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केदारनाथ में चमत्‍कार, बचे रह गए 'नाथ', शिव के आगे प्रकृति ने भी मानी हार

15-16 जून 2013 की आपदा में केदारघाटी नष्ट हो गयी थी, लेकिन मंदिर को नुकसान तक नहीं पहुंचा था.

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Published : May 9, 2019, 5:53 AM IST

केदारनाथ धाम में की गई सजावट.

देहरादून: ये चमत्कार नहीं तो क्या था...जिस आपदा ने पूरी केदार घाटी को तहस-नहस कर दिया था वो बाबा के मंदिर को छू तक नहीं पाई थी. 15-16 जून 2013 की आपदा में केदारघाटी नष्ट हो गयी थी, लेकिन मंदिर को नुकसान तक नहीं पहुंचा था. ऐसा ही तब भी हुआ था जब 13वीं से 17वीं शताब्दी के बीच मंदिर बर्फ में दब गया था. 400 सालों बाद जब बर्फ हटी तो मंदिर अपने पुराने स्वरूप में ही मिला. चलिये केदारनाथ से जुड़ी कहानियों से आपको रूबरू करवाते हैं.

kedarnath
केदारनाथ धाम में की गई सजावट.

पढ़ें- तृतीय केदार तुंगनाथ की डोली धाम के लिये रवाना, 10 मई को खुलेंगे कपाट

केदारनाथ मंदिर का नेपाल के काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ से भी गहरा संबंध है. मंदिर की स्थापना को लेकर एक कहानी प्रचलित है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे. उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वरदान दिया.

मंदिर को लेकर एक और कथा प्रचलित है. कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने के बाद पांडव हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन भगवान शिव पांडवों से नाराज थे. भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले. फिर वो उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे.

भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वहां से अंतर्ध्यान होकर शिव केदार में जा बसे. पांडव फिर भी उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच गए. पांडवों को देख भगवान शिव ने बैल का रूप धारण कर लिया और अन्य पशुओं में जा मिले. ये देख भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिये. अन्य पशु तो उनके नीचे से निकल गए, लेकिन शिव रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए. ये देख भीम ने बलपूर्वक बैल को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन बैल भूमि में अंतर्ध्यान होने लगे. तब भीम ने बैल के पीठ का भाग पकड़ लिया.

भगवान शिव पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देखकर प्रसन्न हो गए. उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया. उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में केदारनाथ में पूजे जाते हैं.

माना जाता है कि जब भगवान शिव बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ. अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है. शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमहेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई. इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है. यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं.

कैसे होती है पूजा
प्रात:काल शिव-पिण्ड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है. उसके बाद आरती की जाती है. इस समय श्रद्धालु मंदिर में प्रवेश कर पूजन कर सकते हैं, लेकिन संध्या के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है. उन्हें विविध प्रकार से सजाया जाता है. भक्त दूर से केवल इसका दर्शन ही कर सकते हैं. केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण ही होते हैं.

चारधामों में से एक केदारनाथ की बड़ी महिमा है. मान्यता है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बदरीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल होती है.

देहरादून: ये चमत्कार नहीं तो क्या था...जिस आपदा ने पूरी केदार घाटी को तहस-नहस कर दिया था वो बाबा के मंदिर को छू तक नहीं पाई थी. 15-16 जून 2013 की आपदा में केदारघाटी नष्ट हो गयी थी, लेकिन मंदिर को नुकसान तक नहीं पहुंचा था. ऐसा ही तब भी हुआ था जब 13वीं से 17वीं शताब्दी के बीच मंदिर बर्फ में दब गया था. 400 सालों बाद जब बर्फ हटी तो मंदिर अपने पुराने स्वरूप में ही मिला. चलिये केदारनाथ से जुड़ी कहानियों से आपको रूबरू करवाते हैं.

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केदारनाथ धाम में की गई सजावट.

पढ़ें- तृतीय केदार तुंगनाथ की डोली धाम के लिये रवाना, 10 मई को खुलेंगे कपाट

केदारनाथ मंदिर का नेपाल के काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ से भी गहरा संबंध है. मंदिर की स्थापना को लेकर एक कहानी प्रचलित है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे. उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वरदान दिया.

मंदिर को लेकर एक और कथा प्रचलित है. कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने के बाद पांडव हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन भगवान शिव पांडवों से नाराज थे. भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले. फिर वो उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे.

भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वहां से अंतर्ध्यान होकर शिव केदार में जा बसे. पांडव फिर भी उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच गए. पांडवों को देख भगवान शिव ने बैल का रूप धारण कर लिया और अन्य पशुओं में जा मिले. ये देख भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिये. अन्य पशु तो उनके नीचे से निकल गए, लेकिन शिव रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए. ये देख भीम ने बलपूर्वक बैल को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन बैल भूमि में अंतर्ध्यान होने लगे. तब भीम ने बैल के पीठ का भाग पकड़ लिया.

भगवान शिव पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देखकर प्रसन्न हो गए. उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया. उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में केदारनाथ में पूजे जाते हैं.

माना जाता है कि जब भगवान शिव बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ. अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है. शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमहेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई. इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है. यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं.

कैसे होती है पूजा
प्रात:काल शिव-पिण्ड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है. उसके बाद आरती की जाती है. इस समय श्रद्धालु मंदिर में प्रवेश कर पूजन कर सकते हैं, लेकिन संध्या के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है. उन्हें विविध प्रकार से सजाया जाता है. भक्त दूर से केवल इसका दर्शन ही कर सकते हैं. केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण ही होते हैं.

चारधामों में से एक केदारनाथ की बड़ी महिमा है. मान्यता है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बदरीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल होती है.

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केदारनाथ में चमत्‍कार, बचे रह गए 'नाथ', शिव के आगे प्रकृति ने भी मानी हार 

देहरादून: ये चमत्कार नहीं तो क्या था...जिस आपदा ने पूरी केदार घाटी को तहस-नहस कर दिया था वो बाबा के मंदिर को छू तक नहीं पाई थी. 15-16 जून 2013 की आपदा में केदारघाटी नष्ट हो गयी थी, लेकिन मंदिर को नुकसान तक नहीं पहुंचा था. ऐसा ही तब भी हुआ था जब 13वीं से 17वीं शताब्दी के बीच मंदिर बर्फ में दब गया था. 400 सालों बाद जब बर्फ हटी तो मंदिर अपने पुराने स्वरूप में ही मिला. चलिये केदारनाथ से जुड़ी कहानियों से आपको रूबरू करवाते हैं.



केदारनाथ मंदिर का नेपाल के काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ से भी गहरा संबंध है. मंदिर की स्थापना को लेकर एक कहानी प्रचलित है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे. उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वरदान दिया. 



मंदिर को लेकर एक और कथा प्रचलित है. कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने के बाद पांडव हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन भगवान शिव पांडवों से नाराज थे. भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले. फिर वो उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे.



भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वहां से अंतर्ध्यान होकर शिव केदार में जा बसे. पांडव फिर भी उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच गए. पांडवों को देख भगवान शिव ने बैल का रूप धारण कर लिया और अन्य पशुओं में जा मिले. ये देख भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिये. अन्य पशु तो उनके नीचे से निकल गए, लेकिन शिव रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए. ये देख भीम ने बलपूर्वक बैल को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन बैल भूमि में अंतर्ध्यान होने लगे. तब भीम ने बैल के पीठ का भाग पकड़ लिया.



भगवान शिव पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देखकर प्रसन्न हो गए. उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया. उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में केदारनाथ में पूजे जाते हैं.



माना जाता है कि जब भगवान शिव बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ. अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है. शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमहेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई. इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है. यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं.



कैसे होती है पूजा

प्रात:काल शिव-पिण्ड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है. उसके बाद आरती की जाती है. इस समय श्रद्धालु मंदिर में प्रवेश कर पूजन कर सकते हैं, लेकिन संध्या के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है. उन्हें विविध प्रकार से सजाया जाता है. भक्त दूर से केवल इसका दर्शन ही कर सकते हैं. केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण ही होते हैं.



चारधामों में से एक केदारनाथ की बड़ी महिमा है. मान्यता है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बदरीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल होती है. 


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