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उत्तराखंड के 25% ब्राह्मण किसको देंगे जीत का आशीर्वाद, किससे हैं खुश, किससे नाराज - uttarakhand caste voter

पारंपरिक रूप से यूं तो ब्राह्मण वोटर्स का झुकाव भाजपा की तरफ ही माना जाता है. लेकिन राजनीति के जानकार इन दिनों उत्तर प्रदेश के बाद उत्तराखंड में भी ब्राह्मण मतदाताओं के भाजपा से छिटकने की आशंका जता रहे हैं. देवस्थानम बोर्ड का मुद्दा इन आशंकाओं को और भी ज्यादा प्रबल कर रहा है. हालांकि ब्राह्मण वोटर्स को रिझाने के लिए राजनीतिक रूप से पार्टियां अंदरूनी सियासी दांव-पेंच खेलने में जुट गई हैं. पेश है हमारी स्पेशल रिपोर्ट...

brahaman
ब्राह्मण वोटर
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Published : Nov 12, 2021, 10:33 AM IST

Updated : Nov 13, 2021, 7:42 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में देवस्थानम बोर्ड का मुद्दा जिस तेजी से गरमाया है, उसने प्रदेश की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे दिया है. दरअसल राज्य में जातीय समीकरणों पर चुनावी बिसात बिछा रही राजनीतिक पार्टियां ब्राह्मणों को लेकर कुछ ज्यादा चौकन्ना दिखाई दे रही हैं. इसकी वजह ब्राह्मण जाति के बदलते समीकरणों को माना जा रहा है. जानकार कह रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी शासित उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में ब्राह्मणों का भाजपा से कुछ मोहभंग हुआ है.

राजनीतिक पंडितों का है ये कहना: राजनीतिक पंडित नीरज कोहली का कहना है कि इसकी सबसे पहले सुगबुगाहट उत्तर प्रदेश सुनाई दी थी, जब माफिया विकास दुबे का एनकाउंटर किया गया. इसके बाद दबी जुबान में ब्राह्मणों को योगी सरकार में टारगेट किए जाने की बातें भी उठती हुई दिखाई दी. जिसके बाद बहुजन समाज पार्टी के ब्राह्मण सम्मेलन और समाजवादी पार्टी का परशुराम के नाम पर राजनीतिक कार्यक्रम सबने देखा. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि भाजपा के खिलाफ ब्राह्मणों का विरोध केवल उत्तर प्रदेश तक ही सीमित नहीं है, उत्तराखंड में भी ब्राह्मणों के भाजपा से मोहभंग होने की चर्चाएं होने लगी हैं. बताया जाता है कि राष्ट्रीय स्तर पर भी भाजपा ब्राह्मणों को लेकर इन आशंकाओं को लेकर मंथन में जुट गई है.

उत्तराखंड के 25% ब्राह्मण किसको देंगे जीत का आशीर्वाद.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ में दिया था बड़ा संदेश: नीरज कोहली कहते हैं कि, वैसे तो भाजपा मंदिरों और हिंदू धार्मिक स्थलों पर राजनीतिक वर्चस्व बनाए रखती है. इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ में दौरे के दौरान भी एक तरफ जहां राष्ट्रीय स्तर पर हिंदुत्व को लेकर पार्टी की लाइन को स्पष्ट करने की कोशिश की है. वहीं, अपने संबोधन के दौरान तीर्थ पुरोहितों और पुजारियों की जमकर तारीफ कर ब्राह्मण जाति को भी साधने का प्रयास किया था. प्रधानमंत्री का यह संबोधन उस समय किया गया जब उत्तराखंड में तीर्थ पुरोहितों के नेतृत्व में ही भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी की गई है. भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को केदारनाथ से लगभघ खदेड़ने तक का काम तीर्थ पुरोहित कर चुके हैं.

ये भी पढ़ें: CM धामी की बड़ी घोषणा, उत्तराखंड में इगास पर रहेगा अवकाश, त्रिवेंद्र बोले- कोई बड़ी बात नहीं

ठाकुर-ब्राह्मण दोनों को वरीयता देते हैं राजनीतिक दल: उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश दोनों ही राज्यों में मुख्यमंत्री के तौर पर भाजपा ने ठाकुर चेहरों को वरीयता दी है. राजनीतिक जानकार नीरज कोहली मानते हैं कि इसी नेतृत्व के चलते हुए तमाम घटनाक्रम ब्राह्मणों की इन दो राज्यों में नाराजगी की वजह मानी जा रही हैं. बताया जा रहा है कि ब्राह्मण समुदाय एक तरफ सरकार में अवसर ना मिलने के चलते नाराज दिखा है तो दूसरी तरफ देवस्थानम बोर्ड जैसे कुछ निर्णय भी ब्राह्मणों की नाराजगी की वजह रहे हैं.

brahmin voters
4 ठाकुर मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए

त्रिवेंद्र पर लगे थे उपेक्षा के आरोप: उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत एक ठाकुरवादी नेता के रूप में समझे जाते रहे हैं. इस दौरान उनके ब्राह्मण जाति के नेताओं को तवज्जो ना दिए जाने की बातें भी समय-समय पर उठती रहीं हैं. वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक नीरज कोहली कहते हैं कि ब्राह्मणों की नाराजगी की बात काफी समय से सामने आ रही है. देवस्थानम बोर्ड का गठन इस नाराजगी की मुख्य वजह रहा है. उन्होंने कहा कि प्रदेश की राजनीति में ठाकुर और ब्राह्मण जाति का वर्चस्व रहा है. ऐसे में कोई भी राजनीतिक दल ब्राह्मणों की नाराजगी मोल लेने की हिम्मत नहीं कर सकता.

5 बार ब्राह्मण मुख्यमंत्री, 4 बार ठाकुर: उत्तराखंड में निर्वाचित सरकार के दौरान विभिन्न दलों में मुख्यमंत्रियों की स्थिति को देखें तो 9 बार मुख्यमंत्री पद के लिए शपथ ली गई. इसमें से 5 बार ब्राह्मण जाति के राजनेता मुख्यमंत्री के पद पर आसीन रहे हैं. इसमें भुवन चंद्र खंडूड़ी ने भाजपा सरकार के एक कार्यकाल में दो बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. इसी तरह यदि निर्वाचित सरकार में कार्यकाल पर फोकस करें तो 20 सालों में 12 सालों तक ब्राह्मण मुख्यमंत्रियों ने सत्ता संभाली है, जिनमें 5 साल नारायण दत्त तिवारी, 5 साल भुवन चंद्र खंडूड़ी और डॉ रमेश पोखरियाल निशंक मुख्यमंत्री रहे हैं. इसके अलावा 2 साल विजय बहुगुणा ने भी कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री का पद संभाला था. इस तरह निर्वाचित सरकार में 2014 से अब तक ठाकुर मुख्यमंत्रियों को राजनीतिक दलों ने सत्ता दी है.

brahmin voters
उत्तराखंड में ब्राह्मण 5 बार सीएम बने.

ये भी पढ़ें: पीएम मोदी और अमित शाह फिर करेंगे उत्तराखंड का दौरा

ठाकुर मतदाताओं का बहुमत फिर भी सत्ता के करीब रहे हैं ब्राह्मण: उत्तराखंड में कुल मतदाताओं में ठाकुर और ब्राह्मण मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या रही है. सत्ता पाने के लिए इन दोनों ही जातियों की अहम भूमिका भी रही है. प्रदेश में 35% ठाकुर मतदाता हैं तो 25% मतदाता ब्राह्मण हैं. उधर बाकी 40% मतदाता पंजाबी, वैश्य, मुस्लिम, बौद्ध और एससी एसटी से आते हैं.

उत्तराखंड में ठाकुर-ब्राह्मण तय करते हैं हार-जीत: राज्य की पहाड़ी सीटों पर ठाकुर और ब्राह्मण मतदाता ही जीत का समीकरण तय करते हैं. उधर, मैदानी सीटों पर भी ब्राह्मणों और ठाकुरों का अच्छा खासा दबदबा रहा है. राज्य में हरिद्वार और उधम सिंह नगर जिले को छोड़ दिया जाए तो बाकी सभी जिलों में ठाकुर और ब्राह्मण जाति के मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. उधर, उधम सिंह नगर में पंजाबी और मुस्लिम समुदाय का अच्छा खासा वर्चस्व है. हरिद्वार में भी मुस्लिम समुदाय की भूमिका अहम मानी जाती है. हालांकि, इन दो जिलों में भी ठाकुर और ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या किसी भी प्रत्याशी को जीत दिलाने में अहम स्थिति में है.

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उत्तराखंड में मतदाताओं का प्रतिशत

ये है ब्राह्मण वोटों का हिसाब: एक निजी एजेंसी के सर्वे के अनुसार, ब्राह्मण वोट 62% भाजपा के साथ रहे हैं. उधर 34% ब्राह्मण कांग्रेस और 4% आम आदमी पार्टी के पक्ष में दिखाई देते हैं. इससे हटकर ठाकुर मतदाताओं की बात करें तो 50% मतदाता बीजेपी तो 45% कांग्रेस के साथ दिखाई देते हैं. उधर दलित वोटों में 59% कांग्रेस, 34% बीजेपी और 7% आम आदमी पार्टी के पक्ष में दिखाई देते हैं. हालांकि यह समीकरण अब बदलते हुए दिखाई दे रहे हैं. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी के साथ महंगाई ने भी इस समीकरण को बदल दिया है. उधर ब्राह्मणों को लेकर भी बदलते समीकरणों से भाजपा को भविष्य में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है ऐसा राजनीतिक पंडितों का मानना है.

कांग्रेस बीजेपी को ब्राह्मणों के खिलाफ बताती है: उत्तराखंड में कांग्रेस नेता भाजपा सरकार को ब्राह्मणों के खिलाफ बताते हैं और सरकार की नीतियों के साथ ही तमाम महत्वपूर्ण मुद्दों पर ब्राह्मण विरोधी काम करने का भी भाजपा सरकार पर आरोप लगाते हैं. कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री मथुरा दत्त जोशी कहते हैं कि इन्हीं कार्यशैली के चलते ब्राह्मण अब भाजपा से टूट रहा है और आगामी 2022 के चुनाव में ब्राह्मण भाजपा को सबक सिखाने के मूड में हैं.

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उत्तराखंड में ठाकुर और ब्राह्मण सीएम बने हैं

ये भी पढ़ें: जनजाति महोत्सव में बोले मुंडा- सीमांत जिलों में खुलेंगे एकलव्य स्कूल, 5 हजार छात्रों को देंगे टैबलेट

BJP का है ये तर्क: इस मामले में भारतीय जनता पार्टी अपने अलग तर्क रखती है. पार्टी कहती है कि ब्राह्मण हमेशा ही भाजपा के साथ रहा है और रहेगा. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता नवीन ठाकुर कहते हैं कि भाजपा जातीय समीकरणों से हटकर सभी को साथ लेकर चलती है. ऐसे में ब्राह्मणों के नाराज होने की कोई बात नहीं है, पार्टी सबके लिए विकास पर काम कर रही है.

देहरादून: उत्तराखंड में देवस्थानम बोर्ड का मुद्दा जिस तेजी से गरमाया है, उसने प्रदेश की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे दिया है. दरअसल राज्य में जातीय समीकरणों पर चुनावी बिसात बिछा रही राजनीतिक पार्टियां ब्राह्मणों को लेकर कुछ ज्यादा चौकन्ना दिखाई दे रही हैं. इसकी वजह ब्राह्मण जाति के बदलते समीकरणों को माना जा रहा है. जानकार कह रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी शासित उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में ब्राह्मणों का भाजपा से कुछ मोहभंग हुआ है.

राजनीतिक पंडितों का है ये कहना: राजनीतिक पंडित नीरज कोहली का कहना है कि इसकी सबसे पहले सुगबुगाहट उत्तर प्रदेश सुनाई दी थी, जब माफिया विकास दुबे का एनकाउंटर किया गया. इसके बाद दबी जुबान में ब्राह्मणों को योगी सरकार में टारगेट किए जाने की बातें भी उठती हुई दिखाई दी. जिसके बाद बहुजन समाज पार्टी के ब्राह्मण सम्मेलन और समाजवादी पार्टी का परशुराम के नाम पर राजनीतिक कार्यक्रम सबने देखा. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि भाजपा के खिलाफ ब्राह्मणों का विरोध केवल उत्तर प्रदेश तक ही सीमित नहीं है, उत्तराखंड में भी ब्राह्मणों के भाजपा से मोहभंग होने की चर्चाएं होने लगी हैं. बताया जाता है कि राष्ट्रीय स्तर पर भी भाजपा ब्राह्मणों को लेकर इन आशंकाओं को लेकर मंथन में जुट गई है.

उत्तराखंड के 25% ब्राह्मण किसको देंगे जीत का आशीर्वाद.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ में दिया था बड़ा संदेश: नीरज कोहली कहते हैं कि, वैसे तो भाजपा मंदिरों और हिंदू धार्मिक स्थलों पर राजनीतिक वर्चस्व बनाए रखती है. इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ में दौरे के दौरान भी एक तरफ जहां राष्ट्रीय स्तर पर हिंदुत्व को लेकर पार्टी की लाइन को स्पष्ट करने की कोशिश की है. वहीं, अपने संबोधन के दौरान तीर्थ पुरोहितों और पुजारियों की जमकर तारीफ कर ब्राह्मण जाति को भी साधने का प्रयास किया था. प्रधानमंत्री का यह संबोधन उस समय किया गया जब उत्तराखंड में तीर्थ पुरोहितों के नेतृत्व में ही भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी की गई है. भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को केदारनाथ से लगभघ खदेड़ने तक का काम तीर्थ पुरोहित कर चुके हैं.

ये भी पढ़ें: CM धामी की बड़ी घोषणा, उत्तराखंड में इगास पर रहेगा अवकाश, त्रिवेंद्र बोले- कोई बड़ी बात नहीं

ठाकुर-ब्राह्मण दोनों को वरीयता देते हैं राजनीतिक दल: उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश दोनों ही राज्यों में मुख्यमंत्री के तौर पर भाजपा ने ठाकुर चेहरों को वरीयता दी है. राजनीतिक जानकार नीरज कोहली मानते हैं कि इसी नेतृत्व के चलते हुए तमाम घटनाक्रम ब्राह्मणों की इन दो राज्यों में नाराजगी की वजह मानी जा रही हैं. बताया जा रहा है कि ब्राह्मण समुदाय एक तरफ सरकार में अवसर ना मिलने के चलते नाराज दिखा है तो दूसरी तरफ देवस्थानम बोर्ड जैसे कुछ निर्णय भी ब्राह्मणों की नाराजगी की वजह रहे हैं.

brahmin voters
4 ठाकुर मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए

त्रिवेंद्र पर लगे थे उपेक्षा के आरोप: उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत एक ठाकुरवादी नेता के रूप में समझे जाते रहे हैं. इस दौरान उनके ब्राह्मण जाति के नेताओं को तवज्जो ना दिए जाने की बातें भी समय-समय पर उठती रहीं हैं. वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक नीरज कोहली कहते हैं कि ब्राह्मणों की नाराजगी की बात काफी समय से सामने आ रही है. देवस्थानम बोर्ड का गठन इस नाराजगी की मुख्य वजह रहा है. उन्होंने कहा कि प्रदेश की राजनीति में ठाकुर और ब्राह्मण जाति का वर्चस्व रहा है. ऐसे में कोई भी राजनीतिक दल ब्राह्मणों की नाराजगी मोल लेने की हिम्मत नहीं कर सकता.

5 बार ब्राह्मण मुख्यमंत्री, 4 बार ठाकुर: उत्तराखंड में निर्वाचित सरकार के दौरान विभिन्न दलों में मुख्यमंत्रियों की स्थिति को देखें तो 9 बार मुख्यमंत्री पद के लिए शपथ ली गई. इसमें से 5 बार ब्राह्मण जाति के राजनेता मुख्यमंत्री के पद पर आसीन रहे हैं. इसमें भुवन चंद्र खंडूड़ी ने भाजपा सरकार के एक कार्यकाल में दो बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. इसी तरह यदि निर्वाचित सरकार में कार्यकाल पर फोकस करें तो 20 सालों में 12 सालों तक ब्राह्मण मुख्यमंत्रियों ने सत्ता संभाली है, जिनमें 5 साल नारायण दत्त तिवारी, 5 साल भुवन चंद्र खंडूड़ी और डॉ रमेश पोखरियाल निशंक मुख्यमंत्री रहे हैं. इसके अलावा 2 साल विजय बहुगुणा ने भी कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री का पद संभाला था. इस तरह निर्वाचित सरकार में 2014 से अब तक ठाकुर मुख्यमंत्रियों को राजनीतिक दलों ने सत्ता दी है.

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उत्तराखंड में ब्राह्मण 5 बार सीएम बने.

ये भी पढ़ें: पीएम मोदी और अमित शाह फिर करेंगे उत्तराखंड का दौरा

ठाकुर मतदाताओं का बहुमत फिर भी सत्ता के करीब रहे हैं ब्राह्मण: उत्तराखंड में कुल मतदाताओं में ठाकुर और ब्राह्मण मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या रही है. सत्ता पाने के लिए इन दोनों ही जातियों की अहम भूमिका भी रही है. प्रदेश में 35% ठाकुर मतदाता हैं तो 25% मतदाता ब्राह्मण हैं. उधर बाकी 40% मतदाता पंजाबी, वैश्य, मुस्लिम, बौद्ध और एससी एसटी से आते हैं.

उत्तराखंड में ठाकुर-ब्राह्मण तय करते हैं हार-जीत: राज्य की पहाड़ी सीटों पर ठाकुर और ब्राह्मण मतदाता ही जीत का समीकरण तय करते हैं. उधर, मैदानी सीटों पर भी ब्राह्मणों और ठाकुरों का अच्छा खासा दबदबा रहा है. राज्य में हरिद्वार और उधम सिंह नगर जिले को छोड़ दिया जाए तो बाकी सभी जिलों में ठाकुर और ब्राह्मण जाति के मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. उधर, उधम सिंह नगर में पंजाबी और मुस्लिम समुदाय का अच्छा खासा वर्चस्व है. हरिद्वार में भी मुस्लिम समुदाय की भूमिका अहम मानी जाती है. हालांकि, इन दो जिलों में भी ठाकुर और ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या किसी भी प्रत्याशी को जीत दिलाने में अहम स्थिति में है.

brahmin voters
उत्तराखंड में मतदाताओं का प्रतिशत

ये है ब्राह्मण वोटों का हिसाब: एक निजी एजेंसी के सर्वे के अनुसार, ब्राह्मण वोट 62% भाजपा के साथ रहे हैं. उधर 34% ब्राह्मण कांग्रेस और 4% आम आदमी पार्टी के पक्ष में दिखाई देते हैं. इससे हटकर ठाकुर मतदाताओं की बात करें तो 50% मतदाता बीजेपी तो 45% कांग्रेस के साथ दिखाई देते हैं. उधर दलित वोटों में 59% कांग्रेस, 34% बीजेपी और 7% आम आदमी पार्टी के पक्ष में दिखाई देते हैं. हालांकि यह समीकरण अब बदलते हुए दिखाई दे रहे हैं. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी के साथ महंगाई ने भी इस समीकरण को बदल दिया है. उधर ब्राह्मणों को लेकर भी बदलते समीकरणों से भाजपा को भविष्य में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है ऐसा राजनीतिक पंडितों का मानना है.

कांग्रेस बीजेपी को ब्राह्मणों के खिलाफ बताती है: उत्तराखंड में कांग्रेस नेता भाजपा सरकार को ब्राह्मणों के खिलाफ बताते हैं और सरकार की नीतियों के साथ ही तमाम महत्वपूर्ण मुद्दों पर ब्राह्मण विरोधी काम करने का भी भाजपा सरकार पर आरोप लगाते हैं. कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री मथुरा दत्त जोशी कहते हैं कि इन्हीं कार्यशैली के चलते ब्राह्मण अब भाजपा से टूट रहा है और आगामी 2022 के चुनाव में ब्राह्मण भाजपा को सबक सिखाने के मूड में हैं.

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उत्तराखंड में ठाकुर और ब्राह्मण सीएम बने हैं

ये भी पढ़ें: जनजाति महोत्सव में बोले मुंडा- सीमांत जिलों में खुलेंगे एकलव्य स्कूल, 5 हजार छात्रों को देंगे टैबलेट

BJP का है ये तर्क: इस मामले में भारतीय जनता पार्टी अपने अलग तर्क रखती है. पार्टी कहती है कि ब्राह्मण हमेशा ही भाजपा के साथ रहा है और रहेगा. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता नवीन ठाकुर कहते हैं कि भाजपा जातीय समीकरणों से हटकर सभी को साथ लेकर चलती है. ऐसे में ब्राह्मणों के नाराज होने की कोई बात नहीं है, पार्टी सबके लिए विकास पर काम कर रही है.

Last Updated : Nov 13, 2021, 7:42 PM IST
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