देहरादूनः उम्र के लिहाज से उत्तराखंड एक युवा प्रदेश है. लेकिन यह भी हकीकत है कि गुजरे 19 सालों में पलायन के दंश से पार पाने में सरकारें नाकाम ही रही हैं. राज्यभर में पलायन के चलते 968 गांव भुतहा (घोस्ट विलेज) बन गए हैं. एक हजार से अधिक गांवों में जनसंख्या 100 से भी कम रह गई है तो इसके पीछे सरकारों की अनदेखी ही है. सियासत दां की जुबां पर पलायन की पीड़ा तो रही, लेकिन सत्तासीन होते ही इसे भूलने की बीमारी से वे अछूते नहीं रहे. नतीजा, पलायन की रफ्तार थमने की बजाए और तेज होती चली गई है. Etv भारत पहाड़ से हो रहे पलायन को लेकर एक मुहिम शुरू करने जा रहा है. जिसका मकसद पहाड़ों में फिर से बंद पड़े दरवाजे खुल सकें, वीरान और भुतहा पड़े गांवों को 'अपने' मिल सकें.
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Etv भारत की इस मुहिम का मकसद है सूने पड़े गांवों को फिर से बसाने का. अपने खेत-खलिहान, गली-कूचे छोड़ चुके लोगों को फिर से उन्हीं रास्तों से जोड़ने का. उत्तराखंड में पलायन से गांव के गांव खाली हो गए हैं. जहां कभी खुशहाली थी, वहां अब वीरानी के सिवाय और कुछ नहीं है. लेकिन आज इन्हीं गांवों से निकले देश और दुनिया में अपनी प्रतिभा का डंका बजा रहे युवा भी खासे चिंतित दिखाई देते हैं. उन्हीं में से बॉलीवुड सिंगर जुबिन नौटियाल एक हैं, जिन्हें उनके गांव की माटी की खुशबू वापस खींच लाई है.
देवभूमि उत्तराखंड की जो तस्वीर हम देखते हैं वो काफी चमकदार है. उत्तराखंड ने देश और दुनिया को वो तमाम सौगातें दी है जिस पर हमें फक्र है. वो चाहे योग के क्षेत्र में विश्व को नया पाठ सिखाना हो या फिर उत्तराखंड से आने वाली वो तमाम सख्तियत हों, जो आज पूरे देश में अपना परचम लहरा रहे हैं. आज देश की राजनीति, सेना, बॉलीवुड सहित कई क्षेत्रों में उत्तराखंड मूल की कई ऐसी सख्सियत है जो पलायन की वजह से कमजोर होती जड़ों को लेकर चिंता में है.
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आपको बता दें कि पौड़ी व अल्मोड़ा जिले में पलायन के चलते खंडहर में तब्दील हो चुके भुतहा गांवों की संख्या क्रमश: 331 व 105 है, अन्य पर्वतीय जिलों में घोस्ट विलेज की संख्या 13 से 88 के बीच है.
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'आ अब लौटें'...ये मुहिम ईटीवी भारत की एक सच्ची कोशिश है. अपने प्रदेश, अपने गांव की मिट्टी को प्यार करने वाले हर शख्स से अपील है कि हमसे जुड़ें और गांवों को फिर से बसाने में हमारी मदद करें. ईटीवी भारत की सबसे बड़ी मुहिम से आप भी जुड़ सकते हैं.
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