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कुमाऊं में शुरू हुई खड़ी होली, लोकगीतों और लोकनृत्य का होता है अनूठा समावेश

देवभूमि के कुमाऊं क्षेत्र की खड़ी होली का अपना अलग ही रंग है. ढोल और राग पर झूमने के साथ इस होली में लोकगीतों और लोकनृत्य का ऐसा समावेश किया जाता है कि हर कोई झूमने लगता है.

कुमाऊं में शुरू हुई खड़ी होली.
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Published : Mar 18, 2019, 9:41 PM IST

नैनीताल: पूरे देश में होली का पर्व हर्षों उल्लास के साथ मनाया जाता है. लेकिन देवभूमि के कुमाऊं क्षेत्र की खड़ी होली का अपना अलग ही रंग है. ढोल और राग पर झूमने के साथ इस होली में लोकगीतों और लोकनृत्य का ऐसा समावेश किया जाता है कि हर कोई झूमने लगता है. वहीं पिछले कुछ सालों में रीति रिवाज और परंपराओं में काफी बदलाव देखने को मिला है. बावजूद इसके कुमाऊं में आज भी खड़ी होली की परंपरा कायम है.

कुमाऊं में शुरू हुई खड़ी होली.

देशभर में खेले जाने वाली होली से कई मायनों में अलग ये होली शिवरात्रि के बाद चीर बंधन के साथ शुरू हो जाती है और होली के दिन तक चलती है. कुमाऊं की इस होली का इतिहास 400 साल से ज्यादा पुराना है और कुमाऊं के हर क्षेत्र में इस होली का आयोजन किया जाता है. इस होली में राधा-कृष्णृ, श्रवण कुमार समेत रामायण और महाभारत काल की कथाओं का वर्णन भी किया जाता है.

पढ़ें:कैंसर से मनोहर पर्रिकर की मौत के बाद बाबा रामदेव की अपील

कुमाऊं की इस खड़ी होली में ढोल की थाप के साथ झूमते लोग और राग रागिनी के समावेश का दिलकश नजारा हर किसी को अपनी ओर खींच लाता है. ढोल की थाप पर होली गायन में लोग झूमते नजर आते हैं. खड़ी होली में होलियारों द्वारा खड़े होकर होली के गीत गाए जाते हैं. दो बोल पर आधारित ये गीत, लय और ताल में गाई जाती है.

नैनीताल: पूरे देश में होली का पर्व हर्षों उल्लास के साथ मनाया जाता है. लेकिन देवभूमि के कुमाऊं क्षेत्र की खड़ी होली का अपना अलग ही रंग है. ढोल और राग पर झूमने के साथ इस होली में लोकगीतों और लोकनृत्य का ऐसा समावेश किया जाता है कि हर कोई झूमने लगता है. वहीं पिछले कुछ सालों में रीति रिवाज और परंपराओं में काफी बदलाव देखने को मिला है. बावजूद इसके कुमाऊं में आज भी खड़ी होली की परंपरा कायम है.

कुमाऊं में शुरू हुई खड़ी होली.

देशभर में खेले जाने वाली होली से कई मायनों में अलग ये होली शिवरात्रि के बाद चीर बंधन के साथ शुरू हो जाती है और होली के दिन तक चलती है. कुमाऊं की इस होली का इतिहास 400 साल से ज्यादा पुराना है और कुमाऊं के हर क्षेत्र में इस होली का आयोजन किया जाता है. इस होली में राधा-कृष्णृ, श्रवण कुमार समेत रामायण और महाभारत काल की कथाओं का वर्णन भी किया जाता है.

पढ़ें:कैंसर से मनोहर पर्रिकर की मौत के बाद बाबा रामदेव की अपील

कुमाऊं की इस खड़ी होली में ढोल की थाप के साथ झूमते लोग और राग रागिनी के समावेश का दिलकश नजारा हर किसी को अपनी ओर खींच लाता है. ढोल की थाप पर होली गायन में लोग झूमते नजर आते हैं. खड़ी होली में होलियारों द्वारा खड़े होकर होली के गीत गाए जाते हैं. दो बोल पर आधारित ये गीत, लय और ताल में गाई जाती है.

Intro:स्लग कुमाऊनी होली

रिपोर्ट गौरव जोशी

स्थान नैनीताल

एंकर- यूं तो पूरे देश में होली का पर्व मनाया जाता लेकिन कुमाऊं की खड़ी होली का अपना अलग ही रंग है गौरवशाली इतिहास समय के पहाड़ की होली का ऐसा रंग कुमाऊं में ही देखा जाता है,, ढोल और रगो पर झूमने के साथ इस होली में गौरवशाली इतिहास का वर्णन होता है,,तो होली आ रही इस रंग में रंग जाते हैं हालांकि पिछले कुछ सालों में रीति रिवाज परंपराओं में बदलाव आए और आज भी इन यह होली नजीर बनी हुई है पहाड़ में आज भी कायम है खड़ी होली के परंपरा
देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट


Body:वी ओ कुमाऊं की खड़ी बोली का नजारा हर किसी को अपनी ओर खींच लाता है ढोल की थाप पर होली आई रंग के इस पर्व पर रंगे नजर आ रहे हैं देशभर में खेले जाने वाली होली से कई मायनों में अलग होली शिवरात्रि के बाद चीर बंधन के साथ शुरू हो जाती है जो वो झड़ी यानी होली के दिन तक चलती है मंदिर से शुरू हुई यह होली गांव के हर घर घर में जाकर होलिका दहन करते हैं जिसके बाद आशीष वह परिवार को देते हैं चंद्र शासन काल से चली आ रही परंपरा आज भी अपने महत्व को कुमार की वादियों में समेटे हुए हैं

बाइक 1
बाइक 2


Conclusion:वीवो आपको बता दें कि कुमाऊं की इस होली का इतिहास 400 साल से ज्यादा पुराना है ढोल की थाप के साथ कदमों की चहलकदमी और राग रागिनी ओं का समावेश इस खड़ी होली में होता है कुमाऊं में चंपावत पिथौरागढ़ अल्मोड़ा बागेश्वर में होली का आयोजन किया जाता है राग दरार और राग कहरवा में गाए जाने वाले इस होली का गायन पक्ष कृष्ण राधा राजा हरिश्चंद्र श्रवण कुमार समेत रामायण और महाभारत काल की कथाओं का वर्णन किया जाता है

बाइट- जहूर आलम,मुस्लिम होलियार

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