रुद्रप्रयाग: कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों. दुष्यंत कुमार की इस कविता को आत्मसात करते हुए दुर्गम क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय के एक शिक्षक ने वह कर दिखाया जो शहरी क्षेत्र के सुविधा सम्पन्न विद्यालय भी नहीं कर सकते. एक ओर जहां शहरी क्षेत्रों में खुलने वाले अधिसंख्य प्राइवेट विद्यालय सरकारी विद्यालयों की बन्दी का कारण बन रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इस शिक्षक ने शिक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से सरकारी विद्यालय को चकाचौंध कर दिया है. देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट...
अगर मन में सच्ची लगन हो तो कोई कार्य असम्भव नहीं है. रुद्रप्रयाग मुख्यालय से चालीस किमी दूर स्थित रानीगढ़ पट्टी क्षेत्र के अन्तर्गत ग्राम पंचायत कोट-तल्ला में राजकीय प्राथमिक विद्यालय है. स्कूल में प्रवेश करते ही सभी छात्र-छात्रायें साफ सुथरी यूनिफॉर्म में नजर आते हैं. छात्र छात्राएं न केवल पढ़ाई में बल्कि सामान्य ज्ञान एवं अंग्रेजी में भी अच्छा दखल रखते हैं. मध्याह्न भोजन साफ-सुथरे माहौल में खाया जाता है. यह सब संभव हुआ स्कूल के शिक्षक सतेंद्र भंडारी के अथक प्रयासों से. उन्होंने एक दुर्गम क्षेत्र के विद्यालय को प्राइवेट विद्यालय से भी बेहतर रूप दिया है.
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शिक्षक सतेंद्र भंडारी का यह प्रयास उन शिक्षकों के लिए एक मिसाल भी है जो सुविधाओं का रोना रोकर शिक्षण में रूचि नहीं लेते हैं. साल 2009 से पहले विद्यालय की स्थिति काफी नाजुक बनी थी. विद्यालय जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारियों की अनदेखी का शिकार बना रहा. जब 15 जनवरी 2009 को शिक्षक सतेन्द्र भंडारी विद्यालय में आए तो उन्हें विद्यालय की स्थिति को देखकर काफी अफसोस हुआ.
ऐसे में शिक्षक भंडारी विद्यालय भवन को लेकर उन्होंने जिला स्तर से लेकर शासन स्तर तक के अधिकारियों से मुलाकात की और विद्यालय निर्माण को लेकर उनकी मेहनत रंग लाई, लेकिन तब तक विद्यालय में छात्र संख्या घट गई. उन्होंने जर्जर भवन में छात्रों की पढ़ाया-लिखाया और दिन-रात मेहनत की. इस बीच विद्यालय भवन भी बनकर तैयार हो गया और आज स्कूल में छात्र संख्या चालीस है.
शिक्षक भंडारी ने विद्यालय में अपने संसाधनों से न केवल अंग्रेजी पाठ्य सामाग्री एकत्रित की, बल्कि कम्प्यूटर भी लगाया. विद्यालय में सभी कक्षाओं में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षण कार्य हो रहा है, जबकि प्रोजेक्टर के माध्यम से छात्रों को पढ़ाया जा रहा है, जिससे वे सही तरीके से अध्ययन कर सकें और आसानी से उनके समझ में आ सके. विद्यालय की दीवारों पर वीर, वीरांगनाओं, स्वतंत्रता सेनानी के चित्रों को दीवारों पर उकेरा गया है, जिससे छात्रा आसानी से समझ सकें.
विद्यालय के चारों और पेड़-पौधों भी लगाये गये हैं. जब कोई बच्चा स्कूल में दाखिला लेता है तो वह एक पौध का रोपण करता है और पांच वर्ष तक उस पौध की देख-रेख का जिम्मा भी स्वयं बच्चा करता है. हर दिन बच्चे नर्सरी में जाकर पौधों की देख-रेख करते हैं. इसके साथ ही बच्चों को घर जैसा माहौल देने के लिए खेलकूद की सामग्री भी लगाई गई है विद्यालय की नर्सरी में 16 हजार पौध उपलब्ध है, जिसकी देखभाल ग्रामीण के साथ ही स्कूली बच्चे कर रहे हैं.
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विद्यालय में बढ़ती छात्र संख्या और पठन-पाठन से ग्रामीण काफी खुश हैं. बच्चे भी हर दिन स्कूल में पहुंचते हैं और पढ़ाई-लिखाई के साथ खेलकूद का आनंद लेते हैं. इसके अलावा नर्सरी में जाकर स्वयं ही पौधों की निराई-गुड़ाई भी करते हैं. वहीं, विद्यालय की प्रगति और शिक्षक की मेहनत पर जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल ने भी खुशी जताई है. उनकी माने तो जिला प्रशासन की ओर से ऐसे शिक्षकों का चयन किया जा रहा है, जो बच्चों के भविष्य के प्रति चिंतित हैं और इन अध्यापकों के जरिये अन्य शिक्षक भी सबक लें. उन्होंने कहा कि ऐसे शिक्षकों को जिले से लेकर राज्य स्तर पर सम्मान दिलाये जाने के प्रयास भी किये जायेंगे.
बहरहाल, छात्रों के भविष्य का जिम्मा शिक्षक के हाथों पर होता है और शिक्षक समाज का दर्पण भी है, जो छात्रों को आगे बढ़ाने के साथ ही समाज को सही राह दिखाता है, लेकिन कुछ शिक्षक ही ऐसे होते हैं जो छात्रों और समाज के प्रति समर्पित है. जो शिक्षक समाज के प्रति अपनी जवाबदेही समझने के साथ ही छात्रों के भविष्य को लेकर भी चिंतित हैं, उन शिक्षकों का सम्मान किया जाना भी जरूरी है.