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अनोखी परंपरा: गोवर्धन पूजा के दिन यहां होता है पाषाण युद्ध, ग्रामीणों ने एक दूसरे पर की पत्थरों की बौछार

चंपावत के देवीधुरा स्थित माता बाराही के मंदिर में हर साल रक्षाबंधन पर पाषाण युद्ध यानि बग्वाल खेली जाती है. ऐसा ही एक पाषाण युद्ध अल्मोड़ा के विजयपुर पाटिया क्षेत्र में खेला जाता है, लेकिन यह युद्ध गोवर्धन पूजा के दिन खेला जाता है. जीतने की परंपरा भी बेहद रोचक है, जानिए क्या है परंपरा..

bagwal festival
पाषाण युद्ध
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Published : Nov 5, 2021, 8:03 PM IST

अल्मोड़ाः ताकुला विकासखंड के विजयपुर पाटिया क्षेत्र में गोवर्धन पूजा के दिन पाषाण युद्ध खेला जाता है. यहां चंपावत के देवीधुरा की तर्ज पर ऐतिहासिक पाषाण युद्ध यानि बग्वाल खेली जाती है. पाषाण युद्ध की प्रथा यहां सदियों से चली आ रही है. इस पाषाण युद्ध में दो गुट पचघटिया नदी के दोनों किनारों पर खड़े होकर एक दूसरे के ऊपर जमकर पत्थर बरसाते हैं. इस पाषाण युद्ध में जो भी दल का सदस्य पहले नदी में उतरकर पानी पी लेता है, वह दल विजयी हो जाता है.

गोवर्धन पूजा के मौके पर पचघटिया नदी के दोनों छोरों पर खड़े होकर पाटिया और कोटयूडा गांव के लोगों ने जमकर एक दूसरे पर पत्थर बरसाए. इस युद्ध में कोटयूडा और कसून के लड़ाकों ने पचघटिया नदी का पानी पीकर विजय हासिल किया. यह युद्ध करीब आधे घंटे तक चला. विजयपुर पाटिया क्षेत्र के पचघटिया में खेले जाने वाले इस युद्ध में पाटिया, भटगांव, कसून, पिल्खा और कोटयूड़ा के ग्रामीणों ने हिस्सा लिया, जिसमें पाटिया और भटगांव एक तरफ तो दूसरी तरफ कसून, कोटयूडा और पिल्खा के ग्रामीण शामिल थे.

गोवर्धन पूजा पर पाषाण युद्ध.

ये भी पढ़ेंः चंपावत के देवीधुरा में सांकेतिक बग्वाल का आयोजन, 8 मिनट के युद्ध में 77 बग्वाली चोटिल

इस युद्ध को देखने के लिए क्षेत्र के दर्जनों गांवों के लोग आते हैं. पाषाण युद्ध का आगाज पाटिया गांव के मैदान में गाय की पूजा के साथ हुआ. इस पाषण युद्ध का आगाज बाकायदा ढोल नगाड़ों के साथ किया जाता है. जिससे योद्धाओं में जोश भरा जाता है. इस पाषण युद्ध की सबसे बड़ी खासियत यह है कि युद्ध के दौरान पत्थरों से चोटिल होने वाले योद्धा किसी दवा का इस्तेमाल नहीं करते हैं, बल्कि बिच्छू घास व उस स्थान की मिट्टी लगाने से वह तीन दिन बाद ठीक हो जाता है.

ये भी पढ़ेंः पहाड़ों में भैलो खेलकर मनाई जाती है दीपावली, 11वें दिन होती है इगास बग्वाल

पाषण युद्ध कब से शुरू हुआ और क्यों किया जाता है, इसके बारे में कोई सटीक इतिहास की जानकारी तो नहीं है, लेकिन स्थानीय लोगों की मान्यता है कि जब अल्मोड़ा क्षेत्र में चंद वंशीय राजाओं का शासन था, उस वक्त कोई बाहरी लुटेरा राजा इन गांवों में आकर लोगों से लूटपाट कर करता था. उससे परेशान होकर एक दिन इन 5 गांवों के लोगों ने लुटेरे राजा और सैनिकों को पत्थरों से मार-मार कर भगाया था.

ये भी पढ़ेंः पहाड़ी क्षेत्रों में मार्गशीर्ष की बग्वाल मनाने की अनूठी परंपरा, जानिए कैसे मनाई जाती है बग्वाल

उस युद्ध में तब 4 से 5 लोगों की मौत हो गई थी. इस स्थान पर काफी खून बहा था, जिसके बाद से यहां पर पत्थरों का युद्ध वाली प्रथा चली, जो आज भी अनवरत जारी है. हालांकि, ग्रामीणों का कहना है कि अब यह प्रथा सिर्फ रस्म अदायगी भर ही रह गई है, जबकि पहले काफी जोश के साथ इसे मनाया जाता था.

अल्मोड़ाः ताकुला विकासखंड के विजयपुर पाटिया क्षेत्र में गोवर्धन पूजा के दिन पाषाण युद्ध खेला जाता है. यहां चंपावत के देवीधुरा की तर्ज पर ऐतिहासिक पाषाण युद्ध यानि बग्वाल खेली जाती है. पाषाण युद्ध की प्रथा यहां सदियों से चली आ रही है. इस पाषाण युद्ध में दो गुट पचघटिया नदी के दोनों किनारों पर खड़े होकर एक दूसरे के ऊपर जमकर पत्थर बरसाते हैं. इस पाषाण युद्ध में जो भी दल का सदस्य पहले नदी में उतरकर पानी पी लेता है, वह दल विजयी हो जाता है.

गोवर्धन पूजा के मौके पर पचघटिया नदी के दोनों छोरों पर खड़े होकर पाटिया और कोटयूडा गांव के लोगों ने जमकर एक दूसरे पर पत्थर बरसाए. इस युद्ध में कोटयूडा और कसून के लड़ाकों ने पचघटिया नदी का पानी पीकर विजय हासिल किया. यह युद्ध करीब आधे घंटे तक चला. विजयपुर पाटिया क्षेत्र के पचघटिया में खेले जाने वाले इस युद्ध में पाटिया, भटगांव, कसून, पिल्खा और कोटयूड़ा के ग्रामीणों ने हिस्सा लिया, जिसमें पाटिया और भटगांव एक तरफ तो दूसरी तरफ कसून, कोटयूडा और पिल्खा के ग्रामीण शामिल थे.

गोवर्धन पूजा पर पाषाण युद्ध.

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इस युद्ध को देखने के लिए क्षेत्र के दर्जनों गांवों के लोग आते हैं. पाषाण युद्ध का आगाज पाटिया गांव के मैदान में गाय की पूजा के साथ हुआ. इस पाषण युद्ध का आगाज बाकायदा ढोल नगाड़ों के साथ किया जाता है. जिससे योद्धाओं में जोश भरा जाता है. इस पाषण युद्ध की सबसे बड़ी खासियत यह है कि युद्ध के दौरान पत्थरों से चोटिल होने वाले योद्धा किसी दवा का इस्तेमाल नहीं करते हैं, बल्कि बिच्छू घास व उस स्थान की मिट्टी लगाने से वह तीन दिन बाद ठीक हो जाता है.

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पाषण युद्ध कब से शुरू हुआ और क्यों किया जाता है, इसके बारे में कोई सटीक इतिहास की जानकारी तो नहीं है, लेकिन स्थानीय लोगों की मान्यता है कि जब अल्मोड़ा क्षेत्र में चंद वंशीय राजाओं का शासन था, उस वक्त कोई बाहरी लुटेरा राजा इन गांवों में आकर लोगों से लूटपाट कर करता था. उससे परेशान होकर एक दिन इन 5 गांवों के लोगों ने लुटेरे राजा और सैनिकों को पत्थरों से मार-मार कर भगाया था.

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उस युद्ध में तब 4 से 5 लोगों की मौत हो गई थी. इस स्थान पर काफी खून बहा था, जिसके बाद से यहां पर पत्थरों का युद्ध वाली प्रथा चली, जो आज भी अनवरत जारी है. हालांकि, ग्रामीणों का कहना है कि अब यह प्रथा सिर्फ रस्म अदायगी भर ही रह गई है, जबकि पहले काफी जोश के साथ इसे मनाया जाता था.

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