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अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस: अल्मोड़ा में हिमालयी दुर्लभ औषधीय उत्पादों की लगाई गई प्रदर्शनी

अल्मोड़ा में राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन परियोजना अल्मोड़ा के नंदा देवी परिसर में पहाड़ी उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई गई. जिसका उद्देश्य पर्वतीय क्षेत्रों के उत्पादों और पर्यटन को बढ़ावा देना है. साथ ही लुप्त होते जड़ी बूटियों को संरक्षण देना है.

international mountain day
अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस
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Published : Dec 11, 2021, 7:26 PM IST

Updated : Dec 11, 2021, 8:26 PM IST

अल्मोड़ा: अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस (international mountain day) पर राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन परियोजना अल्मोड़ा (National Mission for Himalayan Studies Project Almora) के नंदा देवी परिसर में पहाड़ी उत्पादों की प्रदर्शनी (Exhibition of Pahari Products at Nanda Devi Complex) का आयोजन किया गया. जिसमें विभिन्न प्रकार के उच्च हिमालयी क्षेत्रों की दुर्लभ जड़ी बूटी (Rare herb of high Himalayan regions), मसाले समेत विभिन्न पहाड़ी उत्पादों के स्टॉल लगाए गए. जिसका उद्देश्य पर्वतीय क्षेत्रों के उत्पादों और पर्यटन को बढ़ावा देना है. साथ ही लुप्त होते जड़ी बूटियों (preservation of herbs) को संरक्षण देना है.

इस प्रदर्शनी में जिले की विभिन्न महिला समूहों समेत पिथौरागढ़ और गढ़वाल क्षेत्र के उत्पादकों ने हिस्सा लिया. इस मौके पर पर्वतीय उत्पाद खरीदने के लिए लोग में काफी उत्सुकता देखी गई. इसमें उच्च हिमालयी क्षेत्र की औषधीय गुणों से युक्त जड़ी बुटियां, बिच्छू घास के विभिन्न उत्पाद, पहाड़ी उप्तादों के जूस, अचार और रिंगाल की टोकरियां समेत विभिन्न पहाड़ी उत्पाद लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र रहा.

अल्मोड़ा में हिमालयी दुर्लभ औषधीय उत्पादों की लगाई गई प्रदर्शनी.

बता दें कि राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन (एनएचएसएम) परियोजना के तहत हिमालय क्षेत्र के इन उत्पादों के संरक्षण पर विशेष कार्य किया जा रहा है. उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाली औषधीय पादपों के संरक्षण को लेकर एनएचएसएम की ओर से धारचूला के दारमा, चौदास क्षेत्र के दर्जनों गांवों के स्थानीय काश्तकारों को इनकी खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.

ये भी पढ़ें: विधानसभा परिसर की सड़क में मंत्री सतपाल महाराज का पैर धंसा तो पता चली गुणवत्ता, बैठा दी जांच

धारचूला के काश्तकार उच्च हिमालयी क्षेत्र की जड़ी बूटी उत्पादों को लेकर प्रदर्शनी में पहुंचे. काश्तकारों का कहना है कि वह लंबे समय से इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं. पहले वह इन औषधीय पादपों को जंगल से ढूंढकर लाते थे, लेकिन अब जीबी पंत हिमालयी पर्यावरण विकास संस्थान (GB Pant Himalayan Environment Development Institute) के सहयोग से वह इसकी खेती कर रहे हैं. जिससे उन्हें अच्छा रोजगार मिला हुआ है.

ये भी पढ़ें: CM धामी के PRO के वायरल पत्र को लेकर बवाल, AAP ने सरकार को बताया खनन प्रेमी

एनएचएसएम परियोजना में टेक्निकल एक्सपर्ट अमित बहुखंडी ने बताया कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाले औषधीय गुणों से युक्त जड़ी बूटियां अत्यधिक दोहन के कारण लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है. इन औषधीय पादपों के संरक्षण व संवर्धन के साथ स्थानीय लोगों को रोजगार से जोड़ने के लिए एनएचएचएस परियोजना के तहत धारचूला क्षेत्र में काश्तकारों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. जिसमें सम्यो, कूट, वन हल्दी, डोलू , जम्बू, गंद्रेणी, वज्रदंती, तिमूर, गुलाब जल, काला जीरा, कुटकी शामिल हैं. जिससे आज दारमा और चौदास क्षेत्र के सैकड़ों लोगों को रोजगार मिल रहा है.

वहीं, जीबी पंत संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आईडी भट्ट ने कहा उच्च हिमालयी क्षेत्रो में पाई जाने वाली जड़ी बूटियों का अस्तित्व अत्यंत दोहन के कारण खतरे में पड़ गया है. इसके संवर्धन व सरक्षण के लिए जीबी पंत संस्थान जुटा है. साथ ही लोक उत्पादों की प्रदर्शनी के माध्यम से सतत पर्यटन को बढ़ावा देने का कार्य भी किया है.

वहीं, धारचूला के दारमा घाटी से आये काश्तकार चेत सिंह भोनाल ने बताया कि वह जड़ी बूटियों का काम बीते बीस सालों से कर रहे हैं. इस दौर में उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली औषधी जड़ी बूटियां खत्म होने की कगार पर है. अब वह जीबी पंत संस्थान के सहयोग से इन औषधीय पादपों की खेती कर रहे हैं.

अल्मोड़ा: अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस (international mountain day) पर राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन परियोजना अल्मोड़ा (National Mission for Himalayan Studies Project Almora) के नंदा देवी परिसर में पहाड़ी उत्पादों की प्रदर्शनी (Exhibition of Pahari Products at Nanda Devi Complex) का आयोजन किया गया. जिसमें विभिन्न प्रकार के उच्च हिमालयी क्षेत्रों की दुर्लभ जड़ी बूटी (Rare herb of high Himalayan regions), मसाले समेत विभिन्न पहाड़ी उत्पादों के स्टॉल लगाए गए. जिसका उद्देश्य पर्वतीय क्षेत्रों के उत्पादों और पर्यटन को बढ़ावा देना है. साथ ही लुप्त होते जड़ी बूटियों (preservation of herbs) को संरक्षण देना है.

इस प्रदर्शनी में जिले की विभिन्न महिला समूहों समेत पिथौरागढ़ और गढ़वाल क्षेत्र के उत्पादकों ने हिस्सा लिया. इस मौके पर पर्वतीय उत्पाद खरीदने के लिए लोग में काफी उत्सुकता देखी गई. इसमें उच्च हिमालयी क्षेत्र की औषधीय गुणों से युक्त जड़ी बुटियां, बिच्छू घास के विभिन्न उत्पाद, पहाड़ी उप्तादों के जूस, अचार और रिंगाल की टोकरियां समेत विभिन्न पहाड़ी उत्पाद लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र रहा.

अल्मोड़ा में हिमालयी दुर्लभ औषधीय उत्पादों की लगाई गई प्रदर्शनी.

बता दें कि राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन (एनएचएसएम) परियोजना के तहत हिमालय क्षेत्र के इन उत्पादों के संरक्षण पर विशेष कार्य किया जा रहा है. उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाली औषधीय पादपों के संरक्षण को लेकर एनएचएसएम की ओर से धारचूला के दारमा, चौदास क्षेत्र के दर्जनों गांवों के स्थानीय काश्तकारों को इनकी खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.

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धारचूला के काश्तकार उच्च हिमालयी क्षेत्र की जड़ी बूटी उत्पादों को लेकर प्रदर्शनी में पहुंचे. काश्तकारों का कहना है कि वह लंबे समय से इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं. पहले वह इन औषधीय पादपों को जंगल से ढूंढकर लाते थे, लेकिन अब जीबी पंत हिमालयी पर्यावरण विकास संस्थान (GB Pant Himalayan Environment Development Institute) के सहयोग से वह इसकी खेती कर रहे हैं. जिससे उन्हें अच्छा रोजगार मिला हुआ है.

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एनएचएसएम परियोजना में टेक्निकल एक्सपर्ट अमित बहुखंडी ने बताया कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाले औषधीय गुणों से युक्त जड़ी बूटियां अत्यधिक दोहन के कारण लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है. इन औषधीय पादपों के संरक्षण व संवर्धन के साथ स्थानीय लोगों को रोजगार से जोड़ने के लिए एनएचएचएस परियोजना के तहत धारचूला क्षेत्र में काश्तकारों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. जिसमें सम्यो, कूट, वन हल्दी, डोलू , जम्बू, गंद्रेणी, वज्रदंती, तिमूर, गुलाब जल, काला जीरा, कुटकी शामिल हैं. जिससे आज दारमा और चौदास क्षेत्र के सैकड़ों लोगों को रोजगार मिल रहा है.

वहीं, जीबी पंत संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आईडी भट्ट ने कहा उच्च हिमालयी क्षेत्रो में पाई जाने वाली जड़ी बूटियों का अस्तित्व अत्यंत दोहन के कारण खतरे में पड़ गया है. इसके संवर्धन व सरक्षण के लिए जीबी पंत संस्थान जुटा है. साथ ही लोक उत्पादों की प्रदर्शनी के माध्यम से सतत पर्यटन को बढ़ावा देने का कार्य भी किया है.

वहीं, धारचूला के दारमा घाटी से आये काश्तकार चेत सिंह भोनाल ने बताया कि वह जड़ी बूटियों का काम बीते बीस सालों से कर रहे हैं. इस दौर में उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली औषधी जड़ी बूटियां खत्म होने की कगार पर है. अब वह जीबी पंत संस्थान के सहयोग से इन औषधीय पादपों की खेती कर रहे हैं.

Last Updated : Dec 11, 2021, 8:26 PM IST
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