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Uttarakhand CAG Report: मार्च में खर्चे 2700 करोड़, 11 महीने सन्नाटे में रहे विभाग

उत्तराखंड विधानसभा में कैग की जो रिपोर्ट पेश की गई उसने उत्तराखंड के विकास में पिछड़े होने के सबसे बड़े कारण को सामने ला दिया. लगभग सारे विभाग बजट खर्च करने के लिए वित्तीय वर्ष के आखिरी महीने यानी मार्च को चुन रहे हैं. दो विभाग तो ऐसे रहे जिन्होंने अपना पूरी बजट ही आखिर में खर्च किया.

CAG Report
कैग की रिपोर्ट
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Published : Jun 18, 2022, 1:32 PM IST

Updated : Jun 18, 2022, 2:57 PM IST

देहरादून: सैकड़ों करोड़ रुपये का आम बजट वित्तीय वर्ष की शुरुआत से लागू होता है. लेकिन उत्तराखंड में उलटी गंगा बहाई जाती है. यहां की सरकार और सरकारी विभाग वित्तीय वर्ष के आखिरी महीने यानी मार्च में बजट खर्च करने में बहादुरी समझती है. विधानसभा के बजट सत्र के दौरान सदन में पेश हुई कैग की रिपोर्ट ने ऐसा ही खुलासा किया है. CAG की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड के 20 विभागों में कुल बजट का 69 फीसदी से ज्यादा खर्च केवल मार्च के महीने में किया गया है.

उत्तराखंड बजट मैन्युअल के अनुच्छेद 183 के मुताबिक वित्तीय वर्ष की समाप्ति में सरकार और सरकारी विभागों को खर्च में तेजी से बचना चाहिए. लेकिन उत्तराखंड की सरकार ने 2020-21 में 20 मुख्य विभागों में 50 प्रतिशत से अधिक बजट केवल वित्तीय वर्ष के अंतिम महीने यानी मार्च में खर्च किया. इससे पता चलता है कि उत्तराखंड की सरकार और सरकारी विभाग विकास कार्यों में बजट खर्च करने में कितने अनियोजिता हैं.

ये विभाग रहे समय पर बजट खर्चने में फिसड्डी: शहरी विकास विभाग ने अपने बजट का 82.77 प्रतिशत, अनुसूचित जाति-जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने 67.92 प्रतिशत हिस्सा वित्तीय वर्ष के अंतिम महीने यानी मार्च में खर्च किया. इनके साथ ही सूचना विभाग ने 57.19 प्रतिशत, प्राकृतिक आपदा से राहत में 68.81 प्रतिशत और मत्स्य पालन विभाग ने 50.84 प्रतिशत बजट का हिस्सा मार्च में ही खर्च किया.

अन्य विभाग भी इसमें पीछे नहीं रहे. खाद्य भंडारण और गोदाम का 57.35 प्रतिशत, सहकारी विभाग का 63.43 प्रतिशत, पुलिस पर पूंजीगत व्यय का 50.24 प्रतिशत, लोक निर्माण विभाग में पूंजीगत व्यय का 72.01 प्रतिशत, चिकित्सा और लोक स्वास्थ्य में 72.42 प्रतिशत, आवास का 70.52 प्रतिशत, अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक कल्याण का पूंजीगत व्यय का 67.95 प्रतिशत हिस्सा साल भर सोने के बाद मार्च महीने में खर्च किया गया.

मत्स्य पालन पर पूंजीगत व्यय का 67.67 प्रतिशत, वानिकी और वन्य जीव पर पूंजीगत व्यय का 77.15 प्रतिशत, मुख्य सिंचाई पर पूंजीगत व्यय का 51.74 प्रतिशत, बाढ़ नियंत्रण परियोजना पर पूंजीगत व्यय का 66.52 प्रतिशत, ऊर्जा परियोजनाओं पर पूंजीगत व्यय का 75.55 प्रतिशत बजट भी मार्च के महीने में खर्च किया गया.

दो विभागों ने तो हद ही कर दी: प्रदेश में दो विभाग ऐसे भी हैं, जिनका पूरा यानी 100 फीसदी बजट केवल मार्च के महीने में ही खर्च किया गया. ऊर्जा विभाग का 11 करोड़ 38 लाख रुपये का बजट था. इसे सालभर की आखिरी तिमाही के आखिरी महीने में पूरा खर्च किया गया. दूरसंचार और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग पर पूंजीगत परिव्यय का दो करोड़ 86 लाख रुपये केवल मार्च के महीने में ही खर्च किया गया.
ये भी पढ़ें: 'शिक्षा विभाग में हुए 443 घोटालों में नहीं हुई कार्रवाई, कांग्रेस की सरकार आने पर करेंगे जांच'

उत्तराखंड 22 साल बाद भी अपनी उम्मीदों और राज्य आंदोलनकारियों के सपनों का राज्य नहीं बन सका है. CAG की रिपोर्ट ने बताया कि राज्य के कर्ता धर्ताओं ने ही इसकी विकास की रफ्तार भटका दी है. अगर विकास योजनाओं के लिए आया पैसा ही सही समय पर खर्च नहीं होगा तो फिर राज्य विकास कैसे करेगा.

देहरादून: सैकड़ों करोड़ रुपये का आम बजट वित्तीय वर्ष की शुरुआत से लागू होता है. लेकिन उत्तराखंड में उलटी गंगा बहाई जाती है. यहां की सरकार और सरकारी विभाग वित्तीय वर्ष के आखिरी महीने यानी मार्च में बजट खर्च करने में बहादुरी समझती है. विधानसभा के बजट सत्र के दौरान सदन में पेश हुई कैग की रिपोर्ट ने ऐसा ही खुलासा किया है. CAG की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड के 20 विभागों में कुल बजट का 69 फीसदी से ज्यादा खर्च केवल मार्च के महीने में किया गया है.

उत्तराखंड बजट मैन्युअल के अनुच्छेद 183 के मुताबिक वित्तीय वर्ष की समाप्ति में सरकार और सरकारी विभागों को खर्च में तेजी से बचना चाहिए. लेकिन उत्तराखंड की सरकार ने 2020-21 में 20 मुख्य विभागों में 50 प्रतिशत से अधिक बजट केवल वित्तीय वर्ष के अंतिम महीने यानी मार्च में खर्च किया. इससे पता चलता है कि उत्तराखंड की सरकार और सरकारी विभाग विकास कार्यों में बजट खर्च करने में कितने अनियोजिता हैं.

ये विभाग रहे समय पर बजट खर्चने में फिसड्डी: शहरी विकास विभाग ने अपने बजट का 82.77 प्रतिशत, अनुसूचित जाति-जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने 67.92 प्रतिशत हिस्सा वित्तीय वर्ष के अंतिम महीने यानी मार्च में खर्च किया. इनके साथ ही सूचना विभाग ने 57.19 प्रतिशत, प्राकृतिक आपदा से राहत में 68.81 प्रतिशत और मत्स्य पालन विभाग ने 50.84 प्रतिशत बजट का हिस्सा मार्च में ही खर्च किया.

अन्य विभाग भी इसमें पीछे नहीं रहे. खाद्य भंडारण और गोदाम का 57.35 प्रतिशत, सहकारी विभाग का 63.43 प्रतिशत, पुलिस पर पूंजीगत व्यय का 50.24 प्रतिशत, लोक निर्माण विभाग में पूंजीगत व्यय का 72.01 प्रतिशत, चिकित्सा और लोक स्वास्थ्य में 72.42 प्रतिशत, आवास का 70.52 प्रतिशत, अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक कल्याण का पूंजीगत व्यय का 67.95 प्रतिशत हिस्सा साल भर सोने के बाद मार्च महीने में खर्च किया गया.

मत्स्य पालन पर पूंजीगत व्यय का 67.67 प्रतिशत, वानिकी और वन्य जीव पर पूंजीगत व्यय का 77.15 प्रतिशत, मुख्य सिंचाई पर पूंजीगत व्यय का 51.74 प्रतिशत, बाढ़ नियंत्रण परियोजना पर पूंजीगत व्यय का 66.52 प्रतिशत, ऊर्जा परियोजनाओं पर पूंजीगत व्यय का 75.55 प्रतिशत बजट भी मार्च के महीने में खर्च किया गया.

दो विभागों ने तो हद ही कर दी: प्रदेश में दो विभाग ऐसे भी हैं, जिनका पूरा यानी 100 फीसदी बजट केवल मार्च के महीने में ही खर्च किया गया. ऊर्जा विभाग का 11 करोड़ 38 लाख रुपये का बजट था. इसे सालभर की आखिरी तिमाही के आखिरी महीने में पूरा खर्च किया गया. दूरसंचार और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग पर पूंजीगत परिव्यय का दो करोड़ 86 लाख रुपये केवल मार्च के महीने में ही खर्च किया गया.
ये भी पढ़ें: 'शिक्षा विभाग में हुए 443 घोटालों में नहीं हुई कार्रवाई, कांग्रेस की सरकार आने पर करेंगे जांच'

उत्तराखंड 22 साल बाद भी अपनी उम्मीदों और राज्य आंदोलनकारियों के सपनों का राज्य नहीं बन सका है. CAG की रिपोर्ट ने बताया कि राज्य के कर्ता धर्ताओं ने ही इसकी विकास की रफ्तार भटका दी है. अगर विकास योजनाओं के लिए आया पैसा ही सही समय पर खर्च नहीं होगा तो फिर राज्य विकास कैसे करेगा.

Last Updated : Jun 18, 2022, 2:57 PM IST
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