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सांस्कृतिक नगरी में बैठकी होली की धूम, राग भैरवी से होता है समापन

अल्मोड़ा के नगर और ग्रामीण क्षेत्रों में बैठकी होली की महफिलें जम रही हैं. जिसमें देर रात तक शास्त्रीय रागों पर आधारित होली के गीतों का गायन किया जा रहा है.

बैठकी होली
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Published : Mar 8, 2020, 7:54 PM IST

Updated : Mar 8, 2020, 9:13 PM IST

अल्मोड़ाः होली के लिए अब गिनती के दिन रह गए हैं. होलिकोत्सव के अवसर पर अल्मोड़ा के नगर और ग्रामीण क्षेत्रों में बैठकी होली की महफिलें जम रही हैं. जिसमें देर रात तक शास्त्रीय रागों पर आधारित होली के गीतों का गायन किया जा रहा है. सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा के हुक्का क्लब में बैठकी होली का आनन्द लेने के लिए रंगकर्मियों, कलाकारों और स्थानीय लोगों का जमावड़ा लगा है.

अल्मोड़ा में बैठकी होली का विशेष महत्व है. रविवार से ही होली का गायन शुरू हो जाता है. जिसमें ईश्वर की आराधना के निर्वाण गीत गाए जाते हैं. बसंत के शुरू होते ही श्रृंगार रस के गाने शुरू हो जाते हैं, जबकि शिवरात्री के बाद होली अपने पूरे उफान पर होती है.

बैठकी होली की धूम.

पढ़ेंः होली पर मिलावट के खेल को पुलिस ने किया फेल, 3 क्विंटल नकली मावा के साथ दो गिरफ्तार

इस मौके पर रंगकर्मी, कलाकार और स्थानीय लोग देर रात तक बैठकी होली के रागों का आनन्द ले रहें हैं. बैठकी होली शुद्ध शास्त्रीय गायन है, लेकिन शास्त्रीय गायन की तरह एकल गायन नहीं है. होली में भाग लेने वाला मुख्य कलाकार गीतों का मुखड़ा गाते हैं और श्रोता होल्यार भी बीच-बीच में साथ देते हैं. जिसे भाग लगाना कहते हैं.

बैठकी होली में राग काफी, जंगला, खम्माज, साहना और जैजेवन्ती समेत कई राग गाए जाते हैं. राग धमार से शुरू होकर पहली होली श्याम कल्याण में गायी जाती है. जबकि, समापन राग भैरवी पर होता है. बीच में अलग-अलग रागों पर होलियां गायी जाती हैं.

अल्मोड़ाः होली के लिए अब गिनती के दिन रह गए हैं. होलिकोत्सव के अवसर पर अल्मोड़ा के नगर और ग्रामीण क्षेत्रों में बैठकी होली की महफिलें जम रही हैं. जिसमें देर रात तक शास्त्रीय रागों पर आधारित होली के गीतों का गायन किया जा रहा है. सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा के हुक्का क्लब में बैठकी होली का आनन्द लेने के लिए रंगकर्मियों, कलाकारों और स्थानीय लोगों का जमावड़ा लगा है.

अल्मोड़ा में बैठकी होली का विशेष महत्व है. रविवार से ही होली का गायन शुरू हो जाता है. जिसमें ईश्वर की आराधना के निर्वाण गीत गाए जाते हैं. बसंत के शुरू होते ही श्रृंगार रस के गाने शुरू हो जाते हैं, जबकि शिवरात्री के बाद होली अपने पूरे उफान पर होती है.

बैठकी होली की धूम.

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इस मौके पर रंगकर्मी, कलाकार और स्थानीय लोग देर रात तक बैठकी होली के रागों का आनन्द ले रहें हैं. बैठकी होली शुद्ध शास्त्रीय गायन है, लेकिन शास्त्रीय गायन की तरह एकल गायन नहीं है. होली में भाग लेने वाला मुख्य कलाकार गीतों का मुखड़ा गाते हैं और श्रोता होल्यार भी बीच-बीच में साथ देते हैं. जिसे भाग लगाना कहते हैं.

बैठकी होली में राग काफी, जंगला, खम्माज, साहना और जैजेवन्ती समेत कई राग गाए जाते हैं. राग धमार से शुरू होकर पहली होली श्याम कल्याण में गायी जाती है. जबकि, समापन राग भैरवी पर होता है. बीच में अलग-अलग रागों पर होलियां गायी जाती हैं.

Last Updated : Mar 8, 2020, 9:13 PM IST
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