वर ,पिथौरागढ़ एवं चंपावत जनपद के कैदियों को यहाँ रखा जाता है।

कब और कौन कौन आंदोलनकारी रहे इस जेल में-

जवाहरलाल नेहरू दो बार रहे 28-10-1934 से 3-09-1935 तक फिर 10-06-1945से 15-06-1945 तक

हरगोविंद पंत दो बार रहे 25-08-1930 से 01-09-1930 तक फिर 07 -12-1940 से 4-10-1941 तक
विक्टर मोहन जोशी 25-01-1932 से 8-02-1932 तक
सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान 04-06-1936 से 1-8-1936
भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत 28-11-1940 से 17-10-1941 तक
देवी दत्त पंत 06-01-1941से 24-08-1941तक
कुमाऊं केसरी बद्री दत्त पांडे 20-02-1941 से28 -04-1941 तक
आचार्य नरेंद्र देव 10-06-1945 से 15-06-1945 तक
सैयद अली जहीर 25-04-1939 से 8-06-1939 तक

बाइट चंद्र सिंह चौहान , इतिहासकार

नोट - विजुअल ftp से almora jail vijual नाम से भेजे हैं


Conclusion:
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