देहरादून: साल 2017 में सत्ता पर काबिज हुई बीजेपी सरकार को तीन साल होने वाले हैं. ऐसे में परीक्षा की घड़ी आने में भाजपा सरकार के पास महज दो साल का ही वक्त बचा है. 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव इस बार भाजपा के लिए बेहद अहम रहने वाला है. सियासी पंडितों का मानना है कि मौजूदा समय देश में जिस तरह का माहौल है उस हिसाब से आने वाले समय में उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में मोदी फैक्टर का कुछ खास असर देखने को नहीं मिलेगा. आगामी विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय विकास ही चुनाव की दशा और दिशा तय करने में अहम साबित होगा. आखिर क्या हो सकती है 2022 विधानसभा चुनाव की वास्तविक तस्वीर? बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण मानें जाने वाला ये चुनाव त्रिवेंद्र सरकार के लिए क्यों है बेहद चुनौतीपूर्ण? देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.
विधानसभा चुनाव में मोदी फैक्टर का असर हुआ है कम
साल 2018-19 में देश के जिन-जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए वहां बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी. पिछले सालों में देश के 5 राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में विधानसभा चुनाव में मोदी फैक्टर फीका ही दिखा. जबकि, इससे पहले हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी प्रचंड बहुमत से सत्ता पर सवार हुई थी. जिसके तुरंत बाद हुए विधानसभा चुनावों में जैसे मोदी मैजिक गायब ही हो गया. जिससे साफ जाहिर होता है कि आने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी को खुद अपने स्तर पर ही जमीन पर मेहनत करनी होगी. बात अगर उत्तराखंड की करें तो यहां भी त्रिवेंद्र सरकार को अपने विकास पर फोकस करने की जरूरत है, ताकि सरकार के जनकल्याण के फैसलों पर जनता से वोट अपने पक्ष में देने की अपील की जा सके.
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जनता से जुड़े पहलुओं पर फोकस करने की है जरूरत
उत्तराखंड में साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने भारी बहुमत से जीत दर्ज की थी. इस चुनाव में मोदी लहर जीत का एक बड़ा फैक्टर साबित हुई थी. साल बीतने के बाद राज्यों से सामने आ रही तस्वीर से साफ हो गया है कि धीरे-धीरे मोदी मैजिक का असर कम हुआ है. साथ ही आम जनता रुझान भी अब विकास की ओर बढ़ा है. हालांकि, भाजपा सरकार के कार्यकाल को पूरा होने अभी दो साल का समय बचा है, ऐसे में राज्य सरकार को फिर से उन सभी पहलुओं पर फोकस करने की जरूरत है जो सीधे जनता से सरोकार रखते हैं.
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ग्रामीणों के विकास का सपना साकार करने की दरकार
उत्तराखंड अपनी विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते न सिर्फ सीमित संसाधनों में सिमटा हुआ है, बल्कि राज्य गठन के बाद से ही राज्य को विकास की दरकार रही है. उत्तराखंड राज्य को बने 19 साल से अधिक का समय हो गया है. लेकिन, अभी तक प्रदेश के कई जिलों में सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और जल स्त्रोत के साधन विकसित नहीं हो पाए हैं. जिसके कारण ग्रामीण इलाके में रह रहे लोगों के सपने अब भी अधूरे हैं. ऐसे में अब सरकार के पास जो समय बचा है जरूरी है कि वो अब इस समय को जनता के सपनों को साकार करने में लगाये.
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डिलीवरी सिस्टम को व्यवस्थित करने की जरूरत
राज्य सरकार को सरकारी डिलीवरी सिस्टम तंत्र को मजबूत करने की जरूरत है. अमूमन देखा जाता है कि पहाड़ों से लोग छोटी-छोटी समस्याओं को लेकर देहरादून की ओर रुख करते हैं. अगर राज्य सरकार सरकार तंत्र को और मजबूत करती है तो इससे जनता को सीधा लाभ होगा. इससे पहाड़ के ग्रामीण क्षेत्रों से जनता को छोटे- छोटे कामों के लिए देहरादून का रुख नहीं करना पड़ेगा. तहसील और जिला स्तर पर ही जनता की समस्याएं दूर हो जाएंगी. साथ ही राजधानी तक पहुंचने वाली परेशानियां पहले स्तर पर ही दूर की जा सकेगी.
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बारी-बारी से सत्ता पर काबिज होने का मिथक
उत्तराखंड में राज्य गठन के बाद से ही बारी-बारी से सत्ता पर काबिज होने का मिथक चला आ रहा है. राज्य गठन के बाद साल 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई, लिहाजा साल 2007 में सत्ता परिवर्तन हुआ भाजपा को सिंहासन मिला. जिसके बाद साल 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में फिर से कांग्रेस के हाथों सत्ता का चाबी आई. साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद से अब तक भाजपा सत्ता पर काबिज है. अगर उत्तराखंड राज्य में सत्ता के इस समीकरण को देखा जाए तो 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ता पर काबिज होने की बारी कांग्रेस की है. ऐसे में आने वाले विधानसभा चुनाव में इस मिथक को तोड़ना बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती होगी.
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में टिकट आवंटन में क्षेत्रीय, जातीय समीकरणों के साथ ही अनेकों फैक्टर काम करते हैं. लिहाजा, आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को उत्तराखंड में दो बार सत्ता पर काबिज होकर न सिर्फ सियासी मिथक तोड़कर इतिहास रचने मौका है, बल्कि इससे बीजेपी के सपने को भी और बल मिलेगा.