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NIT श्रीनगर शिफ्टिंग: राज्य सरकार को कोर्ट से फटकार, कहा- संस्थान शिफ्ट किये जाने पर कोई दुख नहीं

केंद्र सरकार ने कोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा कि NIT के निर्माण के लिए उत्तराखंड सरकार जगह नहीं दे पाई है. इस पर कोर्ट ने कहा कि NIT को उत्तराखंड से शिफ्ट किए जाने से केंद्र और राज्य सरकार का पछतावा नहीं है.

नैनीताल हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
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Published : Feb 12, 2019, 3:56 PM IST

देहरादून: श्रीनगर NIT शिफ्ट करने के मामले में राज्य सरकार को हाई कोर्ट से करारा झटका लगा है. मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाई है. इस मामले में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और NIT ने आज जवाब पेश किया था.

केंद्र सरकार ने कोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा कि NIT के निर्माण के लिए उत्तराखंड सरकार जगह नहीं दे पाई है. इस पर कोर्ट ने कहा कि NIT को उत्तराखंड से शिफ्ट किए जाने से केंद्र और राज्य सरकार का पछतावा नहीं है.

पढे़ं- जहरीली शराब प्रकरण: आईजी गढ़वाल के नेतृत्व में SIT टीम गठित, दोषियों की अब खैर नहीं

बता दें कि वर्ष 2012 में श्रीनगर से करीब 20 किलोमीटर दूर सुमाड़ी सहित अन्य गांव के लोगों ने एनआईटी के स्थायी कैंपस निर्माण के लिए नापभूमि दान में दी थी. यहां नापभूमि और सरकारी भूमि मिलाकर लगभग 300 एकड़ जमीन तकनीकी शिक्षा समिति को ट्रांसफर की गई थी, लेकिन वर्ष 2012 में तीन सदस्यीय कमेटी ने इस भूमि को अनुपयुक्त बता दिया, तभी से भूमि चयन का मामला लंबित है और इसी वजह से आज तक एनआईटी का निर्माण नहीं हो पाया है.

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हालांकि, 2013 में मामले के निपटारे के लिये साइट सलेक्शन कमेटी (सीएससी) बनी, इसमें केंद्र और राज्य सरकार के प्रशासनिक और तकनीकी अधिकारी शामिल थे. इस कमेटी ने जमीन को उपयुक्त भी पाया और इसके बाद वर्ष 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने इसका शिलान्यास भी किया.

फिर सितंबर 2017 में सीपीडब्लूडी के दो इंजीनियरों से एमएचआरडी ने फिर परीक्षण करवाया जिसमें जमीन को अनुपयुक्त बता दिया गया.

समाजसेवी मोहन काला ने नवंबर महीने में हाई कोर्ट में इस मामले को लेकर जनहित याचिका दाखिल की थी. उनका कहना था कि 2012 में एनआईटी की ओर से गठित कमेटी ने गलत रिपोर्ट दी है. तीन सदस्यीय इस कमेटी में तत्कालीन निदेशक के दो परिचित थे और निदेशक नहीं चाहते थे कि पहाड़ में एनआईटी बने, इसलिए उन्हीं के अनुसार रिपोर्ट तैयार हुई.

बता दें कि अबतक एनआइटी निर्माण के नाम पर करोड़ों खर्च तक हो चुके हैं. 2009 में सरकार ने वन विभाग को भूमि ट्रांसफर के बदले में नौ करोड़ दिये जबकि सरकार ने एनआइटी कैंपस की चाहरदीवारी बनाने के लिए चार करोड़ भी खर्च कर दिए, इसके बाद अब सरकार इस संस्थान को मैदानी क्षेत्र में बनाना चाहती है.

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देहरादून: श्रीनगर NIT शिफ्ट करने के मामले में राज्य सरकार को हाई कोर्ट से करारा झटका लगा है. मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाई है. इस मामले में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और NIT ने आज जवाब पेश किया था.

केंद्र सरकार ने कोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा कि NIT के निर्माण के लिए उत्तराखंड सरकार जगह नहीं दे पाई है. इस पर कोर्ट ने कहा कि NIT को उत्तराखंड से शिफ्ट किए जाने से केंद्र और राज्य सरकार का पछतावा नहीं है.

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बता दें कि वर्ष 2012 में श्रीनगर से करीब 20 किलोमीटर दूर सुमाड़ी सहित अन्य गांव के लोगों ने एनआईटी के स्थायी कैंपस निर्माण के लिए नापभूमि दान में दी थी. यहां नापभूमि और सरकारी भूमि मिलाकर लगभग 300 एकड़ जमीन तकनीकी शिक्षा समिति को ट्रांसफर की गई थी, लेकिन वर्ष 2012 में तीन सदस्यीय कमेटी ने इस भूमि को अनुपयुक्त बता दिया, तभी से भूमि चयन का मामला लंबित है और इसी वजह से आज तक एनआईटी का निर्माण नहीं हो पाया है.

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हालांकि, 2013 में मामले के निपटारे के लिये साइट सलेक्शन कमेटी (सीएससी) बनी, इसमें केंद्र और राज्य सरकार के प्रशासनिक और तकनीकी अधिकारी शामिल थे. इस कमेटी ने जमीन को उपयुक्त भी पाया और इसके बाद वर्ष 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने इसका शिलान्यास भी किया.

फिर सितंबर 2017 में सीपीडब्लूडी के दो इंजीनियरों से एमएचआरडी ने फिर परीक्षण करवाया जिसमें जमीन को अनुपयुक्त बता दिया गया.

समाजसेवी मोहन काला ने नवंबर महीने में हाई कोर्ट में इस मामले को लेकर जनहित याचिका दाखिल की थी. उनका कहना था कि 2012 में एनआईटी की ओर से गठित कमेटी ने गलत रिपोर्ट दी है. तीन सदस्यीय इस कमेटी में तत्कालीन निदेशक के दो परिचित थे और निदेशक नहीं चाहते थे कि पहाड़ में एनआईटी बने, इसलिए उन्हीं के अनुसार रिपोर्ट तैयार हुई.

बता दें कि अबतक एनआइटी निर्माण के नाम पर करोड़ों खर्च तक हो चुके हैं. 2009 में सरकार ने वन विभाग को भूमि ट्रांसफर के बदले में नौ करोड़ दिये जबकि सरकार ने एनआइटी कैंपस की चाहरदीवारी बनाने के लिए चार करोड़ भी खर्च कर दिए, इसके बाद अब सरकार इस संस्थान को मैदानी क्षेत्र में बनाना चाहती है.

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