हल्द्वानी: यूं तो मटर की खेती सर्दियों में होती है, लेकिन इन दिनों उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में पैदा होने वाली मटर की डिमांड लगातार बढ़ती जा रही है. दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा सहित कई राज्यों के मंडियों में उत्तराखंड के मटर की खूब मांग है. बीते दिनों हुई ओलावृष्टि के चलते पहाड़ के किसानों को काफी नुकसान पहुंचा है. ओलावृष्टि के कारण मटर की फसल बर्बाद हो गई है. जिससे किसान और काश्तकारों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है.
दरअसल, मटर की फसल का सीजन खत्म हो गया है. अन्य राज्यों में सर्दियों में मटर की खेती की जाती है. वहीं उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में इन दिनों मटर की खेती खूब हो रही है. गर्मी में पहाड़ों की जलवायु और मौसम मटर के उत्पादन के लिए बेहतर साबित हो रहा है. मंडी के आढ़तियों की मानें तो उत्तराखंड के मटर की डिमांड भारत के कई मंडियों में की जा रही है.
लेकिन बीते दिनों हुई ओलावृष्टि ने किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. पहाड़ों में हुई ओलावृष्टि के चलते मटर की फसल बर्बाद हो गई है. इसके साथ ही मटर के उत्पादन पर भी असर पड़ा है. वहीं काश्तकारों का कहना है कि यहां के मटर की डिमांड मंडियों में है, लेकिन ओलावृष्टि के कारण उनकी मटर की फसल बर्बाद हो गई है. काश्तकारों का कहना है कि उन्हें मटर का अच्छा दाम नहीं मिल पा रहा है. जिससे उनके आगे रोजी रोटी का संकट भी खड़ा हो रहा है.
बता दें कि नैनीताल और अल्मोड़ा जिले में बड़ी मात्रा में मटर की खेती की जाती है. पहाड़ी फलों के अलावा मटर की खेती किसानों की आय का मुख्य स्रोत है. ऐसे में पहाड़ों की मटर ₹10 किलो से लेकर ₹25 किलो तक मंडियो में बेची जा रही है. वहीं बात करें खुले बाजार की तो मटर की कीमत 40 से ₹50 प्रति किलो है.