हल्द्वानी: विश्वभर में आज 1 जून को दुग्ध दिवस मनाया जाता है. अंतरराष्ट्रीय दुग्ध दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक दूध के महत्व को लोगों को समझाना और लोगों को उनके स्वास्थ्य के प्रति जागरुक करना है. इसके अलावा दूध के बिजनेस से स्वरोजगार को बढ़ावा देना भी दुग्ध दिवस मनाने का एक महत्वपूर्ण कारण है.
एक जून 2001 से शुरू हुए विश्व दुग्ध दिवस ने धीरे-धीरे व्यापक रूप ले लिया है. प्राकृतिक दूध की स्वाभाविक उत्पत्ति, दूध का पोषण संबंधी महत्व और विभिन्न दूध उत्पाद के बारे में लोगों का आज के दिन जागरूक किया जाता है. बात अगर उत्तराखंड की करें तो यहां दुग्ध विकास विभाग ने दूध उत्पादन के लिए राज्य भर में 11 सेंटर बनाए हैं और 2629 समितियां गठित की हैं.
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इन समितियों के माध्यम से रोजाना 1,56,146 उत्पादकों द्वारा 2,25,931 लीटर दूध उत्पादित किया जाता है. उत्तराखंड में दुग्ध उत्पादन धीरे-धीरे एक बड़े व्यवसाय का रूप भी लेता जा रहा है. ये पहाड़ में स्वरोजगार का भी एक जरिया है. राज्य गठन के बाद 2002 में मात्र 1,01,855 लीटर दूध रोजाना उत्पादित हुआ करता था, जो 2018 में दोगुना से ज्यादा है.
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राज्य में दुग्ध व्यवसाय धीरे-धीरे बढ़ते हुए 250 करोड़ से 300 करोड़ रुपए सालाना हो रहा है. दुग्ध व्यवसाय के मूल्यों की बात करें तो 2011 में 17₹ लीटर दूध बाजार में उपभोक्ताओं को मिलता था. वहीं, आज दूध 40₹ प्रति लीटर से बाजार में बिक रहा है.
दूध क्षेत्र में सबसे ज्यादा तरक्की करने वाला नैनीताल जिला है. 90 लाख लीटर प्रतिदिन उत्पादन नैनीताल जिले से होता है. इसके साथ ही पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा 927 दुग्ध समितियां नैनीताल में ही हैं. यहां के रोजगार का और छोटे किसानों के आय का दुग्ध एक बड़ा साधन बनता जा रहा है.