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2022 विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए होगा अहम, 'विकास' तय करेगा चुनाव की दशा और दिशा

आने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी को खुद अपने स्तर पर ही जमीन पर मेहनत करनी होगी. बात अगर उत्तराखंड की करें तो यहां भी त्रिवेंद्र सरकार को अपने विकास पर फोकस करने की जरूरत है, ताकि सरकार के जनकल्याण के फैसलों पर जनता से वोट अपने पक्ष में देने की अपील की जा सके.

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2022 विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए होगा अहम
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Published : Jan 12, 2020, 5:39 PM IST

Updated : Jan 12, 2020, 7:18 PM IST

देहरादून: साल 2017 में सत्ता पर काबिज हुई बीजेपी सरकार को तीन साल होने वाले हैं. ऐसे में परीक्षा की घड़ी आने में भाजपा सरकार के पास महज दो साल का ही वक्त बचा है. 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव इस बार भाजपा के लिए बेहद अहम रहने वाला है. सियासी पंडितों का मानना है कि मौजूदा समय देश में जिस तरह का माहौल है उस हिसाब से आने वाले समय में उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में मोदी फैक्टर का कुछ खास असर देखने को नहीं मिलेगा. आगामी विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय विकास ही चुनाव की दशा और दिशा तय करने में अहम साबित होगा. आखिर क्या हो सकती है 2022 विधानसभा चुनाव की वास्तविक तस्वीर? बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण मानें जाने वाला ये चुनाव त्रिवेंद्र सरकार के लिए क्यों है बेहद चुनौतीपूर्ण? देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

विधानसभा चुनाव में मोदी फैक्टर का असर हुआ है कम
साल 2018-19 में देश के जिन-जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए वहां बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी. पिछले सालों में देश के 5 राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में विधानसभा चुनाव में मोदी फैक्टर फीका ही दिखा. जबकि, इससे पहले हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी प्रचंड बहुमत से सत्ता पर सवार हुई थी. जिसके तुरंत बाद हुए विधानसभा चुनावों में जैसे मोदी मैजिक गायब ही हो गया. जिससे साफ जाहिर होता है कि आने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी को खुद अपने स्तर पर ही जमीन पर मेहनत करनी होगी. बात अगर उत्तराखंड की करें तो यहां भी त्रिवेंद्र सरकार को अपने विकास पर फोकस करने की जरूरत है, ताकि सरकार के जनकल्याण के फैसलों पर जनता से वोट अपने पक्ष में देने की अपील की जा सके.

2022 विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए होगा अहम.

पढ़ें-उत्तराखंड: देश का एकमात्र ऐसा मंदिर जहां मिलती है राहु दोष से मुक्ति, बस करने होते हैं ये उपाय

जनता से जुड़े पहलुओं पर फोकस करने की है जरूरत
उत्तराखंड में साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने भारी बहुमत से जीत दर्ज की थी. इस चुनाव में मोदी लहर जीत का एक बड़ा फैक्टर साबित हुई थी. साल बीतने के बाद राज्यों से सामने आ रही तस्वीर से साफ हो गया है कि धीरे-धीरे मोदी मैजिक का असर कम हुआ है. साथ ही आम जनता रुझान भी अब विकास की ओर बढ़ा है. हालांकि, भाजपा सरकार के कार्यकाल को पूरा होने अभी दो साल का समय बचा है, ऐसे में राज्य सरकार को फिर से उन सभी पहलुओं पर फोकस करने की जरूरत है जो सीधे जनता से सरोकार रखते हैं.

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ग्रामीणों के विकास का सपना साकार करने की दरकार
उत्तराखंड अपनी विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते न सिर्फ सीमित संसाधनों में सिमटा हुआ है, बल्कि राज्य गठन के बाद से ही राज्य को विकास की दरकार रही है. उत्तराखंड राज्य को बने 19 साल से अधिक का समय हो गया है. लेकिन, अभी तक प्रदेश के कई जिलों में सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और जल स्त्रोत के साधन विकसित नहीं हो पाए हैं. जिसके कारण ग्रामीण इलाके में रह रहे लोगों के सपने अब भी अधूरे हैं. ऐसे में अब सरकार के पास जो समय बचा है जरूरी है कि वो अब इस समय को जनता के सपनों को साकार करने में लगाये.

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डिलीवरी सिस्टम को व्यवस्थित करने की जरूरत
राज्य सरकार को सरकारी डिलीवरी सिस्टम तंत्र को मजबूत करने की जरूरत है. अमूमन देखा जाता है कि पहाड़ों से लोग छोटी-छोटी समस्याओं को लेकर देहरादून की ओर रुख करते हैं. अगर राज्य सरकार सरकार तंत्र को और मजबूत करती है तो इससे जनता को सीधा लाभ होगा. इससे पहाड़ के ग्रामीण क्षेत्रों से जनता को छोटे- छोटे कामों के लिए देहरादून का रुख नहीं करना पड़ेगा. तहसील और जिला स्तर पर ही जनता की समस्याएं दूर हो जाएंगी. साथ ही राजधानी तक पहुंचने वाली परेशानियां पहले स्तर पर ही दूर की जा सकेगी.

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बारी-बारी से सत्ता पर काबिज होने का मिथक
उत्तराखंड में राज्य गठन के बाद से ही बारी-बारी से सत्ता पर काबिज होने का मिथक चला आ रहा है. राज्य गठन के बाद साल 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई, लिहाजा साल 2007 में सत्ता परिवर्तन हुआ भाजपा को सिंहासन मिला. जिसके बाद साल 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में फिर से कांग्रेस के हाथों सत्ता का चाबी आई. साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद से अब तक भाजपा सत्ता पर काबिज है. अगर उत्तराखंड राज्य में सत्ता के इस समीकरण को देखा जाए तो 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ता पर काबिज होने की बारी कांग्रेस की है. ऐसे में आने वाले विधानसभा चुनाव में इस मिथक को तोड़ना बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती होगी.

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में टिकट आवंटन में क्षेत्रीय, जातीय समीकरणों के साथ ही अनेकों फैक्टर काम करते हैं. लिहाजा, आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को उत्तराखंड में दो बार सत्ता पर काबिज होकर न सिर्फ सियासी मिथक तोड़कर इतिहास रचने मौका है, बल्कि इससे बीजेपी के सपने को भी और बल मिलेगा.

देहरादून: साल 2017 में सत्ता पर काबिज हुई बीजेपी सरकार को तीन साल होने वाले हैं. ऐसे में परीक्षा की घड़ी आने में भाजपा सरकार के पास महज दो साल का ही वक्त बचा है. 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव इस बार भाजपा के लिए बेहद अहम रहने वाला है. सियासी पंडितों का मानना है कि मौजूदा समय देश में जिस तरह का माहौल है उस हिसाब से आने वाले समय में उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में मोदी फैक्टर का कुछ खास असर देखने को नहीं मिलेगा. आगामी विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय विकास ही चुनाव की दशा और दिशा तय करने में अहम साबित होगा. आखिर क्या हो सकती है 2022 विधानसभा चुनाव की वास्तविक तस्वीर? बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण मानें जाने वाला ये चुनाव त्रिवेंद्र सरकार के लिए क्यों है बेहद चुनौतीपूर्ण? देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

विधानसभा चुनाव में मोदी फैक्टर का असर हुआ है कम
साल 2018-19 में देश के जिन-जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए वहां बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी. पिछले सालों में देश के 5 राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में विधानसभा चुनाव में मोदी फैक्टर फीका ही दिखा. जबकि, इससे पहले हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी प्रचंड बहुमत से सत्ता पर सवार हुई थी. जिसके तुरंत बाद हुए विधानसभा चुनावों में जैसे मोदी मैजिक गायब ही हो गया. जिससे साफ जाहिर होता है कि आने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी को खुद अपने स्तर पर ही जमीन पर मेहनत करनी होगी. बात अगर उत्तराखंड की करें तो यहां भी त्रिवेंद्र सरकार को अपने विकास पर फोकस करने की जरूरत है, ताकि सरकार के जनकल्याण के फैसलों पर जनता से वोट अपने पक्ष में देने की अपील की जा सके.

2022 विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए होगा अहम.

पढ़ें-उत्तराखंड: देश का एकमात्र ऐसा मंदिर जहां मिलती है राहु दोष से मुक्ति, बस करने होते हैं ये उपाय

जनता से जुड़े पहलुओं पर फोकस करने की है जरूरत
उत्तराखंड में साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने भारी बहुमत से जीत दर्ज की थी. इस चुनाव में मोदी लहर जीत का एक बड़ा फैक्टर साबित हुई थी. साल बीतने के बाद राज्यों से सामने आ रही तस्वीर से साफ हो गया है कि धीरे-धीरे मोदी मैजिक का असर कम हुआ है. साथ ही आम जनता रुझान भी अब विकास की ओर बढ़ा है. हालांकि, भाजपा सरकार के कार्यकाल को पूरा होने अभी दो साल का समय बचा है, ऐसे में राज्य सरकार को फिर से उन सभी पहलुओं पर फोकस करने की जरूरत है जो सीधे जनता से सरोकार रखते हैं.

पढ़ें-जिला अस्पताल में नहीं है कोई बाल रोग विशेषज्ञ, भटक रहे परिजन

ग्रामीणों के विकास का सपना साकार करने की दरकार
उत्तराखंड अपनी विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते न सिर्फ सीमित संसाधनों में सिमटा हुआ है, बल्कि राज्य गठन के बाद से ही राज्य को विकास की दरकार रही है. उत्तराखंड राज्य को बने 19 साल से अधिक का समय हो गया है. लेकिन, अभी तक प्रदेश के कई जिलों में सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और जल स्त्रोत के साधन विकसित नहीं हो पाए हैं. जिसके कारण ग्रामीण इलाके में रह रहे लोगों के सपने अब भी अधूरे हैं. ऐसे में अब सरकार के पास जो समय बचा है जरूरी है कि वो अब इस समय को जनता के सपनों को साकार करने में लगाये.

पढ़ें-रुद्रप्रयाग: गौरीकुंड में मिला वृद्ध का शव, शिनाख्त में जुटी पुलिस

डिलीवरी सिस्टम को व्यवस्थित करने की जरूरत
राज्य सरकार को सरकारी डिलीवरी सिस्टम तंत्र को मजबूत करने की जरूरत है. अमूमन देखा जाता है कि पहाड़ों से लोग छोटी-छोटी समस्याओं को लेकर देहरादून की ओर रुख करते हैं. अगर राज्य सरकार सरकार तंत्र को और मजबूत करती है तो इससे जनता को सीधा लाभ होगा. इससे पहाड़ के ग्रामीण क्षेत्रों से जनता को छोटे- छोटे कामों के लिए देहरादून का रुख नहीं करना पड़ेगा. तहसील और जिला स्तर पर ही जनता की समस्याएं दूर हो जाएंगी. साथ ही राजधानी तक पहुंचने वाली परेशानियां पहले स्तर पर ही दूर की जा सकेगी.

पढ़ें-कन्नौज बस हादसा: मृतक के परिवार को 2 लाख और घायलों को 50 हजार का एलान

बारी-बारी से सत्ता पर काबिज होने का मिथक
उत्तराखंड में राज्य गठन के बाद से ही बारी-बारी से सत्ता पर काबिज होने का मिथक चला आ रहा है. राज्य गठन के बाद साल 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई, लिहाजा साल 2007 में सत्ता परिवर्तन हुआ भाजपा को सिंहासन मिला. जिसके बाद साल 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में फिर से कांग्रेस के हाथों सत्ता का चाबी आई. साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद से अब तक भाजपा सत्ता पर काबिज है. अगर उत्तराखंड राज्य में सत्ता के इस समीकरण को देखा जाए तो 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ता पर काबिज होने की बारी कांग्रेस की है. ऐसे में आने वाले विधानसभा चुनाव में इस मिथक को तोड़ना बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती होगी.

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में टिकट आवंटन में क्षेत्रीय, जातीय समीकरणों के साथ ही अनेकों फैक्टर काम करते हैं. लिहाजा, आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को उत्तराखंड में दो बार सत्ता पर काबिज होकर न सिर्फ सियासी मिथक तोड़कर इतिहास रचने मौका है, बल्कि इससे बीजेपी के सपने को भी और बल मिलेगा.

Intro:Ready To Air....

साल 2017 में सत्ता पर काबिज हुई बीजेपी सरकार को तीन साल होने वाले है। ऐसे में परीक्षा की घड़ी आने में भाजपा सरकार के पास महज दो साल का ही वक्त बचा है। क्योकि साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव इस बार भाजपा के लिए बेहद अहम रहने वाला है। सियासी पंडितो का मानना है कि मौजूदा समय देश में जिस तरह का माहौल चल रहा है। उसे देखकर तो यही लगता है कि आने वाले समय में उत्तराखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव में मोदी फैक्टर का कुछ खास असर नहीं देखने को मिलेगा। क्योंकि आगामी होने वाले विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय विकास इस चुनाव की दशा और दिशा तय करने में एक अहम किरदार निभायेगा। आखिर क्या हो सकती हैं इस विधानसभा चुनाव की वास्तविक तस्वीर। बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले 2022, राज्य सरकार के लिए क्यों है बेहद चुनौतीपूर्ण? देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट........


Body:विधानसभा चुनाव में मोदी फैक्टर का असर हुआ है कम.........  

साल 2018-19 में देश में जिस - जिस राज्यों में विधानसभा के चुनाव संपन्न हुए हैं उसमें से कई राज्यों में भाजपा को मुंह की खानी पड़ी है। जी हाँ पिछले साल देश के 5 राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में विधानसभा चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। जबकि लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत के साथ केंद्र में काबिज हुई भाजपा, लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र और झारखण्ड के विधानसभा चुनाव को हार गयी। जिससे साफ जाहिर हो रहा है कि आने वाले समय में मोदी फैक्टर का असर अब राज्यों के विधानसभा चुनाव में नहीं देखने को मिलेगा। ऐसे में अब राज्य सरकारों को अपने विकास पर फोकस करने की जरूरत है, ताकि सरकार जनकल्याण के फैसलों पर जनता से वोट अपने पक्ष में देने की अपील कर सके। 


जनता से जुड़े पहलुओ पर फोकस करने की है जरूरत.........   

तो वही उत्तराखंड राज्य की बात करें तो साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा भारी बहुमत से जीत दर्ज कर सत्ता पर काबिज हुई। क्योकि इस चुनाव में मोदी लहर का एक बड़ा असर देखने को मिला, लेकिन जैसे-जैसे साल दर साल बीतते गए वैसे-वैसे ही कई राज्यो में मोदी फैक्टर का असर भी तो कम होता हुआ दिखाई दिया। साथ ही आम जनता का विकास के प्रति भी रुझान बढ़ा। हालांकि भाजपा सरकार का कार्यकाल पूरा होने में महज दो साल का ही वक्त बचा हैं। ऐसे में राज्य सरकार को फिर से उन सभी पहलुओ पर फोकस करने की जरूरत है जो सीधे जनता से सरोकार रखते हो, ताकि साल 2022 की चुनौती को भाजपा पार कर सके। और चुनावी हवा का रुख अपने पक्ष में मोड़ सके।


ग्रामीणों के विकास के सपने को साकार की दरकार.........  

उत्तराखंड राज्य अपनी विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते न सिर्फ सीमित संसाधनों में सिमटा हुआ है, बल्कि राज्य गठन के बाद से ही राज्य को विकास की दरकार रही है। क्योंकि उत्तराखंड राज्य को बने 19 साल से अधिक का समय हो गया है। लेकिन अभी तक प्रदेश के कई जिलों में सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और जल स्त्रोत के वो साधन विकसित नहीं हो पाए हैं। जिसकी हमेशा से ही ग्रामीणों को दरकार रही है। ऐसे में राज्य सरकार के पास साल 2022 के लिहाज से एक बड़ी चुनौती है कि किस तरह से इन 2 सालों में राज्य सरकार ग्रामीणों के विकास के सपने को साकार करें।


डिलीवरी सिस्टम को व्यवस्थित करने की जरूरत......... 

राज्य सरकार को सरकारी डिलीवरी सिस्टम तंत्र को मजबूत करने की जरूरत है। क्योंकि अमूमन देखा जाता है कि पहाड़ों से लोग छोटी-छोटी समस्याओं को लेकर देहरादून की ओर रुख करते हैं, लिहाजा अगर राज्य सरकार सरकारी तंत्र को और मजबूत करें, ताकि पहाड़ के ग्रामीण क्षेत्रों की जनता को छोटे- छोटे कामों के लिए देहरादून का रुख ना करना पड़े और तहसील और जिला स्तर पर ही जनता की समस्याएं दूर हो जाये। जिससे आम जनता को राजधानी आने में होने वाली साथ ही दूसरी परेशानियां भी कम हो सकेंगी।   


बरी-बरी से सत्ता पर काबिज होने का मिथक.........   

उत्तराखंड राज्य में एक मिथक, राज्य गठन के समय से ही चली आ रही है, और वो मिथक हैं सत्ता पर काबिज होने की। जी हां साल 2000 में उत्तराखंड राज्य गठन के बाद साल 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, सत्ता पर काबिज हुई थी। लिहाजा साल 2007 में सत्ता परिवर्तन हुआ और सत्ता पर भाजपा काबिज हो गयी। इसके बाद फिर से सत्ता पर काबिज होने का चक्र घुमा और साल 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई। और इसके बाद साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा सत्ता पर काबिज है। लिहाजा अगर उत्तराखंड राज्य की सत्ता पर काबिज होने को सिलसिले वार देखें तो, साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर कांग्रेस, सत्ता पर काबिज हो सकती है। लिहाजा वर्तमान समय में सत्ता पर काबिज भाजपा के पास एक बड़ी चुनौती होगी कि क्या भाजपा साल 2022 में पिछले 20 सालों से चले आ रहे मिथक को तोड़ पाएगी या नहीं? ये देखने वाली बात होगी। 




Conclusion:उत्तराखंड राज्य के विधानसभा चुनाव में टिकट आबंटन में क्षेत्रीय, जातीय समीकरणों के साथ ही अनेको फैक्टर काम करते हैं, लिहाजा आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को उत्तराखंड में दो बार सत्ता पर काबिज होकर ना सिर्फ सियासी मिथक तोड़, इतिहास रचने मौका मिलेगा, बल्कि जनता की सेवा करने का भी ख्वाब पूरा हो सकेगा। हालांकि साल 2022 के विधानसभा के लिहाज से बीजेपी सरकार आखिर कौन सा फार्मूला अख्तियार करेगी ये देखने वाली बात होगी? देहरादून से ईटीवी भारत के लिए रोहित सोनी की रिपोर्ट.......


Last Updated : Jan 12, 2020, 7:18 PM IST
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