देहरादून: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह ने पिछले दिनों लिए दो कड़े एक्शन से साफ कर दिया है कि धामी सरकार 2.0 में जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने जा रहे हैं. भ्रष्टाचार के मामले पर वो कोई समझौता नहीं करेंगे. सहकारिता विभाग में चतुर्थ श्रेणी में हुई भर्ती में हुए भ्रष्टाचार की चल रही ताबड़तोड़ जांच हो या फिर वन विभाग के दो आईएफएस अफसरों को जबरन रिटायरमेंट देने की खबरें, संदेश साफ है कि भ्रष्टाचार चाहे जो करे या फिर जिसके मंत्रालय, विभाग में हो उसका कद नहीं देखा जाएगा.
सहकारिता भर्ती घोटाले की कड़ी जांच: बीजेपी की पिछली सरकार जब अपने कार्यकाल के आखिरी दौर में थी तो सहकारिता विभाग में ताबड़तोड़ भर्तियां हुई थी. उस समय इन भर्तियों में भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. लेकिन चुनावी शोरगुल में आवाज दब गई थी. अब जब बीजेपी ने सत्ता में वापसी की है और पुष्कर सिंह धामी फिर से मुख्यमंत्री बन गए हैं तो उन्होंने इस घोटाले की ताबड़तोड़ जांच शुरू करवा दी है.
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धन सिंह रावत के पास है सहकारिता विभाग: सहकारिता विभाग डॉक्टर धन सिंह रावत के पास है. बीजेपी की पिछली सरकारी में भी धन सिंह रावत ही सहकारिता मंत्री थे. सहकारिता विभाग में ये भर्तियां धन सिंह रावत के उसी कार्यकाल की हैं. सहकारिता विभाग हमेशा से बदनाम रहा है. इस विभाग पर सबसे ज्यादा मनमानी के आरोप लगते रहे हैं. सरकार जिस भी पार्टी की रही हो, सहकारिता विभाग पर भ्रष्टाचार के आरोप हमेशा लगे हैं.
क्या धन सिंह पर लगाम लगाने की है तैयारी? : उत्तराखंड की राजनीति में दबी जुबान ये चर्चाएं भी तेज हैं कि धन सिंह रावत पर लगाम लगाने के लिए सहकारिता विभाग के घोटालों की जांच हो रही है. दरअसल धन सिंह रावत का नाम पिछले एक साल में तीन बार मुख्यमंत्री पद के लिए उछाला जा चुका है. इसलिए राजनीति के कुछ जानकार ये मानकर चल रहे हैं कि सहकारिता विभाग के भ्रष्टाचार की जांच कराकर उनको दबाव में रखा जाएगा.
क्या है सहकारिता विभाग का घोटाला? : साल 2020 में जिला सहकारी बैंक के चतुर्थ श्रेणी पद के लिए भर्ती की गई थी. पूरे प्रदेश में करीब 403 पदों पर भर्ती की जानी थी, जिसमें देहरादून जिले में 60 पदों पर भर्ती होनी थी. इसके लिए रजिस्ट्रार कोऑपरेटिव सोसायटी की तरफ से विज्ञप्ति के निर्देश दिए गए. इसके बाद क्रीड़ा विभाग की तरफ से फिजिकल करवाया गया और जिला सहकारी बैंक की कमेटी ने इंटरव्यू लिया.
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इस इंटरव्यू के बाद रजिस्ट्रार कोऑपरेटिव सोसायटी के अध्यक्ष आलोक पांडे की अध्यक्षता वाली कमेटी ने भी इन नियुक्तियों का अनुमोदन किया. इस बीच भर्तियों को लेकर शिकायतें आने लगी. शिकायतों को संज्ञान में लेते हुए तीरथ सिंह रावत के सीएम रहते हुए इस भर्ती पर रोक लगाई गई थी.
धामी के शपथ लेते ही दी गई नियुक्तिः 23 मार्च 2022 को जब पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे. उसी दिन कोऑपरेटिव सोसायटी के रजिस्ट्रार की तरफ से इसकी अनुमति दी गई थी, जिसके बाद देहरादून जिले में 57 कर्मचारियों को नियुक्ति दी गई. हालांकि 29 मार्च को सचिव सहकारिता की तरफ से नियुक्ति पर रोक लगाई गई, जिसके बाद कोई नियुक्ति नहीं दी गई.
अभी क्या अपडेट है ? : फिलहाल जांच अधिकारी देहरादून जिले में पिछले 7 दिनों से जांच कर रहे हैं. 7 अप्रैल को जांच टीम उधम सिंह नगर में जिला सहकारी बैंक की जांच के लिए पहुंची थी. बड़ी बात यह रही कि जांच प्रक्रिया चलने के दौरान ही 4 जिलों में डिप्टी रजिस्ट्रार को स्थानांतरित कर दिया गया. यही नहीं कुछ बैंकों के जीएम को मुख्यालय में भी अटैच कर दिया गया. खास बात यह है कि देहरादून जिला सहकारी बैंक की वंदना श्रीवास्तव का तो सेवा विस्तार ही समाप्त कर उन्हें हटा दिया गया
सहायक रजिस्ट्रार हरिद्वार राजेश चौहान को देहरादून भेजा गया है. इसके अलावा सुरेंद्र पाल को पिथौरागढ़ से हरिद्वार की जिम्मेदारी के लिए भेजा गया है. अल्मोड़ा में तैनात हरिश्चंद्र को चंपावत की जिम्मेदारी दी गई है. वहीं चंपावत के मनोहर सिंह पिथौरागढ़ की जिम्मेदारी संभालेंगे. इसके अलावा पिथौरागढ़, अल्मोड़ा और उधम सिंह नगर इन 3 जिलों के जीएम को मुख्यालय में अटैच कर दिया गया है.
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वन विभाग के भ्रष्ट अफसरों पर एक्शन: धामी सरकार 2.0 में मुख्यमंत्री को जो दूसरा सबसे बड़ा एक्शन लेना है वो दो आईएफएस अफसरों को जबरन रिटायरमेंट पर भेजने का है. वन मंत्री की ओर से सिफारिश मुख्यमंत्री के पास पहुंच चुकी है. वन महकमा भी सबसे भ्रष्ट विभागों में माना जाता है. अवैध कटान और वन विभाग की जमीनों पर अवैध निर्माण की अनगिनत शिकायतें हैं. ऐसे में दो आईएफएस अफसरों को जबरन रिटायर कर ये मैसेज देने का प्रयास है कि भ्रष्टाचार की सफाई ऊपर से ही होगी.
2 आईएफएस अधिकारियों की फाइल तैयार की जा चुकी है और इन दोनों अधिकारियों के खिलाफ विभागीय मंत्री ने अपनी कलम चलाते हुए फाइनल अनुमोदन के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय में फाइल भेज दी है. जानकारी के मुताबिक, इन दोनों आईएफएस अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने का फैसला लिया गया है. इन दोनों ही अधिकारियों पर कई गंभीर आरोप लगते रहे हैं. फिलहाल, फाइल मुख्यमंत्री कार्यालय में है और अब मुख्यमंत्री की तरफ से यदि ऐसे अधिकारियों पर सख्ती दिखाई जाती है तो निश्चित तौर से वन विभाग में अधिकारियों को एक बड़ा संदेश दिया जा सकेगा.
निशाने पर हरक सिंह रावत: कहते हैं जब मुसीबत आती है तो ऊंट पर बैठे व्यक्ति को भी कुत्ता काट लेता है. यही हाल इन दिनों हरक सिंह रावत का है. जिस वन विभाग के दो आईएफएस अफसरों को जबरन रिटायर करने की बात चल रही है वो विभाग बीजेपी की पिछली सरकार में हरक सिंह रावत के पास था. हरक इन दिनों पैदल हैं. बीजेपी में अच्छे भले कैबिनेट मंत्री थे. प्रधानमंत्री मोदी भी हालचाल पूछते थे. उन्हें ऐसा लगा कि बीजेपी चुनाव हारने वाली है और अगली सरकार कांग्रेस की बनेगी. हमेशा से अवसरवादी रहे हरक सिंह रावत ने चुनाव से पहले ही नखरे दिखाने शुरू कर दिये थे. जब पानी नाक तक पहुंच गया था तो बीजेपी ने उन्हें किक आउट कर दिया था. ऐसी उम्मीद हरक सिंह रावत को भी नहीं थी. कांग्रेस ने भी हरक को ज्वाइन कराने से पहले पांच दिन खूब तड़पाया.
हरक उम्मीद लगाए बैठे थे कि कांग्रेस की सरकार आएगी तो फिर सरकार में उनकी दबंगई चलेगी. लेकिन कांग्रेस चुनाव बुरी तरह हारी. हरक की बहू अनुकृति भी लैंसडाउन से पराजित हो गई. अब वन विभाग के भ्रष्टाचार की जांच ने हरक सिंह रावत की रातों की नींद और दिन का चैन छीन लिया है. अगर वन विभाग के घोटालों की ठीक से जांच हुई तो इसकी आंच हरक सिंह रावत तक पहुंचनी तय है.
चर्चा में क्यों हैं त्रिवेंद्र: वन विभाग में जो घोटाले हुए हैं उस समय त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री थे. जाहिर है अगर सख्त जांच हुई तो उन पर भी सवाल उठेंगे कि जब इतने बड़े घोटाले हो रहे थे तो उन्होंने उधर से नजरें क्यों फेर रखी थी. ऐसे में पहले चुनाव नहीं लड़ना और फिर वन विभाग के घोटाले की जांच त्रिवेंद्र रावत के लिए कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा है.
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भ्रष्टाचार मुक्त एप-1064: शनिवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भ्रष्टाचार मुक्त एप-1064 जारी किया. इससे साफ है कि धामी सरकार 2.0 में वाकई में जीरो टॉलरेंस वाली सरकार होने जा रही है. दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी नारा है- न खाऊंगा, न खाने दूंगा. पिछले दिनों अपने दिल्ली दौरे के दौरान सीएम धामी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ लंबी बातचीत हुई थी. प्रधानमंत्री के पास भी उत्तराखंड में हुए इन भ्रष्टाचारों की बातें पहुंची होंगी. ऐसे में पीएम मोदी ने सीएम धामी को सख्त निर्देश दिया होगा कि भ्रष्टाचार किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करें. चाहे वो किसी मंत्री से जुड़ा हो, किसी पूर्व मुख्यमंत्री के समय का हो. शायद ये उसी का असर है कि दिल्ली से लौटते ही मुख्यमंत्री धामी ने दिल्ली से लौटते ही भ्रष्टाचार के खिलाफ ताबड़तोड़ एक्शन लेना शुरू कर दिया है. अगर भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों पर वाकई कड़ा एक्शन होता है तो ये उत्तराखंड के भविष्य के लिए सुखद संकेत होगा.