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'हिमालयन वियाग्रा' को लेकर सरकार ने बनाई नई नीति, शोध में सामने आये चौंकाने वाले परिणाम

उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र ने पिथौरागढ़ जिले के सीमांत स्थानों पर कीड़ा जड़ी पर शोध किया है. जिससे यह बात सामने आई है कि यहां रहने वाले लोगों के लिए यह आर्थिकी का अहम जरिया है.

'हिमालयन वायग्रा'.
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Published : Aug 4, 2019, 4:27 PM IST

Updated : Aug 4, 2019, 5:43 PM IST

हल्द्वानी: कैटरपिलर फंगस यानी (कीड़ा-जड़ी) दुर्गम पहाड़ों पर उगने वाली फफूंद है.जिसे शक्ति वर्धक दवाइयों के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. इसका इस्तेमाल कई गंभीर बीमारियों में भी किया जाता है. विशेषकर कैंसर से लेकर नपुंसकता में यह रामबाण काम करती है. जानकारी के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 50 से 70 लाख रुपए प्रति किलो है. तेजी से होते जलवायु परिवर्तन के कारण कीड़ा जड़ी पर भी खतरा मंडराने लगा है लेकिन इस पर जो हुए शोध में जो सामने आया है उसके चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं. शोध में पता चला है कि कई पलायन कर चुके परिवार कीड़ा जड़ी के संरक्षण के लिए वापस लौट रहे हैं.

'हिमालयन वायग्रा'.

उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र ने पिथौरागढ़ जिले के सीमांत स्थानों पर कीड़ा जड़ी पर शोध किया है. जिससे यह बात सामने आई है कि यहां रहने वाले लोगों के लिए यह आर्थिकी का अहम जरिया है. इन स्थानों से पलायन भी कम हुआ है, जो लोग बाहर चले गए थे वे भी इसके संरक्षण के लिए वापस आ रहे हैं.

पढ़ें-हल्द्वानी की कनक को मिलेगा तीलू रौतेली पुरस्कार, इलाके में खुशी की लहर

वन अनुसंधान केंद्र के निदेशक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि कीड़ा-जड़ी पर शोध का उद्देश्य सरकार को अधिक से अधिक राजस्व प्राप्ति के अलावा इसके अवैध व्यापार को रोकना है. प्राकृतिक सौंदर्य को बचाए रखने और स्थानीय लोगों की आर्थिकी को मजबूत करने को लेकर भी इस शोध में सुझाव दिये गये हैं.

पढ़ें-किन्नर मारपीट मामलाः रजनी रावत गुट ने दी सफाई, दूसरे गुट पर लगाया नियम तोड़ने का आरोप

वहीं, इस बारे में वन मंत्री हरक सिंह रावत का कहना है कि कीड़ा जड़ी को लेकर सरकार ने एक नई नीति बनाई है. जिसके तहत इसके दोहन, रखरखाव और इसकी मार्केटिंग को शामिल किया गया है. उन्होंने बताया कि इसकी नई नीति का उद्देश्य अवैध रूप से कीड़ा जड़ी का दोहन को रोकने के साथ ही रोजगार पैदा करना और राजस्व प्राप्ति है.

बहरहाल, सोने से भी कीमती कीड़ा जड़ी के रखरखाव पर यदि राज्य सरकार वाकई संजीदा है तो इससे सरकार के साथ ही स्थानीय लोगों को लाभ मिलेगा. इससे रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी तो सरकार को भी राजस्व का प्राप्ति होगी.

हल्द्वानी: कैटरपिलर फंगस यानी (कीड़ा-जड़ी) दुर्गम पहाड़ों पर उगने वाली फफूंद है.जिसे शक्ति वर्धक दवाइयों के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. इसका इस्तेमाल कई गंभीर बीमारियों में भी किया जाता है. विशेषकर कैंसर से लेकर नपुंसकता में यह रामबाण काम करती है. जानकारी के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 50 से 70 लाख रुपए प्रति किलो है. तेजी से होते जलवायु परिवर्तन के कारण कीड़ा जड़ी पर भी खतरा मंडराने लगा है लेकिन इस पर जो हुए शोध में जो सामने आया है उसके चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं. शोध में पता चला है कि कई पलायन कर चुके परिवार कीड़ा जड़ी के संरक्षण के लिए वापस लौट रहे हैं.

'हिमालयन वायग्रा'.

उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र ने पिथौरागढ़ जिले के सीमांत स्थानों पर कीड़ा जड़ी पर शोध किया है. जिससे यह बात सामने आई है कि यहां रहने वाले लोगों के लिए यह आर्थिकी का अहम जरिया है. इन स्थानों से पलायन भी कम हुआ है, जो लोग बाहर चले गए थे वे भी इसके संरक्षण के लिए वापस आ रहे हैं.

पढ़ें-हल्द्वानी की कनक को मिलेगा तीलू रौतेली पुरस्कार, इलाके में खुशी की लहर

वन अनुसंधान केंद्र के निदेशक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि कीड़ा-जड़ी पर शोध का उद्देश्य सरकार को अधिक से अधिक राजस्व प्राप्ति के अलावा इसके अवैध व्यापार को रोकना है. प्राकृतिक सौंदर्य को बचाए रखने और स्थानीय लोगों की आर्थिकी को मजबूत करने को लेकर भी इस शोध में सुझाव दिये गये हैं.

पढ़ें-किन्नर मारपीट मामलाः रजनी रावत गुट ने दी सफाई, दूसरे गुट पर लगाया नियम तोड़ने का आरोप

वहीं, इस बारे में वन मंत्री हरक सिंह रावत का कहना है कि कीड़ा जड़ी को लेकर सरकार ने एक नई नीति बनाई है. जिसके तहत इसके दोहन, रखरखाव और इसकी मार्केटिंग को शामिल किया गया है. उन्होंने बताया कि इसकी नई नीति का उद्देश्य अवैध रूप से कीड़ा जड़ी का दोहन को रोकने के साथ ही रोजगार पैदा करना और राजस्व प्राप्ति है.

बहरहाल, सोने से भी कीमती कीड़ा जड़ी के रखरखाव पर यदि राज्य सरकार वाकई संजीदा है तो इससे सरकार के साथ ही स्थानीय लोगों को लाभ मिलेगा. इससे रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी तो सरकार को भी राजस्व का प्राप्ति होगी.

Intro:sammry- कीड़ा जड़ी रुकेगा पलायन।( इस खबर का विजुअल और बाइट मेल से उठाएं)

एंकर- कैटरपिलर फंगस यानी (कीड़ा जड़ी दुर्गम हाड़ों पर उगने वाली फफूंदी है जिसे शक्ति वर्धक दवाइयां के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है ।कई गंभीर बीमारियों में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। विशेषकर कैंसर से लेकर नपुंसकता में यह रामबाण काम करती है ।एक जानकारी के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 50 से 70 लाख रुपए प्रति किलो है ।तेजी से होते जलवायु परिवर्तन से कीड़ा जड़ी पर भी खतरा मंडराने लगा है। लेकिन इस पर जो शोध हुआ है इसके कई चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं क्योंकि जो परिवार पलायन कर रहा है वह कीड़ा जड़ी की संरक्षण के लिए वापस लौट रहे हैं।


Body:उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र ने पिथौरागढ़ जिले के सीमांत स्थानों पर कीड़ा जड़ी पर शोध किया है। जिससे यह बात सामने आई है कि यहां रहने वाले लोगों के लिए आर्थिक का अहम जरिया कीड़ा जड़ी है ।इन स्थानों पर पलायन भी कम हुआ है जो लोग बाहर चले गए थे वापस आ रहे हैं ।वन अनुसंधान केंद्र के निदेशक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि कीड़ा जड़ी पर शोध का उद्देश्य सरकार को अधिक से अधिक राजस्व प्राप्ति के अलावा इसके अवैध व्यापार को रोकना है। प्राकृतिक सौंदर्य को बचाए रखने और स्थानीय लोगों की आर्थिकी को मजबूत करना इसके लिए और भी महत्वपूर्ण सुझाव सरकार को दिए गए हैं।

बाइट- संजीव चतुर्वेदी निदेशक वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी

वहीं वन मंत्री हरक सिंह रावत का कहना है कि कीड़ा जड़ी को लेकर सरकार ने एक नई नीति बनाई है ।जिसके तहत इसके दौहन,रखरखाव और उसके मार्केटिंग को शामिल किया गया है। ताकि अवैध रूप से कीड़ा जड़ी का दोहन नही हो और स्थानीय लोगों को रोजगार मिले और सरकार को भी राजस्व प्राप्ति हो। जबकि अभी तक इसकी नीति नहीं थी और इसका कारोबार अवैध तरीके से किया जाता था।

बाइट -हरक सिंह रावत वन मंत्री उत्तराखंड


Conclusion:सोने से भी कीमती कीड़ा जड़ी के रखरखाव पर यदि सरकार वाकई संजीदा है तो सरकार को भी राजस्व के अलावा लोगों को रोजगार देने और सीमांत पहाड़ी इलाकों से पलायन रोकने में खासी मदद मिलेगी जिसके लिए वन अनुसंधान कि यह पहल सराहनीय कदम है।
Last Updated : Aug 4, 2019, 5:43 PM IST
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