देहरादून: उत्तराखंड में साक्षात देवों का वास है. जिसके प्रमाण आज भी देवभूमि में देखने को मिलते हैं. ऐसा ही एक अद्भुत प्रमाण है बाबा विश्वनाथ और मां जगदीशिला की देव डोली, जो आज भी यात्रा के लिए खुद अपना चुनती है. साथ ही इस यात्रा में मां जागेश्वरी लाखों श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण कर उन्हें आशीर्वाद देती है. इस साल भी 18 मई से यात्रा की शुरुआत तीर्थ नगरी हरिद्वार से होने जा रही है.
बता दें कि आदि काल से चली आ रही देवभूमि की लोक परंपरा आज भी उत्तराखंड के देव अंचलों में अपना अद्भुत प्रभाव डालती है. ऐसा ही एक अविस्मरणीय मंजर बाबा विश्वनाथ एवं मां जगदिशिला देव डोली रथ यात्रा में देखने को मिलता है. गुरु वशिष्ठ और व्यवहारिक देवांत के धनी स्वामी रामतीर्थ की तपस्थली उत्तराखंड के टिहरी जनपद में मौजूद पट्टी ग्यारहगांव-हिंदाव के विशोन पर्वत के लिए इस यात्रा की शुरुआत हरिद्वार से होती है.
इस साल भी 18 मई को इस यात्रा की शुरुआत तीर्थ नगरी हरिद्वार से होने जा रही है. अपनी यात्रा के दौरान ये देव डोली उत्तराखंड के 13 जनपदों में दस हजार पांच सौ किलोमीटर की दूरी तय करती है. इस बार ये देवयात्रा 18 मई को हरिद्वार से शुरू होकर सभी 13 जिलों में होते हुए 12 जून को गंगा दशहरा के शुभ पर्व पर विशोन पर्वत के नीलाछाड़ में अपने तय कार्यक्रमों के तहत विधि-विधान से सम्पन्न होगी.
देव डोली की है ये खास विशेषता
ये देवडोली आदि काल से देवभूमि के लोगों की आस्था का केंद्र रही है. भक्तों का कहना है कि इस देवडोली में एक विशेष तरह की वाइब्रेशन होती है, जिसे देवंश कहते है और ये डोली खुद ही अपना मार्ग तय करती है. देव डोली के साथ मौजूद पुजारी डोली के आदेशों का पालन करते हुए अपनी यात्रा को आगे बढ़ाते हैं.
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इस देव डोली यात्रा के बारें में पूर्व मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी बताते हैं कि हमेशा से ये देवडोली कई लोगों की मनोकामनाएं पूरी करती आई है. जिसके बाद इस पर लोगों में आस्था और मजबूत हुई है. नैथानी का कहना है कि ये देव डोली अपने मार्ग में आने वाली सभी महिलाओं पर विशेष कृपा बनाती है. साथ ही मार्ग में पड़ने वाली किसी नकारात्मक शक्तियों का चिन्हिकरण भी करती है.