नैनीताल/अल्मोड़ा/लक्सरः उत्तराखंड में क्रिसमस पर्व की धूम (Merry Christmas 2021) है. इस मौके पर प्रदेशभर में विभिन्न चर्चों में प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया. प्रभु यीशु के जन्मदिन पर लोगों ने एक दूसरे को क्रिसमस की शुभकामनाएं दीं. चर्च को भव्य तरीके से सजाया गया है. नैनीताल में भी एक ऐतिहासिक मेथोडिस्ट चर्च है. जिसकी स्थापना 1858 में हुई थी. माना जाता है कि यह एशिया का सबसे पुराना मेथोडिस्ट चर्च है.
नैनीताल का ऐतिहासिक मेथोडिस्ट चर्चः नैनीताल को केवल सरोवर नगरी ही नहीं, बल्कि सभी धर्मों की नगरी भी कहा जाता है. यहां मौजूद सभी धर्मों के धार्मिक स्थल इस बात को सिद्ध भी करते हैं. नैनीताल के मल्लीताल में स्थित मां नयना देवी का भव्य मंदिर, आर्य समाज मंदिर, गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा, जामा मस्जिद और मेथोडिस्ट चर्च इनके उदाहरण हैं.
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इनमें क्रिश्चियन धर्म के लोगों का धार्मिक स्थल मेथोडिस्ट चर्च (Nainital Methodist Church) पूरे देश ही नहीं, बल्कि एशिया का सबसे पुराना मेथोडिस्ट चर्च है. नैनीताल का मेथोडिस्ट चर्च मल्लीताल के नैनीताल बोट हाउस क्लब के नजदीक मौजूद है. ये एशिया का सबसे पहला चर्च है, जिसकी स्थापना 1858 में हुई थी.
मई 1857 में अमेरिकी मेथोडिस्ट मिशनरी के विलियम बटलर पहली बार नैनीताल आए थे. इसी बीच उन्होंने देश के कई शहरों जैसे दिल्ली, वाराणसी, इलाहाबाद में ईसाई धर्म के मेथोडिस्ट संप्रदाय का प्रचार किया. इसके बाद वह उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में रहने लगे.
1857 की क्रांति के दौरान हुए आंदोलन के चलते बरेली के कमांडर निकलसन ने बटलर की सुरक्षा के लिहाज से उन्हें नैनीताल जाने की सलाह दी. सितंबर 1858 में बटलर नैनीताल पहुंचे और उन्होंने यहां मेथोडिस्ट संप्रदाय का प्रचार किया.
इसी दौरान यहां के तत्कालीन कमिश्नर सर हेनरी रैमजे की मदद से मल्लीताल में इस मेथोडिस्ट चर्च की स्थापना की बुनियाद रखी और 1860 तक यह चर्च पूरी तरह बनकर तैयार हो गया. तब से लेकर अब तक क्रिसमस पर (christmas day 2021) इस चर्च में बहुत तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.
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चर्च के पादरी राजेंद्र लाल बताते हैं कि टूरिस्ट अक्सर नैनीताल आते हैं तो इस चर्च को भी विजिट करते हैं. इस 160 साल से भी ज्यादा पुराने चर्च का इंडिया के हेरिटेज डिपार्टमेंट ने रख रखाव किया है. साथ ही वेल टूरिज्म की तरफ से इस चर्च की बिल्डिंग को और मजबूत करने के लिए काम किया है, ताकि यह आगे भी 100 से 150 सालों तक मजबूत रहे.
अल्मोड़ा बडन मेमोरियल चर्च में क्रिसमस की धूमः अल्मोड़ा के ऐतिहासिक बडन मेमोरियल चर्च (Budden Memorial Methodist Church Almora) में क्रिसमस का पर्व मनाया गया. इस मौके पर प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया. हालांकि, कोरोना के चलते इस बार चर्च गेट प्रार्थना के बाद बंद कर दिया गया. बावजूद इसके दिनभर युवाओं का जोश कम नहीं हुआ. बड़ी संख्या में चर्च में बच्चों, युवाओं ने पहुंचकर ईसा मसीह को याद किया. सुबह ईसाई समुदाय के लोगों ने प्रभु यीशु से मानव जाति के कल्याण की कामना की.
ईसाई समुदाय के लोगों ने यीशु मसीह की ओर से शांति और मानव जाति के कल्याण के लिए किए गए कार्यों व बलिदान को याद किया. प्रार्थना से पूर्व कैरल सिंगिंग की गयी. कोविड नियमों के चलते गिरजाघर के भीतर अनावश्यक भीड़ को रोकने का प्रयास किया गया. चर्च के गेट को उपलब्ध सीटों के हिसाब से ही प्रार्थना को आने वाले लोगों के लिए खोला गया.
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अल्मोड़ा बडन मेमोरियल मेथोडिस्ट चर्च के पदाधिकारी राहुल डेनियल ने बताया कि अल्मोड़ा का चर्च काफी ऐतिहासिक चर्च है. पादरी रहे रेवरन जेएच बडन जिन्होंने शिक्षा की अलख जगाई थी, उनकी याद में साल 1897 में इस चर्च का निर्माण किया गया. बडन मेमोरियल चर्च बेजोड़ वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है. यह चर्च नगर के बीचोंबीच स्थित है. क्रिसमस के लिए चर्च को आकर्षक रूप से सजाया गया है.
लक्सर होली क्रॉस चर्च में क्रिसमस का पर्वः लक्सर शहर के होली क्रॉस चर्च में क्रिसमस के मौके पर प्रभु यीशु का जन्मदिन (jesus christ birthday celebrations laksar) धूमधाम के साथ मनाया गया. चर्च के फादर ने बताया कि यह चर्च काफी पुराना है, लेकिन साल 1983 में इसे एक भव्य स्वरूप दिया गया. क्रिसमस के मौके पर क्रिश्चियन समुदाय से जुड़े लोग होली क्रॉस चर्च पहुंच प्रार्थना में शामिल हुए.
वहीं, चर्च के फादर थरसीस ने बताया कि यीशु मसीह एक महान व्यक्ति थे. उन्होंने सभी को सच्चाई के मार्ग पर चलने की सीख दी हैं. कहा जाता है कि वो भगवान के पुत्र थे. जिन्होंने सच्चाई का मार्ग चुना, लेकिन उस समय के शासकों को उनकी यह बात पसंद नहीं थी. उन्होंने यीशु मसीह को मार डाला था, लेकिन लोगों का विश्वास है कि वो फिर से इसी दिन जीवित हो गए थे. उन्होंने सभी को यीशु मसीह के आदर्शों पर चलने की प्रेरणा दी.