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जयंती विशेष: हिमालय पुत्र जिसकी 'छोरा गंगा किनारे वाला' से हुई थी भिड़ंत

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Published : Apr 25, 2022, 10:50 AM IST

भारतीय राजनीति में एक से बढ़कर एक राजनेता हुए हैं. उन्हीं में से एक थे हेमवती नंदन बहुगुणा. उनके इरादे हिमालय जैसे अटल थे, इसलिए हेमवती नंदन बहुगुणा हिमालय पुत्र कहे जाते थे. उनके राजनीतिक जीवन में अमिताभ बच्चन के साथ इलाहाबाद की चुनावी भिड़ंत आज भी याद की जाती है. उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे हेमवती नंदन बहुगुणा की आज 104वीं जयंती (Birth anniversary of Hemvati Nandan Bahuguna) है.

Hemwati Nandan Bahuguna
हेमवती नंदन बहुगुणा की जयंती

देहरादून: हेमवती नंदन बहुगुणा (Birth anniversary of Hemvati Nandan Bahuguna) का जन्म 25 अप्रैल 1919 को बुघानी, पौड़ी गढ़वाल में एक गढ़वाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था. बहुगुणा का परिवार बाद में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद चला गया. ये बहुत कम लोगों के पता है कि उनकी दो शादियां थीं. पहली पत्नी हमेशा उनके पैतृक गांव बुघानी में गांव की एक साधारण महिला के रूप में रहती थीं. उनकी दूसरी पत्नी, कमला बहुगुणा, उनके साथ इलाहाबाद में रहती थीं और उनके 3 बच्चों की मां थीं.

हेमवती नंदन बहुगुणा के सबसे बड़े बेटे विजय बहुगुणा ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया. वह इलाहाबाद और बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश भी रहे थे. वर्तमान में वे भारतीय जनता पार्टी के सदस्य हैं. हेमवती नंदन बहुगुणा के दूसरे पुत्र का नाम शेखर बहुगुणा है. रीता बहुगुणा जोशी हेमवती नंदन बहुगुणा की बेटी हैं. रीता बहुगुणा जोशी यूपी प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष रही थीं. उन्होंने इलाहाबाद के मेयर के रूप में भी कार्य किया. वर्तमान में वह भारतीय जनता पार्टी की सदस्य हैं. इन दिनों रीता बहुगुणा जोशी की लिखी किताब ने तहलका मचाया हुआ है.

ये भी पढ़ें: जानें क्यों विमोचन से पहले ही विवादों में घिरी भाजपा सांसद रीता बहुगुणा जोशी की किताब...

हेमवती नंदन बहुगुणा ने पौड़ी शहर के डीएवी स्कूल और मेसमोर इंटर कॉलेज से पढ़ाई की. पढ़ाई में हेमवती नंदन बहुगुणा मेधावी थे. उन्होंने पौड़ी से 10वीं पास किया. इलाहाबाद से 1946 में आर्ट विषय से डिग्री हासिल की.

भारत छोड़ो आंदोलन में लिया भाग: 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़े आंदोलन ने जोर पकड़ लिया था. हेमवती नंदन बहुगुणा भी आजादी के इस आंदोलन में कूद पड़े. इस दौरान उन्हें भी जेल जाना पड़ा. आजादी के बाद हेमवती नंदन बहुगुणा की राजनीतिक यात्रा शुरू हुई. 1971 में इंदिरा गांधी की सरकार में बहुगुणा केंद्रीय मंत्रिमंडल में संचार राज्य मंत्री बनाये गये. इसके बाद इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने फैसला लिया कि बहुगुणा को यूपी की राजनीति की कमान दी जाए.

1973 में यूपी के सीएम बने: 1973 में हेमवती नंदन बहुगुणा को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया. उनके सामने चुनौतियां विकट थीं. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ रिश्ते भी खटास भरे हो गए थे. इस कारण 1975 में बहुगुणा को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा.

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आपातकाल के बाद कांग्रेस छोड़ी: 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था. इस दौरान लगभग हर विपक्षी नेता जेल में ठूंस दिया गया था. 1977 की शुरुआत में, जब इंदिरा गांधी ने राज्य आपातकाल हटाया और लोकसभा के लिए नए चुनावों का आह्वान किया, तो बहुगुणा ने इंदिरा की सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को छोड़ दिया.

जगजीवन राम के साथ बनाई कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी: कांग्रेस छोड़ने के बाद हेमवती नंदन बहुगुणा ने जगजीवन राम और नंदिनी सत्पथी के साथ कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी (CFD) नामक एक नई पार्टी बनाई. सीएफडी चुनाव लड़ने के लिए जनता गठबंधन में शामिल हुआ. जनता गठबंधन की जीत के बाद, बहुगुणा प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के मंत्रिमंडल में रसायन और उर्वरक मंत्री के रूप में शामिल हुए.

1979 में केंद्रीय वित्र मंत्री बने: जनता पार्टी के छोटे से कार्यकाल में दूसरे प्रधानमंत्री बने चरण सिंह के समय हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय वित्त मंत्री बनाए गए. इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था ने अभूतपूर्व मंदी देखी गई. बहुगुणा ने जनता पार्टी सरकार का साथ छोड़ दिया और इंदिरा गांधी के साथ हो लिए.

ये भी पढ़ें: उत्तरकाशी में देवदार के दो लाख पेड़ों पर संकट, सुरेश भाई बोले 8 साल में देश में कटे 25 लाख पेड़

1980 में जीते संसद का चुनाव: जनवरी 1980 के संसदीय चुनावों में उन्होंने गढ़वाल से इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आई) पार्टी के उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की. लेकिन, उन्होंने जल्द ही पार्टी छोड़ दी और बाद में अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने 1982 में इस सीट के लिए उपचुनाव जीता.

1984 में बिग बी के खिलाफ लड़े चुनाव: इंदिरा गांधी और कांग्रेस से रास्ते अलग हुए तो 1984 में इलाहाबाद से संसदीय चुनाव लड़े. कांग्रेस ने बहुगुणा के खिलाफ सिने स्टार अमिताभ बच्चन को मैदान में उतार दिया. अमिताभ बच्चन के आगे हेमवती नंदन बहुगुणा चुनाव में टिक नहीं सके. बिग बी ने उन्हें 1,87,000 मतों से चुनाव बुरी तरह परास्त किया. अमिताभ बच्चन के खिलाफ हेमवती नंदन बहुगुणा की रैलियों में नारे लगते थे- 'हेमवती नंदन इलाहाबाद का चंदन.' 'दम नहीं है पंजे में, लंबू फंसा शिकंजे में.' 'सरल नहीं संसद में आना, मारो ठुमका गाओ गाना.'

राजनीतिक करियर: देश के आजाद होने के बाद कांग्रेस पार्टी से 1952 में हेमवती नंदन बहुगुणा सबसे पहले विधान सभा सदस्य चुने गए. 1957 से लगातार 1969 तक और 1974 से 1977 तक उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य रहे. 1952 में वे उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति और 1957 से अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य रहे. उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव के रूप में भी कार्य किया. 1958 में उन्हें उद्योग विभाग का उपमंत्री बनाया गया. इसके बाद वे 1962 में श्रम विभाग के उपमंत्री बने. 1967 में वित्त और परिवहन मंत्री रहे.

1971 में कांग्रेस के सदस्य के रूप में इलाहाबाद से लोकसभा के लिए चुने गए. 1977 में जनता पार्टी द्वारा समर्थित 'लोकतंत्र के लिए कांग्रेस' के सदस्य के रूप में लखनऊ से लोकसभा के लिए चुने गए. 1980 में कांग्रेस के सदस्य के रूप में गढ़वाल से लोकसभा के लिए चुने गए. 1982 के उपचुनाव में गढ़वाल से लोकसभा के लिए चुने गए. 1984 में प्रयागराज (इलाहाबाद) में अमिताभ बच्चन से हार गए.

1988 में निधन: 1988 में हेमवती नंदन बहुगुणा बीमार पड़ गए और कोरोनरी बाईपास सर्जरी के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए. सर्जरी असफल रही और 17 मार्च 1989 को क्लीवलैंड अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई.

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यादों में हेमवती नंदन बहुगुणा: हेमवती नंदन बहुगुणा ने राजनीति के माध्यम से देश और प्रदेश को जो दिया उसकी एवज में उनकी यादें अमर रखने के लिए कुछ संस्थाओं को उनका नाम दिया गया है. हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर में उत्तराखंड का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है. पौड़ी जिले में स्थित ये केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमालय पुत्र बहुगुणा की यादें ताजा कराता है. वहीं देहरादून में हेमवती नंदन बहुगुणा उत्तराखंड चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय मरीजों को स्वास्थ्य लाभ देता है.

देहरादून: हेमवती नंदन बहुगुणा (Birth anniversary of Hemvati Nandan Bahuguna) का जन्म 25 अप्रैल 1919 को बुघानी, पौड़ी गढ़वाल में एक गढ़वाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था. बहुगुणा का परिवार बाद में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद चला गया. ये बहुत कम लोगों के पता है कि उनकी दो शादियां थीं. पहली पत्नी हमेशा उनके पैतृक गांव बुघानी में गांव की एक साधारण महिला के रूप में रहती थीं. उनकी दूसरी पत्नी, कमला बहुगुणा, उनके साथ इलाहाबाद में रहती थीं और उनके 3 बच्चों की मां थीं.

हेमवती नंदन बहुगुणा के सबसे बड़े बेटे विजय बहुगुणा ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया. वह इलाहाबाद और बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश भी रहे थे. वर्तमान में वे भारतीय जनता पार्टी के सदस्य हैं. हेमवती नंदन बहुगुणा के दूसरे पुत्र का नाम शेखर बहुगुणा है. रीता बहुगुणा जोशी हेमवती नंदन बहुगुणा की बेटी हैं. रीता बहुगुणा जोशी यूपी प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष रही थीं. उन्होंने इलाहाबाद के मेयर के रूप में भी कार्य किया. वर्तमान में वह भारतीय जनता पार्टी की सदस्य हैं. इन दिनों रीता बहुगुणा जोशी की लिखी किताब ने तहलका मचाया हुआ है.

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हेमवती नंदन बहुगुणा ने पौड़ी शहर के डीएवी स्कूल और मेसमोर इंटर कॉलेज से पढ़ाई की. पढ़ाई में हेमवती नंदन बहुगुणा मेधावी थे. उन्होंने पौड़ी से 10वीं पास किया. इलाहाबाद से 1946 में आर्ट विषय से डिग्री हासिल की.

भारत छोड़ो आंदोलन में लिया भाग: 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़े आंदोलन ने जोर पकड़ लिया था. हेमवती नंदन बहुगुणा भी आजादी के इस आंदोलन में कूद पड़े. इस दौरान उन्हें भी जेल जाना पड़ा. आजादी के बाद हेमवती नंदन बहुगुणा की राजनीतिक यात्रा शुरू हुई. 1971 में इंदिरा गांधी की सरकार में बहुगुणा केंद्रीय मंत्रिमंडल में संचार राज्य मंत्री बनाये गये. इसके बाद इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने फैसला लिया कि बहुगुणा को यूपी की राजनीति की कमान दी जाए.

1973 में यूपी के सीएम बने: 1973 में हेमवती नंदन बहुगुणा को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया. उनके सामने चुनौतियां विकट थीं. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ रिश्ते भी खटास भरे हो गए थे. इस कारण 1975 में बहुगुणा को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा.

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आपातकाल के बाद कांग्रेस छोड़ी: 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था. इस दौरान लगभग हर विपक्षी नेता जेल में ठूंस दिया गया था. 1977 की शुरुआत में, जब इंदिरा गांधी ने राज्य आपातकाल हटाया और लोकसभा के लिए नए चुनावों का आह्वान किया, तो बहुगुणा ने इंदिरा की सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को छोड़ दिया.

जगजीवन राम के साथ बनाई कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी: कांग्रेस छोड़ने के बाद हेमवती नंदन बहुगुणा ने जगजीवन राम और नंदिनी सत्पथी के साथ कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी (CFD) नामक एक नई पार्टी बनाई. सीएफडी चुनाव लड़ने के लिए जनता गठबंधन में शामिल हुआ. जनता गठबंधन की जीत के बाद, बहुगुणा प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के मंत्रिमंडल में रसायन और उर्वरक मंत्री के रूप में शामिल हुए.

1979 में केंद्रीय वित्र मंत्री बने: जनता पार्टी के छोटे से कार्यकाल में दूसरे प्रधानमंत्री बने चरण सिंह के समय हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय वित्त मंत्री बनाए गए. इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था ने अभूतपूर्व मंदी देखी गई. बहुगुणा ने जनता पार्टी सरकार का साथ छोड़ दिया और इंदिरा गांधी के साथ हो लिए.

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1980 में जीते संसद का चुनाव: जनवरी 1980 के संसदीय चुनावों में उन्होंने गढ़वाल से इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आई) पार्टी के उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की. लेकिन, उन्होंने जल्द ही पार्टी छोड़ दी और बाद में अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने 1982 में इस सीट के लिए उपचुनाव जीता.

1984 में बिग बी के खिलाफ लड़े चुनाव: इंदिरा गांधी और कांग्रेस से रास्ते अलग हुए तो 1984 में इलाहाबाद से संसदीय चुनाव लड़े. कांग्रेस ने बहुगुणा के खिलाफ सिने स्टार अमिताभ बच्चन को मैदान में उतार दिया. अमिताभ बच्चन के आगे हेमवती नंदन बहुगुणा चुनाव में टिक नहीं सके. बिग बी ने उन्हें 1,87,000 मतों से चुनाव बुरी तरह परास्त किया. अमिताभ बच्चन के खिलाफ हेमवती नंदन बहुगुणा की रैलियों में नारे लगते थे- 'हेमवती नंदन इलाहाबाद का चंदन.' 'दम नहीं है पंजे में, लंबू फंसा शिकंजे में.' 'सरल नहीं संसद में आना, मारो ठुमका गाओ गाना.'

राजनीतिक करियर: देश के आजाद होने के बाद कांग्रेस पार्टी से 1952 में हेमवती नंदन बहुगुणा सबसे पहले विधान सभा सदस्य चुने गए. 1957 से लगातार 1969 तक और 1974 से 1977 तक उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य रहे. 1952 में वे उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति और 1957 से अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य रहे. उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव के रूप में भी कार्य किया. 1958 में उन्हें उद्योग विभाग का उपमंत्री बनाया गया. इसके बाद वे 1962 में श्रम विभाग के उपमंत्री बने. 1967 में वित्त और परिवहन मंत्री रहे.

1971 में कांग्रेस के सदस्य के रूप में इलाहाबाद से लोकसभा के लिए चुने गए. 1977 में जनता पार्टी द्वारा समर्थित 'लोकतंत्र के लिए कांग्रेस' के सदस्य के रूप में लखनऊ से लोकसभा के लिए चुने गए. 1980 में कांग्रेस के सदस्य के रूप में गढ़वाल से लोकसभा के लिए चुने गए. 1982 के उपचुनाव में गढ़वाल से लोकसभा के लिए चुने गए. 1984 में प्रयागराज (इलाहाबाद) में अमिताभ बच्चन से हार गए.

1988 में निधन: 1988 में हेमवती नंदन बहुगुणा बीमार पड़ गए और कोरोनरी बाईपास सर्जरी के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए. सर्जरी असफल रही और 17 मार्च 1989 को क्लीवलैंड अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई.

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यादों में हेमवती नंदन बहुगुणा: हेमवती नंदन बहुगुणा ने राजनीति के माध्यम से देश और प्रदेश को जो दिया उसकी एवज में उनकी यादें अमर रखने के लिए कुछ संस्थाओं को उनका नाम दिया गया है. हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर में उत्तराखंड का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है. पौड़ी जिले में स्थित ये केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमालय पुत्र बहुगुणा की यादें ताजा कराता है. वहीं देहरादून में हेमवती नंदन बहुगुणा उत्तराखंड चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय मरीजों को स्वास्थ्य लाभ देता है.

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