नैनीताल: पूरे देश में होली का पर्व हर्षों उल्लास के साथ मनाया जाता है. लेकिन देवभूमि के कुमाऊं क्षेत्र की खड़ी होली का अपना अलग ही रंग है. ढोल और राग पर झूमने के साथ इस होली में लोकगीतों और लोकनृत्य का ऐसा समावेश किया जाता है कि हर कोई झूमने लगता है. वहीं पिछले कुछ सालों में रीति रिवाज और परंपराओं में काफी बदलाव देखने को मिला है. बावजूद इसके कुमाऊं में आज भी खड़ी होली की परंपरा कायम है.
देशभर में खेले जाने वाली होली से कई मायनों में अलग ये होली शिवरात्रि के बाद चीर बंधन के साथ शुरू हो जाती है और होली के दिन तक चलती है. कुमाऊं की इस होली का इतिहास 400 साल से ज्यादा पुराना है और कुमाऊं के हर क्षेत्र में इस होली का आयोजन किया जाता है. इस होली में राधा-कृष्णृ, श्रवण कुमार समेत रामायण और महाभारत काल की कथाओं का वर्णन भी किया जाता है.
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कुमाऊं की इस खड़ी होली में ढोल की थाप के साथ झूमते लोग और राग रागिनी के समावेश का दिलकश नजारा हर किसी को अपनी ओर खींच लाता है. ढोल की थाप पर होली गायन में लोग झूमते नजर आते हैं. खड़ी होली में होलियारों द्वारा खड़े होकर होली के गीत गाए जाते हैं. दो बोल पर आधारित ये गीत, लय और ताल में गाई जाती है.