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'मेरी मानिलै डानि' गाने वाले मशहूर लोक गायक हीरा सिंह राणा का निधन, सीएम ने जताया शोक - अल्मोड़ा न्यूज

उत्तराखंड के मशहूर लोक गायक हीरा सिंह राणा का 77 की आयु में निधन हो गया है. हीरा सिंह राणा ने दिल्ली में आखिरी सांस ली. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हीरा सिंह राणा के निधन पर शोक जताया है.

folk song singer dies
मशहूर लोक गायक हीरा सिंह राणा का निधन
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Published : Jun 13, 2020, 9:45 AM IST

Updated : Jun 16, 2020, 4:47 PM IST

अल्मोड़ा: राज्य के मशहूर लोक गायक हीरा सिंह राणा का 77 की आयु में देर रात दिल्ली में निधन हो गया है. बताया जा रहा है कि उनकी मौत हार्टअटैक से हुई है. हाल ही में उन्हें दिल्ली सरकार की ओर से गठित कुमाऊंनी-गढ़वाली और जौनसारी भाषा अकादमी का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया था. उनकी मौत को संगीत जगत से जुड़े लोगों ने पहाड़ी लोक-संगीत की बड़ी क्षति बताया है.

अल्मोड़ा के डंढोली गांव में जन्मे थे हीरा सिंह राणा

लोक गायक हीरा सिंह राणा का जन्म 16 सितंबर 1942 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के मानिला डंढोली गांव में हुआ था. उन्होंने अपनी पढ़ाई की शुरुआत यहीं से की. प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद वो दिल्ली मैं नौकरी करने लगे. उनका मन नौकरी में नहीं लगा तो संगीत के लिए मिली स्कॉलरशिप से कलकत्ता पहुंच गए. वहां वो कुमाऊंनी संगीत की सेवा में जुटे रहे. हीरा सिंह राणा ने 15 साल की उम्र से ही विभिन्न मंचों पर गाना शुरू कर दिया था.

सीएम ने जताया दुख.


मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जताया शोक


उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हीरा सिंह राणा के निधन पर शोक जताया है. मुख्यमंत्री ने लोकगायक के अकस्मात निधन को उत्तराखंड की अपूर्णनीय क्षति बताया. उन्होंने कहा कि ऐसी बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व बिरले ही होते हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति दें और उनके परिवार को ये दुख सहने की शक्ति दें.

ये भी पढ़ें: कोरोना संकट के बीच मसूरी छावनी परिषद की बैठक, सर्वसम्मति से सालाना बजट पास

सबकी जुबान पर रहते हैं हीरा सिंह राणा के गाने

लोक गायक हीरा सिंह राणा के कुमाऊंनी गीतों में बिंदी घाघरि काई, रंगदार मुखड़ी, सौमनो की चोरा, ढाई बिसी बरस हाई कमाला और आहा रे जमाना को श्रोताओं से खूब वाहवाही मिली. आजकल है रे ज्वाना, के भलौ मान्यूं छ हो, आ लिली बाकरी लिली, मेरी मानिलै डानी जैसे अमर गीत भी हीरा सिंह राणा ने गाए.

ये भी पढ़ें: हरिद्वार: बिना श्रद्धालुओं के संपन्न हुई गंगा आरती, लॉकडाउन के चलते लिया गया फैसला

हीरा सिंह राणा को उनके ठेठ पहाड़ी प्रतीकों वाले गीतों के लिए भी जाना जाता था. वे पिछले काफी दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे. लेकिन इस दौरान भी वो लोक संगीत की बेहतरी के लिए संगीत जगत से जुड़े रहे. उनका उत्तराखंड के लोक गीतों को देश-दुनिया तक पहुंचाने में अहम योगदान रहा. ईटीवी भारत उत्तराखंड के इस महान लोकगायक को श्रद्धांजलि देता है.

अल्मोड़ा: राज्य के मशहूर लोक गायक हीरा सिंह राणा का 77 की आयु में देर रात दिल्ली में निधन हो गया है. बताया जा रहा है कि उनकी मौत हार्टअटैक से हुई है. हाल ही में उन्हें दिल्ली सरकार की ओर से गठित कुमाऊंनी-गढ़वाली और जौनसारी भाषा अकादमी का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया था. उनकी मौत को संगीत जगत से जुड़े लोगों ने पहाड़ी लोक-संगीत की बड़ी क्षति बताया है.

अल्मोड़ा के डंढोली गांव में जन्मे थे हीरा सिंह राणा

लोक गायक हीरा सिंह राणा का जन्म 16 सितंबर 1942 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के मानिला डंढोली गांव में हुआ था. उन्होंने अपनी पढ़ाई की शुरुआत यहीं से की. प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद वो दिल्ली मैं नौकरी करने लगे. उनका मन नौकरी में नहीं लगा तो संगीत के लिए मिली स्कॉलरशिप से कलकत्ता पहुंच गए. वहां वो कुमाऊंनी संगीत की सेवा में जुटे रहे. हीरा सिंह राणा ने 15 साल की उम्र से ही विभिन्न मंचों पर गाना शुरू कर दिया था.

सीएम ने जताया दुख.


मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जताया शोक


उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हीरा सिंह राणा के निधन पर शोक जताया है. मुख्यमंत्री ने लोकगायक के अकस्मात निधन को उत्तराखंड की अपूर्णनीय क्षति बताया. उन्होंने कहा कि ऐसी बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व बिरले ही होते हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति दें और उनके परिवार को ये दुख सहने की शक्ति दें.

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सबकी जुबान पर रहते हैं हीरा सिंह राणा के गाने

लोक गायक हीरा सिंह राणा के कुमाऊंनी गीतों में बिंदी घाघरि काई, रंगदार मुखड़ी, सौमनो की चोरा, ढाई बिसी बरस हाई कमाला और आहा रे जमाना को श्रोताओं से खूब वाहवाही मिली. आजकल है रे ज्वाना, के भलौ मान्यूं छ हो, आ लिली बाकरी लिली, मेरी मानिलै डानी जैसे अमर गीत भी हीरा सिंह राणा ने गाए.

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हीरा सिंह राणा को उनके ठेठ पहाड़ी प्रतीकों वाले गीतों के लिए भी जाना जाता था. वे पिछले काफी दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे. लेकिन इस दौरान भी वो लोक संगीत की बेहतरी के लिए संगीत जगत से जुड़े रहे. उनका उत्तराखंड के लोक गीतों को देश-दुनिया तक पहुंचाने में अहम योगदान रहा. ईटीवी भारत उत्तराखंड के इस महान लोकगायक को श्रद्धांजलि देता है.

Last Updated : Jun 16, 2020, 4:47 PM IST
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