हल्द्वानी: कैटरपिलर फंगस यानी (कीड़ा-जड़ी) दुर्गम पहाड़ों पर उगने वाली फफूंद है.जिसे शक्ति वर्धक दवाइयों के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. इसका इस्तेमाल कई गंभीर बीमारियों में भी किया जाता है. विशेषकर कैंसर से लेकर नपुंसकता में यह रामबाण काम करती है. जानकारी के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 50 से 70 लाख रुपए प्रति किलो है. तेजी से होते जलवायु परिवर्तन के कारण कीड़ा जड़ी पर भी खतरा मंडराने लगा है लेकिन इस पर जो हुए शोध में जो सामने आया है उसके चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं. शोध में पता चला है कि कई पलायन कर चुके परिवार कीड़ा जड़ी के संरक्षण के लिए वापस लौट रहे हैं.
उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र ने पिथौरागढ़ जिले के सीमांत स्थानों पर कीड़ा जड़ी पर शोध किया है. जिससे यह बात सामने आई है कि यहां रहने वाले लोगों के लिए यह आर्थिकी का अहम जरिया है. इन स्थानों से पलायन भी कम हुआ है, जो लोग बाहर चले गए थे वे भी इसके संरक्षण के लिए वापस आ रहे हैं.
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वन अनुसंधान केंद्र के निदेशक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि कीड़ा-जड़ी पर शोध का उद्देश्य सरकार को अधिक से अधिक राजस्व प्राप्ति के अलावा इसके अवैध व्यापार को रोकना है. प्राकृतिक सौंदर्य को बचाए रखने और स्थानीय लोगों की आर्थिकी को मजबूत करने को लेकर भी इस शोध में सुझाव दिये गये हैं.
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वहीं, इस बारे में वन मंत्री हरक सिंह रावत का कहना है कि कीड़ा जड़ी को लेकर सरकार ने एक नई नीति बनाई है. जिसके तहत इसके दोहन, रखरखाव और इसकी मार्केटिंग को शामिल किया गया है. उन्होंने बताया कि इसकी नई नीति का उद्देश्य अवैध रूप से कीड़ा जड़ी का दोहन को रोकने के साथ ही रोजगार पैदा करना और राजस्व प्राप्ति है.
बहरहाल, सोने से भी कीमती कीड़ा जड़ी के रखरखाव पर यदि राज्य सरकार वाकई संजीदा है तो इससे सरकार के साथ ही स्थानीय लोगों को लाभ मिलेगा. इससे रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी तो सरकार को भी राजस्व का प्राप्ति होगी.