देहरादून: इस बात में कोई दो राय नहीं है कि उत्तराखंड में भाजपा संगठन के मामले में सबसे बड़ी पार्टी है. मगर यही बड़ा संगठन अब भाजपा के गले की फांस बनता जा रहा है. भाजपा के लिए अपने ही कार्यकर्ताओं को मैनेज करना अब मुश्किल हो रहा है. चुनावी दौर में ये समस्या और बड़ी हो रही है. आए दिन पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं की झड़प की खबरें सामने आ रही हैं.
उत्तराखंड में 25 लाख सदस्यों का दम भरने वाली भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव में इसका फायदा उठाएगी या फिर भाजपा अपने ही बड़े परिवार के झगड़ों में फंस कर हार का मुंह देखेगी यह देखना बेहद रोचक होगा. फिलहाल मौजूदा स्थिति की बात करें तो भाजपा के इस बड़े संगठन ने खुद उसके लिए ही दिक्कतें खड़ी करना शुरू कर दी हैं. बड़े संगठन के मैनेजमेंट में भाजपा को जो समस्या हो रही है, वह दूसरे दलों से आए नेताओं और कार्यकर्ताओं से सामंजस्य बिठाने की है.
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दरअसल, भाजपा ने अपने संगठन को मजबूत और बड़ा बनाने के लिए केवल कार्यकर्ताओं को अपने साथ नहीं जोड़ा बल्कि दूसरी पार्टियों के बड़े नेताओं को भी सत्ता के लालच देकर अपने कुनबे में शामिल किया. जिससे छोटे स्तर के मेहनतकश कार्यकर्ता के मन में रोष व्याप्त है. वहीं, दूसरी समस्या भाजपा के लिए बाहर से लाए गये नेताओं पर भरोसा करने की भी है.
बागियों ने बढ़ाई मुसीबत: उत्तराखंड में भाजपा का संगठन अन्य पार्टियों की तुलना में काफी बड़ा है. इस बात में कोई दो राय नहीं है. यह बड़ा संगठन भाजपा ने अपने मेहनत के दम पर खड़ा किया है, लेकिन अगर भाजपा की टॉप लीडरशिप की बात करें तो भाजपा ने इसमें सत्ता सुख के लालच में ऐसी मिलावट की है कि अब वह भाजपा के लिए ही मुसीबत का सबब बन रही है.
दरअसल, पिछले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने कांग्रेस से आये कुछ नेताओं को संगठन में जगह दी. उन्हें सरकार में भी जगह दी गई. भाजपा के पांच सालों में इन नेताओं ने सत्ता सुख भोगा, मगर अब चुनावी मौसम यही लोग भाजपा के लिए परेशानी खड़ी कर रहे हैं.
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भाजपा के अपने जमीनी कार्यकर्ता भी खिन्न: भाजपा ने संगठन में विचारधारा के बाहर से लाए नेताओं की मिलावट कर उन लोगों के मन से भी खेल किया है जो कि भाजपा में विचारधारा और पूरे तन मन के हिसाब से समर्पित थे. भाजपा में बाहर से आने वाले बड़े नेता और दूसरे दलों के विधायकों ने भाजपा के कार्यकर्ता को यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि लंबे समय से उनके द्वारा की जा रही है मेहनत बेकार हो चुकी है.
यही वजह है कि भाजपा के कार्यकर्ताओं का समर्पण पार्टी के प्रति अब कम हो चुका है. यही वजह है कि हर विधानसभा और जिले में भाजपा के नेताओं का आपस में ही टकराव हो रहा है. भाजपा में अब इस बात को लेकर हर किसी के मन में चिंता है कि उसका नंबर आएगा या नहीं?
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काऊ, धन सिंह मामले पर जांच, पुराने नोटिसों का जवाब आया: हाल ही में भाजपा नेताओं की आपसी रंजिश देखने को मिली. जहां एक तरफ बागी विधायक उमेश शर्मा काऊ और कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत आमने-सामने आ गए, वहीं दूसरी तरफ ऋषिकेश में भी भाजपा कार्यकर्ताओं की अनुशासनहीनता देखने को मिली. इसमें ऋषिकेश की मेयर सहित दो अन्य नेताओं को भाजपा ने कारण बताओ नोटिस भेजा है. जिसका जवाब ऋषिकेश मेयर कार्यालय में जमा करा दिया गया है.
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इस पर पार्टी का कहना है कि ऋषिकेश मेयर अनीता मंमगाई के जवाब को सुरक्षित रखा गया है. प्रदेश अध्यक्ष के प्रवास से लौटने के बाद इस पर आगे आगामी कार्यवाही की जाएगी. वहीं दूसरी तरफ उमेश शर्मा काऊ और धन सिंह रावत के विवाद पर भी पार्टी द्वारा जांच की गई. उमेश शर्मा काऊ प्रदेश स्तर की जांच से संतुष्ट नहीं हैं. उन्होंने दिल्ली दरबार में भी फरियाद लगाई है.
वहीं, पार्टी का इस मामले पर कहना है कि जल्दी यह मामला सुलट जाएगा, लेकिन जिस तरह से उमेश शर्मा काऊ अपने एक अलग ग्रुप की बात कर रहे हैं. वहीं, पार्टी में हरक सिंह रावत का बदला-बदला अंदाज भी आने वाले दिनों में भाजपा की मुश्किलें बढ़ा सकता है. कुल मिलाकर कहा जाए तो साफ है कि जो कुछ भी इन दिनों भाजपा के अंदर चल रहा है उससे आने वाला समय भाजपा में बड़ी उठापटक होने वाली है.