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दूनागिरी मंदिर की ये है महिमा, द्रोणाचार्य ने की थी इस पर्वत पर तपस्या - Uttarakhand News

अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट क्षेत्र से 15 किमी दूर मां दूनागिरी माता का मंदिर है. जिसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है. जहां श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं.

द्रोणागिरी मंदिर
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Published : Apr 25, 2019, 3:15 PM IST

Updated : Apr 25, 2019, 3:47 PM IST

द्वाराहाट/अल्मोड़ा: अतीत से ही दूनागिरी स्थित मां वैष्णो शक्तिपीठ मंदिर लोगों की आगाध श्रद्धा का केंद्र रहा है. देवभूमि उत्तराखंड में दूनागिरी वैष्णव मंदिर को दूसरा शक्तिपीठ माना जाता है. जिसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है. जहां श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं.

मंदिर का पौराणिक महत्व
अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट क्षेत्र से 15 किमी दूर मां दूनागिरी माता का मंदिर है. मंदिर निर्माण के बारे में यह कहा जाता है कि त्रेता युग में जब लक्ष्मण को मेघनाथ के द्वारा शक्ति लगी थी, तब सुसैन वैद्य ने हनुमान जी से द्रोणांचल नाम के पर्वत से संजीवनी बूटी लाने को कहा था. जब हनुमान जी पूरा पर्वत उठा रहे थे तो उसी समय वहां पर्वत का एक छोटा सा टुकड़ा गिर गया. जिसके बाद इस स्थान पर दूनागिरी मंदिर बन गया. कत्यूरी शासक सुधार देव ने 1318 इसवीं में मंदिर निर्माण कर मां भगवती की मूर्ति स्थापित की. इतना ही नहीं मंदिर में शिव और पार्वती की भी मूर्तियां विराजमान हैं.

द्रोणाचार्य ने पर्वत पर की थी तपस्या
मंदिर निर्माण के बारे में हिमालयन गजिटेरियन के लेखक ईटी एडिक्शन के अनुसार मंदिर होने का प्रमाण सन 1181 शिलालेखों में मिलता है. दूसरी मान्यता है कि इस पर्वत पर पांडव के गुरु द्रोणाचार्य द्वारा तपस्या करने पर इस पर्वत का नाम दूणागिरी पड़ा. मान्यता है कि दूनागिरी मंदिर में जो भी महिला अखंड दीपक जलाकर संतान प्राप्ति के लिए पूजा करती है उसकी मुराद अवश्य ही पूरी होती है. देवी पुराण के अनुसार अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने युद्ध में विजय और द्रोपदी सतीत्व की रक्षा के लिए दूनागिरी की दुर्गा रूप में पूजा की. स्कंद पुराण के मानस खंड द्रोणादि महात्म्य में दूनागिरी को महामाया ब्रह्मचारी के रूप में प्रदर्शित किया गया है.

हमेशा जलती रहती है अखंड ज्योति
इस भव्य मंदिर के लिए करीब 500 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. मंदिर बांस,देवदार और सुरई समेत विभिन्न प्रजाति के पेड़ों के बीच स्थित है. जहां से श्रद्धालु मंदिर से हिमालय पर्वतों के भव्य दर्शन कर सकते हैं. वहीं नवरात्रि में श्रद्धालु मंदिर में पूजा-अर्चना करने के लिए दूर- दूर से पहुंचते हैं. मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु मंदिर में सोने और चांदी के छत्र, घंटियां और शंख आदि चढ़ाते हैं. वहीं मंदिर में लगी हजारों घंटियां आस्था और विश्वास की प्रतीक हैं. प्राकृतिक रूप से निर्मित पिंडिया माता भगवती के रूप में पूजी जाती है. मंदिर में अखंड ज्योति हमेशा जलती रहती है. वहीं इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियां भी मिलती है.

द्वाराहाट/अल्मोड़ा: अतीत से ही दूनागिरी स्थित मां वैष्णो शक्तिपीठ मंदिर लोगों की आगाध श्रद्धा का केंद्र रहा है. देवभूमि उत्तराखंड में दूनागिरी वैष्णव मंदिर को दूसरा शक्तिपीठ माना जाता है. जिसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है. जहां श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं.

मंदिर का पौराणिक महत्व
अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट क्षेत्र से 15 किमी दूर मां दूनागिरी माता का मंदिर है. मंदिर निर्माण के बारे में यह कहा जाता है कि त्रेता युग में जब लक्ष्मण को मेघनाथ के द्वारा शक्ति लगी थी, तब सुसैन वैद्य ने हनुमान जी से द्रोणांचल नाम के पर्वत से संजीवनी बूटी लाने को कहा था. जब हनुमान जी पूरा पर्वत उठा रहे थे तो उसी समय वहां पर्वत का एक छोटा सा टुकड़ा गिर गया. जिसके बाद इस स्थान पर दूनागिरी मंदिर बन गया. कत्यूरी शासक सुधार देव ने 1318 इसवीं में मंदिर निर्माण कर मां भगवती की मूर्ति स्थापित की. इतना ही नहीं मंदिर में शिव और पार्वती की भी मूर्तियां विराजमान हैं.

द्रोणाचार्य ने पर्वत पर की थी तपस्या
मंदिर निर्माण के बारे में हिमालयन गजिटेरियन के लेखक ईटी एडिक्शन के अनुसार मंदिर होने का प्रमाण सन 1181 शिलालेखों में मिलता है. दूसरी मान्यता है कि इस पर्वत पर पांडव के गुरु द्रोणाचार्य द्वारा तपस्या करने पर इस पर्वत का नाम दूणागिरी पड़ा. मान्यता है कि दूनागिरी मंदिर में जो भी महिला अखंड दीपक जलाकर संतान प्राप्ति के लिए पूजा करती है उसकी मुराद अवश्य ही पूरी होती है. देवी पुराण के अनुसार अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने युद्ध में विजय और द्रोपदी सतीत्व की रक्षा के लिए दूनागिरी की दुर्गा रूप में पूजा की. स्कंद पुराण के मानस खंड द्रोणादि महात्म्य में दूनागिरी को महामाया ब्रह्मचारी के रूप में प्रदर्शित किया गया है.

हमेशा जलती रहती है अखंड ज्योति
इस भव्य मंदिर के लिए करीब 500 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. मंदिर बांस,देवदार और सुरई समेत विभिन्न प्रजाति के पेड़ों के बीच स्थित है. जहां से श्रद्धालु मंदिर से हिमालय पर्वतों के भव्य दर्शन कर सकते हैं. वहीं नवरात्रि में श्रद्धालु मंदिर में पूजा-अर्चना करने के लिए दूर- दूर से पहुंचते हैं. मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु मंदिर में सोने और चांदी के छत्र, घंटियां और शंख आदि चढ़ाते हैं. वहीं मंदिर में लगी हजारों घंटियां आस्था और विश्वास की प्रतीक हैं. प्राकृतिक रूप से निर्मित पिंडिया माता भगवती के रूप में पूजी जाती है. मंदिर में अखंड ज्योति हमेशा जलती रहती है. वहीं इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियां भी मिलती है.

Intro:दूनागिरी मंदिर का इतिहास उत्तराखंड जिले में बहुत पौराणिक और सिद्ध शक्तिपीठ हैं । उन्हीं शक्तिपीठों में से एक है । दूनागिरी वैष्णो शक्तिपीठ वैष्णो देवी मंदिर के बाद उत्तराखंड में दूनागिरी दूसरी वैष्णव शक्तिपीठ है। उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट क्षेत्र से 15 किमी आगे मां दूनागिरी माता का मंदिर अपार आस्था और श्रद्धा का केंद्र है।Body:मंदिर निर्माण के बारे में यह कहा जाता है कि त्रेता युग में जब लक्ष्मण को मेघनाथ के द्वारा शक्ति लगी थी। तब सुसैन वैद ने हनुमान जी से द्रोणांचल नाम के पर्वत से संजीवनी बूटी लाने को कहा था ।हनुमान जी उस स्थान से पूरा पर्वत उठा रहे थे तो वहां पर पर्वत का एक छोटा सा टुकड़ा गिरा। और फिर उसके बाद इस स्थान पर दूनागिरी मंदिर बन गया। कत्युरी शासक "सुधार देव" ने 1318 इसवी में मंदिर निर्माण कर दुर्गा की मूर्ति स्थापित की। इतना ही नहीं मंदिर में शिव व पार्वती की भी मूर्तियां विराजमान हैConclusion:मंदिर निर्माण के बारे में हिमालयन गजिटेरियन के लेखक ईटी एडिक्शन के अनुसार मंदिर होने का प्रमाण सन 1181 शिलालेखों में मिलता है । इस पर्वत पर पांडव के गुरु द्रोणाचार्य द्वारा तपस्या करने पर इस पर्वत का नाम दूणागिरी भी है ।दूनागिरी मंदिर में जो भी महिला अखंड दीपक जला कर संतान प्राप्ति के लिए पूजा करती है देवी वैष्णो उसे संतान का सुख प्रदान करती है ।

पुराणों उपनिषदों वह इतिहास वादियो ने दूनागिरी की पहचान माया - महेश्वरी या प्रकृति पुरुष व दुर्गा कालिका के रूप में की है। देवी पुराण के अनुसार अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने युद्ध में विजय तथा द्रोपदी सतीत्व की रक्षा के लिए दूनागिरी की दुर्गा रूप में पूजा की । स्कंद पुराण के मानस खंड द्रोणादि महात्म्य में दूनागिरी को महामाया हरिप्रिया दुर्गा के विशेषणौं के अतिरिक्त ब्रह्मचारी के रूप में प्रदर्शित किया गया है।

इस भव्य मंदिर के लिए करीब 500 सीढ़ियां चढ़ी होती है । यह मंदिर बांस,देवदार ,अकेशिया और सुरई समेत विभिन्न प्रजाति के पेड़ों के बीच स्थित है। इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियां भी मिलती है ।मंदिर से हिमालय पर्वतों के भव्य दर्शन होते हैं ।दूनागिरी मंदिर की मान्यताएं द्वाराहाट में स्थापित इस मंदिर में वैसे तो पूरे वर्ष भक्तों की कतार लगी रहती है। मगर नवरात्रों में यहां मां दुर्गा के भक्त दूर दूर से बड़ी संख्या में आशीर्वाद लेने आते हैं । मां दूनागिरी वैष्णवी रूप में पूजी जाती है।

दूनागिरी मंदिर के बारे में यह भी माना जाता है कि यहां जो भी महिला अखंड दीपक जला कर संतान प्राप्ति के लिए पूजा करती है। देवी वैष्णो उसे संतान का सुख प्राप्त करती है। मान्यता यह भी है कि इस महाशक्ति के दरबार में जो शुद्ध बुद्धि से आता है और सच्चे मन से कामना करता है वह अवश्य पूरी होती है। मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु मंदिर में सोने और चांदी के छत्र,घंटियां शंख आदि चढ़ाते हैं। मंदिर में लगी हजारों घंटियां आस्था और विश्वास की प्रतीक है। जो भक्तों का मां दूनागिरी के प्रति है दूनागिरी मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है।

प्राकृतिक रूप से निर्मित पिंडिया माता भगवती के रूप में पूजी जाती है। मंदिर में अखंड ज्योति मंदिर के एक विशेषता है । दूनागिरी माता का वैष्णवी रूप में होने से इस स्थान पर किसी भी प्रकार की बलि नहीं चढ़ाई जाती है । यहां तक कि मंदिर में भेंट स्वरूप अर्पित किया गया नारियल भी मंदिर परिसर में नहीं छोड़ा जाता है।
Last Updated : Apr 25, 2019, 3:47 PM IST
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